< اَلْمَزَامِيرُ 71 >

بِكَ يَارَبُّ ٱحْتَمَيْتُ، فَلَا أَخْزَى إِلَى ٱلدَّهْرِ. ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द तू ही मेरी पनाह है; मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे!
بِعَدْلِكَ نَجِّنِي وَأَنْقِذْنِي. أَمِلْ إِلَيَّ أُذْنَكَ وَخَلِّصْنِي. ٢ 2
अपनी सदाक़त में मुझे रिहाई दे और छुड़ा; मेरी तरफ़ कान लगा, और मुझे बचा ले।
كُنْ لِي صَخْرَةَ مَلْجَإٍ أَدْخُلُهُ دَائِمًا. أَمَرْتَ بِخَلَاصِي لِأَنَّكَ صَخْرَتِي وَحِصْنِي. ٣ 3
तू मेरे लिए ठहरने की चट्टान हो, जहाँ मैं बराबर जा सकूँ; तूने मेरे बचाने का हुक्म दे दिया है, क्यूँकि मेरी चट्टान और मेरा क़िला' तू ही है।
يَا إِلَهِي، نَجِّنِي مِنْ يَدِ ٱلشِّرِّيرِ، مِنْ كَفِّ فَاعِلِ ٱلشَّرِّ وَٱلظَّالِمِ. ٤ 4
ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे शरीर के हाथ से, नारास्त और बेदर्द आदमी के हाथ से छुड़ा।
لِأَنَّكَ أَنْتَ رَجَائِي يَا سَيِّدِي ٱلرَّبَّ، مُتَّكَلِي مُنْذُ صِبَايَ. ٥ 5
क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू ही मेरी उम्मीद है; लड़कपन से मेरा भरोसा तुझ ही पर है।
عَلَيْكَ ٱسْتَنَدْتُ مِنَ ٱلْبَطْنِ، وَأَنْتَ مُخْرِجِي مِنْ أَحْشَاءِ أُمِّي. بِكَ تَسْبِيحِي دَائِمًا. ٦ 6
तू पैदाइश ही से मुझे संभालता आया है तू मेरी माँ के बतन ही से मेरा शफ़ीक़ रहा है; इसलिए मैं हमेशा तेरी सिताइश करता रहूँगा।
صِرْتُ كَآيَةٍ لِكَثِيرِينَ. أَمَّا أَنْتَ فَمَلْجَإِي ٱلْقَوِيُّ. ٧ 7
मैं बहुतों के लिए हैरत की वजह हूँ। लेकिन तू मेरी मज़बूत पनाहगाह है।
يَمْتَلِئُ فَمِي مِنْ تَسْبِيحِكَ، ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ مِنْ مَجْدِكَ. ٨ 8
मेरा मुँह तेरी सिताइश से, और तेरी ता'ज़ीम से दिन भर पुर रहेगा।
لَا تَرْفُضْنِي فِي زَمَنِ ٱلشَّيْخُوخَةِ. لَا تَتْرُكْنِي عِنْدَ فَنَاءِ قُوَّتِي. ٩ 9
बुढ़ापे के वक़्त मुझे न छोड़; मेरी ज़ईफ़ी में मुझे छोड़ न दे।
لِأَنَّ أَعْدَائِي تَقَاوَلُوا عَلَيَّ، وَٱلَّذِينَ يَرْصُدُونَ نَفْسِي تَآمَرُوا مَعًا. ١٠ 10
क्यूँकि मेरे दुश्मन मेरे बारे में बातें करते हैं, और जो मेरी जान की घात में हैं वह आपस में मशवरा करते हैं,
قَائِلِينَ: «إِنَّ ٱللهَ قَدْ تَرَكَهُ. ٱلْحَقُوهُ وَأَمْسِكُوهُ لِأَنَّهُ لَا مُنْقِذَ لَهُ». ١١ 11
और कहते हैं, कि ख़ुदा ने उसे छोड़ दिया है; उसका पीछा करो और पकड़ लो, क्यूँकि छुड़ाने वाला कोई नहीं।
يَا ٱللهُ، لَا تَبْعُدْ عَنِّي. يَا إِلَهِي، إِلَى مَعُونَتِي أَسْرِعْ. ١٢ 12
ऐ ख़ुदा, मुझ से दूर न रह! ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी मदद के लिए जल्दी कर!
لِيَخْزَ وَيَفْنَ مُخَاصِمُو نَفْسِي. لِيَلْبَسِ ٱلْعَارَ وَٱلْخَجَلَ ٱلْمُلْتَمِسُونَ لِي شَرًّا. ١٣ 13
मेरी जान के मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा और फ़ना हो जाएँ; मेरा नुक़्सान चाहने वाले मलामत और रुस्वाई से मुलब्बस हो।
أَمَّا أَنَا فَأَرْجُو دَائِمًا، وَأَزِيدُ عَلَى كُلِّ تَسْبِيحِكَ. ١٤ 14
लेकिन मैं हमेशा उम्मीद रख्खूंगा, और तेरी ता'रीफ़ और भी ज़्यादा किया करूँगा।
فَمِي يُحَدِّثُ بِعَدْلِكَ، ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ بِخَلَاصِكَ، لِأَنِّي لَا أَعْرِفُ لَهَا أَعْدَادًا. ١٥ 15
मेरा मुँह तेरी सदाक़त का, और तेरी नजात का बयान दिन भर करेगा; क्यूँकि मुझे उनका शुमार मा'लूम नहीं।
آتِي بِجَبَرُوتِ ٱلسَّيِّدِ ٱلرَّبِّ. أَذْكُرُ بِرَّكَ وَحْدَكَ. ١٦ 16
मैं ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़ुदरत के कामों का इज़हार करूँगा; मैं सिर्फ़ तेरी ही सदाक़त का ज़िक्र करूँगा।
اَللَّهُمَّ، قَدْ عَلَّمْتَنِي مُنْذُ صِبَايَ، وَإِلَى ٱلْآنَ أُخْبِرُ بِعَجَائِبِكَ. ١٧ 17
ऐ ख़ुदा, तू मुझे बचपन से सिखाता आया है, और मैं अब तक तेरे 'अजायब का बयान करता रहा हूँ।
وَأَيْضًا إِلَى ٱلشَّيْخُوخَةِ وَٱلشَّيْبِيَا ٱللهُ لَا تَتْرُكْنِي، حَتَّى أُخْبِرَ بِذِرَاعِكَ ٱلْجِيلَ ٱلْمُقْبِلَ، وَبِقُوَّتِكَ كُلَّ آتٍ. ١٨ 18
ऐ ख़ुदा, जब मैं बुड्ढा और सिर सफ़ेद हो जाऊँ तो मुझे न छोड़ना; जब तक कि मैं तेरी क़ुदरत आइंदा नसल पर, और तेरा ज़ोर हर आने वाले पर ज़ाहिर न कर दूँ।
وَبِرُّكَ إِلَى ٱلْعَلْيَاءِ يَا ٱللهُ، ٱلَّذِي صَنَعْتَ ٱلْعَظَائِمَ. يَا ٱللهُ، مَنْ مِثْلُكَ؟ ١٩ 19
ऐ ख़ुदा, तेरी सदाक़त भी बहुत बलन्द है। ऐ ख़ुदा, तेरी तरह कौन है जिसने बड़े बड़े काम किए हैं?
أَنْتَ ٱلَّذِي أَرَيْتَنَا ضِيقَاتٍ كَثِيرَةً وَرَدِيئَةً، تَعُودُ فَتُحْيِينَا، وَمِنْ أَعْمَاقِ ٱلْأَرْضِ تَعُودُ فَتُصْعِدُنَا. ٢٠ 20
तू जिसने हम को बहुत और सख़्त तकलीफ़ें दिखाई हैं फिर हम को ज़िन्दा करेगा; और ज़मीन की तह से हमें फिर ऊपर ले आएगा।
تَزِيدُ عَظَمَتِي وَتَرْجِعُ فَتُعَزِّينِي. ٢١ 21
तू मेरी 'अज़मत को बढ़ा, और फिर कर मुझे तसल्ली दे।
فَأَنَا أَيْضًا أَحْمَدُكَ بِرَبَابٍ، حَقَّكَ يَا إِلَهِي. أُرَنِّمُ لَكَ بِٱلْعُودِ يَا قُدُّوسَ إِسْرَائِيلَ. ٢٢ 22
ऐ मेरे ख़ुदा, मैं बरबत पर तेरी, हाँ तेरी सच्चाई की हम्द करूँगा; ऐ इस्राईल के पाक! मैं सितार के साथ तेरी मदहसराई करूँगा।
تَبْتَهِجُ شَفَتَايَ إِذْ أُرَنِّمُ لَكَ، وَنَفْسِي ٱلَّتِي فَدَيْتَهَا. ٢٣ 23
जब मैं तेरी मदहसराई करूँगा, तो मेरे होंट बहुत ख़ुश होंगे; और मेरी जान भी जिसका तूने फ़िदिया दिया है।
وَلِسَانِي أَيْضًا ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ يَلْهَجُ بِبِرِّكَ. لِأَنَّهُ قَدْ خَزِيَ، لِأَنَّهُ قَدْ خَجِلَ ٱلْمُلْتَمِسُونَ لِي شَرًّا. ٢٤ 24
और मेरी ज़बान दिन भर तेरी सदाक़त का ज़िक्र करेगी; क्यूँकि मेरा नुक़्सान चाहने वाले शर्मिन्दा और पशेमान हुए हैं।

< اَلْمَزَامِيرُ 71 >