< اَلْمَزَامِيرُ 64 >

لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ. مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ اِسْتَمِعْ يَا ٱللهُ صَوْتِي فِي شَكْوَايَ. مِنْ خَوْفِ ٱلْعَدُوِّ ٱحْفَظْ حَيَاتِي. ١ 1
ऐ ख़ुदा मेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन ले मेरी जान को दुश्मन के ख़ौफ़ से बचाए रख।
ٱسْتُرْنِي مِنْ مُؤَامَرَةِ ٱلْأَشْرَارِ، مِنْ جُمْهُورِ فَاعِلِي ٱلْإِثْمِ، ٢ 2
शरीरों के ख़ुफ़िया मश्वरे से, और बदकिरदारों के हँगामे से मुझे छिपा ले
ٱلَّذِينَ صَقَلُوا أَلْسِنَتَهُمْ كَٱلسَّيْفِ. فَوَّقُوا سَهْمَهُمْ كَلَامًا مُرًّا، ٣ 3
जिन्होंने अपनी ज़बान तलवार की तरह तेज़ की, और तल्ख़ बातों के तीरों का निशाना लिया है;
لِيَرْمُوا ٱلْكَامِلَ فِي ٱلْمُخْتَفَى بَغْتَةً. يَرْمُونَهُ وَلَا يَخْشَوْنَ. ٤ 4
ताकि उनको ख़ुफ़िया मक़ामों में कामिल आदमी पर चलाएँ; वह उनको अचानक उस पर चलाते हैं और डरते नहीं।
يُشَدِّدُونَ أَنْفُسَهُمْ لِأَمْرٍ رَدِيءٍ. يَتَحَادَثُونَ بِطَمْرِ فِخَاخٍ. قَالُوا: «مَنْ يَرَاهُمْ؟». ٥ 5
वह बुरे काम का मज़बूत इरादा करते हैं; वह फंदे लगाने की सलाह करते हैं, वह कहते हैं, “हम को कौन देखेगा?”
يَخْتَرِعُونَ إِثْمًا، تَمَّمُوا ٱخْتِرَاعًا مُحْكَمًا. وَدَاخِلُ ٱلْإِنْسَانِ وَقَلْبُهُ عَمِيقٌ. ٦ 6
वह शरारतों को खोज खोज कर निकालते हैं; वह कहते हैं, “हमने खू़ब खोज लगाया।” उनमें से हर एक का बातिन और दिल 'अमीक है।
فَيَرْمِيهِمِ ٱللهُ بِسَهْمٍ. بَغْتَةً كَانَتْ ضَرْبَتُهُمْ. ٧ 7
लेकिन ख़ुदा उन पर तीर चलाएगा; वह अचानक तीर से ज़ख़्मी हो जाएँगे।
وَيُوقِعُونَ أَلْسِنَتَهُمْ عَلَى أَنْفُسِهِمْ. يُنْغِضُ ٱلرَّأْسَ كُلُّ مَنْ يَنْظُرُ إِلَيْهِمْ. ٨ 8
और उन ही की ज़बान उनको तबाह करेगी; जितने उनको देखेंगे सब सिर हिलाएँगे।
وَيَخْشَى كُلُّ إِنْسَانٍ، وَيُخْبِرُ بِفِعْلِ ٱللهِ، وَبِعَمَلِهِ يَفْطَنُونَ. ٩ 9
और सब लोग डर जाएँगे, और ख़ुदा के काम का बयान करेंगे; और उसके तरीक़ — ए — 'अमल को बख़ूबी समझ लेंगे।
يَفْرَحُ ٱلصِّدِّيقُ بِٱلرَّبِّ وَيَحْتَمِي بِهِ، وَيَبْتَهِجُ كُلُّ ٱلْمُسْتَقِيمِي ٱلْقُلُوبِ. ١٠ 10
सादिक़ ख़ुदावन्द में ख़ुश होगा, और उस पर भरोसा करेगा, और जितने रास्तदिल हैं सब फ़ख़्र करेंगे।

< اَلْمَزَامِيرُ 64 >