< اَلْمَزَامِيرُ 61 >

لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ذَوَاتِ ٱلْأَوْتَارِ». لِدَاوُدَ اِسْمَعْ يَا ٱللهُ صُرَاخِي، وَٱصْغَ إِلَى صَلَاتِي. ١ 1
ऐ ख़ुदा, मेरी फ़रियाद सुन! मेरी दुआ पर तवज्जुह कर।
مِنْ أَقْصَى ٱلْأَرْضِ أَدْعُوكَ إِذَا غُشِيَ عَلَى قَلْبِي. إِلَى صَخْرَةٍ أَرْفَعَ مِنِّي تَهْدِينِي. ٢ 2
मैं अपनी अफ़सुर्दा दिली में ज़मीन की इन्तिहा से तुझे पुकारूँगा; तू मुझे उस चट्टान पर ले चल जो मुझसे ऊँची है;
لِأَنَّكَ كُنْتَ مَلْجَأً لِي، بُرْجَ قُوَّةٍ مِنْ وَجْهِ ٱلْعَدُوِّ. ٣ 3
क्यूँकि तू मेरी पनाह रहा है, और दुश्मन से बचने के लिए ऊँचा बुर्ज।
لَأَسْكُنَنَّ فِي مَسْكَنِكَ إِلَى ٱلدُّهُورِ. أَحْتَمِي بِسِتْرِ جَنَاحَيْكَ. سِلَاهْ. ٤ 4
मैं हमेशा तेरे खे़मे में रहूँगा। मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा।
لِأَنَّكَ أَنْتَ يَا ٱللهُ ٱسْتَمَعْتَ نُذُورِي. أَعْطَيْتَ مِيرَاثَ خَائِفِي ٱسْمِكَ. ٥ 5
क्यूँकि ऐ ख़ुदा तूने मेरी मिन्नतें क़ुबूल की हैं तूने मुझे उन लोगों की सी मीरास बख़्शी है जो तेरे नाम से डरते हैं।
إِلَى أَيَّامِ ٱلْمَلِكِ تُضِيفُ أَيَّامًا. سِنِينُهُ كَدَوْرٍ فَدَوْرٍ. ٦ 6
तू बादशाह की उम्र दराज़ करेगा; उसकी उम्र बहुत सी नसलों के बराबर होगी।
يَجْلِسُ قُدَّامَ ٱللهِ إِلَى ٱلدَّهْرِ. ٱجْعَلْ رَحْمَةً وَحَقًّا يَحْفَظَانِهِ. ٧ 7
वह ख़ुदा के सामने हमेशा क़ाईम रहेगा; तू शफ़क़त और सच्चाई को उसकी हिफ़ाज़त के लिए मुहय्या कर।
هَكَذَا أُرَنِّمُ لِٱسْمِكَ إِلَى ٱلْأَبَدِ، لِوَفَاءِ نُذُورِي يَوْمًا فَيَوْمًا. ٨ 8
यूँ मैं हमेशा तेरी मदहसराई करूँगा, ताकि रोज़ाना अपनी मिन्नतें पूरी करूँ।

< اَلْمَزَامِيرُ 61 >