< اَلْمَزَامِيرُ 54 >

لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ عَلَى «ذَوَاتِ ٱلْأَوْتَارِ». قَصِيدَةٌ لِدَاوُدَ عِنْدَمَا أَتَى ٱلزِّيفِيُّونَ وَقَالُوا لِشَاوُلَ: «أَلَيْسَ دَاوُدُ مُخْتَبِئًا عِنْدَنَا؟». اَللَّهُمَّ، بِٱسْمِكَ خَلِّصْنِي، وَبِقُوَّتِكَ ٱحْكُمْ لِي. ١ 1
ऐ ख़ुदा! अपने नाम के वसीले से मुझे बचा, और अपनी कु़दरत से मेरा इन्साफ़ कर।
ٱسْمَعْ يَا ٱللهُ صَلَاتِي. ٱصْغَ إِلَى كَلَامِ فَمِي. ٢ 2
ऐ ख़ुदा मेरी दुआ सुन ले; मेरे मुँह की बातों पर कान लगा।
لِأَنَّ غُرَبَاءَ قَدْ قَامُوا عَلَيَّ، وَعُتَاةً طَلَبُوا نَفْسِي. لَمْ يَجْعَلُوا ٱللهَ أَمَامَهُمْ. سِلَاهْ. ٣ 3
क्यूँकि बेगाने मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोग मेरी जान के तलबगार हुए हैं; उन्होंने ख़ुदा को अपने सामने नहीं रख्खा।
هُوَذَا ٱللهُ مُعِينٌ لِي. ٱلرَّبُّ بَيْنَ عَاضِدِي نَفْسِي. ٤ 4
देखो, ख़ुदा मेरा मददगार है! ख़ुदावन्द मेरी जान को संभालने वालों में है।
يَرْجِعُ ٱلشَّرُّ عَلَى أَعْدَائِي. بِحَقِّكَ أَفْنِهِمْ. ٥ 5
वह बुराई को मेरे दुश्मनों ही पर लौटा देगा; तू अपनी सच्चाई की रूह से उनको फ़ना कर!
أَذْبَحُ لَكَ مُنْتَدِبًا. أَحْمَدُ ٱسْمَكَ يَارَبُّ لِأَنَّهُ صَالِحٌ. ٦ 6
मैं तेरे सामने रज़ा की कु़र्बानी चढ़ाऊँगा; ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे नाम की शुक्रगु़ज़ारी करूँगा क्यूँकि वह खू़ब है।
لِأَنَّهُ مِنْ كُلِّ ضِيْقٍ نَجَّانِي، وَبِأَعْدَائِي رَأَتْ عَيْنِي. ٧ 7
क्यूँकि उसने मुझे सब मुसीबतों से छुड़ाया है, और मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया है।

< اَلْمَزَامِيرُ 54 >