< اَلْمَزَامِيرُ 44 >

لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ. لِبَنِي قُورَحَ. قَصِيدَةٌ اَللَّهُمَّ، بِآذَانِنَا قَدْ سَمِعْنَا. آبَاؤُنَا أَخْبَرُونَا بِعَمَلٍ عَمِلْتَهُ فِي أَيَّامِهِمْ، فِي أَيَّامِ ٱلْقِدَمِ. ١ 1
ऐ ख़ुदा, हम ने अपने कानों से सुना; हमारे बाप — दादा ने हम से बयान किया, कि तूने उनके दिनों में पिछले ज़माने में क्या क्या काम किए।
أَنْتَ بِيَدِكَ ٱسْتَأْصَلْتَ ٱلْأُمَمَ وَغَرَسْتَهُمْ. حَطَّمْتَ شُعُوبًا وَمَدَدْتَهُمْ. ٢ 2
तूने क़ौमों को अपने हाथ से निकाल दिया, और उनको बसाया: तूने उम्मतों को तबाह किया, और इनको चारों तरफ़ फैलाया;
لِأَنَّهُ لَيْسَ بِسَيْفِهِمْ ٱمْتَلَكُوا ٱلْأَرْضَ، وَلَا ذِرَاعُهُمْ خَلَّصَتْهُمْ، لَكِنْ يَمِينُكَ وَذِرَاعُكَ وَنُورُ وَجْهِكَ، لِأَنَّكَ رَضِيتَ عَنْهُمْ. ٣ 3
क्यूँकि न तो यह अपनी तलवार से इस मुल्क पर क़ाबिज़ हुए, और न इनकी ताक़त ने इनको बचाया; बल्कि तेरे दहने हाथ और तेरी ताक़त और तेरे चेहरे के नूर ने इनको फ़तह बख़्शी क्यूँकि तू इनसे ख़ुश था।
أَنْتَ هُوَ مَلِكِي يَا ٱللهُ، فَأْمُرْ بِخَلَاصِ يَعْقُوبَ. ٤ 4
ऐ ख़ुदा! तू मेरा बादशाह है; या'क़ूब के हक़ में नजात का हुक्म सादिर फ़रमा।
بِكَ نَنْطَحُ مُضَايِقِينَا. بِٱسْمِكَ نَدُوسُ ٱلْقَائِمِينَ عَلَيْنَا. ٥ 5
तेरी बदौलत हम अपने मुख़ालिफ़ों को गिरा देंगे; तेरे नाम से हम अपने ख़िलाफ़ उठने वालों को पस्त करेंगे।
لِأَنِّي عَلَى قَوْسِي لَا أَتَّكِلُ، وَسَيْفِي لَا يُخَلِّصُنِي. ٦ 6
क्यूँकि न तो मैं अपनी कमान पर भरोसा करूँगा, और न मेरी तलवार मुझे बचाएगी।
لِأَنَّكَ أَنْتَ خَلَّصْتَنَا مِنْ مُضَايِقِينَا، وَأَخْزَيْتَ مُبْغِضِينَا. ٧ 7
लेकिन तूने हम को हमारे मुख़ालिफ़ों से बचाया है, और हम से 'अदावत रखने वालों को शर्मिन्दा किया।
بِٱللهِ نَفْتَخِرُ ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ، وَٱسْمَكَ نَحْمَدُ إِلَى ٱلدَّهْرِ. سِلَاهْ. ٨ 8
हम दिन भर ख़ुदा पर फ़ख़्र करते रहे हैं, और हमेशा हम तेरे ही नाम का शुक्रिया अदा करते रहेंगे।
لَكِنَّكَ قَدْ رَفَضْتَنَا وَأَخْجَلْتَنَا، وَلَا تَخْرُجُ مَعَ جُنُودِنَا. ٩ 9
लेकिन तूने तो अब हम को छोड़ दिया और हम को रुस्वा किया, और हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।
تُرْجِعُنَا إِلَى ٱلْوَرَاءِ عَنِ ٱلْعَدُوِّ، وَمُبْغِضُونَا نَهَبُوا لِأَنْفُسِهِمْ. ١٠ 10
तू हम को मुख़ालिफ़ के आगे पस्पा करता है, और हम से 'अदावत रखने वाले लूट मार करते हैं
جَعَلْتَنَا كَٱلضَّأْنِ أُكْلًا. ذَرَّيْتَنَا بَيْنَ ٱلْأُمَمِ. ١١ 11
तूने हम को ज़बह होने वाली भेड़ों की तरह कर दिया, और क़ौमों के बीच हम को तितर बितर किया।
بِعْتَ شَعْبَكَ بِغَيْرِ مَالٍ، وَمَا رَبِحْتَ بِثَمَنِهِمْ. ١٢ 12
तू अपने लोगों को मुफ़्त बेच डालता है, और उनकी क़ीमत से तेरी दौलत नहीं बढ़ती।
تَجْعَلُنَا عَارًا عِنْدَ جِيرَانِنَا، هُزْأَةً وَسُخْرَةً لِلَّذِينَ حَوْلَنَا. ١٣ 13
तू हम को हमारे पड़ोसियों की मलामत का निशाना, और हमारे आसपास के लोगों के तमसखु़र और मज़ाक़ का जरिया' बनाता है।
تَجْعَلُنَا مَثَلًا بَيْنَ ٱلشُّعُوبِ. لِإِنْغَاضِ ٱلرَّأْسِ بَيْنَ ٱلْأُمَمِ. ١٤ 14
तू हम को क़ौमों के बीच एक मिसाल, और उम्मतों में सिर हिलाने की वजह ठहराता है।
ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ خَجَلِي أَمَامِي، وَخِزْيُ وَجْهِي قَدْ غَطَّانِي. ١٥ 15
मेरी रुस्वाई दिन भर मेरे सामने रहती है, और मेरे मुँह पर शर्मिन्दी छा गई।
مِنْ صَوْتِ ٱلْمُعَيِّرِ وَٱلشَّاتِمِ. مِنْ وَجْهِ عَدُوٍّ وَمُنْتَقِمٍ. ١٦ 16
मलामत करने वाले और कुफ़्र बकने वाले की बातों की वजह से, और मुख़ालिफ़ और इन्तक़ाम लेने वाले की वजह।
هَذَا كُلُّهُ جَاءَ عَلَيْنَا، وَمَا نَسِينَاكَ وَلَا خُنَّا فِي عَهْدِكَ. ١٧ 17
यह सब कुछ हम पर बीता तोभी हम तुझ को नहीं भूले, न तेरे 'अहद से बेवफ़ाई की;
لَمْ يَرْتَدَّ قَلْبُنَا إِلَى وَرَاءٍ، وَلَا مَالَتْ خَطْوَتُنَا عَنْ طَرِيقِكَ، ١٨ 18
न हमारे दिल नाफ़रमान हुए, न हमारे क़दम तेरी राह से मुड़े;
حَتَّى سَحَقْتَنَا فِي مَكَانِ ٱلتَّنَانِينِ، وَغَطَّيْتَنَا بِظِلِّ ٱلْمَوْتِ. ١٩ 19
जो तूने हम को गीदड़ों की जगह में खू़ब कुचला, और मौत के साये में हम को छिपाया।
إِنْ نَسِينَا ٱسْمَ إِلَهِنَا أَوْ بَسَطْنَا أَيْدِيَنَا إِلَى إِلَهٍ غَرِيبٍ، ٢٠ 20
अगर हम अपने ख़ुदा के नाम को भूले, या हम ने किसी अजनबी मा'बूद के आगे अपने हाथ फैलाए हों:
أَفَلَا يَفْحَصُ ٱللهُ عَنْ هَذَا؟ لِأَنَّهُ هُوَ يَعْرِفُ خَفِيَّاتِ ٱلْقَلْبِ. ٢١ 21
तो क्या ख़ुदा इसे दरियाफ़्त न कर लेगा? क्यूँकि वह दिलों के राज़ जानता है।
لِأَنَّنَا مِنْ أَجْلِكَ نُمَاتُ ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ. قَدْ حُسِبْنَا مِثْلَ غَنَمٍ لِلذَّبْحِ. ٢٢ 22
बल्कि हम तो दिन भर तेरी ही ख़ातिर जान से मारे जाते हैं, और जैसे ज़बह होने वाली भेड़ें समझे जाते हैं।
اِسْتَيْقِظْ! لِمَاذَا تَتَغَافَى يَارَبُّ؟ ٱنْتَبِهْ! لَا تَرْفُضْ إِلَى ٱلْأَبَدِ. ٢٣ 23
ऐ ख़ुदावन्द, जाग! तू क्यूँ सोता है? उठ! हमेशा के लिए हम को न छोड़।
لِمَاذَا تَحْجُبُ وَجْهَكَ وَتَنْسَى مَذَلَّتَنَا وَضِيقَنَا؟ ٢٤ 24
तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और हमारी मुसीबत और मज़लूमी को भूलता है?
لِأَنَّ أَنْفُسَنَا مُنْحَنِيَةٌ إِلَى ٱلتُّرَابِ. لَصِقَتْ فِي ٱلْأَرْضِ بُطُونُنَا. ٢٥ 25
क्यूँकि हमारी जान ख़ाक में मिल गई, हमारा जिस्म मिट्टी हो गया।
قُمْ عَوْنًا لَنَا وَٱفْدِنَا مِنْ أَجْلِ رَحْمَتِكَ. ٢٦ 26
हमारी मदद के लिए उठ और अपनी शफ़क़त की ख़ातिर, हमारा फ़िदिया दे।

< اَلْمَزَامِيرُ 44 >