< اَلْمَزَامِيرُ 43 >

اِقْضِ لِي يَا ٱللهُ، وَخَاصِمْ مُخَاصَمَتِي مَعَ أُمَّةٍ غَيْرِ رَاحِمَةٍ، وَمِنْ إِنْسَانِ غِشٍّ وَظُلْمٍ نَجِّنِي. ١ 1
ऐ ख़ुदा, मेरा इन्साफ़ कर और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर, और दग़ाबाज़ और बेइन्साफ़ आदमी से मुझे छुड़ा।
لِأَنَّكَ أَنْتَ إِلَهُ حِصْنِي. لِمَاذَا رَفَضْتَنِي؟ لِمَاذَا أَتَمَشَّى حَزِينًا مِنْ مُضَايَقَةِ ٱلْعَدُوِّ؟ ٢ 2
क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है, तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?
أَرْسِلْ نُورَكَ وَحَقَّكَ، هُمَا يَهْدِيَانِنِي وَيَأْتِيَانِبِي إِلَى جَبَلِ قُدْسِكَ وَإِلَى مَسَاكِنِكَ. ٣ 3
अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज, वही मेरी रहबरी करें, वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए।
فَآتِي إِلَى مَذْبَحِ ٱللهِ، إِلَى ٱللهِ بَهْجَةِ فَرَحِي، وَأَحْمَدُكَ بِٱلْعُودِ يَا ٱللهُ إِلَهِي. ٤ 4
तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा, ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है; ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा।
لِمَاذَا أَنْتِ مُنْحَنِيَةٌ يَا نَفْسِي؟ وَلِمَاذَا تَئِنِّينَ فِيَّ؟ تَرَجَّيِ ٱللهَ، لِأَنِّي بَعْدُ أَحْمَدُهُ، خَلَاصَ وَجْهِي وَإِلَهِي. ٥ 5
ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।

< اَلْمَزَامِيرُ 43 >