< اَلْمَزَامِيرُ 42 >

لِإِمَامِ ٱلْمُغَنِّينَ. قَصِيدَةٌ لِبَنِي قُورَحَ كَمَا يَشْتَاقُ ٱلْإِيَّلُ إِلَى جَدَاوِلِ ٱلْمِيَاهِ، هَكَذَا تَشْتَاقُ نَفْسِي إِلَيْكَ يَا ٱللهُ. ١ 1
प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का मश्कील जैसे हिरनी नदी के जल के लिये हाँफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हाँफता हूँ।
عَطِشَتْ نَفْسِي إِلَى ٱللهِ، إِلَى ٱلْإِلَهِ ٱلْحَيِّ. مَتَى أَجِيءُ وَأَتَرَاءَى قُدَّامَ ٱللهِ؟ ٢ 2
जीविते परमेश्वर, हाँ परमेश्वर, का मैं प्यासा हूँ, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुँह दिखाऊँगा?
صَارَتْ لِي دُمُوعِي خُبْزًا نَهَارًا وَلَيْلًا إِذْ قِيلَ لِي كُلَّ يَوْمٍ: «أَيْنَ إِلَهُكَ؟». ٣ 3
मेरे आँसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है?
هَذِهِ أَذْكُرُهَا فَأَسْكُبُ نَفْسِي عَلَيَّ: لِأَنِّي كُنْتُ أَمُرُّ مَعَ ٱلْجُمَّاعِ، أَتَدَرَّجُ مَعَهُمْ إِلَى بَيْتِ ٱللهِ بِصَوْتِ تَرَنُّمٍ وَحَمْدٍ، جُمْهُورٌ مُعَيِّدٌ. ٤ 4
मैं कैसे भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है।
لِمَاذَا أَنْتِ مُنْحَنِيَةٌ يَا نَفْسِي؟ وَلِمَاذَا تَئِنِّينَ فِيَّ؟ ٱرْتَجِي ٱللهَ، لِأَنِّي بَعْدُ أَحْمَدُهُ، لِأَجْلِ خَلَاصِ وَجْهِهِ. ٥ 5
हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा।
يَا إِلَهِي، نَفْسِي مُنْحَنِيَةٌ فِيَّ، لِذَلِكَ أَذْكُرُكَ مِنْ أَرْضِ ٱلْأُرْدُنِّ وَجِبَالِ حَرْمُونَ، مِنْ جَبَلِ مِصْعَرَ. ٦ 6
हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिए मैं यरदन के पास के देश से और हेर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूँ।
غَمْرٌ يُنَادِي غَمْرًا عِنْدَ صَوْتِ مَيَازِيبِكَ. كُلُّ تَيَّارَاتِكَ وَلُجَجِكَ طَمَتْ عَلَيَّ. ٧ 7
तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूँ।
بِٱلنَّهَارِ يُوصِي ٱلرَّبُّ رَحْمَتَهُ، وَبِاللَّيْلِ تَسْبِيحُهُ عِنْدِي صَلَاةٌ لِإِلَهِ حَيَاتِي. ٨ 8
तो भी दिन को यहोवा अपनी शक्ति और करुणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊँगा, और अपने जीवनदाता परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा।
أَقُولُ لِلهِ صَخْرَتِي: «لِمَاذَا نَسِيتَنِي؟ لِمَاذَا أَذْهَبُ حَزِينًا مِنْ مُضَايَقَةِ ٱلْعَدُوِّ؟». ٩ 9
मैं परमेश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, “तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अत्याचार के मारे क्यों शोक का पहरावा पहने हुए चलता फिरता हूँ?”
بِسَحْقٍ فِي عِظَامِي عَيَّرَنِي مُضَايِقِيَّ، بِقَوْلِهِمْ لِي كُلَّ يَوْمٍ: «أَيْنَ إِلَهُكَ؟». ١٠ 10
१०मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं, मानो उससे मेरी हड्डियाँ चूर-चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है?
لِمَاذَا أَنْتِ مُنْحَنِيَةٌ يَا نَفْسِي؟ وَلِمَاذَا تَئِنِّينَ فِيَّ؟ تَرَجَّيِ ٱللهَ، لِأَنِّي بَعْدُ أَحْمَدُهُ، خَلَاصَ وَجْهِي وَإِلَهِي. ١١ 11
११हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।

< اَلْمَزَامِيرُ 42 >