< اَلْمَزَامِيرُ 38 >

مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ لِلتَّذْكِيرِ يَارَبُّ، لَا تُوَبِّخْنِي بِسَخَطِكَ، وَلَا تُؤَدِّبْنِي بِغَيْظِكَ، ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में मुझे झिड़क न दे, और अपने ग़ज़ब में मुझे तम्बीह न कर।
لِأَنَّ سِهَامَكَ قَدِ ٱنْتَشَبَتْ فِيَّ، وَنَزَلَتْ عَلَيَّ يَدُكَ. ٢ 2
क्यूँकि तेरे दुख मुझ में लगे हैं, और तेरा हाथ मुझ पर भारी है।
لَيْسَتْ فِي جَسَدِي صِحَّةٌ مِنْ جِهَةِ غَضَبِكَ. لَيْسَتْ فِي عِظَامِي سَلَامَةٌ مِنْ جِهَةِ خَطِيَّتِي. ٣ 3
तेरे क़हर की वजह से मेरे जिस्म में सिहत नहीं; और मेरे गुनाह की वजह से मेरी हड्डियों को आराम नहीं।
لِأَنَّ آثَامِي قَدْ طَمَتْ فَوْقَ رَأْسِي. كَحِمْلٍ ثَقِيلٍ أَثْقَلَ مِمَّا أَحْتَمِلُ. ٤ 4
क्यूँकि मेरी बदी मेरे सिर से गुज़र गई, और वह बड़े बोझ की तरह मेरे लिए बहुत भारी है।
قَدْ أَنْتَنَتْ، قَاحَتْ حُبُرُ ضَرْبِي مِنْ جِهَةِ حَمَاقَتِي. ٥ 5
मेरी बेवक़ूफ़ी की वजह से, मेरे ज़ख़्मों से बदबू आती है, वह सड़ गए हैं।
لَوِيتُ. ٱنْحَنَيْتُ إِلَى ٱلْغَايَةِ. ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ ذَهَبْتُ حَزِينًا. ٦ 6
मैं पुरदर्द और बहुत झुका हुआ हूँ; मैं दिन भर मातम करता फिरता हूँ।
لِأَنَّ خَاصِرَتَيَّ قَدِ ٱمْتَلَأَتَا ٱحْتِرَاقًا، وَلَيْسَتْ فِي جَسَدِي صِحَّةٌ. ٧ 7
क्यूँकि मेरी कमर में दर्द ही दर्द है, और मेरे जिस्म में कुछ सिहत नहीं।
خَدِرْتُ وَٱنْسَحَقْتُ إِلَى ٱلْغَايَةِ. كُنْتُ أَئِنُّ مِنْ زَفِيرِ قَلْبِي. ٨ 8
मैं कमज़ोर और बहुत कुचला हुआ हूँ और दिल की बेचैनी की वजह से कराहता रहा।
يَارَبُّ، أَمَامَكَ كُلُّ تَأَوُّهِي، وَتَنَهُّدِي لَيْسَ بِمَسْتُورٍ عَنْكَ. ٩ 9
ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सारी तमन्ना तेरे सामने है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं।
قَلْبِي خَافِقٌ. قُوَّتِي فَارَقَتْنِي، وَنُورُ عَيْنِي أَيْضًا لَيْسَ مَعِي. ١٠ 10
मेरा दिल धड़कता है, मेरी ताक़त घटी जाती है; मेरी आँखों की रोशनी भी मुझ से जाती रही।
أَحِبَّائِي وَأَصْحَابِي يَقِفُونَ تُجَاهَ ضَرْبَتِي، وَأَقَارِبِي وَقَفُوا بَعِيدًا. ١١ 11
मेरे 'अज़ीज़ और दोस्त मेरी बला में अलग हो गए, और मेरे रिश्तेदार दूर जा खड़े हुए।
وَطَالِبُو نَفْسِي نَصَبُوا شَرَكًا، وَٱلْمُلْتَمِسُونَ لِيَ ٱلشَّرَّ تَكَلَّمُوا بِٱلْمَفَاسِدِ، وَٱلْيَوْمَ كُلَّهُ يَلْهَجُونَ بِٱلْغِشِّ. ١٢ 12
मेरी जान के तलबगार मेरे लिए जाल बिछाते हैं, और मेरे नुक़सान के तालिब शरारत की बातें बोलते, और दिन भर मक्र — ओ — फ़रेब के मन्सूबे बाँधते हैं।
وَأَمَّا أَنَا فَكَأَصَمَّ لَا أَسْمَعُ. وَكَأَبْكَمَ لَا يَفْتَحُ فَاهُ. ١٣ 13
लेकिन मैं बहरे की तरह सुनता ही नहीं, मैं गूँगे की तरह मुँह नहीं खोलता।
وَأَكُونُ مِثْلَ إِنْسَانٍلَا يَسْمَعُ، وَلَيْسَ فِي فَمِهِ حُجَّةٌ. ١٤ 14
बल्कि मैं उस आदमी की तरह हूँ जिसे सुनाई नहीं देता, और जिसके मुँह में मलामत की बातें नहीं।
لِأَنِّي لَكَ يَارَبُّ صَبَرْتُ، أَنْتَ تَسْتَجِيبُ يَارَبُّ إِلَهِي. ١٥ 15
क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, मुझे तुझ से उम्मीद है, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! तू जवाब देगा।
لِأَنِّي قُلْتُ: «لِئَلَّا يَشْمَتُوا بِي». عِنْدَمَا زَلَّتْ قَدَمِي تَعَظَّمُوا عَلَيَّ. ١٦ 16
क्यूँकि मैंने कहा, कि कहीं वह मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ, जब मेरा पाँव फिसलता है, तो वह मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर करते हैं।
لِأَنِّي مُوشِكٌ أَنْ أَظْلَعَ، وَوَجَعِي مُقَابِلِي دَائِمًا. ١٧ 17
क्यूँकि मैं गिरने ही को हूँ, और मेरा ग़म बराबर मेरे सामने है।
لِأَنَّنِي أُخْبِرُ بِإِثْمِي، وَأَغْتَمُّ مِنْ خَطِيَّتِي. ١٨ 18
इसलिए कि मैं अपनी बदी को ज़ाहिर करूँगा, और अपने गुनाह की वजह से ग़मगीन रहूँगा।
وَأَمَّا أَعْدَائِي فَأَحْيَاءٌ. عَظُمُوا. وَٱلَّذِينَ يُبْغِضُونَنِي ظُلْمًا كَثُرُوا. ١٩ 19
लेकिन मेरे दुश्मन चुस्त और ज़बरदस्त हैं, और मुझ से नाहक 'अदावत रखने वाले बहुत हो गए हैं।
وَٱلْمُجَازُونَ عَنِ ٱلْخَيْرِ بِشَرٍّ، يُقَاوِمُونَنِي لِأَجْلِ ٱتِّبَاعِي ٱلصَّلَاحَ. ٢٠ 20
जो नेकी के बदले बदी करते हैं, वह भी मेरे मुख़ालिफ़ हैं; क्यूँकि मैं नेकी की पैरवी करता हूँ।
لَا تَتْرُكْنِي يَارَبُّ. يَاإِلَهِي، لَا تَبْعُدْ عَنِّي. ٢١ 21
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे छोड़ न दे! ऐ मेरे ख़ुदा, मुझ से दूर न हो!
أَسْرِعْ إِلَى مَعُونَتِي يَارَبُّ يَا خَلَاصِي. ٢٢ 22
ऐ ख़ुदावन्द! ऐ मेरी नजात! मेरी मदद के लिए जल्दी कर!

< اَلْمَزَامِيرُ 38 >