< اَلْمَزَامِيرُ 32 >

لِدَاوُدَ. قَصِيدَةٌ طُوبَى لِلَّذِي غُفِرَ إِثْمُهُ وَسُتِرَتْ خَطِيَّتُهُ. ١ 1
मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई, और जिसका गुनाह ढाँका गया।
طُوبَى لِرَجُلٍ لَا يَحْسِبُ لَهُ ٱلرَّبُّ خَطِيَّةً، وَلَا فِي رُوحِهِ غِشٌّ. ٢ 2
मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता, और जिसके दिल में दिखावा नहीं।
لَمَّا سَكَتُّ بَلِيَتْ عِظَامِي مِنْ زَفِيرِي ٱلْيَوْمَ كُلَّهُ، ٣ 3
जब मैं ख़ामोश रहा तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई।
لِأَنَّ يَدَكَ ثَقُلَتْ عَلَيَّ نَهَارًا وَلَيْلًا. تَحَوَّلَتْ رُطُوبَتِي إِلَى يُبُوسَةِ ٱلْقَيْظِ. سِلَاهْ. ٤ 4
क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था; मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। (सिलाह)
أَعْتَرِفُ لَكَ بِخَطِيَّتِي وَلَا أَكْتُمُ إِثْمِي. قُلْتُ: «أَعْتَرِفُ لِلرَّبِّ بِذَنْبِي» وَأَنْتَ رَفَعْتَ أَثَامَ خَطِيَّتِي. سِلَاهْ. ٥ 5
मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया, मैंने कहा, मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। (सिलाह)
لِهَذَا يُصَلِّي لَكَ كُلُّ تَقِيٍّ فِي وَقْتٍ يَجِدُكَ فِيهِ. عِنْدَ غَمَارَةِ ٱلْمِيَاهِ ٱلْكَثِيرَةِ إِيَّاهُ لَا تُصِيبُ. ٦ 6
इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दुआ करे जब तू मिल सकता है। यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा।
أَنْتَ سِتْرٌ لِي. مِنَ ٱلضِّيقِ تَحْفَظُنِي. بِتَرَنُّمِ ٱلنَّجَاةِ تَكْتَنِفُنِي. سِلَاهْ. ٧ 7
तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा; तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा। (सिलाह)
«أُعَلِّمُكَ وَأُرْشِدُكَ ٱلطَّرِيقَ ٱلَّتِي تَسْلُكُهَا. أَنْصَحُكَ. عَيْنِي عَلَيْكَ. ٨ 8
मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा; मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी।
لَا تَكُونُوا كَفَرَسٍ أَوْ بَغْلٍ بِلَا فَهْمٍ. بِلِجَامٍ وَزِمَامٍ زِينَتِهِ يُكَمُّ لِئَلَّا يَدْنُوَ إِلَيْكَ». ٩ 9
तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं, जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है, वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं।
كَثِيرَةٌ هِيَ نَكَبَاتُ ٱلشِّرِّيرِ، أَمَّا ٱلْمُتَوَكِّلُ عَلَى ٱلرَّبِّ فَٱلرَّحْمَةُ تُحِيطُ بِهِ. ١٠ 10
शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी; पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, रहमत उसे घेरे रहेगी।
ٱفْرَحُوا بِٱلرَّبِّ وَٱبْتَهِجُوا يَا أَيُّهَا ٱلصِّدِّيقُونَ، وَٱهْتِفُوا يَا جَمِيعَ ٱلْمُسْتَقِيمِي ٱلْقُلُوبِ. ١١ 11
ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश — ओ — बुर्रम रहो; और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो!

< اَلْمَزَامِيرُ 32 >