< اَلْمَزَامِيرُ 30 >

مَزْمُورٌ أُغْنِيَةُ تَدْشِينِ اَلْبَيْتِ. لِدَاوُدَ أُعَظِّمُكَ يَارَبُّ لِأَنَّكَ نَشَلْتَنِي وَلَمْ تُشْمِتْ بِي أَعْدَائِي. ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी तम्जीद करूँगा; क्यूँकि तूने मुझे सरफ़राज़ किया है; और मेरे दुश्मनों को मुझ पर खु़श होने न दिया।
يَارَبُّ إِلَهِي، ٱسْتَغَثْتُ بِكَ فَشَفَيْتَنِي. ٢ 2
ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा!, मैंने तुझ से फ़रियाद की और तूने मुझे शिफ़ा बख़्शी।
يَارَبُّ، أَصْعَدْتَ مِنَ ٱلْهَاوِيَةِ نَفْسِي. أَحْيَيْتَنِي مِنْ بَيْنِ ٱلْهَابِطِينَ فِي ٱلْجُبِّ. (Sheol h7585) ٣ 3
ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरी जान को पाताल से निकाल लाया है; तूने मुझे ज़िन्दा रख्खा है कि क़ब्र में न जाऊँ। (Sheol h7585)
رَنِّمُوا لِلرَّبِّ يَا أَتْقِيَاءَهُ، وَٱحْمَدُوا ذِكْرَ قُدْسِهِ. ٤ 4
ख़ुदावन्द की सिताइश करो, ऐ उसके पाक लोगों! और उसके पाकीज़गी को याद करके शुक्रगुज़ारी करो।
لِأَنَّ لِلَحْظَةٍ غَضَبَهُ. حَيَاةٌ فِي رِضَاهُ. عِنْدَ ٱلْمَسَاءِ يَبِيتُ ٱلْبُكَاءُ، وَفِي ٱلصَّبَاحِ تَرَنُّمٌ. ٥ 5
क्यूँकि उसका क़हर दम भर का है, उसका करम उम्र भर का। रात को शायद रोना पड़े पर सुबह को ख़ुशी की नौबत आती है।
وَأَنَا قُلْتُ فِي طُمَأْنِينَتِي: «لَا أَتَزَعْزَعُ إِلَى ٱلْأَبَدِ». ٦ 6
मैंने अपनी इक़बालमंदी के वक़्त यह कहा था, कि मुझे कभी जुम्बिश न होगी।
يَارَبُّ، بِرِضَاكَ ثَبَّتَّ لِجَبَلِي عِزًّا. حَجَبْتَ وَجْهَكَ فَصِرْتُ مُرْتَاعًا. ٧ 7
ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने करम से मेरे पहाड़ को क़ाईम रख्खा था; जब तूने अपना चेहरा छिपाया तो मैं घबरा उठा।
إِلَيْكَ يَارَبُّ أَصْرُخُ، وإِلَى ٱلسَّيِّدِ أَتَضَرَّعُ ٨ 8
ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने ख़ुदावन्द से मिन्नत की,
مَا ٱلْفَائِدَةُ مِنْ دَمِي إِذَا نَزَلْتُ إِلَى ٱلْحُفْرَةِ؟ هَلْ يَحْمَدُكَ ٱلتُّرَابُ؟ هَلْ يُخْبِرُ بِحَقِّكَ؟ ٩ 9
जब मैं क़ब्र में जाऊँ तो मेरी मौत से क्या फ़ायदा? क्या ख़ाक तेरी सिताइश करेगी? क्या वह तेरी सच्चाई को बयान करेगी?
ٱسْتَمِعْ يَارَبُّ وَٱرْحَمْنِي. يَارَبُّ، كُنْ مُعِينًا لِي. ١٠ 10
सुन ले ऐ ख़ुदावन्द, और मुझ पर रहम कर; ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरा मददगार हो।
حَوَّلْتَ نَوْحِي إِلَى رَقْصٍ لِي. حَلَلْتَ مِسْحِي وَمَنْطَقْتَنِي فَرَحًا، ١١ 11
तूने मेरे मातम को नाच से बदल दिया; तूने मेरा टाट उतार डाला और मुझे ख़ुशी से कमरबस्ता किया,
لِكَيْ تَتَرَنَّمَ لَكَ رُوحِي وَلَا تَسْكُتَ. يَارَبُّ إِلَهِي، إِلَى ٱلْأَبَدِ أَحْمَدُكَ. ١٢ 12
ताकि मेरी रूह तेरी मदहसराई करे और चुप न रहे। ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मैं हमेशा तेरा शुक्र करता रहूँगा।

< اَلْمَزَامِيرُ 30 >