< اَلْمَزَامِيرُ 27 >

لِدَاوُدَ اَلرَّبُّ نُورِي وَخَلَاصِي، مِمَّنْ أَخَافُ؟ ٱلرَّبُّ حِصْنُ حَيَاتِي، مِمَّنْ أَرْتَعِبُ؟ ١ 1
ख़ुदावन्द मेरी रोशनी और मेरी नजात मुझे किसकी दहशत? ख़ुदावन्द मेरी ज़िन्दगी की ताक़त है, मुझे किसका डर?
عِنْدَ مَا ٱقْتَرَبَ إِلَيَّ ٱلْأَشْرَارُ لِيَأْكُلُوا لَحْمِي، مُضَايِقِيَّ وَأَعْدَائِي عَثَرُوا وَسَقَطُوا. ٢ 2
जब शरीर या'नी मेरे मुख़ालिफ़ और मेरे दुश्मन, मेरा गोश्त खाने को मुझ पर चढ़ आए तो वह ठोकर खाकर गिर पड़े।
إِنْ نَزَلَ عَلَيَّ جَيْشٌ لَا يَخَافُ قَلْبِي. إِنْ قَامَتْ عَلَيَّ حَرْبٌ فَفِي ذَلِكَ أَنَا مُطْمَئِنٌّ. ٣ 3
चाहे मेरे ख़िलाफ़ लश्कर ख़ेमाज़न हो, मेरा दिल नहीं डरेगा। चाहे मेरे मुक़ाबले में जंग खड़ी हो, तोभी मैं मुतम'इन रहूँगा।
وَاحِدَةً سَأَلْتُ مِنَ ٱلرَّبِّ وَإِيَّاهَا أَلْتَمِسُ: أَنْ أَسْكُنَ فِي بَيْتِ ٱلرَّبِّ كُلَّ أَيَّامِ حَيَاتِي، لِكَيْ أَنْظُرَ إِلَى جَمَالِ ٱلرَّبِّ، وَأَتَفَرَّسَ فِي هَيْكَلِهِ. ٤ 4
मैंने ख़ुदावन्द से एक दरख़्वास्त की है, मैं इसी का तालिब रहूँगा; कि मैं उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में रहूँ, ताकि ख़ुदावन्द के जमाल को देखूँ और उसकी हैकल में इस्तिफ़्सार किया करूँ।
لِأَنَّهُ يُخَبِّئُنِي فِي مَظَلَّتِهِ فِي يَوْمِ ٱلشَّرِّ. يَسْتُرُنِي بِسِتْرِ خَيْمَتِهِ. عَلَى صَخْرَةٍ يَرْفَعُنِي. ٥ 5
क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपने शामियाने में पोशीदा रख्खेगा; वह मुझे अपने ख़ेमे के पर्दे में छिपा लेगा, वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देगा
وَٱلْآنَ يَرْتَفِعُ رَأْسِي عَلَى أَعْدَائِي حَوْلِي، فَأَذْبَحُ فِي خَيْمَتِهِ ذَبَائِحَ ٱلْهُتَافِ. أُغَنِّي وَأُرَنِّمُ لِلرَّبِّ. ٦ 6
अब मैं अपने चारों तरफ़ के दुश्मनों पर सरफराज़ किया जाऊँगा; मैं उसके ख़ेमे में ख़ुशी की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा; मैं गाऊँगा, मैं ख़ुदावन्द की मदहसराई करूँगा।
اِسْتَمِعْ يَارَبُّ. بِصَوْتِي أَدْعُو فَٱرْحَمْنِي وَٱسْتَجِبْ لِي. ٧ 7
ऐ ख़ुदावन्द, मेरी आवाज़ सुन! मैं पुकारता हूँ। मुझ पर रहम कर और मुझे जवाब दे।
لَكَ قَالَ قَلْبِي: «قُلْتَ: ٱطْلُبُوا وَجْهِي». وَجْهَكَ يَارَبُّ أَطْلُبُ. ٨ 8
जब तूने फ़रमाया, कि मेरे दीदार के तालिब हो; तो मेरे दिल ने तुझ से कहा, ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे दीदार का तालिब रहूँगा।
لَا تَحْجُبْ وَجْهَكَ عَنِّي. لَا تُخَيِّبْ بِسُخْطٍ عَبْدَكَ. قَدْ كُنْتَ عَوْنِي فَلَا تَرْفُضْنِي وَلَا تَتْرُكْنِي يَا إِلَهَ خَلَاصِي. ٩ 9
मुझ से चेहरा न छिपा। अपने बन्दे को क़हर से न निकाल। तू मेरा मददगार रहा है; न मुझे तर्क कर, न मुझे छोड़, ऐ मेरे नजात देने वाले ख़ुदा!।
إِنَّ أَبِي وَأُمِّي قَدْ تَرَكَانِي وَٱلرَّبُّ يَضُمُّنِي. ١٠ 10
जब मेरा बाप और मेरी माँ मुझे छोड़ दें, तो ख़ुदावन्द मुझे संभाल लेगा।
عَلِّمْنِي يَارَبُّ طَرِيقَكَ، وَٱهْدِنِي فِي سَبِيلٍ مُسْتَقِيمٍ بِسَبَبِ أَعْدَائِي. ١١ 11
ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपनी राह बता, और मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे हमवार रास्ते पर चला।
لَا تُسَلِّمْنِي إِلَى مَرَامِ مُضَايِقِيَّ، لِأَنَّهُ قَدْ قَامَ عَلَيَّ شُهُودُ زُورٍ وَنَافِثُ ظُلْمٍ. ١٢ 12
मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों की मर्ज़ी पर न छोड़, क्यूँकि झूटे गवाह और बेरहमी से पुंकारने वाले मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं।
لَوْلَا أَنَّنِي آمَنْتُ بِأَنْ أَرَى جُودَ ٱلرَّبِّ فِي أَرْضِ ٱلْأَحْيَاءِ. ١٣ 13
अगर मुझे यक़ीन न होता कि ज़िन्दों की ज़मीन में ख़ुदावन्द के एहसान को देखूँगा, तो मुझे ग़श आ जाता।
ٱنْتَظِرِ ٱلرَّبَّ. لِيَتَشَدَّدْ وَلْيَتَشَجَّعْ قَلْبُكَ، وَٱنْتَظِرِ ٱلرَّبَّ. ١٤ 14
ख़ुदावन्द की उम्मीद रख; मज़बूत हो और तेरा दिल क़वी हो; हाँ, ख़ुदावन्द ही की उम्मीद रख।

< اَلْمَزَامِيرُ 27 >