< اَلْمَزَامِيرُ 146 >

هَلِّلُويَا. سَبِّحِي يَا نَفْسِي ٱلرَّبَّ. ١ 1
ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द की हम्द कर!
أُسَبِّحُ ٱلرَّبَّ فِي حَيَاتِي، وَأُرَنِّمُ لِإِلَهِي مَا دُمْتُ مَوْجُودًا. ٢ 2
मैं उम्र भर ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा, जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा।
لَا تَتَّكِلُوا عَلَى ٱلرُّؤَسَاءِ، وَلَا عَلَى ٱبْنِ آدَمَ حَيْثُ لَا خَلَاصَ عِنْدَهُ. ٣ 3
न उमरा पर भरोसा करो न आदमज़ाद पर, वह बचा नहीं सकता।
تَخْرُجُ رُوحُهُ فَيَعُودُ إِلَى تُرَابِهِ. فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ نَفْسِهِ تَهْلِكُ أَفْكَارُهُ. ٤ 4
उसका दम निकल जाता है तो वह मिट्टी में मिल जाता है; उसी दिन उसके मन्सूबे फ़ना हो जाते हैं।
طُوبَى لِمَنْ إِلَهُ يَعْقُوبَ مُعِينُهُ، وَرَجَاؤُهُ عَلَى ٱلرَّبِّ إِلَهِهِ، ٥ 5
खु़श नसीब है वह, जिसका मददगार या'क़ूब का ख़ुदा है, और जिसकी उम्मीद ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा से है।
ٱلصَّانِعِ ٱلسَّمَاوَاتِ وَٱلْأَرْضَ، ٱلْبَحْرَ وَكُلَّ مَا فِيهَا. ٱلْحَافِظِ ٱلْأَمَانَةَ إِلَى ٱلْأَبَدِ. ٦ 6
जिसने आसमान और ज़मीन और समन्दर को, और जो कुछ उनमें है बनाया; जो सच्चाई को हमेशा क़ाईम रखता है।
ٱلْمُجْرِي حُكْمًا لِلْمَظْلُومِينَ، ٱلْمُعْطِي خُبْزًا لِلْجِيَاعِ. ٱلرَّبُّ يُطْلِقُ ٱلْأَسْرَى. ٧ 7
जो मज़लूमों का इन्साफ़ करता है; जो भूकों को खाना देता है। ख़ुदावन्द कैदियों को आज़ाद करता है;
ٱلرَّبُّ يَفْتَحُ أَعْيُنَ ٱلْعُمْيِ. ٱلرَّبُّ يُقَوِّمُ ٱلْمُنْحَنِينَ. ٱلرَّبُّ يُحِبُّ ٱلصِّدِّيقِينَ. ٨ 8
ख़ुदावन्द अन्धों की आँखें खोलता है; ख़ुदावन्द झुके हुए को उठा खड़ा करता है; ख़ुदावन्द सादिक़ों से मुहब्बत रखता है।
ٱلرَّبُّ يَحْفَظُ ٱلْغُرَبَاءَ. يَعْضُدُ ٱلْيَتِيمَ وَٱلْأَرْمَلَةَ، أَمَّا طَرِيقُ ٱلْأَشْرَارِ فَيُعَوِّجُهُ. ٩ 9
ख़ुदावन्द परदेसियों की हिफ़ाज़त करता है; वह यतीम और बेवा को संभालता है; लेकिन शरीरों की राह टेढ़ी कर देता है।
يَمْلِكُ ٱلرَّبُّ إِلَى ٱلْأَبَدِ، إِلَهُكِ يَا صِهْيَوْنُ إِلَى دَوْرٍ فَدَوْرٍ. هَلِّلُويَا. ١٠ 10
ख़ुदावन्द, हमेशा तक सल्तनत करेगा, ऐ सिय्यून! तेरा ख़ुदा नसल दर नसल। ख़ुदावन्द की हम्द करो!

< اَلْمَزَامِيرُ 146 >