< اَلْمَزَامِيرُ 132 >

تَرْنِيمَةُ ٱلْمَصَاعِدِ اُذْكُرْ يَارَبُّ دَاوُدَ، كُلَّ ذُلِّهِ. ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;
كَيْفَ حَلَفَ لِلرَّبِّ، نَذَرَ لِعَزِيزِ يَعْقُوبَ: ٢ 2
कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,
«لَا أَدْخُلُ خَيْمَةَ بَيْتِي. لَا أَصْعَدُ عَلَى سَرِيرِ فِرَاشِي. ٣ 3
“यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा;
لَا أُعْطِي وَسَنًا لِعَيْنَيَّ، وَلَا نَوْمًا لِأَجْفَانِي، ٤ 4
और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;
أَوْ أَجِدَ مَقَامًا لِلرَّبِّ، مَسْكَنًا لِعَزِيزِ يَعْقُوبَ». ٥ 5
जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।”
هُوَذَا قَدْ سَمِعْنَا بِهِ فِي أَفْرَاتَةَ. وَجَدْنَاهُ فِي حُقُولِ ٱلْوَعْرِ. ٦ 6
देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली।
«لِنَدْخُلْ إِلَى مَسَاكِنِهِ. لِنَسْجُدْ عِنْدَ مَوْطِئِ قَدَمَيْهِ». ٧ 7
हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!
قُمْ يَارَبُّ إِلَى رَاحَتِكَ، أَنْتَ وَتَابُوتُ عِزِّكَ. ٨ 8
उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।
كَهَنَتُكَ يَلْبَسُونَ ٱلْبِرَّ، وَأَتْقِيَاؤُكَ يَهْتِفُونَ. ٩ 9
तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।
مِنْ أَجْلِ دَاوُدَ عَبْدِكَ لَا تَرُدَّ وَجْهَ مَسِيحِكَ. ١٠ 10
अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।
أَقْسَمَ ٱلرَّبُّ لِدَاوُدَ بِٱلْحَقِّ لَا يَرْجِعُ عَنْهُ: «مِنْ ثَمَرَةِ بَطْنِكَ أَجْعَلُ عَلَى كُرْسِيِّكَ. ١١ 11
ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
إِنْ حَفِظَ بَنُوكَ عَهْدِي وَشَهَادَاتِي ٱلَّتِي أُعَلِّمُهُمْ إِيَّاهَا، فَبَنُوهُمْ أَيْضًا إِلَى ٱلْأَبَدِ يَجْلِسُونَ عَلَى كُرْسِيِّكَ». ١٢ 12
अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”
لِأَنَّ ٱلرَّبَّ قَدِ ٱخْتَارَ صِهْيَوْنَ. ٱشْتَهَاهَا مَسْكَنًا لَهُ: ١٣ 13
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:
«هَذِهِ هِيَ رَاحَتِي إِلَى ٱلْأَبَدِ. هَهُنَا أَسْكُنُ لِأَنِّي ٱشْتَهَيْتُهَا. ١٤ 14
“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।
طَعَامَهَا أُبَارِكُ بَرَكَةً. مَسَاكِينَهَا أُشْبِعُ خُبْزًا. ١٥ 15
मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा
كَهَنَتَهَا أُلْبِسُ خَلَاصًا. ١٦ 16
इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।
هُنَاكَ أُنْبِتُ قَرْنًا لِدَاوُدَ. رَتَّبْتُ سِرَاجًا لِمَسِيحِي. ١٧ 17
वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।
أَعْدَاءَهُ أُلْبِسُ خِزْيًا، وَعَلَيْهِ يُزْهِرُ إِكْلِيلُهُ». ١٨ 18
मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।”

< اَلْمَزَامِيرُ 132 >