< اَلْمَزَامِيرُ 101 >

لِدَاوُدَ. مَزْمُورٌ رَحْمَةً وَحُكْمًا أُغَنِّي. لَكَ يَارَبُّ أُرَنِّمُ. ١ 1
दावीद की रचना. एक स्तोत्र. मेरे गीत का विषय है आपका करुणा-प्रेम तथा आपका न्याय; याहवेह, मैं आपका स्तवन करूंगा.
أَتَعَقَّلُ فِي طَرِيقٍ كَامِلٍ. مَتَى تَأْتِي إِلَيَّ؟ أَسْلُكُ فِي كَمَالِ قَلْبِي فِي وَسَطِ بَيْتِي. ٢ 2
निष्कलंक जीवन मेरा लक्ष्य है, आप कब मेरे पास आएंगे? अपने आवास में मेरा आचरण निष्कलंक रहेगा.
لَا أَضَعُ قُدَّامَ عَيْنَيَّ أَمْرًا رَدِيئًا. عَمَلَ ٱلزَّيَغَانِ أَبْغَضْتُ. لَا يَلْصَقُ بِي. ٣ 3
मैं किसी भी अनुचित वस्तु की ओर दृष्टि न उठाऊंगा. मुझे घृणा है भ्रष्टाचारी पुरुषों के आचार-व्यवहार से; मैं उनसे कोई संबंध नहीं रखूंगा.
قَلْبٌ مُعْوَجٌّ يَبْعُدُ عَنِّي. ٱلشِّرِّيرُ لَا أَعْرِفُهُ. ٤ 4
कुटिल हृदय मुझसे दूर रहेगा; बुराई से मेरा कोई संबंध न होगा.
ٱلَّذِي يَغْتَابُ صَاحِبَهُ سِرًّا هَذَا أَقْطَعُهُ. مُسْتَكْبِرُ ٱلْعَيْنِ وَمُنْتَفِخُ ٱلْقَلْبِ لَا أَحْتَمِلُهُ. ٥ 5
जो कोई गुप्‍त में अपने पड़ोसी की निंदा करता है, मैं उसे नष्ट कर दूंगा; जिस किसी की आंखें अहंकार से चढ़ी हुई हैं तथा जिसका हृदय घमंडी है, वह मेरे लिए असह्य होगा.
عَيْنَايَ عَلَى أُمَنَاءِ ٱلْأَرْضِ لِكَيْ أُجْلِسَهُمْ مَعِي. ٱلسَّالِكُ طَرِيقًا كَامِلًا هُوَ يَخْدِمُنِي. ٦ 6
पृथ्वी पर मेरी दृष्टि उन्हीं पर रहेगी जो विश्वासयोग्य हैं, कि वे मेरे साथ निवास कर सकें; मेरा सेवक वही होगा, जिसका आचरण निष्कलंक है.
لَا يَسْكُنُ وَسَطَ بَيْتِي عَامِلُ غِشٍّ. ٱلْمُتَكَلِّمُ بِٱلْكَذِبِ لَا يَثْبُتُ أَمَامَ عَيْنَيَّ. ٧ 7
किसी भी झूठों का निवास मेरे आवास में न होगा, कोई भी झूठ बोलने वाला, मेरी उपस्थिति में ठहर न सकेगा.
بَاكِرًا أُبِيدُ جَمِيعَ أَشْرَارِ ٱلْأَرْضِ، لِأَقْطَعَ مِنْ مَدِينَةِ ٱلرَّبِّ كُلَّ فَاعِلِي ٱلْإِثْمِ. ٨ 8
प्रति प्रभात मैं अपने राज्य के समस्त दुर्जनों को नष्ट करूंगा; याहवेह के नगर में से मैं हर एक दुष्ट को मिटा दूंगा.

< اَلْمَزَامِيرُ 101 >