< اَلْمَزَامِيرُ 100 >

مَزْمُورُ حَمْدٍ اِهْتِفِي لِلرَّبِّ يَا كُلَّ ٱلْأَرْضِ. ١ 1
एक स्तोत्र. धन्यवाद के लिए गीत याहवेह के स्तवन में समस्त पृथ्वी उच्च स्वर में जयघोष करे.
ٱعْبُدُوا ٱلرَّبَّ بِفَرَحٍ. ٱدْخُلُوا إِلَى حَضْرَتِهِ بِتَرَنُّمٍ. ٢ 2
याहवेह की आराधना आनंदपूर्वक की जाए; हर्ष गीत गाते हुए उनकी उपस्थिति में प्रवेश किया जाए.
ٱعْلَمُوا أَنَّ ٱلرَّبَّ هُوَ ٱللهُ. هُوَ صَنَعَنَا، وَلَهُ نَحْنُ شَعْبُهُ وَغَنَمُ مَرْعَاهُ. ٣ 3
यह समझ लो कि स्वयं याहवेह ही परमेश्वर हैं. हमारी रचना उन्हीं ने की है, स्वयं हमने नहीं; हम पर उन्हीं का स्वामित्व है. हम उनकी प्रजा, उनकी चराई की भेड़ें हैं.
ٱدْخُلُوا أَبْوَابَهُ بِحَمْدٍ، دِيَارَهُ بِٱلتَّسْبِيحِ. ٱحْمَدُوهُ، بَارِكُوا ٱسْمَهُ. ٤ 4
धन्यवाद के भाव में उनके द्वारों में और स्तवन भाव में उनके आंगनों में प्रवेश करो; उनकी महिमा को धन्य कहो.
لِأَنَّ ٱلرَّبَّ صَالِحٌ، إِلَى ٱلْأَبَدِ رَحْمَتُهُ، وَإِلَى دَوْرٍ فَدَوْرٍ أَمَانَتُهُ. ٥ 5
याहवेह भले हैं; उनकी करुणा सदा की है; उनकी सच्चाई का प्रसरण समस्त पीढ़ियों में होता जाता है.

< اَلْمَزَامِيرُ 100 >