< أَمْثَالٌ 27 >

لَا تَفْتَخِرْ بِٱلْغَدِ لِأَنَّكَ لَا تَعْلَمُ مَاذَا يَلِدُهُ يَوْمٌ. ١ 1
भावी कल तुम्हारे गर्व का विषय न हो, क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि दिन में क्या घटनेवाला है.
لِيَمْدَحْكَ ٱلْغَرِيبُ لَا فَمُكَ، ٱلْأَجْنَبِيُّ لَا شَفَتَاكَ. ٢ 2
कोई अन्य तुम्हारी प्रशंसा करे तो करे, तुम स्वयं न करना; कोई अन्य कोई अपरिचित तुम्हारी प्रशंसा करे तो करे, तुम स्वयं न करना, स्वयं अपने मुख से नहीं.
اَلْحَجَرُ ثَقِيلٌ وَٱلرَّمْلُ ثَقِيلٌ، وَغَضَبُ ٱلْجَاهِلِ أَثْقَلُ مِنْهُمَا كِلَيْهِمَا. ٣ 3
पत्थर भारी होता है और रेत का भी बोझ होता है, किंतु इन दोनों की अपेक्षा अधिक भारी होता है मूर्ख का क्रोध.
اَلْغَضَبُ قَسَاوَةٌ وَٱلسَّخَطُ جُرَافٌ، وَمَنْ يَقِفُ قُدَّامَ ٱلْحَسَدِ؟ ٤ 4
कोप में क्रूरता निहित होती है तथा रोष में बाढ़ के समान उग्रता, किंतु ईर्ष्या के समक्ष कौन ठहर सकता है?
اَلتَّوْبِيخُ ٱلظَّاهِرُ خَيْرٌ مِنَ ٱلْحُبِّ ٱلْمُسْتَتِرِ. ٥ 5
छिपे प्रेम से कहीं अधिक प्रभावशाली है प्रत्यक्ष रूप से दी गई फटकार.
أَمِينَةٌ هِيَ جُرُوحُ ٱلْمُحِبِّ، وَغَاشَّةٌ هِيَ قُبْلَاتُ ٱلْعَدُوِّ. ٦ 6
मित्र द्वारा किए गए घाव भी विश्वासयोग्य है, किंतु विरोधी चुम्बनों की वर्षा करता है!
اَلنَّفْسُ ٱلشَّبْعَانَةُ تَدُوسُ ٱلْعَسَلَ، وَلِلنَّفْسِ ٱلْجَائِعَةِ كُلُّ مُرٍّ حُلْوٌ. ٧ 7
जब भूख अच्छी रीति से तृप्‍त की जा चुकी है, तब मधु भी अप्रिय लगने लगता है, किंतु अत्यंत भूखे व्यक्ति के लिए कड़वा भोजन भी मीठा हो जाता है.
مِثْلُ ٱلْعُصْفُورِ ٱلتَّائِهِ مِنْ عُشِّهِ، هَكَذَا ٱلرَّجُلُ ٱلتَّائِهُ مِنْ مَكَانِهِ. ٨ 8
अपने घर से दूर चला गया व्यक्ति वैसा ही होता है जैसे अपने घोंसले से भटक चुका पक्षी.
اَلدُّهْنُ وَٱلْبَخُورُ يُفَرِّحَانِ ٱلْقَلْبَ، وَحَلَاوَةُ ٱلصَّدِيقِ مِنْ مَشُورَةِ ٱلنَّفْسِ. ٩ 9
तेल और सुगंध द्रव्य हृदय को मनोहर कर देते हैं, उसी प्रकार सुखद होता है खरे मित्र का परामर्श.
لَا تَتْرُكْ صَدِيقَكَ وَصَدِيقَ أَبِيكَ، وَلَا تَدْخُلْ بَيْتَ أَخِيكَ فِي يَوْمِ بَلِيَّتِكَ. ٱلْجَارُ ٱلْقَرِيبُ خَيْرٌ مِنَ ٱلْأَخِ ٱلْبَعِيدِ. ١٠ 10
अपने मित्र तथा अपने माता-पिता के मित्र की उपेक्षा न करना. अपनी विपत्ति की स्थिति में अपने भाई के घर भेंट करने न जाना. दूर देश में जा बसे तुम्हारे भाई से उत्तम है तुम्हारे निकट निवास कर रहा पड़ोसी.
يَا ٱبْنِي، كُنْ حَكِيمًا وَفَرِّحْ قَلْبِي، فَأُجِيبَ مَنْ يُعَيِّرُنِي كَلِمَةً. ١١ 11
मेरे पुत्र, कैसा मनोहर होगा मेरा हृदय, जब तुम स्वयं को बुद्धिमान प्रमाणित करोगे; तब मैं अपने निंदकों को मुंह तोड़ प्रत्युत्तर दे सकूंगा.
ٱلذَّكِيُّ يُبْصِرُ ٱلشَّرَّ فَيَتَوَارَى. ٱلْأَغْبِيَاءُ يَعْبُرُونَ فَيُعَاقَبُونَ. ١٢ 12
चतुर व्यक्ति जोखिम को देखकर छिप जाता है, किंतु अज्ञानी आगे ही बढ़ता जाता है, और यातना सहता है.
خُذْ ثَوْبَهُ لِأَنَّهُ ضَمِنَ غَرِيبًا، وَلِأَجْلِ ٱلْأَجَانِبِ ٱرْتَهِنَ مِنْهُ. ١٣ 13
जो किसी अनजान के ऋण की ज़मानत देता है, वह अपने वस्त्र तक गंवा बैठता है; जब कोई अनजान व्यक्तियों की ज़मानत लेने लगे, तब प्रतिभूति सुरक्षा में उसका वस्त्र भी रख ले.
مَنْ يُبَارِكُ قَرِيبَهُ بِصَوْتٍ عَالٍ فِي ٱلصَّبَاحِ بَاكِرًا، يُحْسَبُ لَهُ لَعْنًا. ١٤ 14
यदि किसी व्यक्ति को प्रातःकाल में अपने पड़ोसी को उच्च स्वर में आशीर्वाद देता हुआ सुनो, तो उसे शाप समझना.
اَلْوَكْفُ ٱلْمُتَتَابِعُ فِي يَوْمٍ مُمْطِرٍ، وَٱلْمَرْأَةُ ٱلْمُخَاصِمَةُ سِيَّانِ، ١٥ 15
विवादी पत्नी तथा वर्षा ऋतु में लगातार वृष्टि, दोनों ही समान हैं,
مَنْ يُخَبِّئُهَا يُخَبِّئُ ٱلرِّيحَ وَيَمِينُهُ تَقْبِضُ عَلَى زَيْتٍ! ١٦ 16
उसे नियंत्रित करने का प्रयास पवन वेग को नियंत्रित करने का प्रयास जैसा, अथवा अपने दायें हाथ से तेल को पकड़ने का प्रयास जैसा.
ٱلْحَدِيدُ بِٱلْحَدِيدِ يُحَدَّدُ، وَٱلْإِنْسَانُ يُحَدِّدُ وَجْهَ صَاحِبِهِ. ١٧ 17
जिस प्रकार लोहे से ही लोहे पर धार बनाया जाता है, वैसे ही एक व्यक्ति दूसरे के सुधार के लिए होते है.
مَنْ يَحْمِي تِينَةً يَأْكُلُ ثَمَرَتَهَا، وَحَافِظُ سَيِّدِهِ يُكْرَمُ. ١٨ 18
अंजीर का फल वही खाता है, जो उस वृक्ष की देखभाल करता है, वह, जो अपने स्वामी का ध्यान रखता है, सम्मानित किया जाएगा.
كَمَا فِي ٱلْمَاءِ ٱلْوَجْهُ لِلْوَجْهِ، كَذَلِكَ قَلْبُ ٱلْإِنْسَانِ لِلْإِنْسَانِ. ١٩ 19
जिस प्रकार जल में मुखमंडल की छाया देख सकते हैं, वैसे ही व्यक्ति का जीवन भी हृदय को प्रतिबिंबित करता है.
اَلْهَاوِيَةُ وَٱلْهَلَاكُ لَا يَشْبَعَانِ، وَكَذَا عَيْنَا ٱلْإِنْسَانِ لَا تَشْبَعَانِ. (Sheol h7585) ٢٠ 20
मृत्यु और विनाश अब तक संतुष्ट नहीं हुए हैं, मनुष्य की आंखों की अभिलाषा भी कभी संतुष्ट नहीं होती. (Sheol h7585)
اَلْبُوطَةُ لِلْفِضَّةِ وَٱلْكُورُ لِلذَّهَبِ، كَذَا ٱلْإِنْسَانُ لِفَمِ مَادِحِهِ. ٢١ 21
चांदी की परख कुठाली से तथा स्वर्ण की भट्टी से होती है, वैसे ही मनुष्य की परख उसकी प्रशंसा से की जाती है.
إِنْ دَقَقْتَ ٱلْأَحْمَقَ فِي هَاوُنٍ بَيْنَ ٱلسَّمِيذِ بِمِدَقٍّ، لَا تَبْرَحُ عَنْهُ حَمَاقَتُهُ. ٢٢ 22
यदि तुम मूर्ख को ओखली में डालकर मूसल से अनाज के समान भी कूटो, तुम उससे उसकी मूर्खता को अलग न कर सकोगे.
مَعْرِفَةً ٱعْرِفْ حَالَ غَنَمِكَ، وَٱجْعَلْ قَلْبَكَ إِلَى قُطْعَانِكَ، ٢٣ 23
अनिवार्य है कि तुम्हें अपने पशुओं की स्थिति का यथोचित ज्ञान हो, अपने पशुओं का ध्यान रखो;
لِأَنَّ ٱلْغِنَى لَيْسَ بِدَائِمٍ، وَلَا ٱلتَّاجُ لِدَوْرٍ فَدَوْرٍ. ٢٤ 24
क्योंकि, न तो धन-संपत्ति चिरकालीन होती है, और न यह कहा जा सकता है कि राजपाट आगामी सभी पीढ़ियों के लिए सुनिश्चित हो गया.
فَنِيَ ٱلْحَشِيشُ وَظَهَرَ ٱلْعُشْبُ وَٱجْتَمَعَ نَبَاتُ ٱلْجِبَالِ. ٢٥ 25
जब सूखी घास एकत्र की जा चुकी हो और नई घास अंकुरित हो रही हो, जब पर्वतों से जड़ी-बूटी एकत्र की जाती है,
ٱلْحُمْلَانُ لِلِبَاسِكَ، وَثَمَنُ حَقْلٍ أَعْتِدَةٌ. ٢٦ 26
तब मेमनों से तुम्हारे वस्त्रों की आवश्यकता की पूर्ति होगी, और तुम बकरियों के मूल्य से खेत मोल ले सकोगे,
وَكِفَايَةٌ مِنْ لَبَنِ ٱلْمَعْزِ لِطَعَامِكَ، لِقُوتِ بَيْتِكَ وَمَعِيشَةِ فَتَيَاتِكَ. ٢٧ 27
बकरियों के दूध इतना भरपूर होगा कि वह तुम्हारे संपूर्ण परिवार के लिए पर्याप्‍त भोजन रहेगा; तुम्हारी सेविकाओं की ज़रूरत भी पूर्ण होती रहेगी.

< أَمْثَالٌ 27 >