< اَلْعَدَد 11 >

وَكَانَ ٱلشَّعْبُ كَأَنَّهُمْ يَشْتَكُونَ شَرًّا فِي أُذُنَيِ ٱلرَّبِّ. وَسَمِعَ ٱلرَّبُّ فَحَمِيَ غَضَبُهُ، فَٱشْتَعَلَتْ فِيهِمْ نَارُ ٱلرَّبِّ وَأَحْرَقَتْ فِي طَرَفِ ٱلْمَحَلَّةِ. ١ 1
फिर वह लोग़ कुड़कुड़ाने और ख़ुदावन्द के सुनते बुरा कहने लगे; चुनाँचे ख़ुदावन्द ने सुना और उसका ग़ज़ब भड़का और ख़ुदावन्द की आग उनके बीच जल उठी, और लश्करगाह को एक किनारे से भसम करने लगी।
فَصَرَخَ ٱلشَّعْبُ إِلَى مُوسَى، فَصَلَّى مُوسَى إِلَى ٱلرَّبِّ فَخَمَدَتِ ٱلنَّارُ. ٢ 2
तब लोगों ने मूसा से फ़रियाद की; और मूसा ने ख़ुदावन्द से दुआ की, तो आग बुझ गई।
فَدُعِيَ ٱسْمُ ذَلِكَ ٱلْمَوْضِعِ «تَبْعِيرَةَ» لِأَنَّ نَارَ ٱلرَّبِّ ٱشْتَعَلَتْ فِيهِمْ. ٣ 3
और उस जगह का नाम तबे'रा पड़ा, क्यूँकि ख़ुदावन्द की आग उनमें जल उठी थी।
وَٱللَّفِيفُ ٱلَّذِي فِي وَسَطِهِمِ ٱشْتَهَى شَهْوَةً. فَعَادَ بَنُو إِسْرَائِيلَ أَيْضًا وَبَكَوْا وَقَالُوا: «مَنْ يُطْعِمُنَا لَحْمًا؟ ٤ 4
और जो मिली — जुली भीड़ इन लोगों में थी वह तरह — तरह की लालच करने लगी, और बनी — इस्राईल भी फिर रोने और कहने लगे, हम को कौन गोश्त खाने को देगा?
قَدْ تَذَكَّرْنَا ٱلسَّمَكَ ٱلَّذِي كُنَّا نَأْكُلُهُ فِي مِصْرَ مَجَّانًا، وَٱلْقِثَّاءَ وَٱلْبَطِّيخَ وَٱلْكُرَّاثَ وَٱلْبَصَلَ وَٱلثُّومَ. ٥ 5
हम को वह मछली याद आती है जो हम मिस्र में मुफ़्त खाते थे; और हाय! वह खीरे, और वह ख़रबूज़े, और वह गन्दने, और प्याज़, और लहसन;
وَٱلْآنَ قَدْ يَبِسَتْ أَنْفُسُنَا. لَيْسَ شَيْءٌ غَيْرَ أَنَّ أَعْيُنَنَا إِلَى هَذَا ٱلْمَنِّ!». ٦ 6
लेकिन अब तो हमारी जान ख़ुश्क हो गई, यहाँ कोई चीज़ मयस्सर नहीं और मन के अलावा हम को और कुछ दिखाई नहीं देता।
وَأَمَّا ٱلْمَنُّ فَكَانَ كَبِزْرِ ٱلْكُزْبَرَةِ، وَمَنْظَرُهُ كَمَنْظَرِ ٱلْمُقْلِ. ٧ 7
और मन धनिये की तरह था और ऐसा नज़र आता था जैसे मोती।
كَانَ ٱلشَّعْبُ يَطُوفُونَ لِيَلْتَقِطُوهُ، ثُمَّ يَطْحَنُونَهُ بِٱلرَّحَى أَوْ يَدُقُّونَهُ فِي ٱلْهَاوَنِ وَيَطْبُخُونَهُ فِي ٱلْقُدُورِ وَيَعْمَلُونَهُ مَلَّاتٍ. وَكَانَ طَعْمُهُ كَطَعْمِ قَطَائِفَ بِزَيْتٍ. ٨ 8
लोग इधर — उधर जा कर उसे जमा' करते और उसे चक्की में पीसते या ओखली में कूट लेते थे, फिर उसे हाण्डियों में उबाल कर रोटियाँ बनाते थे; उसका मज़ा ताज़ा तेल का सा था।
وَمَتَى نَزَلَ ٱلنَّدَى عَلَى ٱلْمَحَلَّةِ لَيْلًا كَانَ يَنْزِلُ ٱلْمَنُّ مَعَهُ. ٩ 9
और रात को जब लश्करगाह में ओस पड़ती तो उसके साथ मन भी गिरता था।
فَلَمَّا سَمِعَ مُوسَى ٱلشَّعْبَ يَبْكُونَ بِعَشَائِرِهِمْ، كُلَّ وَاحِدٍ فِي بَابِ خَيْمَتِهِ، وَحَمِيَ غَضَبُ ٱلرَّبِّ جِدًّا، سَاءَ ذَلِكَ فِي عَيْنَيْ مُوسَى. ١٠ 10
और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने — अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर रोते सुना, और ख़ुदावन्द का क़हर बहुत भड़का और मूसा ने भी बुरा माना।
فَقَالَ مُوسَى لِلرَّبِّ: «لِمَاذَا أَسَأْتَ إِلَى عَبْدِكَ؟ وَلِمَاذَا لَمْ أَجِدْ نِعْمَةً فِي عَيْنَيْكَ حَتَّى أَنَّكَ وَضَعْتَ ثِقْلَ جَمِيعِ هَذَا ٱلشَّعْبِ عَلَيَّ؟ ١١ 11
तब मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, “तूने अपने ख़ादिम से यह सख़्त बर्ताव क्यूँ किया? और मुझ पर तेरे करम की नज़र क्यूँ नहीं हुई, जो तू इन सब लोगों का बोझ मुझ पर डालता है?
أَلَعَلِّي حَبِلْتُ بِجَمِيعِ هَذَا ٱلشَّعْبِ؟ أَوْ لَعَلِّي وَلَدْتُهُ، حَتَّى تَقُولَ لِي ٱحْمِلْهُ فِي حِضْنِكَ كَمَا يَحْمِلُ ٱلْمُرَبِّي ٱلرَّضِيعَ، إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي حَلَفْتَ لِآبَائِهِ؟ ١٢ 12
क्या यह सब लोग मेरे पेट में पड़े थे? क्या यह मुझ ही से पैदा हुए थे जो तू मुझे कहता है कि जिस तरह से बाप दूध पीते बच्चे को उठाए — उठाए फिरता है, उसी तरह मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठा कर उस मुल्क में ले जाऊँ जिसके देने की क़सम तूने उनके बाप दादा से खाई है?
مِنْ أَيْنَ لِي لَحْمٌ حَتَّى أُعْطِيَ جَمِيعَ هَذَا ٱلشَّعْبِ؟ لِأَنَّهُمْ يَبْكُونَ عَلَيَّ قَائِلِينَ: أَعْطِنَا لَحْمًا لِنَأْكُلَ. ١٣ 13
मैं इन सब लोगों को कहाँ से गोश्त ला कर दूँ? क्यूँकि वह यह कह — कह कर मेरे सामने रोते हैं, कि हम को गोश्त खाने को दे।
لَا أَقْدِرُ أَنَا وَحْدِي أَنْ أَحْمِلَ جَمِيعَ هَذَا ٱلشَّعْبِ لِأَنَّهُ ثَقِيلٌ عَلَيَّ. ١٤ 14
मैं अकेला इन सब लोगों को नहीं सम्भाल सकता, क्यूँकि यह मेरी ताक़त से बाहर है।
فَإِنْ كُنْتَ تَفْعَلُ بِي هَكَذَا، فَٱقْتُلْنِي قَتْلًا إِنْ وَجَدْتُ نِعْمَةً فِي عَيْنَيْكَ، فَلَا أَرَى بَلِيَّتِي». ١٥ 15
और जो तुझे मेरे साथ यही बर्ताव करना है तो मेरे ऊपर अगर तेरे करम की नज़र हुई है, तो मुझे एक ही बार में जान से मार डाल ताकि मैं अपनी बुरी हालत देखने न पाऊँ।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِمُوسَى: «ٱجْمَعْ إِلَيَّ سَبْعِينَ رَجُلًا مِنْ شُيُوخِ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِينَ تَعْلَمُ أَنَّهُمْ شُيُوخُ ٱلشَّعْبِ وَعُرَفَاؤُهُ، وَأَقْبِلْ بِهِمْ إِلَى خَيْمَةِ ٱلِٱجْتِمَاعِ فَيَقِفُوا هُنَاكَ مَعَكَ. ١٦ 16
ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, “बनी — इस्राईल के बुज़ुगों में से सत्तर मर्द, जिनको तू जानता है कि क़ौम के बुज़ुर्ग और उनके सरदार हैं मेरे सामने जमा' कर और उनको ख़ेमा — ए — इजितमा'अ के पास ले आ; ताकि वह तेरे साथ वहाँ खड़े हों।
فَأَنْزِلَ أَنَا وَأَتَكَلَّمَ مَعَكَ هُنَاكَ، وَآخُذَ مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلَّذِي عَلَيْكَ وَأَضَعَ عَلَيْهِمْ، فَيَحْمِلُونَ مَعَكَ ثِقْلَ ٱلشَّعْبِ، فَلَا تَحْمِلُ أَنْتَ وَحْدَكَ. ١٧ 17
और में उतर कर तेरे साथ वहाँ बातें करूँगा, और मैं उस रूह में से जो तुझ में है, कुछ लेकर उनमें डाल दूँगा कि वह तेरे साथ क़ौम का बोझ उठाएँ, ताकि तू उसे अकेला न उठाए।
وَلِلشَّعْبِ تَقُولُ: تَقَدَّسُوا لِلْغَدِ فَتَأْكُلُوا لَحْمًا، لِأَنَّكُمْ قَدْ بَكَيْتُمْ فِي أُذُنَيِ ٱلرَّبِّ قَائِلِينَ: مَنْ يُطْعِمُنَا لَحْمًا؟ إِنَّهُ كَانَ لَنَا خَيْرٌ فِي مِصْرَ. فَيُعْطِيكُمُ ٱلرَّبُّ لَحْمًا فَتَأْكُلُونَ. ١٨ 18
और लोगों से कह कि कल के लिए अपने को पाक कर रख्खो तो तुम गोश्त खाओगे, क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द के सुनते हुए यह कह — कह कर रोए हो कि हम को कौन गोश्त खाने को देगा? हम तो मिस्र ही में मौज से थे। इसलिए ख़ुदावन्द तुम को गोश्त देगा और तुम खाना।
تَأْكُلُونَ لَا يَوْمًا وَاحِدًا، وَلَا يَوْمَيْنِ، وَلَا خَمْسَةَ أَيَّامٍ، وَلَا عَشَرَةَ أَيَّامٍ، وَلَا عِشْرِينَ يَوْمًا، ١٩ 19
और तुम एक या दो दिन नहीं और न पाँच या दस या बीस दिन,
بَلْ شَهْرًا مِنَ ٱلزَّمَانِ، حَتَّى يَخْرُجَ مِنْ مَنَاخِرِكُمْ، وَيَصِيرَ لَكُمْ كَرَاهَةً، لِأَنَّكُمْ رَفَضْتُمُ ٱلرَّبَّ ٱلَّذِي فِي وَسَطِكُمْ وَبَكَيْتُمْ أَمَامَهُ قَائِلِينَ: لِمَاذَا خَرَجْنَا مِنْ مِصْرَ؟» ٢٠ 20
बल्कि एक महीना कामिल उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथुनों से निकलने न लगे और तुम उससे घिन न खाने लगो; क्यूँकि तुम ने ख़ुदावन्द को जो तुम्हारे बीच है छोड़ दिया, और उसके सामने यह कह — कह कर रोए हो कि हम मिस्र से क्यूँ निकल आए?”
فَقَالَ مُوسَى: «سِتُّ مِئَةِ أَلْفِ مَاشٍ هُوَ ٱلشَّعْبُ ٱلَّذِي أَنَا فِي وَسَطِهِ، وَأَنْتَ قَدْ قُلْتَ: أُعْطِيهِمْ لَحْمًا لِيَأْكُلُوا شَهْرًا مِنَ ٱلزَّمَانِ. ٢١ 21
फिर मूसा कहने लगा, “जिन लोगों में मैं हूँ उनमें छः लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है कि मैं उनको इतना गोश्त दूँगा कि वह महीने भर उसे खाते रहेंगे।
أَيُذْبَحُ لَهُمْ غَنَمٌ وَبَقَرٌ لِيَكْفِيَهُمْ؟ أَمْ يُجْمَعُ لَهُمْ كُلُّ سَمَكِ ٱلْبَحْرِ لِيَكْفِيَهُمْ؟» ٢٢ 22
इसलिए क्या भेड़बकरियों के यह रेवड़ और गाय — बैलों के झुण्ड उनकी ख़ातिर ज़बह हों कि उनके लिए बस हो? या समन्दर की सब मछलियाँ उनकी ख़ातिर इकट्ठी की जाएँ कि उन सब के लिए काफ़ी हो?”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِمُوسَى: «هَلْ تَقْصُرُ يَدُ ٱلرَّبِّ؟ ٱلْآنَ تَرَى أَيُوافِيكَ كَلَامِي أَمْ لَا». ٢٣ 23
ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, “क्या ख़ुदावन्द का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देख लेगा कि जो मैंने तुझ से कहा है वह पूरा होता है या नहीं।”
فَخَرَجَ مُوسَى وَكَلَّمَ ٱلشَّعْبَ بِكَلَامِ ٱلرَّبِّ، وَجَمَعَ سَبْعِينَ رَجُلًا مِنْ شُيُوخِ ٱلشَّعْبِ وَأَوْقَفَهُمْ حَوَالَيِ ٱلْخَيْمَةِ. ٢٤ 24
तब मूसा ने बाहर जाकर ख़ुदावन्द की बातें उन लोगों को कह सुनाई, और क़ौम के बुज़ुर्गों में से सत्तर शख़्स इकट्ठे करके उनको ख़ेमे के चारों तरफ़ खड़ा कर दिया।
فَنَزَلَ ٱلرَّبُّ فِي سَحَابَةٍ وَتَكَلَّمَ مَعَهُ، وَأَخَذَ مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلَّذِي عَلَيْهِ وَجَعَلَ عَلَى ٱلسَّبْعِينَ رَجُلًا ٱلشُّيُوخَ. فَلَمَّا حَلَّتْ عَلَيْهِمِ ٱلرُّوحُ تَنَبَّأُوا، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يَزِيدُوا. ٢٥ 25
तब ख़ुदावन्द बादल में होकर उतरा और उसने मूसा से बातें कीं, और उस रूह में से जो उसमें थी कुछ लेकर उसे उन सत्तर बुज़ुगों में डाला; चुनाँचे जब रूह उनमें आई तो वह नबुव्वत करने लगे, लेकिन बाद में फिर कभी न की।
وَبَقِيَ رَجُلَانِ فِي ٱلْمَحَلَّةِ، ٱسْمُ ٱلْوَاحِدِ أَلْدَادُ، وَٱسْمُ ٱلْآخَرِ مِيدَادُ، فَحَلَّ عَلَيْهِمَا ٱلرُّوحُ. وَكَانَا مِنَ ٱلْمَكْتُوبِينَ، لَكِنَّهُمَا لَمْ يَخْرُجَا إِلَى ٱلْخَيْمَةِ، فَتَنَبَّآ فِي ٱلْمَحَلَّةِ. ٢٦ 26
लेकिन उनमें से दो शख़्स लश्करगाह ही में रह गए, एक का नाम इलदाद और दूसरे का मेदाद था, उनमें भी रूह आई; यह भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिए गए थे लेकिन यह खेमे के पास न गए, और लश्करगाह ही में नबुव्वत करने लगे।
فَرَكَضَ غُلَامٌ وَأَخْبَرَ مُوسَى وَقَالَ: «أَلْدَادُ وَمِيدَادُ يَتَنَبَّآنِ فِي ٱلْمَحَلَّةِ». ٢٧ 27
तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को ख़बर दी और कहने लगा, कि इलदाद और मेदाद लश्करगाह में नबुव्वत कर रहे हैं।
فَأَجَابَ يَشُوعُ بْنُ نُونَ خَادِمُ مُوسَى مِنْ حَدَاثَتِهِ وَقَالَ: «يَا سَيِّدِي مُوسَى، ٱرْدَعْهُمَا!» ٢٨ 28
इसलिए मूसा के ख़ादिम नून के बेटे यशू'आ ने, जो उसके चुने हुए जवानों में से था मूसा से कहा, “ऐ मेरे मालिक मूसा, तू उनको रोक दे।”
فَقَالَ لَهُ مُوسَى: «هَلْ تَغَارُ أَنْتَ لِي؟ يَا لَيْتَ كُلَّ شَعْبِ ٱلرَّبِّ كَانُوا أَنْبِيَاءَ إِذَا جَعَلَ ٱلرَّبُّ رُوحَهُ عَلَيْهِمْ». ٢٩ 29
मूसा ने उससे कहा, “क्या तुझे मेरी ख़ातिर रश्क आता है? काश ख़ुदावन्द के सब लोग नबी होते, और ख़ुदावन्द अपनी रूह उन सब में डालता।”
ثُمَّ ٱنْحَازَ مُوسَى إِلَى ٱلْمَحَلَّةِ هُوَ وَشُيُوخُ إِسْرَائِيلَ. ٣٠ 30
फिर मूसा और वह इस्राईली बुज़ुर्ग लश्करगाह में गए।
فَخَرَجَتْ رِيحٌ مِنْ قِبَلِ ٱلرَّبِّ وَسَاقَتْ سَلْوَى مِنَ ٱلْبَحْرِ وَأَلْقَتْهَا عَلَى ٱلْمَحَلَّةِ، نَحْوَ مَسِيرَةِ يَوْمٍ مِنْ هُنَا وَمَسِيرَةِ يَوْمٍ مِنْ هُنَاكَ، حَوَالَيِ ٱلْمَحَلَّةِ، وَنَحْوَ ذِرَاعَيْنِ فَوْقَ وَجْهِ ٱلْأَرْضِ. ٣١ 31
और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक आँधी चली और समन्दर से बटेरें उड़ा लाई, और उनको लश्करगाह के बराबर और उसके चारों तरफ़ एक दिन की राह तक इस तरफ़ और एक ही दिन की राह तक दूसरी तरफ़ ज़मीन से क़रीबन दो — दो हाथ ऊपर डाल दिया।
فَقَامَ ٱلشَّعْبُ كُلَّ ذَلِكَ ٱلنَّهَارِ، وَكُلَّ ٱللَّيْلِ وَكُلَّ يَوْمِ ٱلْغَدِ وَجَمَعُوا ٱلسَّلْوَى. ٱلَّذِي قَلَّلَ جَمَعَ عَشَرَةَ حَوَامِرَ. وَسَطَّحُوهَا لَهُمْ مَسَاطِحَ حَوَالَيِ ٱلْمَحَلَّةِ. ٣٢ 32
और लोगों ने उठ कर उस सारे दिन और उस सारी रात और उसके दूसरे दिन भी बटेरें जमा' कीं, और जिसने कम से कम जमा' की थीं उसके पास भी दस खोमर के बराबर जमा' हो गई; और उन्होंने अपने लिए लश्करगाह की चारों तरफ़ उनको फैला दिया।
وَإِذْ كَانَ ٱللَّحْمُ بَعْدُ بَيْنَ أَسْنَانِهِمْ قَبْلَ أَنْ يَنْقَطِعَ، حَمِيَ غَضَبُ ٱلرَّبِّ عَلَى ٱلشَّعْبِ، وَضَرَبَ ٱلرَّبُّ ٱلشَّعْبَ ضَرْبَةً عَظِيمَةً جِدًّا. ٣٣ 33
और उनका गोश्त उन्होंने दाँतों से काटा ही था और उसे चबाने भी नहीं पाए थे कि ख़ुदावन्द का क़हर उन लोगों पर भड़क उठा, और ख़ुदावन्द ने उन लोगों को बड़ी सख़्त वबा से मारा।
فَدُعِيَ ٱسْمُ ذَلِكَ ٱلْمَوْضِعِ «قَبَرُوتَ هَتَّأَوَةَ» لِأَنَّهُمْ هُنَاكَ دَفَنُوا ٱلْقَوْمَ ٱلَّذِينَ ٱشْتَهَوْا. ٣٤ 34
इसलिए उस मक़ाम का नाम क़ब्रोत हतावा रखा गया, क्यूँकि उन्होंने उन लोगों को जिन्होंने लालच किया था वहीं दफ़न किया।
وَمِنْ قَبَرُوتَ هَتَّأَوَةَ ٱرْتَحَلَ ٱلشَّعْبُ إِلَى حَضَيْرُوتَ، فَكَانُوا فِي حَضَيْرُوتَ. ٣٥ 35
और वह लोग कब्रोत हतावा से सफ़र करके हसेरात को गए और वहीं हसेरात में रहने लगे।

< اَلْعَدَد 11 >