< مَتَّى 5 >

وَلَمَّا رَأَى ٱلْجُمُوعَ صَعِدَ إِلَى ٱلْجَبَلِ، فَلَمَّا جَلَسَ تَقَدَّمَ إِلَيْهِ تَلَامِيذُهُ. ١ 1
वह भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए।
فَفَتَحَ فَاهُ وعَلَّمَهُمْ قَائِلًا: ٢ 2
और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा:
«طُوبَى لِلْمَسَاكِينِ بِٱلرُّوحِ، لِأَنَّ لَهُمْ مَلَكُوتَ ٱلسَّمَاوَاتِ. ٣ 3
“धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
طُوبَى لِلْحَزَانَى، لِأَنَّهُمْ يَتَعَزَّوْنَ. ٤ 4
“धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।
طُوبَى لِلْوُدَعَاءِ، لِأَنَّهُمْ يَرِثُونَ ٱلْأَرْضَ. ٥ 5
“धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
طُوبَى لِلْجِيَاعِ وَٱلْعِطَاشِ إِلَى ٱلْبِرِّ، لِأَنَّهُمْ يُشْبَعُونَ. ٦ 6
“धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।
طُوبَى لِلرُّحَمَاءِ، لِأَنَّهُمْ يُرْحَمُونَ. ٧ 7
“धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
طُوبَى لِلْأَنْقِيَاءِ ٱلْقَلْبِ، لِأَنَّهُمْ يُعَايِنُونَ ٱللهَ. ٨ 8
“धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
طُوبَى لِصَانِعِي ٱلسَّلَامِ، لِأَنَّهُمْ أَبْنَاءَ ٱللهِ يُدْعَوْنَ. ٩ 9
“धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
طُوبَى لِلْمَطْرُودِينَ مِنْ أَجْلِ ٱلْبِرِّ، لِأَنَّ لَهُمْ مَلَكُوتَ ٱلسَّمَاوَاتِ. ١٠ 10
१०“धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
طُوبَى لَكُمْ إِذَا عَيَّرُوكُمْ وَطَرَدُوكُمْ وَقَالُوا عَلَيْكُمْ كُلَّ كَلِمَةٍ شِرِّيرَةٍ، مِنْ أَجْلِي، كَاذِبِينَ. ١١ 11
११“धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
اِفْرَحُوا وَتَهَلَّلُوا، لِأَنَّ أَجْرَكُمْ عَظِيمٌ فِي ٱلسَّمَاوَاتِ، فَإِنَّهُمْ هَكَذَا طَرَدُوا ٱلْأَنْبِيَاءَ ٱلَّذِينَ قَبْلَكُمْ. ١٢ 12
१२आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
«أَنْتُمْ مِلْحُ ٱلْأَرْضِ، وَلَكِنْ إِنْ فَسَدَ ٱلْمِلْحُ فَبِمَاذَا يُمَلَّحُ؟ لَا يَصْلُحُ بَعْدُ لِشَيْءٍ، إِلَّا لِأَنْ يُطْرَحَ خَارِجًا وَيُدَاسَ مِنَ ٱلنَّاسِ. ١٣ 13
१३“तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।
أَنْتُمْ نُورُ ٱلْعَالَمِ. لَا يُمْكِنُ أَنْ تُخْفَى مَدِينَةٌ مَوْضُوعَةٌ عَلَى جَبَلٍ، ١٤ 14
१४तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।
وَلَا يُوقِدُونَ سِرَاجًا وَيَضَعُونَهُ تَحْتَ ٱلْمِكْيَالِ، بَلْ عَلَى ٱلْمَنَارَةِ فَيُضِيءُ لِجَمِيعِ ٱلَّذِينَ فِي ٱلْبَيْتِ. ١٥ 15
१५और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है।
فَلْيُضِئْ نُورُكُمْ هَكَذَا قُدَّامَ ٱلنَّاسِ، لِكَيْ يَرَوْا أَعْمَالَكُمُ ٱلْحَسَنَةَ، وَيُمَجِّدُوا أَبَاكُمُ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ. ١٦ 16
१६उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।
«لَا تَظُنُّوا أَنِّي جِئْتُ لِأَنْقُضَ ٱلنَّامُوسَ أَوِ ٱلْأَنْبِيَاءَ. مَا جِئْتُ لِأَنْقُضَ بَلْ لِأُكَمِّلَ. ١٧ 17
१७“यह न समझो, कि मैं व्यवस्थाया भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ।
فَإِنِّي ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِلَى أَنْ تَزُولَ ٱلسَّمَاءُ وَٱلْأَرْضُ لَا يَزُولُ حَرْفٌ وَاحِدٌ أَوْ نُقْطَةٌ وَاحِدَةٌ مِنَ ٱلنَّامُوسِ حَتَّى يَكُونَ ٱلْكُلُّ. ١٨ 18
१८क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
فَمَنْ نَقَضَ إِحْدَى هَذِهِ ٱلْوَصَايَا ٱلصُّغْرَى وَعَلَّمَ ٱلنَّاسَ هَكَذَا، يُدْعَى أَصْغَرَ فِي مَلَكُوتِ ٱلسَّمَاوَاتِ. وَأَمَّا مَنْ عَمِلَ وَعَلَّمَ، فَهَذَا يُدْعَى عَظِيمًا فِي مَلَكُوتِ ٱلسَّمَاوَاتِ. ١٩ 19
१९इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
فَإِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّكُمْ إِنْ لَمْ يَزِدْ بِرُّكُمْ عَلَى ٱلْكَتَبَةِ وَٱلْفَرِّيسِيِّينَ لَنْ تَدْخُلُوا مَلَكُوتَ ٱلسَّماوَاتِ. ٢٠ 20
२०क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।
«قَدْ سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ لِلْقُدَمَاءِ: لَا تَقْتُلْ، وَمَنْ قَتَلَ يَكُونُ مُسْتَوْجِبَ ٱلْحُكْمِ. ٢١ 21
२१“तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ كُلَّ مَنْ يَغْضَبُ عَلَى أَخِيهِ بَاطِلًا يَكُونُ مُسْتَوْجِبَ ٱلْحُكْمِ، وَمَنْ قَالَ لِأَخِيهِ: رَقَا، يَكُونُ مُسْتَوْجِبَ ٱلْمَجْمَعِ، وَمَنْ قَالَ: يا أَحْمَقُ، يَكُونُ مُسْتَوْجِبَ نَارِ جَهَنَّمَ. (Geenna g1067) ٢٢ 22
२२परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा। (Geenna g1067)
فَإِنْ قَدَّمْتَ قُرْبَانَكَ إِلَى ٱلْمَذْبَحِ، وَهُنَاكَ تَذَكَّرْتَ أَنَّ لِأَخِيكَ شَيْئًا عَلَيْكَ، ٢٣ 23
२३इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है,
فَٱتْرُكْ هُنَاكَ قُرْبَانَكَ قُدَّامَ ٱلْمَذْبَحِ، وَٱذْهَبْ أَوَّلًا ٱصْطَلِحْ مَعَ أَخِيكَ، وَحِينَئِذٍ تَعَالَ وَقَدِّمْ قُرْبَانَكَ. ٢٤ 24
२४तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।
كُنْ مُرَاضِيًا لِخَصْمِكَ سَرِيعًا مَا دُمْتَ مَعَهُ فِي ٱلطَّرِيقِ، لِئَلَّا يُسَلِّمَكَ ٱلْخَصْمُ إِلَى ٱلْقَاضِي، وَيُسَلِّمَكَ ٱلْقَاضِي إِلَى ٱلشُّرَطِيِّ، فَتُلْقَى فِي ٱلسِّجْنِ. ٢٥ 25
२५जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में है, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।
اَلْحَقَّ أَقُولُ لَكَ: لَا تَخْرُجُ مِنْ هُنَاكَ حَتَّى تُوفِيَ ٱلْفَلْسَ ٱلْأَخِيرَ! ٢٦ 26
२६मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।
«قَدْ سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ لِلْقُدَمَاءِ: لَا تَزْنِ. ٢٧ 27
२७“तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ كُلَّ مَنْ يَنْظُرُ إِلَى ٱمْرَأَةٍ لِيَشْتَهِيَهَا، فَقَدْ زَنَى بِهَا فِي قَلْبِهِ. ٢٨ 28
२८परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।
فَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ ٱلْيُمْنَى تُعْثِرُكَ فَٱقْلَعْهَا وَأَلْقِهَا عَنْكَ، لِأَنَّهُ خَيْرٌ لَكَ أَنْ يَهْلِكَ أَحَدُ أَعْضَائِكَ وَلَا يُلْقَى جَسَدُكَ كُلُّهُ فِي جَهَنَّمَ. (Geenna g1067) ٢٩ 29
२९यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। (Geenna g1067)
وَإِنْ كَانَتْ يَدُكَ ٱلْيُمْنَى تُعْثِرُكَ فَٱقْطَعْهَا وَأَلْقِهَا عَنْكَ، لِأَنَّهُ خَيْرٌ لَكَ أَنْ يَهْلِكَ أَحَدُ أَعْضَائِكَ وَلَا يُلْقَى جَسَدُكَ كُلُّهُ فِي جَهَنَّمَ. (Geenna g1067) ٣٠ 30
३०और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। (Geenna g1067)
«وَقِيلَ: مَنْ طَلَّقَ ٱمْرَأَتَهُ فَلْيُعْطِهَا كِتَابَ طَلَاقٍ. ٣١ 31
३१“यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ مَنْ طَلَّقَ ٱمْرَأَتَهُ إلَّا لِعِلَّةِ ٱلزِّنَى يَجْعَلُهَا تَزْنِي، وَمَنْ يَتَزَوَّجُ مُطَلَّقَةً فَإِنَّهُ يَزْنِي. ٣٢ 32
३२परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
«أَيْضًا سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ لِلْقُدَمَاءِ: لَا تَحْنَثْ، بَلْ أَوْفِ لِلرَّبِّ أَقْسَامَكَ. ٣٣ 33
३३“फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: لَا تَحْلِفُوا ٱلْبَتَّةَ، لَا بِٱلسَّمَاءِ لِأَنَّهَا كُرْسِيُّ ٱللهِ، ٣٤ 34
३४परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है।
وَلَا بِٱلْأَرْضِ لِأَنَّهَا مَوْطِئُ قَدَمَيْهِ، وَلَا بِأُورُشَلِيمَ لِأَنَّهَا مَدِينَةُ ٱلْمَلِكِ ٱلْعَظِيمِ. ٣٥ 35
३५न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।
وَلَا تَحْلِفْ بِرَأْسِكَ، لِأَنَّكَ لَا تَقْدِرُ أَنْ تَجْعَلَ شَعْرَةً وَاحِدَةً بَيْضَاءَ أَوْ سَوْدَاءَ. ٣٦ 36
३६अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है।
بَلْ لِيَكُنْ كَلَامُكُمْ: نَعَمْ نَعَمْ، لَا لَا. وَمَا زَادَ عَلَى ذَلِكَ فَهُوَ مِنَ ٱلشِّرِّيرِ. ٣٧ 37
३७परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है।
«سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ: عَيْنٌ بِعَيْنٍ وَسِنٌّ بِسِنٍّ. ٣٨ 38
३८“तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: لَا تُقَاوِمُوا ٱلشَّرَّ، بَلْ مَنْ لَطَمَكَ عَلَى خَدِّكَ ٱلْأَيْمَنِ فَحَوِّلْ لَهُ ٱلْآخَرَ أَيْضًا. ٣٩ 39
३९परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।
وَمَنْ أَرَادَ أَنْ يُخَاصِمَكَ وَيَأْخُذَ ثَوْبَكَ فَٱتْرُكْ لَهُ ٱلرِّدَاءَ أَيْضًا. ٤٠ 40
४०और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता लेना चाहे, तो उसे अंगरखाभी ले लेने दे।
وَمَنْ سَخَّرَكَ مِيلًا وَاحِدًا فَٱذْهَبْ مَعَهُ ٱثْنَيْنِ. ٤١ 41
४१और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।
مَنْ سَأَلَكَ فَأَعْطِهِ، وَمَنْ أَرَادَ أَنْ يَقْتَرِضَ مِنْكَ فَلَا تَرُدَّهُ. ٤٢ 42
४२जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह न मोड़।
«سَمِعْتُمْ أَنَّهُ قِيلَ: تُحِبُّ قَرِيبَكَ وَتُبْغِضُ عَدُوَّكَ. ٤٣ 43
४३“तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
وَأَمَّا أَنَا فَأَقُولُ لَكُمْ: أَحِبُّوا أَعْدَاءَكُمْ. بَارِكُوا لَاعِنِيكُمْ. أَحْسِنُوا إِلَى مُبْغِضِيكُمْ، وَصَلُّوا لِأَجْلِ ٱلَّذِينَ يُسِيئُونَ إِلَيْكُمْ وَيَطْرُدُونَكُمْ، ٤٤ 44
४४परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।
لِكَيْ تَكُونُوا أَبْنَاءَ أَبِيكُمُ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ، فَإِنَّهُ يُشْرِقُ شَمْسَهُ عَلَى ٱلْأَشْرَارِ وَٱلصَّالِحِينَ، وَيُمْطِرُ عَلَى ٱلْأَبْرَارِ وَٱلظَّالِمِينَ. ٤٥ 45
४५जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है।
لِأَنَّهُ إِنْ أَحْبَبْتُمُ ٱلَّذِينَ يُحِبُّونَكُمْ، فَأَيُّ أَجْرٍ لَكُمْ؟ أَلَيْسَ ٱلْعَشَّارُونَ أَيْضًا يَفْعَلُونَ ذَلِكَ؟ ٤٦ 46
४६क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?
وَإِنْ سَلَّمْتُمْ عَلَى إِخْوَتِكُمْ فَقَطْ، فَأَيَّ فَضْلٍ تَصْنَعُونَ؟ أَلَيْسَ ٱلْعَشَّارُونَ أَيْضًا يَفْعَلُونَ هَكَذَا؟ ٤٧ 47
४७“और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?
فَكُونُوا أَنْتُمْ كَامِلِينَ كَمَا أَنَّ أَبَاكُمُ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ هُوَ كَامِلٌ. ٤٨ 48
४८इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।

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