< مَتَّى 22 >

وَجَعَلَ يَسُوعُ يُكَلِّمُهُمْ أَيْضًا بِأَمْثَالٍ قَائِلًا: ١ 1
और ईसा फिर उनसे मिसालों में कहने लगा,
«يُشْبِهُ مَلَكُوتُ ٱلسَّمَاوَاتِ إِنْسَانًا مَلِكًا صَنَعَ عُرْسًا لِٱبْنِهِ، ٢ 2
“आस्मान की बादशाही उस बादशाह की तरह है जिस ने अपने बेटे की शादी की।
وَأَرْسَلَ عَبِيدَهُ لِيَدْعُوا ٱلْمَدْعُوِّينَ إِلَى ٱلْعُرْسِ، فَلَمْ يُرِيدُوا أَنْ يَأْتُوا. ٣ 3
और अपने नौकरों को भेजा कि बुलाए हुओं को शादी में बुला लाएँ, मगर उन्होंने आना न चाहा।
فَأَرْسَلَ أَيْضًا عَبِيدًا آخَرِينَ قَائِلًا: قُولُوا لِلْمَدْعُوِّينَ: هُوَذَا غَدَائِي أَعْدَدْتُهُ. ثِيرَانِي وَمُسَمَّنَاتِي قَدْ ذُبِحَتْ، وَكُلُّ شَيْءٍ مُعَدٌّ. تَعَالَوْا إِلَى ٱلْعُرْسِ! ٤ 4
फिर उस ने और नौकरों को ये कह कर भेजा, ‘बुलाए हुओं से कहो: देखो, मैंने ज़ियाफ़त तैयार कर ली है, मेरे बैल और मोटे मोटे जानवर ज़बह हो चुके हैं और सब कुछ तैयार है; शादी में आओ।’
وَلَكِنَّهُمْ تَهَاوَنُوا وَمَضَوْا، وَاحِدٌ إِلَى حَقْلِهِ، وَآخَرُ إِلَى تِجَارَتِهِ، ٥ 5
मगर वो बे परवाई करके चल दिए; कोई अपने खेत को, कोई अपनी सौदागरी को।
وَٱلْبَاقُونَ أَمْسَكُوا عَبِيدَهُ وَشَتَمُوهُمْ وَقَتَلُوهُمْ. ٦ 6
और बाक़ियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर बे'इज़्ज़त किया और मार डाला।
فَلَمَّا سَمِعَ ٱلْمَلِكُ غَضِبَ، وَأَرْسَلَ جُنُودَهُ وَأَهْلَكَ أُولَئِكَ ٱلْقَاتِلِينَ وَأَحْرَقَ مَدِينَتَهُمْ. ٧ 7
बादशाह ग़ज़बनाक हुआ और उसने अपना लश्कर भेजकर उन ख़ूनियों को हलाक कर दिया, और उन का शहर जला दिया।
ثُمَّ قَالَ لِعَبِيدِهِ: أَمَّا ٱلْعُرْسُ فَمُسْتَعَدٌّ، وَأَمَّا ٱلْمَدْعُوُّونَ فَلَمْ يَكُونُوا مُسْتَحِقِّينَ. ٨ 8
तब उस ने अपने नौकरों से कहा, शादी का खाना तो तैयार है ‘मगर बुलाए हुए लायक़ न थे।
فَٱذْهَبُوا إِلَى مَفَارِقِ ٱلطُّرُقِ، وَكُلُّ مَنْ وَجَدْتُمُوهُ فَٱدْعُوهُ إِلَى ٱلْعُرْسِ. ٩ 9
पस रास्तों के नाकों पर जाओ, और जितने तुम्हें मिलें शादी में बुला लाओ।’
فَخَرَجَ أُولَئِكَ ٱلْعَبِيدُ إِلَى ٱلطُّرُقِ، وَجَمَعُوا كُلَّ ٱلَّذِينَ وَجَدُوهُمْ أَشْرَارًا وَصَالِحِينَ. فَٱمْتَلَأَ ٱلْعُرْسُ مِنَ ٱلْمُتَّكِئِينَ. ١٠ 10
और वो नौकर बाहर रास्तों पर जा कर, जो उन्हें मिले क्या बूरे क्या भले सब को जमा कर लाए और शादी की महफ़िल मेहमानों से भर गई।”
فَلَمَّا دَخَلَ ٱلْمَلِكُ لِيَنْظُرَ ٱلْمُتَّكِئِينَ، رَأَى هُنَاكَ إِنْسَانًا لَمْ يَكُنْ لَابِسًا لِبَاسَ ٱلْعُرْسِ. ١١ 11
“जब बादशाह मेहमानों को देखने को अन्दर आया, तो उसने वहाँ एक आदमी को देखा, जो शादी के लिबास में न था।
فَقَالَ لَهُ: يا صَاحِبُ، كَيْفَ دَخَلْتَ إِلَى هُنَا وَلَيْسَ عَلَيْكَ لِبَاسُ ٱلْعُرْسِ؟ فَسَكَتَ. ١٢ 12
उसने उससे कहा‘मियाँ तू शादी की पोशाक पहने बग़ैर यहाँ क्यूँ कर आ गया?’ लेकिन उस का मुँह बन्द हो गया।
حِينَئِذٍ قَالَ ٱلْمَلِكُ لِلْخُدَّامِ: ٱرْبُطُوا رِجْلَيْهِ وَيَدَيْهِ، وَخُذُوهُ وَٱطْرَحُوهُ فِي ٱلظُّلْمَةِ ٱلْخَارِجِيَّةِ. هُنَاكَ يَكُونُ ٱلْبُكَاءُ وَصَرِيرُ ٱلْأَسْنَانِ. ١٣ 13
इस पर बादशाह ने ख़ादिमों से कहा ‘उस के हाथ पाँव बाँध कर बाहर अंधेरे में डाल दो, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।’
لِأَنَّ كَثِيرِينَ يُدْعَوْنَ وَقَلِيلِينَ يُنْتَخَبُونَ». ١٤ 14
क्यूँकि बुलाए हुए बहुत हैं, मगर चुने हुए थोड़े।”
حِينَئِذٍ ذَهَبَ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ وَتَشَاوَرُوا لِكَيْ يَصْطَادُوهُ بِكَلِمَةٍ. ١٥ 15
उस वक़्त फ़रीसियों ने जा कर मशवरा किया कि उसे क्यूँ कर बातों में फँसाएँ।
فَأَرْسَلُوا إِلَيْهِ تَلَامِيذَهُمْ مَعَ ٱلْهِيرُودُسِيِّينَ قَائِلِينَ: «يَا مُعَلِّمُ، نَعْلَمُ أَنَّكَ صَادِقٌ وَتُعَلِّمُ طَرِيقَ ٱللهِ بِٱلْحَقِّ، وَلَا تُبَالِي بِأَحَدٍ، لِأَنَّكَ لَا تَنْظُرُ إِلَى وُجُوهِ ٱلنَّاسِ. ١٦ 16
पस उन्होंने अपने शागिर्दों को हेरोदियों के साथ उस के पास भेजा, और उन्होंने कहा “ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से ख़ुदा की राह की तालीम देता है। और किसी की परवाह नहीं करता क्यूँकि तू किसी आदमी का तरफ़दार नहीं।
فَقُلْ لَنَا: مَاذَا تَظُنُّ؟ أَيَجُوزُ أَنْ تُعْطَى جِزْيَةٌ لِقَيْصَرَ أَمْ لَا؟». ١٧ 17
पस हमें बता तू क्या समझता है? क़ैसर को जिज़िया देना जायज़ है या नहीं?”
فَعَلِمَ يَسُوعُ خُبْثَهُمْ وَقَالَ: «لِمَاذَا تُجَرِّبُونَنِي يا مُرَاؤُونَ؟ ١٨ 18
ईसा ने उन की शरारत जान कर कहा, “ऐ रियाकारो, मुझे क्यूँ आज़माते हो?
أَرُونِي مُعَامَلَةَ ٱلْجِزْيَةِ». فَقَدَّمُوا لَهُ دِينَارًا. ١٩ 19
जिज़िए का सिक्का मुझे दिखाओ वो एक दीनार उस के पास लाए।”
فَقَالَ لَهُمْ: «لِمَنْ هَذِهِ ٱلصُّورَةُ وَٱلْكِتَابَةُ؟». ٢٠ 20
उसने उनसे कहा “ये सूरत और नाम किसका है?”
قَالُوا لَهُ: «لِقَيْصَرَ». فَقَالَ لَهُمْ: «أَعْطُوا إِذًا مَا لِقَيْصَرَ لِقَيْصَرَ وَمَا لِلهِ لِلهِ». ٢١ 21
उन्होंने उससे कहा, “क़ैसर का।” उस ने उनसे कहा, “पस जो क़ैसर का है क़ैसर को और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को अदा करो।”
فَلَمَّا سَمِعُوا تَعَجَّبُوا وَتَرَكُوهُ وَمَضَوْا. ٢٢ 22
उन्होंने ये सुनकर ता'अज्जुब किया, और उसे छोड़ कर चले गए।
فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ جَاءَ إِلَيْهِ صَدُّوقِيُّونَ، ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ لَيْسَ قِيَامَةٌ، فَسَأَلُوهُ ٢٣ 23
उसी दिन सदूक़ी जो कहते हैं कि क़यामत नहीं होगी उसके पास आए, और उससे ये सवाल किया।
قَائِلِينَ: «يَا مُعَلِّمُ، قَالَ مُوسَى: إِنْ مَاتَ أَحَدٌ وَلَيْسَ لَهُ أَوْلَادٌ، يَتَزَوَّجْ أَخُوهُ بِٱمْرَأَتِهِ وَيُقِمْ نَسْلًا لِأَخِيهِ. ٢٤ 24
“ऐ उस्ताद, मूसा ने कहा था, कि अगर कोई बे औलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी बीवी से शादी कर ले, और अपने भाई के लिए नस्ल पैदा करे।
فَكَانَ عِنْدَنَا سَبْعَةُ إِخْوَةٍ، وَتَزَوَّجَ ٱلْأَوَّلُ وَمَاتَ. وَإِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُ نَسْلٌ تَرَكَ ٱمْرَأَتَهُ لِأَخِيهِ. ٢٥ 25
अब हमारे दर्मियान सात भाई थे, और पहला शादी करके मर गया; और इस वजह से कि उसके औलाद न थी, अपनी बीवी अपने भाई के लिए छोड़ गया।
وَكَذَلِكَ ٱلثَّانِي وَٱلثَّالِثُ إِلَى ٱلسَّبْعَةِ. ٢٦ 26
इसी तरह दूसरा और तीसरा भी सातवें तक।
وَآخِرَ ٱلْكُلِّ مَاتَتِ ٱلْمَرْأَةُ أَيْضًا. ٢٧ 27
सब के बाद वो 'औरत भी मर गई।
فَفِي ٱلْقِيَامَةِ لِمَنْ مِنَ ٱلسَّبْعَةِ تَكُونُ زَوْجَةً؟ فَإِنَّهَا كَانَتْ لِلْجَمِيعِ!». ٢٨ 28
पस वो क़यामत में उन सातों में से किसकी बीवी होगी? क्यूँकि सब ने उससे शादी की थी।”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُمْ: «تَضِلُّونَ إِذْ لَا تَعْرِفُونَ ٱلْكُتُبَ وَلَا قُوَّةَ ٱللهِ. ٢٩ 29
ईसा' ने जवाब में उनसे कहा, “तुम गुमराह हो; इसलिए कि न किताबे मुक़द्दस को जानते हो न ख़ुदा की क़ुदरत को।
لِأَنَّهُمْ فِي ٱلْقِيَامَةِ لَا يُزَوِّجُونَ وَلَا يَتَزَوَّجُونَ، بَلْ يَكُونُونَ كَمَلَائِكَةِ ٱللهِ فِي ٱلسَّمَاءِ. ٣٠ 30
क्यूँकि क़यामत में शादी बारात न होगी; बल्कि लोग आसमान पर फ़रिश्तों की तरह होंगे।
وَأَمَّا مِنْ جِهَةِ قِيَامَةِ ٱلْأَمْوَاتِ، أَفَمَا قَرَأْتُمْ مَا قِيلَ لَكُمْ مِنْ قِبَلِ ٱللهِ ٱلْقَائِلِ: ٣١ 31
मगर मुर्दों के जी उठने के बारे में ख़ुदा ने तुम्हें फ़रमाया था, क्या तुम ने वो नहीं पढ़ा?
أَنَا إِلَهُ إِبْرَاهِيمَ وَإِلَهُ إِسْحَاقَ وَإِلَهُ يَعْقُوبَ؟ لَيْسَ ٱللهُ إِلَهَ أَمْوَاتٍ بَلْ إِلَهُ أَحْيَاءٍ». ٣٢ 32
मैं इब्राहीम का ख़ुदा, और इज़्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ? वो तो मुर्दों का ख़ुदा नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है।”
فَلَمَّا سَمِعَ ٱلْجُمُوعُ بُهِتُوا مِنْ تَعْلِيمِهِ. ٣٣ 33
लोग ये सुन कर उसकी ता'लीम से हैरान हुए।
أَمَّا ٱلْفَرِّيسِيُّونَ فَلَمَّا سَمِعُوا أَنَّهُ أَبْكَمَ ٱلصَّدُّوقِيِّينَ ٱجْتَمَعُوا مَعًا، ٣٤ 34
जब फ़रीसियों ने सुना कि उसने सदूक़ियों का मुँह बन्द कर दिया, तो वो जमा हो गए।
وَسَأَلَهُ وَاحِدٌ مِنْهُمْ، وَهُوَ نَامُوسِيٌّ، لِيُجَرِّبَهُ قَائِلًا: ٣٥ 35
और उन में से एक आलिम — ऐ शरा ने आज़माने के लिए उससे पूछा;
«يَا مُعَلِّمُ، أَيَّةُ وَصِيَّةٍ هِيَ ٱلْعُظْمَى فِي ٱلنَّامُوسِ؟». ٣٦ 36
“ऐ उस्ताद, तौरेत में कौन सा हुक्म बड़ा है?”
فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «تُحِبُّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ مِنْ كُلِّ قَلْبِكَ، وَمِنْ كُلِّ نَفْسِكَ، وَمِنْ كُلِّ فِكْرِكَ. ٣٧ 37
उसने उस से कहा “ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख।
هَذِهِ هِيَ ٱلْوَصِيَّةُ ٱلْأُولَى وَٱلْعُظْمَى. ٣٨ 38
बड़ा और पहला हुक्म यही है।
وَٱلثَّانِيَةُ مِثْلُهَا: تُحِبُّ قَرِيبَكَ كَنَفْسِكَ. ٣٩ 39
और दूसरा इसकी तरह ये है कि ‘अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख।’
بِهَاتَيْنِ ٱلْوَصِيَّتَيْنِ يَتَعَلَّقُ ٱلنَّامُوسُ كُلُّهُ وَٱلْأَنْبِيَاءُ». ٤٠ 40
इन्ही दो हुक्मों पर तमाम तौरेत और अम्बिया के सहीफ़ों का मदार है।”
وَفِيمَا كَانَ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ مُجْتَمِعِينَ سَأَلَهُمْ يَسُوعُ ٤١ 41
जब फ़रीसी जमा हुए तो ईसा ने उनसे ये पूछा;
قَائِلًا: «مَاذَا تَظُنُّونَ فِي ٱلْمَسِيحِ؟ ٱبْنُ مَنْ هُوَ؟» قَالُوا لَهُ: «ٱبْنُ دَاوُدَ». ٤٢ 42
“तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो? वो किसका बेटा है” उन्होंने उससे कहा “दाऊद का।”
قَالَ لَهُمْ: «فَكَيْفَ يَدْعُوهُ دَاوُدُ بِٱلرُّوحِ رَبًّا؟ قَائِلًا: ٤٣ 43
उसने उनसे कहा, “पस दाऊद रूह की हिदायत से क्यूँकर उसे ख़ुदावन्द कहता है,
قَالَ ٱلرَّبُّ لِرَبِّي: ٱجْلِسْ عَنْ يَمِينِي حَتَّى أَضَعَ أَعْدَاءَكَ مَوْطِئًا لِقَدَمَيْكَ. ٤٤ 44
‘ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा, मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक में तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव के नीचे न कर दूँ’।
فَإِنْ كَانَ دَاوُدُ يَدْعُوهُ رَبًّا، فَكَيْفَ يَكُونُ ٱبْنَهُ؟». ٤٥ 45
पस जब दाऊद उसको ख़ुदावन्द कहता है तो वो उसका बेटा क्यूँकर ठहरा?”
فَلَمْ يَسْتَطِعْ أَحَدٌ أَنْ يُجِيبَهُ بِكَلِمَةٍ. وَمِنْ ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ لَمْ يَجْسُرْ أَحَدٌ أَنْ يَسْأَلَهُ بَتَّةً. ٤٦ 46
कोई उसके जवाब में एक हर्फ़ न कह सका, और न उस दिन से फिर किसी ने उससे सवाल करने की जुरअत की।

< مَتَّى 22 >