< مَتَّى 12 >

فِي ذَلِكَ ٱلْوَقْتِ ذَهَبَ يَسُوعُ فِي ٱلسَّبْتِ بَيْنَ ٱلزُّرُوعِ، فَجَاعَ تَلَامِيذُهُ وَٱبْتَدَأُوا يَقْطِفُونَ سَنَابِلَ وَيَأْكُلُونَ. ١ 1
उस वक़्त ईसा सबत के दिन खेतों में हो कर गया, और उसके शागिर्दों को भूख लगी और वो बालियां तोड़ — तोड़ कर खाने लगे।
فَٱلْفَرِّيسِيُّونَ لَمَّا نَظَرُوا قَالُوا لَهُ: «هُوَذَا تَلَامِيذُكَ يَفْعَلُونَ مَا لَا يَحِلُّ فَعْلُهُ فِي ٱلسَّبْتِ!». ٢ 2
फ़रीसियों ने देख कर उससे कहा “देख तेरे शागिर्द वो काम करते हैं जो सबत के दिन करना जायज़ नहीं।”
فَقَالَ لَهُمْ: «أَمَا قَرَأْتُمْ مَا فَعَلَهُ دَاوُدُ حِينَ جَاعَ هُوَ وَٱلَّذِينَ مَعَهُ؟ ٣ 3
उसने उनसे कहा “क्या तुम ने ये नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उस के साथी भूखा थे; तो उसने क्या किया?
كَيْفَ دَخَلَ بَيْتَ ٱللهِ وَأَكَلَ خُبْزَ ٱلتَّقْدِمَةِ ٱلَّذِي لَمْ يَحِلَّ أَكْلُهُ لَهُ وَلَا لِلَّذِينَ مَعَهُ، بَلْ لِلْكَهَنَةِ فَقَطْ. ٤ 4
वो क्यूँकर ख़ुदा के घर में गया और नज़्र की रोटियाँ खाईं जिनको खाना उसको जायज़ न था; न उसके साथियों को मगर सिर्फ़ काहिनों को?
أَوَ مَا قَرَأْتُمْ فِي ٱلتَّوْرَاةِ أَنَّ ٱلْكَهَنَةَ فِي ٱلسَّبْتِ فِي ٱلْهَيْكَلِ يُدَنِّسُونَ ٱلسَّبْتَ وَهُمْ أَبْرِيَاءُ؟ ٥ 5
क्या तुम ने तौरेत में नहीं पढ़ा कि काहिन सबत के दिन हैकल में सबत की बेहुरमती करते हैं; और बेक़ुसूर रहते हैं?
وَلَكِنْ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ هَهُنَا أَعْظَمَ مِنَ ٱلْهَيْكَلِ! ٦ 6
लेकिन मैं तुम से कहता हूँ कि यहाँ वो है जो हैकल से भी बड़ा है।
فَلَوْ عَلِمْتُمْ مَا هُوَ: إِنِّي أُرِيدُ رَحْمَةً لَا ذَبِيحَةً، لَمَا حَكَمْتُمْ عَلَى ٱلْأَبْرِيَاءِ! ٧ 7
लेकिन अगर तुम इसका मतलब जानते कि, मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि, रहम पसन्द करता हूँ। तो बेक़ुसूरों को क़ुसूरवार न ठहराते।
فَإِنَّ ٱبْنَ ٱلْإِنْسَانِ هُوَ رَبُّ ٱلسَّبْتِ أَيْضًا». ٨ 8
क्यूँकि इब्न — ए — आदम सबत का मालिक है।”
ثُمَّ ٱنْصَرَفَ مِنْ هُنَاكَ وَجَاءَ إِلَى مَجْمَعِهِمْ، ٩ 9
वो वहाँ से चलकर उन के इबादतख़ाने में गया।
وَإِذَا إِنْسَانٌ يَدُهُ يَابِسَةٌ، فَسَأَلُوهُ قَائِلِينَ: «هَلْ يَحِلُّ ٱلْإِبْرَاءُ فِي ٱلسُّبُوتِ؟» لِكَيْ يَشْتَكُوا عَلَيْهِ. ١٠ 10
और देखो; वहाँ एक आदमी था जिस का हाथ सूखा हुआ था उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगाने के 'इरादे से ये पुछा, “क्या सबत के दिन शिफ़ा देना जायज़ है।”
فَقَالَ لَهُمْ: «أَيُّ إِنْسَانٍ مِنْكُمْ يَكُونُ لَهُ خَرُوفٌ وَاحِدٌ، فَإِنْ سَقَطَ هَذَا فِي ٱلسَّبْتِ فِي حُفْرَةٍ، أَفَمَا يُمْسِكُهُ وَيُقِيمُهُ؟ ١١ 11
उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है जिसकी एक भेड़ हो और वो सबत के दिन गड्ढे में गिर जाए तो वो उसे पकड़कर न निकाले?
فَٱلْإِنْسَانُ كَمْ هُوَ أَفْضَلُ مِنَ ٱلْخَرُوفِ! إِذًا يَحِلُّ فِعْلُ ٱلْخَيْرِ فِي ٱلسُّبُوتِ!». ١٢ 12
पस आदमी की क़द्र तो भेड़ से बहुत ही ज़्यादा है; इसलिए सबत के दिन नेकी करना जायज़ है।”
ثُمَّ قَالَ لِلْإِنْسَانِ: «مُدَّ يَدَكَ». فَمَدَّهَا. فَعَادَتْ صَحِيحَةً كَٱلْأُخْرَى. ١٣ 13
तब उसने उस आदमी से कहा “अपना हाथ बढ़ा।” उस ने बढ़ाया और वो दूसरे हाथ की तरह दुरुस्त हो गया।
فَلَمَّا خَرَجَ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ تَشَاوَرُوا عَلَيْهِ لِكَيْ يُهْلِكُوهُ، ١٤ 14
इस पर फ़रीसियों ने बाहर जाकर उसके बरख़िलाफ़ मशवरा किया कि उसे किस तरह हलाक करें।
فَعَلِمَ يَسُوعُ وَٱنْصَرَفَ مِنْ هُنَاكَ. وَتَبِعَتْهُ جُمُوعٌ كَثِيرَةٌ فَشَفَاهُمْ جَمِيعًا. ١٥ 15
ईसा ये मा'लूम करके वहाँ से रवाना हुआ; और बहुत से लोग उसके पीछे हो लिए और उसने सब को अच्छा कर दिया,
وَأَوْصَاهُمْ أَنْ لَا يُظْهِرُوهُ، ١٦ 16
और उनको ताकीद की, कि मुझे ज़ाहिर न करना।
لِكَيْ يَتِمَّ مَا قِيلَ بِإِشَعْيَاءَ ٱلنَّبِيِّ ٱلْقَائِلِ: ١٧ 17
ताकि जो यसायाह नबी की मा'रिफ़त कहा गया था वो पूरा हो।
«هُوَذَا فَتَايَ ٱلَّذِي ٱخْتَرْتُهُ، حَبِيبِي ٱلَّذِي سُرَّتْ بِهِ نَفْسِي. أَضَعُ رُوحِي عَلَيْهِ فَيُخْبِرُ ٱلْأُمَمَ بِٱلْحَقِّ. ١٨ 18
'देखो, ये मेरा ख़ादिम है जिसे मैं ने चुना मेरा प्यारा जिससे मेरा दिल ख़ुश है। मैं अपना रूह इस पर डालूँगा, और ये ग़ैर क़ौमों को इन्साफ़ की ख़बर देगा।
لَا يُخَاصِمُ وَلَا يَصِيحُ، وَلَا يَسْمَعُ أَحَدٌ فِي ٱلشَّوَارِعِ صَوْتَهُ. ١٩ 19
ये न झगड़ा करेगा न शोर, और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज़ सुनेगा।
قَصَبَةً مَرْضُوضَةً لَا يَقْصِفُ، وَفَتِيلَةً مُدَخِّنَةً لَا يُطْفِئُ، حَتَّى يُخْرِجَ ٱلْحَقَّ إِلَى ٱلنُّصْرَةِ. ٢٠ 20
ये कुचले हुए सरकंडे को न तोड़ेगा और धुवाँ उठते हुए सन को न बुझाएगा; जब तक कि इन्साफ़ की फ़तह न कराए।
وَعَلَى ٱسْمِهِ يَكُونُ رَجَاءُ ٱلْأُمَمِ». ٢١ 21
और इसके नाम से ग़ैर क़ौमें उम्मीद रख्खेंगी।
حِينَئِذٍ أُحْضِرَ إِلَيْهِ مَجْنُونٌ أَعْمَى وَأَخْرَسُ فَشَفَاهُ، حَتَّى إِنَّ ٱلْأَعْمَى ٱلْأَخْرَسَ تَكَلَّمَ وَأَبْصَرَ. ٢٢ 22
उस वक़्त लोग उसके पास एक अंधे गूँगे को लाए; उसने उसे अच्छा कर दिया चुनाँचे वो गूँगा बोलने और देखने लगा।
فَبُهِتَ كُلُّ ٱلْجُمُوعِ وَقَالُوا: «أَلَعَلَّ هَذَا هُوَ ٱبْنُ دَاوُدَ؟». ٢٣ 23
“सारी भीड़ हैरान होकर कहने लगी; क्या ये इब्न — ए — आदम है?”
أَمَّا ٱلْفَرِّيسِيُّونَ فَلَمَّا سَمِعُوا قَالُوا: «هَذَا لَا يُخْرِجُ ٱلشَّيَاطِينَ إِلَّا بِبَعْلَزَبُولَ رَئِيسِ ٱلشَّيَاطِينِ». ٢٤ 24
फ़रीसियों ने सुन कर कहा, “ये बदरूहों के सरदार बा'लज़बूल की मदद के बग़ैर बदरूहों को नहीं निकालता।”
فَعَلِمَ يَسُوعُ أَفْكَارَهُمْ، وَقَالَ لَهُمْ: «كُلُّ مَمْلَكَةٍ مُنْقَسِمَةٍ عَلَى ذَاتِهَا تُخْرَبُ، وَكُلُّ مَدِينَةٍ أَوْ بَيْتٍ مُنْقَسِمٍ عَلَى ذَاتِهِ لَا يَثْبُتُ. ٢٥ 25
उसने उनके ख़यालों को जानकर उनसे कहा, “जिस बादशाही में फ़ूट पड़ती है वो वीरान हो जाती है और जिस शहर या घर में फ़ूट पड़ेगी वो क़ाईम न रहेगा।
فَإِنْ كَانَ ٱلشَّيْطَانُ يُخْرِجُ ٱلشَّيْطَانَ فَقَدِ ٱنْقَسَمَ عَلَى ذَاتِهِ. فَكَيْفَ تَثْبُتُ مَمْلَكَتُهُ؟ ٢٦ 26
और अगर शैतान ही शैतान को निकाले तो वो आप ही अपना मुख़ालिफ़ हो गया; फिर उसकी बादशाही क्यूँकर क़ाईम रहेगी?
وَإِنْ كُنْتُ أَنَا بِبَعْلَزَبُولَ أُخْرِجُ ٱلشَّيَاطِينَ، فَأَبْنَاؤُكُمْ بِمَنْ يُخْرِجُونَ؟ لِذَلِكَ هُمْ يَكُونُونَ قُضَاتَكُمْ! ٢٧ 27
अगर मैं बा'लज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे किस की मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारे मुन्सिफ़ होंगे।
وَلَكِنْ إِنْ كُنْتُ أَنَا بِرُوحِ ٱللهِ أُخْرِجُ ٱلشَّيَاطِينَ، فَقَدْ أَقْبَلَ عَلَيْكُمْ مَلَكُوتُ ٱللهِ! ٢٨ 28
लेकिन अगर मैं ख़ुदा के रूह की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची।
أَمْ كَيْفَ يَسْتَطِيعُ أَحَدٌ أَنْ يَدْخُلَ بَيْتَ ٱلْقَوِيِّ وَيَنْهَبَ أَمْتِعَتَهُ، إِنْ لَمْ يَرْبِطِ ٱلْقَوِيَّ أَوَّلًا، وَحِينَئِذٍ يَنْهَبُ بَيْتَهُ؟ ٢٩ 29
या क्यूँकर कोई आदमी किसी ताक़तवर के घर में घुस कर उसका माल लूट सकता है; जब तक कि पहले उस ताक़तवर को न बाँध ले? फिर वो उसका घर लूट लेगा।
مَنْ لَيْسَ مَعِي فَهُوَ عَلَيَّ، وَمَنْ لَا يَجْمَعُ مَعِي فَهُوَ يُفَرِّقُ. ٣٠ 30
जो मेरे साथ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा नहीं करता वो बिखेरता है।
لِذَلِكَ أَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ خَطِيَّةٍ وَتَجْدِيفٍ يُغْفَرُ لِلنَّاسِ، وَأَمَّا ٱلتَّجْدِيفُ عَلَى ٱلرُّوحِ فَلَنْ يُغْفَرَ لِلنَّاسِ. ٣١ 31
इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि आदमियों का हर गुनाह और कुफ़्र तो मुआफ़ किया जाएगा; मगर जो कुफ़्र रूह के हक़ में हो वो मु'आफ़ न किया जाएगा।”
وَمَنْ قَالَ كَلِمَةً عَلَى ٱبْنِ ٱلْإِنْسَانِ يُغْفَرُ لَهُ، وَأَمَّا مَنْ قَالَ عَلَى ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ فَلَنْ يُغْفَرَ لَهُ، لَا فِي هَذَا ٱلْعَالَمِ وَلَا فِي ٱلْآتِي. (aiōn g165) ٣٢ 32
“और जो कोई इब्न — ए — आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा वो तो उसे मु'आफ़ की जाएगी; मगर जो कोई रूह — उल — क़ुद्दूस के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा; वो उसे मु'आफ़ न की जाएगी न इस आलम में न आने वाले में।” (aiōn g165)
اِجْعَلُوا ٱلشَّجَرَةَ جَيِّدَةً وَثَمَرَهَا جَيِّدًا، أَوِ ٱجْعَلُوا ٱلشَّجَرَةَ رَدِيَّةً وَثَمَرَهَا رَدِيًّا، لِأَنْ مِنَ ٱلثَّمَرِ تُعْرَفُ ٱلشَّجَرَةُ. ٣٣ 33
“या तो दरख़्त को भी अच्छा कहो; और उसके फल को भी अच्छा, या दरख़्त को भी बुरा कहो और उसके फल को भी बुरा; क्यूँकि दरख़्त फल से पहचाना जाता है।
يَا أَوْلَادَ ٱلْأَفَاعِي! كَيْفَ تَقْدِرُونَ أَنْ تَتَكَلَّمُوا بِٱلصَّالِحَاتِ وَأَنْتُمْ أَشْرَارٌ؟ فَإِنَّهُ مِنْ فَضْلَةِ ٱلْقَلْبِ يَتَكَلَّمُ ٱلْفَمُ. ٣٤ 34
ऐ साँप के बच्चो! तुम बुरे होकर क्यूँकर अच्छी बातें कह सकते हो? क्यूँकि जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।
اَلْإِنْسَانُ ٱلصَّالِحُ مِنَ ٱلْكَنْزِ ٱلصَّالِحِ فِي ٱلْقَلْبِ يُخْرِجُ ٱلصَّالِحَاتِ، وَٱلْإِنْسَانُ ٱلشِّرِّيرُ مِنَ ٱلْكَنْزِ ٱلشِّرِّيرِ يُخْرِجُ ٱلشُّرُورَ. ٣٥ 35
अच्छा आदमी अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है; बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है।
وَلَكِنْ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ كُلَّ كَلِمَةٍ بَطَّالَةٍ يَتَكَلَّمُ بِهَا ٱلنَّاسُ سَوْفَ يُعْطُونَ عَنْهَا حِسَابًا يَوْمَ ٱلدِّينِ. ٣٦ 36
मैं तुम से कहता हूँ; कि जो निकम्मी बात लोग कहेंगे; 'अदालत के दिन उसका हिसाब देंगे।
لِأَنَّكَ بِكَلَامِكَ تَتَبَرَّرُ وَبِكَلَامِكَ تُدَانُ». ٣٧ 37
क्यूँकि तू अपनी बातों की वजह से रास्तबाज़ ठहराया जाएगा; और अपनी बातों की वजह से क़ुसूरवार ठहराया जाएगा।”
حِينَئِذٍ أَجَابَ قَوْمٌ مِنَ ٱلْكَتَبَةِ وَٱلْفَرِّيسِيِّينَ قَائِلِينَ: «يَا مُعَلِّمُ، نُرِيدُ أَنْ نَرَى مِنْكَ آيَةً». ٣٨ 38
इस पर कुछ आलिमों और फ़रीसियों ने जवाब में उससे कहा, “ऐ उस्ताद हम तुझ से एक निशान देखना चहते हैं।”
فَأَجابَ وَقَالَ لَهُمْ: «جِيلٌ شِرِّيرٌ وَفَاسِقٌ يَطْلُبُ آيَةً، وَلَا تُعْطَى لَهُ آيَةٌ إِلَّا آيَةَ يُونَانَ ٱلنَّبِيِّ. ٣٩ 39
उस ने जवाब देकर उनसे कहा, इस ज़माने के बुरे और बे'ईमान लोग निशान तलब करते हैं; मगर यहून्ना नबी के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा।
لِأَنَّهُ كَمَا كَانَ يُونَانُ فِي بَطْنِ ٱلْحُوتِ ثَلَاثَةَ أَيَّامٍ وَثَلَاثَ لَيَالٍ، هَكَذَا يَكُونُ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ فِي قَلْبِ ٱلْأَرْضِ ثَلَاثَةَ أَيَّامٍ وَثَلَاثَ لَيَالٍ. ٤٠ 40
क्यूँकि जैसे यहून्ना तीन रात तीन दिन मछली के पेट में रहा; वैसे ही इबने आदम तीन रात तीन दिन ज़मीन के अन्दर रहेगा।
رِجَالُ نِينَوَى سَيَقُومُونَ فِي ٱلدِّينِ مَعَ هَذَا ٱلْجِيلِ وَيَدِينُونَهُ، لِأَنَّهُمْ تَابُوا بِمُنَادَاةِ يُونَانَ، وَهُوَذَا أَعْظَمُ مِنْ يُونَانَ هَهُنَا! ٤١ 41
निनवे शहर के लोग 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ खड़े होकर इनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने यहून्ना के एलान पर तौबा कर ली; और देखो, यह वो है जो यहून्ना से भी बड़ा है।
مَلِكَةُ ٱلتَّيْمَنِ سَتَقُومُ فِي ٱلدِّينِ مَعَ هَذَا ٱلْجِيلِ وَتَدِينُهُ، لِأَنَّهَا أَتَتْ مِنْ أَقَاصِي ٱلْأَرْضِ لِتَسْمَعَ حِكْمَةَ سُلَيْمَانَ، وَهُوَذَا أَعْظَمُ مِنْ سُلَيْمَانَ هَهُنَا! ٤٢ 42
दक्खिन की मलिका 'अदालत के दिन इस ज़माने के लोगों के साथ उठकर इनको मुजरिम ठहराएगी; क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलैमान की हिक्मत सुनने को आई; और देखो यहाँ वो है जो सुलैमान से भी बड़ा है।
إِذَا خَرَجَ ٱلرُّوحُ ٱلنَّجِسُ مِنَ ٱلْإِنْسَانِ يَجْتَازُ فِي أَمَاكِنَ لَيْسَ فِيهَا مَاءٌ، يَطْلُبُ رَاحَةً وَلَا يَجِدُ. ٤٣ 43
“जब बदरूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मक़ामों में आराम ढूँडती फिरती है, और नहीं पाती।
ثُمَّ يَقُولُ: أَرْجِعُ إِلَى بَيْتِي ٱلَّذِي خَرَجْتُ مِنْهُ. فَيَأْتِي وَيَجِدُهُ فَارِغًا مَكْنُوسًا مُزَيَّنًا. ٤٤ 44
तब कहती है, मैं अपने उस घर में फिर जाऊँगी जिससे निकली थी। और आकर उसे ख़ाली और झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है।
ثُمَّ يَذْهَبُ وَيَأْخُذُ مَعَهُ سَبْعَةَ أَرْوَاحٍ أُخَرَ أَشَرَّ مِنْهُ، فَتَدْخُلُ وَتَسْكُنُ هُنَاكَ، فَتَصِيرُ أَوَاخِرُ ذَلِكَ ٱلْإِنْسَانِ أَشَرَّ مِنْ أَوَائِلِهِ! هَكَذَا يَكُونُ أَيْضًا لِهَذَا ٱلْجِيلِ ٱلشِّرِّيرِ». ٤٥ 45
फिर जा कर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं; और उस आदमी का पिछला हाल पहले से बदतर हो जाता है, इस ज़माने के बुरे लोगों का हाल भी ऐसा ही होगा।”
وَفِيمَا هُوَ يُكَلِّمُ ٱلْجُمُوعَ إِذَا أُمُّهُ وَإِخْوَتُهُ قَدْ وَقَفُوا خَارِجًا طَالِبِينَ أَنْ يُكَلِّمُوهُ. ٤٦ 46
जब वो भीड़ से ये कह रहा था, उसकी माँ और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बात करना चहते थे।
فَقَالَ لَهُ وَاحِدٌ: «هُوَذَا أُمُّكَ وَإِخْوَتُكَ وَاقِفُونَ خَارِجًا طَالِبِينَ أَنْ يُكَلِّمُوكَ». ٤٧ 47
किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माँ और भाई बाहर खड़े हैं और तुझ से बात करना चाहते हैं।”
فَأَجَابَ وَقَالَ لِلْقَائِلِ لَهُ: «مَنْ هِيَ أُمِّي وَمَنْ هُمْ إِخْوَتي؟». ٤٨ 48
उसने ख़बर देने वाले को जवाब में कहा “कौन है मेरी माँ और कौन हैं मेरे भाई?”
ثُمَّ مَدَّ يَدَهُ نَحْوَ تَلَامِيذِهِ وَقَالَ: «هَا أُمِّي وَإِخْوَتِي. ٤٩ 49
फिर अपने शागिर्दों की तरफ़ हाथ बढ़ा कर कहा, “देखो, मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं।
لِأَنَّ مَنْ يَصْنَعُ مَشِيئَةَ أَبِي ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَاوَاتِ هُوَ أَخِي وَأُخْتِي وَأُمِّي». ٥٠ 50
क्यूँकि जो कोई मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चले वही मेरा भाई, मेरी बहन और माँ है।”

< مَتَّى 12 >