< مَرْقُس 4 >
وَٱبْتَدَأَ أَيْضًا يُعَلِّمُ عِنْدَ ٱلْبَحْرِ، فَٱجْتَمَعَ إِلَيْهِ جَمْعٌ كَثِيرٌ حَتَّى إِنَّهُ دَخَلَ ٱلسَّفِينَةَ وَجَلَسَ عَلَى ٱلْبَحْرِ، وَٱلْجَمْعُ كُلُّهُ كَانَ عِنْدَ ٱلْبَحْرِ عَلَى ٱلْأَرْضِ. | ١ 1 |
फिर सी यीशु न गलील की झील को किनार पर शिक्षा देन लग्यो। अऊर असी बड़ी भीड़ ओको जवर जमा भय गयी कि ऊ एक डोंगा पर चढ़ क बैठ गयो। अऊर पूरी भीड़ झील को किनार पर खड़ी रही।
فَكَانَ يُعَلِّمُهُمْ كَثِيرًا بِأَمْثَالٍ. وَقَالَ لَهُمْ فِي تَعْلِيمِهِ: | ٢ 2 |
अऊर ऊ उन्ख दृष्टान्त म बहुत सी बात सिखावन लग्यो, अऊर अपनो शिक्षा म उन्को सी कह्यो।
«ٱسْمَعُوا! هُوَذَا ٱلزَّارِعُ قَدْ خَرَجَ لِيَزْرَعَ، | ٣ 3 |
“सुनो! एक किसान बीज बोवन निकल्यो।
وَفِيمَا هُوَ يَزْرَعُ سَقَطَ بَعْضٌ عَلَى ٱلطَّرِيقِ، فَجَاءَتْ طُيُورُ ٱلسَّمَاءِ وَأَكَلَتْهُ. | ٤ 4 |
तब बीज बोवतो समय कुछ रस्ता को किनार पर गिरयो अऊर पक्षिंयों न आय क ओख खाय लियो।
وَسَقَطَ آخَرُ عَلَى مَكَانٍ مُحْجِرٍ، حَيْثُ لَمْ تَكُنْ لَهُ تُرْبَةٌ كَثِيرَةٌ، فَنَبَتَ حَالًا إِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُ عُمْقُ أَرْضٍ. | ٥ 5 |
अऊर कुछ बीज गोटाड़ी जमीन पर गिरयो जित ओख थोड़ी सी माटी मिली होती, अऊर गहरी माटी नहीं मिलन को वजह जल्दी उग गयो,
وَلَكِنْ لَمَّا أَشْرَقَتِ ٱلشَّمْسُ ٱحْتَرَقَ، وَإِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُ أَصْلٌ جَفَّ. | ٦ 6 |
अऊर जब सूरज निकल्यो त बड़ो पौधा जर गयो, अऊर गहरी जड़ी नहीं पकड़न को वजह सूख गयो।
وَسَقَطَ آخَرُ فِي ٱلشَّوْكِ، فَطَلَعَ ٱلشَّوْكُ وَخَنَقَهُ فَلَمْ يُعْطِ ثَمَرًا. | ٧ 7 |
कुछ बीज काटा को झाड़ियों म गिरयो, अऊर झाड़ियों न बढ़ क ओख दबाय दियो, अऊर ओन फर नहीं लायो।
وَسَقَطَ آخَرُ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلْجَيِّدَةِ، فَأَعْطَى ثَمَرًا يَصْعَدُ وَيَنْمُو، فَأَتَى وَاحِدٌ بِثَلَاثِينَ وَآخَرُ بِسِتِّينَ وَآخَرُ بِمِئَةٍ». | ٨ 8 |
पर कुछ बीज अच्छी जमीन पर गिरयो, अऊर ऊ उग्यो अऊर बढ़ क ओख अच्छो फर लग्यो; अऊर कोयी तीस गुना, कोयी साठ गुना अऊर कोयी सौ गुना फर लायो।”
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «مَنْ لَهُ أُذُنَانِ لِلسَّمْعِ، فَلْيَسْمَعْ» | ٩ 9 |
तब यीशु न कह्यो, “जेको जवर सुनन लायी कान हय, ऊ सुन ले।”
وَلَمَّا كَانَ وَحْدَهُ سَأَلَهُ ٱلَّذِينَ حَوْلَهُ مَعَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ عَنِ ٱلْمَثَلِ، | ١٠ 10 |
जब यीशु अकेलो रह्य गयो, त ओको संगियों न उन बारा चेलावों समेत ओको सी इन दृष्टान्तों को बारे म पुच्छ्यो।
فَقَالَ لَهُمْ: «قَدْ أُعْطِيَ لَكُمْ أَنْ تَعْرِفُوا سِرَّ مَلَكُوتِ ٱللهِ. وَأَمَّا ٱلَّذِينَ هُمْ مِنْ خَارِجٍ فَبِٱلْأَمْثَالِ يَكُونُ لَهُمْ كُلُّ شَيْءٍ، | ١١ 11 |
ओन उन्को सी कह्यो, “तुम्ख त परमेश्वर को राज्य को भेद की समझ दी गयी हय, पर बाहेर वालो लायी सब बाते दृष्टान्तों म होवय हय।
لِكَيْ يُبْصِرُوا مُبْصِرِينَ وَلَا يَنْظُرُوا، وَيَسْمَعُوا سَامِعِينَ وَلَا يَفْهَمُوا، لِئَلَّا يَرْجِعُوا فَتُغْفَرَ لَهُمْ خَطَايَاهُمْ». | ١٢ 12 |
“हि लोग देखय हय पर देख नहीं सकय, अऊर सुनय हय पर सुन नहीं सकय, अऊर हि समझ नहीं पायेंन। अऊर हि समझ सकय त परमेश्वर को तरफ मुड़ सकय हय अऊर उन्को पाप माफ होय सकय हय।”
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «أَمَا تَعْلَمُونَ هَذَا ٱلْمَثَلَ؟ فَكَيْفَ تَعْرِفُونَ جَمِيعَ ٱلْأَمْثَالِ؟ | ١٣ 13 |
तब यीशु न उन्को सी पुच्छ्यो, “का तुम यो दृष्टान्त नहीं समझय? त फिर अऊर कोयी दृष्टान्तों ख कसो समझो?
اَلزَّارِعُ يَزْرَعُ ٱلْكَلِمَةَ. | ١٤ 14 |
बोवन वालो परमेश्वर को सन्देश बोवय हय।
وَهَؤُلَاءِ هُمُ ٱلَّذِينَ عَلَى ٱلطَّرِيقِ: حَيْثُ تُزْرَعُ ٱلْكَلِمَةُ، وَحِينَمَا يَسْمَعُونَ يَأْتِي ٱلشَّيْطَانُ لِلْوَقْتِ وَيَنْزِعُ ٱلْكَلِمَةَ ٱلْمَزْرُوعَةَ فِي قُلُوبِهِمْ. | ١٥ 15 |
कुछ लोग बीज को जसो हय जो रस्ता को किनार पर आवय हय, जब हि सन्देश सुनय हय, त शैतान तुरतच आवय हय अऊर जो सन्देश उन्म बोयो गयो हय ओख उठाय लिजावय हय।
وَهَؤُلَاءِ كَذَلِكَ هُمُ ٱلَّذِينَ زُرِعُوا عَلَى ٱلْأَمَاكِنِ ٱلْمُحْجِرَةِ: ٱلَّذِينَ حِينَمَا يَسْمَعُونَ ٱلْكَلِمَةَ يَقْبَلُونَهَا لِلْوَقْتِ بِفَرَحٍ، | ١٦ 16 |
कुछ लोग ऊ बीज को जसो होवय हय, जो गोटाड़ी जमीन पर गिरय हय। जसोच हि सन्देश सुनय हय, हि तुरतच खुशी सी स्वीकार कर लेवय हय।
وَلَكِنْ لَيْسَ لَهُمْ أَصْلٌ فِي ذَوَاتِهِمْ، بَلْ هُمْ إِلَى حِينٍ. فَبَعْدَ ذَلِكَ إِذَا حَدَثَ ضِيقٌ أَوِ ٱضْطِهَادٌ مِنْ أَجْلِ ٱلْكَلِمَةِ، فَلِلْوَقْتِ يَعْثُرُونَ. | ١٧ 17 |
पर उन्म जड़ी गहरायी तक नहीं होवय हय, अऊर हि जादा दिन तक नहीं रह्य सकय। येकोलायी सन्देश स्वीकार नहीं करन को वजह सी भूल जावय हय, त उन पर कठिनायी यां उपद्रव आवय हय, त हि तुरतच ठोकर खावय हय।
وَهَؤُلَاءِ هُمُ ٱلَّذِينَ زُرِعُوا بَيْنَ ٱلشَّوْكِ: هَؤُلَاءِ هُمُ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ ٱلْكَلِمَةَ، | ١٨ 18 |
कुछ लोग काटा की झाड़ियों म जगन वालो बीज को जसो हय जो सन्देश ख सुनय हय,
وَهُمُومُ هَذَا ٱلْعَالَمِ وَغُرُورُ ٱلْغِنَى وَشَهَوَاتُ سَائِرِ ٱلْأَشْيَاءِ تَدْخُلُ وَتَخْنُقُ ٱلْكَلِمَةَ فَتَصِيرُ بِلَا ثَمَرٍ. (aiōn ) | ١٩ 19 |
अऊर जीवन की चिन्ता, अऊर धन को धोका, अऊर दूसरी चिजों को लोभ ओको म समाय क सन्देश ख दबाय देवय हय अऊर ऊ असफल रह्य जावय हय। (aiōn )
وَهَؤُلَاءِ هُمُ ٱلَّذِينَ زُرِعُوا عَلَى ٱلْأَرْضِ ٱلْجَيِّدَةِ: ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ ٱلْكَلِمَةَ وَيَقْبَلُونَهَا، وَيُثْمِرُونَ: وَاحِدٌ ثَلَاثِينَ وَآخَرُ سِتِّينَ وَآخَرُ مِئَةً». | ٢٠ 20 |
पर कुछ लोग अच्छी जमीन म बोयो गयो बीज को जसो हंय जो सन्देश ख सुन क स्वीकार करय हंय अऊर अच्छो फर लावय हंय: कोयी तीस गुना, कोयी साठ गुना, कोयी सौ गुना।”
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «هَلْ يُؤْتَى بِسِرَاجٍ لِيُوضَعَ تَحْتَ ٱلْمِكْيَالِ أَوْ تَحْتَ ٱلسَّرِيرِ؟ أَلَيْسَ لِيُوضَعَ عَلَى ٱلْمَنَارَةِ؟ | ٢١ 21 |
यीशु न उन्को सी कह्यो, “का दीया ख येकोलायी लावय हय कि बर्तन यां खटिया को खल्लो रख्यो जायेंन? का येकोलायी नहीं कि दीवट पर रख्यो जायेंन?
لِأَنَّهُ لَيْسَ شَيْءٌ خَفِيٌّ لَا يُظْهَرُ، وَلَا صَارَ مَكْتُومًا إِلَّا لِيُعْلَنَ. | ٢٢ 22 |
असो कुछ भी नहाय, जो लूक्यो हय अऊर खोल्यो नहीं जायेंन अऊर नहीं कुछ लूक्यो हय, जो प्रकाश म नहीं लायो जायेंन।
إِنْ كَانَ لِأَحَدٍ أُذُنَانِ لِلسَّمْعِ، فَلْيَسْمَعْ». | ٢٣ 23 |
यदि कोयी को कान हय, त ऊ सुन ले।”
وَقَالَ لَهُمُ: «ٱنْظُرُوا مَا تَسْمَعُونَ! بِٱلْكَيْلِ ٱلَّذِي بِهِ تَكِيلُونَ يُكَالُ لَكُمْ وَيُزَادُ لَكُمْ أَيُّهَا ٱلسَّامِعُونَ. | ٢٤ 24 |
तब ओन उन्को सी यो भी कह्यो, “तुम सुनय हय ओको पर ध्यान देवो! उच नियम सी तुम दूसरों को न्याय करय हय उच नियम तुम्हरो लायी भी व्यवहार म लायो जायेंन, अऊर तुम्हरो लायी त ओको सी भी जादा होयेंन।
لِأَنَّ مَنْ لَهُ سَيُعْطَى، وَأَمَّا مَنْ لَيْسَ لَهُ فَٱلَّذِي عِنْدَهُ سَيُؤْخَذُ مِنْهُ». | ٢٥ 25 |
कहालीकि जेको जवर हय, उन्ख जादा दियो जायेंन; अऊर जेको जवर नहाय, ओको सी ऊ भी जो ओको जवर हय, ले लियो जायेंन।”
وَقَالَ: «هَكَذَا مَلَكُوتُ ٱللهِ: كَأَنَّ إِنْسَانًا يُلْقِي ٱلْبِذَارَ عَلَى ٱلْأَرْضِ، | ٢٦ 26 |
यीशु न कह्यो, “परमेश्वर को राज्य असो हय। जसो कोयी आदमी जमीन म बीज बोवय हय,
وَيَنَامُ وَيَقُومُ لَيْلًا وَنَهَارًا، وَٱلْبِذَارُ يَطْلُعُ وَيَنْمُو، وَهُوَ لَا يَعْلَمُ كَيْفَ، | ٢٧ 27 |
अऊर रात ख सोवय हय, अऊर दिन ख जागय हय, तब सब बीज अंकुरित होय क असो बढ़य हय। कि ऊ नहीं जानय की यो कसो भयो।
لِأَنَّ ٱلْأَرْضَ مِنْ ذَاتِهَا تَأْتِي بِثَمَرٍ. أَوَّلًا نَبَاتًا، ثُمَّ سُنْبُلًا، ثُمَّ قَمْحًا مَلْآنَ فِي ٱلسُّنْبُلِ. | ٢٨ 28 |
जमीन अपनो आप फर लावय हय, पहिले अंकुर, तब लोम्ब, अऊर तब लोम्बा म तैयार दाना।
وَأَمَّا مَتَى أَدْرَكَ ٱلثَّمَرُ، فَلِلْوَقْتِ يُرْسِلُ ٱلْمِنْجَلَ لِأَنَّ ٱلْحَصَادَ قَدْ حَضَرَ». | ٢٩ 29 |
पर जब फसल पक जावय हय, तब ऊ तुरतच हसिया सी काटय हय, कहालीकि काटन को समय आय गयो हय।”
وَقَالَ: «بِمَاذَا نُشَبِّهُ مَلَكُوتَ ٱللهِ؟ أَوْ بِأَيِّ مَثَلٍ نُمَثِّلُهُ؟ | ٣٠ 30 |
तब यीशु न कह्यो, “परमेश्वर को राज्य कसो हय ओख समझावन लायी कौन सो दृष्टान्त सी ओको वर्नन कर सकय हय?
مِثْلُ حَبَّةِ خَرْدَلٍ، مَتَى زُرِعَتْ فِي ٱلْأَرْضِ فَهِيَ أَصْغَرُ جَمِيعِ ٱلْبُزُورِ ٱلَّتِي عَلَى ٱلْأَرْضِ. | ٣١ 31 |
ऊ राई को दाना को जसो हय: जब जमीन म बोयो जावय हय त जमीन को सब बीजावों सी छोटो होवय हय,
وَلَكِنْ مَتَى زُرِعَتْ تَطْلُعُ وَتَصِيرُ أَكْبَرَ جَمِيعِ ٱلْبُقُولِ، وَتَصْنَعُ أَغْصَانًا كَبِيرَةً، حَتَّى تَسْتَطِيعَ طُيُورُ ٱلسَّمَاءِ أَنْ تَتَآوَى تَحْتَ ظِلِّهَا». | ٣٢ 32 |
पर जब बोयो गयो, त उग क सब पौधा सी बड़ो होय जावय हय, अऊर ओकी असी बड़ी डगाली निकलय हय कि आसमान को पक्षी ओकी छाव म घोसला बनाय क बसेरा कर सकय हय।”
وَبِأَمْثَالٍ كَثِيرَةٍ مِثْلِ هَذِهِ كَانَ يُكَلِّمُهُمْ حَسْبَمَا كَانُوا يَسْتَطِيعُونَ أَنْ يَسْمَعُوا، | ٣٣ 33 |
यीशु न लोगों ख सन्देश दियो, असो कुछ दृष्टान्तों को उपयोग करतो हुयो ओन उन्ख उतनोच बतायो जितनो हि समझ सकत होतो।
وَبِدُونِ مَثَلٍ لَمْ يَكُنْ يُكَلِّمُهُمْ. وَأَمَّا عَلَى ٱنْفِرَادٍ فَكَانَ يُفَسِّرُ لِتَلَامِيذِهِ كُلَّ شَيْءٍ. | ٣٤ 34 |
अऊर बिना दृष्टान्त को ऊ उन्को सी कुछ भी नहीं बोलत होतो; पर एकान्त म ऊ अपनो चेलावों ख सब बातों को मतलब समझावत होतो।
وَقَالَ لَهُمْ فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ لَمَّا كَانَ ٱلْمَسَاءُ: «لِنَجْتَزْ إِلَى ٱلْعَبْرِ». | ٣٥ 35 |
ओनच दिन शाम ख, ओन अपनो चेलावों सी कह्यो, “आवो, हम झील को ओन पार चलबो।”
فَصَرَفُوا ٱلْجَمْعَ وَأَخَذُوهُ كَمَا كَانَ فِي ٱلسَّفِينَةِ. وَكَانَتْ مَعَهُ أَيْضًا سُفُنٌ أُخْرَى صَغِيرَةٌ. | ٣٦ 36 |
येकोलायी हि भीड़ ख छोड़ क जो डोंगा म यीशु पहिलेच बैठ्यो होतो, वसोच चेलावों भी ओख डोंगा पर ओन पार ले गयो; अऊर ओको संग अऊर भी डोंगा होतो।
فَحَدَثَ نَوْءُ رِيحٍ عَظِيمٌ، فَكَانَتِ ٱلْأَمْوَاجُ تَضْرِبُ إِلَى ٱلسَّفِينَةِ حَتَّى صَارَتْ تَمْتَلِئُ. | ٣٧ 37 |
तब अचानक बड़ी आन्धी तूफान आयी, अऊर लहर डोंगा सी यहां तक टकरावन लगी कि ऊ पानी सी भरन लगी।
وَكَانَ هُوَ فِي ٱلْمُؤَخَّرِ عَلَى وِسَادَةٍ نَائِمًا. فَأَيْقَظُوهُ وَقَالُوا لَهُ: «يَا مُعَلِّمُ، أَمَا يَهُمُّكَ أَنَّنَا نَهْلِكُ؟». | ٣٨ 38 |
यीशु खुद जहाज को पीछू को भाग म मुन्डेसो लगाय क सोय रह्यो होतो। तब चेलावों न ओख जगायो अऊर कह्यो, “हे गुरु, का तोख चिन्ता नहाय कि हम मरन पर हय?”
فَقَامَ وَٱنْتَهَرَ ٱلرِّيحَ، وَقَالَ لِلْبَحْرِ: «ٱسْكُتْ! اِبْكَمْ!». فَسَكَنَتِ ٱلرِّيحُ وَصَارَ هُدُوءٌ عَظِيمٌ. | ٣٩ 39 |
यीशु न उठ क आन्धी ख आज्ञा दियो, “शान्त रह, थम जा!” अऊर आन्धी थम गयी, अऊर बड़ो चैन मिल गयो।
وَقَالَ لَهُمْ: «مَا بَالُكُمْ خَائِفِينَ هَكَذَا؟ كَيْفَ لَا إِيمَانَ لَكُمْ؟». | ٤٠ 40 |
तब यीशु न अपनो चेलावों सी कह्यो, “तुम कहाली डरय हय? का तुम्ख अब भी विश्वास नहाय?”
فَخَافُوا خَوْفًا عَظِيمًا، وَقَالُوا بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ: «مَنْ هُوَ هَذَا؟ فَإِنَّ ٱلرِّيحَ أَيْضًا وَٱلْبَحْرَ يُطِيعَانِهِ!». | ٤١ 41 |
हि बहुतच डर गयो अऊर आपस म बोलन लग्यो, “यो आदमी कौन आय? कि आन्धी अऊर लहर भी ओकी आज्ञा मानय हय!”