< مَرْقُس 14 >

وَكَانَ ٱلْفِصْحُ وَأَيَّامُ ٱلْفَطِيرِ بَعْدَ يَوْمَيْنِ. وَكَانَ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْكَتَبَةُ يَطْلُبُونَ كَيْفَ يُمْسِكُونَهُ بِمَكْرٍ وَيَقْتُلُونَهُ، ١ 1
दो दिन के बाद फ़सह और 'ईद — ए — फ़ितर होने वाली थी और सरदार काहिन और फ़क़ीह मौक़ा ढूँड रहे थे कि उसे क्यूँकर धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
وَلَكِنَّهُمْ قَالُوا: «لَيْسَ فِي ٱلْعِيدِ، لِئَلَّا يَكُونَ شَغَبٌ فِي ٱلشَّعْبِ». ٢ 2
क्यूँकि कहते थे ई'द में नहीं “ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए”
وَفِيمَا هُوَ فِي بَيْتِ عَنْيَا فِي بَيْتِ سِمْعَانَ ٱلْأَبْرَصِ، وَهُوَ مُتَّكِئٌ، جَاءَتِ ٱمْرَأَةٌ مَعَهَا قَارُورَةُ طِيبِ نَارِدِينٍ خَالِصٍ كَثِيرِ ٱلثَّمَنِ. فَكَسَرَتِ ٱلْقَارُورَةَ وَسَكَبَتْهُ عَلَى رَأْسِهِ. ٣ 3
जब वो बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था उसके घर में खाना खाने बैठा तो एक औरत जटामासी का बेशक़ीमती इत्र संगे मरमर के इत्र दान में लाई और इत्र दान तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर डाला।
وَكَانَ قَوْمٌ مُغْتَاظِينَ فِي أَنْفُسِهِمْ، فَقَالُوا: «لِمَاذَا كَانَ تَلَفُ ٱلطِّيبِ هَذَا؟ ٤ 4
मगर कुछ अपने दिल में ख़फ़ा हो कर कहने लगे “ये इत्र किस लिए ज़ाया किया गया।
لِأَنَّهُ كَانَ يُمْكِنُ أَنْ يُبَاعَ هَذَا بِأَكْثَرَ مِنْ ثَلَاثِمِئَةِ دِينَارٍ وَيُعْطَى لِلْفُقَرَاءِ». وَكَانُوا يُؤَنِّبُونَهَا. ٥ 5
क्यूँकि ये इत्र तक़रीबन तीन सौ दिन की मज़दूरी से ज़्यादा की क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था” और वो उसे मलामत करने लगे।
أَمَّا يَسُوعُ فَقَالَ: «ٱتْرُكُوهَا! لِمَاذَا تُزْعِجُونَهَا؟ قَدْ عَمِلَتْ بِي عَمَلًا حَسَنًا! ٦ 6
ईसा ने कहा “उसे छोड़ दो उसे क्यूँ दिक़ करते हो उसने मेरे साथ भलाई की है।
لِأَنَّ ٱلْفُقَرَاءَ مَعَكُمْ فِي كُلِّ حِينٍ، وَمَتَى أَرَدْتُمْ تَقْدِرُونَ أَنْ تَعْمَلُوا بِهِمْ خَيْرًا. وَأَمَّا أَنَا فَلَسْتُ مَعَكُمْ فِي كُلِّ حِينٍ. ٧ 7
क्यूँकि ग़रीब और ग़ुरबा तो हमेशा तुम्हारे पास हैं जब चाहो उनके साथ नेकी कर सकते हो; लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
عَمِلَتْ مَا عِنْدَهَا. قَدْ سَبَقَتْ وَدَهَنَتْ بِٱلطِّيبِ جَسَدِي لِلتَّكْفِينِ. ٨ 8
जो कुछ वो कर सकी उसने किया उसने दफ़्न के लिए मेरे बदन पर पहले ही से इत्र मला।
اَلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: حَيْثُمَا يُكْرَزْ بِهَذَا ٱلْإِنْجِيلِ فِي كُلِّ ٱلْعَالَمِ، يُخْبَرْ أَيْضًا بِمَا فَعَلَتْهُ هَذِهِ، تَذْكَارًا لَهَا». ٩ 9
मैं तुम से सच कहता हूँ कि, तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इन्जील की मनादी की जाएगी, ये भी जो इस ने किया उस की यादगारी में बयान किया जाएगा।”
ثُمَّ إِنَّ يَهُوذَا ٱلْإِسْخَرْيُوطِيَّ، وَاحِدًا مِنَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ، مَضَى إِلَى رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ لِيُسَلِّمَهُ إِلَيْهِمْ. ١٠ 10
फिर यहूदाह इस्करियोती जो उन बारह में से था, सरदार काहिन के पास चला गया ताकि उसे उनके हवाले कर दे।
وَلَمَّا سَمِعُوا فَرِحُوا، وَوَعَدُوهُ أَنْ يُعْطُوهُ فِضَّةً. وَكَانَ يَطْلُبُ كَيْفَ يُسَلِّمُهُ فِي فُرْصَةٍ مُوافِقَةٍ. ١١ 11
वो ये सुन कर ख़ुश हुए और उसको रुपऐ देने का इक़रार किया और वो मौक़ा ढूँडने लगा कि किस तरह क़ाबू पाकर उसे पकड़वा दे।
وَفِي ٱلْيَوْمِ ٱلْأَوَّلِ مِنَ ٱلْفَطِيرِ. حِينَ كَانُوا يَذْبَحُونَ ٱلْفِصْحَ، قَالَ لَهُ تَلَامِيذُهُ: «أَيْنَ تُرِيدُ أَنْ نَمْضِيَ وَنُعِدَّ لِتَأْكُلَ ٱلْفِصْحَ؟». ١٢ 12
ई'द 'ए फ़ितर के पहले दिन या'नी जिस रोज़ फ़सह को ज़बह किया करते थे “उसके शागिर्दों ने उससे कहा? तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फ़सह खाने की तैयारी करें।”
فَأَرْسَلَ ٱثْنَيْنِ مِنْ تَلَامِيذِهِ وَقَالَ لَهُمَا: «ٱذْهَبَا إِلَى ٱلْمَدِينَةِ، فَيُلَاقِيَكُمَا إِنْسَانٌ حَامِلٌ جَرَّةَ مَاءٍ. اِتْبَعَاهُ. ١٣ 13
उसने अपने शागिर्दो में से दो को भेजा और उनसे कहा “शहर में जाओ एक शख़्स पानी का घड़ा लिए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना।
وَحَيْثُمَا يَدْخُلْ فَقُولَا لِرَبِّ ٱلْبَيْتِ: إِنَّ ٱلْمُعَلِّمَ يَقُولُ: أَيْنَ ٱلْمَنْزِلُ حَيْثُ آكُلُ ٱلْفِصْحَ مَعَ تَلَامِيذِي؟ ١٤ 14
और जहाँ वो दाख़िल हो उस घर के मालिक से कहना ‘उस्ताद कहता है? मेरा मेहमानख़ाना जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह खाउँ कहाँ है।’
فَهُوَ يُرِيكُمَا عِلِّيَّةً كَبِيرَةً مَفْرُوشَةً مُعَدَّةً. هُنَاكَ أَعِدَّا لَنَا». ١٥ 15
वो आप तुम को एक बड़ा मेहमानख़ाना आरास्ता और तैयार दिखाएगा वहीं हमारे लिए तैयारी करना।”
فَخَرَجَ تِلْمِيذَاهُ وَأَتَيَا إِلَى ٱلْمَدِينَةِ، وَوَجَدَا كَمَا قَالَ لَهُمَا. فَأَعَدَّا ٱلْفِصْحَ. ١٦ 16
पस शागिर्द चले गए और शहर में आकर जैसा ईसा ने उन से कहा था वैसा ही पाया और फ़सह को तैयार किया।
وَلَمَّا كَانَ ٱلْمَسَاءُ جَاءَ مَعَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ. ١٧ 17
जब शाम हुई तो वो उन बारह के साथ आया।
وَفِيمَا هُمْ مُتَّكِئُونَ يَأْكُلُونَ، قَالَ يَسُوعُ: «ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ وَاحِدًا مِنْكُمْ يُسَلِّمُنِي. اَلْآكِلُ مَعِي!». ١٨ 18
और जब वो बैठे खा रहे थे तो ईसा ने कहा “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक जो मेरे साथ खाता है मुझे पकड़वाएगा।”
فَٱبْتَدَأُوا يَحْزَنُونَ، وَيَقُولُونَ لَهُ وَاحِدًا فَوَاحِدًا: «هَلْ أَنَا؟». وَآخَرُ: «هَلْ أَنَا؟». ١٩ 19
वो दुखी होकर और एक एक करके उससे कहने लगे, “क्या मैं हूँ?”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «هُوَ وَاحِدٌ مِنَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ، ٱلَّذِي يَغْمِسُ مَعِي فِي ٱلصَّحْفَةِ. ٢٠ 20
उसने उनसे कहा, “वो बारह में से एक है जो मेरे साथ थाल में हाथ डालता है।
إِنَّ ٱبْنَ ٱلْإِنْسَانِ مَاضٍ كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ عَنْهُ، وَلَكِنْ وَيْلٌ لِذَلِكَ ٱلرَّجُلِ ٱلَّذِي بِهِ يُسَلَّمُ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ. كَانَ خَيْرًا لِذَلِكَ ٱلرَّجُلِ لَوْ لَمْ يُولَدْ!». ٢١ 21
क्यूँकि इब्न — ए आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इब्न — ए आदम पकड़वाया जाता है, अगर वो आदमी पैदा ही न होता तो उसके लिए अच्छा था।”
وَفِيمَا هُمْ يَأْكُلُونَ، أَخَذَ يَسُوعُ خُبْزًا وَبَارَكَ وَكَسَّرَ، وَأَعْطَاهُمْ وَقَالَ: «خُذُوا كُلُوا، هَذَا هُوَ جَسَدِي». ٢٢ 22
और वो खा ही रहे थे कि उसने रोटी ली और बर्क़त देकर तोड़ी और उनको दी और कहा “लो ये मेरा बदन है।”
ثُمَّ أَخَذَ ٱلْكَأْسَ وَشَكَرَ وَأَعْطَاهُمْ، فَشَرِبُوا مِنْهَا كُلُّهُمْ. ٢٣ 23
फिर उसने प्याला लेकर शुक्र किया और उनको दिया और उन सभों ने उस में से पिया।
وَقَالَ لَهُمْ: «هَذَا هُوَ دَمِي ٱلَّذِي لِلْعَهْدِ ٱلْجَدِيدِ، ٱلَّذِي يُسْفَكُ مِنْ أَجْلِ كَثِيرِينَ. ٢٤ 24
उसने उनसे कहा “ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतेरों के लिए बहाया जाता है।
اَلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنِّي لَا أَشْرَبُ بَعْدُ مِنْ نِتَاجِ ٱلْكَرْمَةِ إِلَى ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ حِينَمَا أَشْرَبُهُ جَدِيدًا فِي مَلَكُوتِ ٱللهِ». ٢٥ 25
मैं तुम से सच कहता हूँ कि अंगूर का शीरा फिर कभी न पिऊँगा; उस दिन तक कि ख़ुदा की बादशाही में नया न पिऊँ।”
ثُمَّ سَبَّحُوا وَخَرَجُوا إِلَى جَبَلِ ٱلزَّيْتُونِ. ٢٦ 26
फिर हम्द गा कर बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
وَقَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «إِنَّ كُلَّكُمْ تَشُكُّونَ فِيَّ فِي هَذِهِ ٱللَّيْلَةِ، لِأَنَّهُ مَكْتُوبٌ: أَنِّي أَضْرِبُ ٱلرَّاعِيَ فَتَتَبَدَّدُ ٱلْخِرَافُ. ٢٧ 27
और ईसा ने उनसे कहा “तुम सब ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और भेड़ें इधर उधर हो जाएँगी।’
وَلَكِنْ بَعْدَ قِيَامِي أَسْبِقُكُمْ إِلَى ٱلْجَلِيلِ». ٢٨ 28
मगर मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”
فَقَالَ لَهُ بُطْرُسُ: «وَإِنْ شَكَّ ٱلْجَمِيعُ فَأَنَا لَا أَشُكُّ!». ٢٩ 29
पतरस ने उससे कहा, “चाहे सब ठोकर खाएँ लेकिन मैं न खाउँगा।”
فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكَ: إِنَّكَ ٱلْيَوْمَ فِي هَذِهِ ٱللَّيْلَةِ، قَبْلَ أَنْ يَصِيحَ ٱلدِّيكُ مَرَّتَيْنِ، تُنْكِرُنِي ثَلَاثَ مَرَّاتٍ». ٣٠ 30
ईसा ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ। कि तू आज इसी रात मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”
فَقَالَ بِأَكْثَرِ تَشْدِيدٍ: «وَلَوِ ٱضْطُرِرْتُ أَنْ أَمُوتَ مَعَكَ لَا أُنْكِرُكَ!». وَهَكَذَا قَالَ أَيْضًا ٱلْجَمِيعُ. ٣١ 31
लेकिन उसने बहुत ज़ोर देकर कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” इसी तरह और सब ने भी कहा।
وَجَاءُوا إِلَى ضَيْعَةٍ ٱسْمُهَا جَثْسَيْمَانِي، فَقَالَ لِتَلَامِيذِهِ: «ٱجْلِسُوا هَهُنَا حَتَّى أُصَلِّيَ». ٣٢ 32
फिर वो एक जगह आए जिसका नाम गतसिमनी था और उसने अपने शागिर्दों से कहा, “यहाँ बैठे रहो जब तक मैं दुआ करूँ।”
ثُمَّ أَخَذَ مَعَهُ بُطْرُسَ وَيَعْقُوبَ وَيُوحَنَّا، وَٱبْتَدَأَ يَدْهَشُ وَيَكْتَئِبُ. ٣٣ 33
और पतरस और या'क़ूब और यूहन्ना को अपने साथ लेकर निहायत हैरान और बेक़रार होने लगा।
فَقَالَ لَهُمْ: «نَفْسِي حَزِينَةٌ جِدًّا حَتَّى ٱلْمَوْتِ! اُمْكُثُوا هُنَا وَٱسْهَرُوا». ٣٤ 34
और उसने कहा “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।”
ثُمَّ تَقَدَّمَ قَلِيلًا وَخَرَّ عَلَى ٱلْأَرْضِ، وَكَانَ يُصَلِّي لِكَيْ تَعْبُرَ عَنْهُ ٱلسَّاعَةُ إِنْ أَمْكَنَ. ٣٥ 35
और वो थोड़ा आगे बढ़ा और ज़मीन पर गिर कर दुआ करने लगा, कि अगर हो सके तो ये वक़्त मुझ पर से टल जाए।
وَقَالَ: «يَا أَبَا ٱلْآبُ، كُلُّ شَيْءٍ مُسْتَطَاعٌ لَكَ، فَأَجِزْ عَنِّي هَذِهِ ٱلْكَأْسَ. وَلَكِنْ لِيَكُنْ لَا مَا أُرِيدُ أَنَا، بَلْ مَا تُرِيدُ أَنْتَ». ٣٦ 36
और कहा “ऐ अब्बा ऐ बाप तुझ से सब कुछ हो सकता है इस प्याले को मेरे पास से हटा ले तोभी जो मैं चाहता हूँ वो नहीं बल्कि जो तू चाहता है वही हो।”
ثُمَّ جَاءَ وَوَجَدَهُمْ نِيَامًا، فَقَالَ لِبُطْرُسَ: «يَا سِمْعَانُ، أَنْتَ نَائِمٌ! أَمَا قَدَرْتَ أَنْ تَسْهَرَ سَاعَةً وَاحِدَةً؟ ٣٧ 37
फिर वो आया और उन्हें सोते पाकर पतरस से कहा “ऐ शमौन तू सोता है? क्या तू एक घड़ी भी न जाग सका।
اِسْهَرُوا وَصَلُّوا لِئَلَّا تَدْخُلُوا فِي تَجْرِبَةٍ. أَمَّا ٱلرُّوحُ فَنَشِيطٌ، وَأَمَّا ٱلْجَسَدُ فَضَعِيفٌ». ٣٨ 38
जागो और दुआ करो, ताकि आज़माइश में न पड़ो रूह तो मुसतैद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
وَمَضَى أَيْضًا وَصَلَّى قَائِلًا ذَلِكَ ٱلْكَلَامَ بِعَيْنِهِ. ٣٩ 39
वो फिर चला गया और वही बात कह कर दुआ की।
ثُمَّ رَجَعَ وَوَجَدَهُمْ أَيْضًا نِيَامًا، إِذْ كَانَتْ أَعْيُنُهُمْ ثَقِيلَةً، فَلَمْ يَعْلَمُوا بِمَاذَا يُجِيبُونَهُ. ٤٠ 40
और फिर आकर उन्हें सोते पाया क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं और वो न जानते थे कि उसे क्या जवाब दें।
ثُمَّ جَاءَ ثَالِثَةً وَقَالَ لَهُمْ: «نَامُوا ٱلْآنَ وَٱسْتَرِيحُوا! يَكْفِي! قَدْ أَتَتِ ٱلسَّاعَةُ! هُوَذَا ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ يُسَلَّمُ إِلَى أَيْدِي ٱلْخُطَاةِ. ٤١ 41
फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा “अब सोते रहो और आराम करो बस वक़्त आ पहुँचा है देखो; इब्न — ए आदम गुनाहगारों के हाथ में हवाले किया जाता है।
قُومُوا لِنَذْهَبَ! هُوَذَا ٱلَّذِي يُسَلِّمُنِي قَدِ ٱقْتَرَبَ!». ٤٢ 42
उठो चलो देखो मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”
وَلِلْوَقْتِ فِيمَا هُوَ يَتَكَلَّمُ أَقْبَلَ يَهُوذَا، وَاحِدٌ مِنَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ، وَمَعَهُ جَمْعٌ كَثِيرٌ بِسُيُوفٍ وَعِصِيٍّ مِنْ عِنْدِ رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْكَتَبَةِ وَٱلشُّيُوخِ. ٤٣ 43
वो ये कह ही रहा था कि फ़ौरन यहूदाह जो उन बारह में से था और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए सरदार काहिनों और फ़क़ीहों की तरफ़ से आ पहुँची।
وَكَانَ مُسَلِّمُهُ قَدْ أَعْطَاهُمْ عَلَامَةً قَائِلًا: «ٱلَّذِي أُقَبِّلُهُ هُوَ هُوَ. أَمْسِكُوهُ، وَٱمْضُوا بِهِ بِحِرْصٍ». ٤٤ 44
और उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें ये निशान दिया था जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ कर हिफ़ाज़त से ले जाना।
فَجَاءَ لِلْوَقْتِ وَتَقَدَّمَ إِلَيْهِ قَائِلًا: «يَا سَيِّدِي، يَا سَيِّدِي!» وَقَبَّلَهُ. ٤٥ 45
वो आकर फ़ौरन उसके पास गया और कहा, “ऐ रब्बी!” और उसके बोसे लिए।
فَأَلْقَوْا أَيْدِيَهُمْ عَلَيْهِ وَأَمْسَكُوهُ. ٤٦ 46
उन्होंने उस पर हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया।
فَٱسْتَلَّ وَاحِدٌ مِنَ ٱلْحَاضِرِينَ ٱلسَّيْفَ، وَضَرَبَ عَبْدَ رَئِيسِ ٱلْكَهَنَةِ فَقَطَعَ أُذْنَهُ. ٤٧ 47
उन में से जो पास खड़े थे एक ने तलवार खींचकर सरदार काहिन के नौकर पर चलाई और उसका कान उड़ा दिया।
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُمْ: «كَأَنَّهُ عَلَى لِصٍّ خَرَجْتُمْ بِسُيُوفٍ وَعِصِيٍّ لِتَأْخُذُونِي! ٤٨ 48
ईसा ने उनसे कहा “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो?
كُلَّ يَوْمٍ كُنْتُ مَعَكُمْ فِي ٱلْهَيْكَلِ أُعَلِّمُ وَلَمْ تُمْسِكُونِي! وَلَكِنْ لِكَيْ تُكْمَلَ ٱلْكُتُبُ». ٤٩ 49
मैं हर रोज़ तुम्हारे पास हैकल में ता'लीम देता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा लेकिन ये इसलिए हुआ कि लिखा हुआ पूरा हों।”
فَتَرَكَهُ ٱلْجَمِيعُ وَهَرَبُوا. ٥٠ 50
इस पर सब शगिर्द उसे छोड़कर भाग गए।
وَتَبِعَهُ شَابٌّ لَابِسًا إِزَارًا عَلَى عُرْيِهِ، فَأَمْسَكَهُ ٱلشُّبَّانُ، ٥١ 51
मगर एक जवान अपने नंगे बदन पर महीन चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया, उसे लोगों ने पकड़ा।
فَتَرَكَ ٱلْإِزَارَ وَهَرَبَ مِنْهُمْ عُرْيَانًا. ٥٢ 52
मगर वो चादर छोड़ कर नंगा भाग गया।
فَمَضَوْا بِيَسُوعَ إِلَى رَئِيسِ ٱلْكَهَنَةِ، فَٱجْتَمَعَ مَعَهُ جَمِيعُ رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلشُّيُوخُ وَٱلْكَتَبَةُ. ٥٣ 53
फिर वो ईसा को सरदार काहिन के पास ले गए; और अब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग और फ़क़ीह उसके यहाँ जमा हुए।
وَكَانَ بُطْرُسُ قَدْ تَبِعَهُ مِنْ بَعِيدٍ إِلَى دَاخِلِ دَارِ رَئِيسِ ٱلْكَهَنَةِ، وَكَانَ جَالِسًا بَيْنَ ٱلْخُدَّامِ يَسْتَدْفِئُ عِنْدَ ٱلنَّارِ. ٥٤ 54
पतरस फ़ासले पर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने के अन्दर तक गया और सिपाहियों के साथ बैठ कर आग तापने लगा।
وَكَانَ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْمَجْمَعُ كُلُّهُ يَطْلُبُونَ شَهَادَةً عَلَى يَسُوعَ لِيَقْتُلُوهُ، فَلَمْ يَجِدُوا. ٥٥ 55
और सरदार काहिन सब सद्रे — अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ गवाही ढूँडने लगे मगर न पाई।
لِأَنَّ كَثِيرِينَ شَهِدُوا عَلَيْهِ زُورًا، وَلَمْ تَتَّفِقْ شَهَادَاتُهُمْ. ٥٦ 56
क्यूँकि बहुतेरों ने उस पर झूठी गवाहियाँ तो दीं लेकिन उनकी गवाहियाँ सहीह न थीं।
ثُمَّ قَامَ قَوْمٌ وَشَهِدُوا عَلَيْهِ زُورًا قَائِلِينَ: ٥٧ 57
फिर कुछ ने उठकर उस पर ये झूठी गवाही दी।
«نَحْنُ سَمِعْنَاهُ يَقُولُ: إِنِّي أَنْقُضُ هَذَا ٱلْهَيْكَلَ ٱلْمَصْنُوعَ بِٱلْأَيَادِي، وَفِي ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ أَبْنِي آخَرَ غَيْرَ مَصْنُوعٍ بِأَيَادٍ». ٥٨ 58
“हम ने उसे ये कहते सुना है मैं इस मक़दिस को जो हाथ से बना है ढाऊँगा और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।”
وَلَا بِهَذَا كَانَتْ شَهَادَتُهُمْ تَتَّفِقُ. ٥٩ 59
लेकिन इस पर भी उसकी गवाही सही न निकली।
فَقَامَ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ فِي ٱلْوَسْطِ وَسَأَلَ يَسُوعَ قَائِلًا: «أَمَا تُجِيبُ بِشَيْءٍ؟ مَاذَا يَشْهَدُ بِهِ هَؤُلَاءِ عَلَيْكَ؟». ٦٠ 60
“फिर सरदार काहिन ने बीच में खड़े हो कर ईसा से पूछा तू कुछ जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं।”
أَمَّا هُوَ فَكَانَ سَاكِتًا وَلَمْ يُجِبْ بِشَيْءٍ. فَسَأَلَهُ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ أَيْضًا وَقَالَ لَهُ: «أَأَنْتَ ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ ٱلْمُبَارَكِ؟». ٦١ 61
“मगर वो ख़ामोश ही रहा और कुछ जवाब न दिया? सरदार काहिन ने उससे फिर सवाल किया और कहा क्या तू उस यूसुफ़ का बेटा मसीह है।”
فَقَالَ يَسُوعُ: «أَنَا هُوَ. وَسَوْفَ تُبْصِرُونَ ٱبْنَ ٱلْإِنْسَانِ جَالِسًا عَنْ يَمِينِ ٱلْقُوَّةِ، وَآتِيًا فِي سَحَابِ ٱلسَّمَاءِ». ٦٢ 62
ईसा ने कहा, “हाँ मैं हूँ। और तुम इब्न — ए आदम को क़ादिर ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों के साथ आते देखोगे।”
فَمَزَّقَ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ ثِيَابَهُ وَقَالَ: «مَا حَاجَتُنَا بَعْدُ إِلَى شُهُودٍ؟ ٦٣ 63
सरदार काहिन ने अपने कपड़े फाड़ कर कहा “अब हमें गवाहों की क्या ज़रूरत रही।
قَدْ سَمِعْتُمُ ٱلتَّجَادِيفَ! مَا رَأْيُكُمْ؟». فَٱلْجَمِيعُ حَكَمُوا عَلَيْهِ أَنَّهُ مُسْتَوْجِبٌ ٱلْمَوْتَ. ٦٤ 64
तुम ने ये कुफ़्र सुना तुम्हारी क्या राय है? उन सब ने फ़तवा दिया कि वो क़त्ल के लायक़ है।”
فَٱبْتَدَأَ قَوْمٌ يَبْصُقُونَ عَلَيْهِ، وَيُغَطُّونَ وَجْهَهُ وَيَلْكُمُونَهُ وَيَقُولُونَ لَهُ: «تَنَبَّأْ». وَكَانَ ٱلْخُدَّامُ يَلْطِمُونَهُ. ٦٥ 65
तब कुछ उस पर थूकने और उसका मुँह ढाँपने और उसके मुक्के मारने और उससे कहने लगे “नबुव्वत की बातें सुना! और सिपाहियों ने उसे तमाचे मार मार कर अपने क़ब्ज़े में लिया।”
وَبَيْنَمَا كَانَ بُطْرُسُ فِي ٱلدَّارِ أَسْفَلَ جَاءَتْ إِحْدَى جَوَارِي رَئِيسِ ٱلْكَهَنَةِ. ٦٦ 66
जब पतरस नीचे सहन में था तो सरदार काहिन की लौंडियों में से एक वहाँ आई।
فَلَمَّا رَأَتْ بُطْرُسَ يَسْتَدْفِئُ، نَظَرَتْ إِلَيْهِ وَقَالَتْ: «وَأَنْتَ كُنْتَ مَعَ يَسُوعَ ٱلنَّاصِرِيِّ!». ٦٧ 67
और पतरस को आग तापते देख कर उस पर नज़र की और कहने लगी “तू भी उस नासरी ईसा के साथ था।”
فَأَنْكَرَ قَائِلًا: «لَسْتُ أَدْرِي وَلَا أَفْهَمُ مَا تَقُولِينَ!». وَخَرَجَ خَارِجًا إِلَى ٱلدِّهْلِيزِ، فَصَاحَ ٱلدِّيكُ. ٦٨ 68
उसने इन्कार किया और कहा “मैं तो न जानता और न समझता हूँ।” कि तू क्या कहती है फिर वो बाहर सहन में गया [और मुर्ग़ ने बाँग दी]।
فَرَأَتْهُ ٱلْجَارِيَةُ أَيْضًا وَٱبْتَدَأَتْ تَقُولُ لِلْحَاضِرِينَ: «إِنَّ هَذَا مِنْهُمْ!». ٦٩ 69
वो लौंडी उसे देख कर उन से जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी “ये उन में से है।”
فَأَنْكَرَ أَيْضًا. وَبَعْدَ قَلِيلٍ أَيْضًا قَالَ ٱلْحَاضِرُونَ لِبُطْرُسَ: «حَقًّا أَنْتَ مِنْهُمْ، لِأَنَّكَ جَلِيلِيٌّ أَيْضًا وَلُغَتُكَ تُشْبِهُ لُغَتَهُمْ!». ٧٠ 70
“मगर उसने फिर इन्कार किया और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे पतरस से फिर कहा बेशक तू उन में से है क्यूँकि तू गलीली भी है।”
فَٱبْتَدَأَ يَلْعَنُ وَيَحْلِفُ: «إِنِّي لَا أَعْرِفُ هَذَا ٱلرَّجُلَ ٱلَّذِي تَقُولُونَ عَنْهُ!». ٧١ 71
“मगर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा में इस आदमी को जिसका तुम ज़िक्र करते हो नहीं जानता।”
وَصَاحَ ٱلدِّيكُ ثَانِيَةً، فَتَذَكَّرَ بُطْرُسُ ٱلْقَوْلَ ٱلَّذِي قَالَهُ لَهُ يَسُوعُ: «إِنَّكَ قَبْلَ أَنْ يَصِيحَ ٱلدِّيكُ مَرَّتَيْنِ، تُنْكِرُنِي ثَلَاثَ مَرَّاتٍ». فَلَمَّا تَفَكَّرَ بِهِ بَكَى. ٧٢ 72
और फ़ौरन मुर्ग़ ने दूसरी बार बाँग दी पतरस को वो बात जो ईसा ने उससे कही थी याद आई “मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार इन्कार करेगा” और उस पर ग़ौर करके रो पड़ा।

< مَرْقُس 14 >