< لُوقا 8 >

وَعَلَى أَثَرِ ذَلِكَ كَانَ يَسِيرُ فِي مَدِينَةٍ وَقَرْيَةٍ يَكْرِزُ وَيُبَشِّرُ بِمَلَكُوتِ ٱللهِ، وَمَعَهُ ٱلِٱثْنَا عَشَرَ. ١ 1
इसके बाद वह नगर-नगर और गाँव-गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे,
وَبَعْضُ ٱلنِّسَاءِ كُنَّ قَدْ شُفِينَ مِنْ أَرْوَاحٍ شِرِّيرَةٍ وَأَمْرَاضٍ: مَرْيَمُ ٱلَّتِي تُدْعَى ٱلْمَجْدَلِيَّةَ ٱلَّتِي خَرَجَ مِنْهَا سَبْعَةُ شَيَاطِينَ، ٢ 2
और कुछ स्त्रियाँ भी जो दुष्टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे यह हैं मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी, जिसमें से सात दुष्टात्माएँ निकली थीं,
وَيُوَنَّا ٱمْرَأَةُ خُوزِي وَكِيلِ هِيرُودُسَ، وَسُوسَنَّةُ، وَأُخَرُ كَثِيرَاتٌ كُنَّ يَخْدِمْنَهُ مِنْ أَمْوَالِهِنَّ. ٣ 3
और हेरोदेस के भण्डारी खुज़ा की पत्नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियाँ, ये तो अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं।
فَلَمَّا ٱجْتَمَعَ جَمْعٌ كَثِيرٌ أَيْضًا مِنَ ٱلَّذِينَ جَاءُوا إِلَيْهِ مِنْ كُلِّ مَدِينَةٍ، قَالَ بِمَثَلٍ: ٤ 4
जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर-नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्टान्त में कहा:
«خَرَجَ ٱلزَّارِعُ لِيَزْرَعَ زَرْعَهُ. وَفِيمَا هُوَ يَزْرَعُ سَقَطَ بَعْضٌ عَلَى ٱلطَّرِيقِ، فَٱنْدَاسَ وَأَكَلَتْهُ طُيُورُ ٱلسَّمَاءِ. ٥ 5
“एक बोनेवाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया।
وَسَقَطَ آخَرُ عَلَى ٱلصَّخْرِ، فَلَمَّا نَبَتَ جَفَّ لِأَنَّهُ لَمْ تَكُنْ لَهُ رُطُوبَةٌ. ٦ 6
और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु नमी न मिलने से सूख गया।
وَسَقَطَ آخَرُ فِي وَسْطِ ٱلشَّوْكِ، فَنَبَتَ مَعَهُ ٱلشَّوْكُ وَخَنَقَهُ. ٧ 7
कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया।
وَسَقَطَ آخَرُ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلصَّالِحَةِ، فَلَمَّا نَبَتَ صَنَعَ ثَمَرًا مِئَةَ ضِعْفٍ». قَالَ هَذَا وَنَادَى: «مَنْ لَهُ أُذْنَانِ لِلسَّمْعِ فَلْيَسْمَعْ!». ٨ 8
और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन लें।”
فَسَأَلَهُ تَلَامِيذُهُ قَائِلِينَ: «مَا عَسَى أَنْ يَكُونَ هَذَا ٱلْمَثَلُ؟». ٩ 9
उसके चेलों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?”
فَقَالَ: «لَكُمْ قَدْ أُعْطِيَ أَنْ تَعْرِفُوا أَسْرَارَ مَلَكُوتِ ٱللهِ، وَأَمَّا لِلْبَاقِينَ فَبِأَمْثَالٍ، حَتَّى إِنَّهُمْ مُبْصِرِينَ لَا يُبْصِرُونَ، وَسَامِعِينَ لَا يَفْهَمُونَ. ١٠ 10
१०उसने कहा, “तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिए कि ‘वे देखते हुए भी न देखें, और सुनते हुए भी न समझें।’
وَهَذَا هُوَ ٱلْمَثَلُ: ٱلزَّرْعُ هُوَ كَلَامُ ٱللهِ، ١١ 11
११“दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज तो परमेश्वर का वचन है।
وَٱلَّذِينَ عَلَى ٱلطَّرِيقِ هُمُ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ، ثُمَّ يَأْتِي إِبْلِيسُ وَيَنْزِعُ ٱلْكَلِمَةَ مِنْ قُلُوبِهِمْ لِئَلَّا يُؤْمِنُوا فَيَخْلُصُوا. ١٢ 12
१२मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएँ।
وَٱلَّذِينَ عَلَى ٱلصَّخْرِ هُمُ ٱلَّذِينَ مَتَى سَمِعُوا يَقْبَلُونَ ٱلْكَلِمَةَ بِفَرَحٍ، وَهَؤُلَاءِ لَيْسَ لَهُمْ أَصْلٌ، فَيُؤْمِنُونَ إِلَى حِينٍ، وَفِي وَقْتِ ٱلتَّجْرِبَةِ يَرْتَدُّونَ. ١٣ 13
१३चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं।
وَٱلَّذِي سَقَطَ بَيْنَ ٱلشَّوْكِ هُمُ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ، ثُمَّ يَذْهَبُونَ فَيَخْتَنِقُونَ مِنْ هُمُومِ ٱلْحَيَاةِ وَغِنَاهَا وَلَذَّاتِهَا، وَلَا يُنْضِجُونَ ثَمَرًا. ١٤ 14
१४जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं, जो सुनते हैं, पर आगे चलकर चिन्ता और धन और जीवन के सुख-विलास में फँस जाते हैं, और उनका फल नहीं पकता।
وَٱلَّذِي فِي ٱلْأَرْضِ ٱلْجَيِّدَةِ، هُوَ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ ٱلْكَلِمَةَ فَيَحْفَظُونَهَا فِي قَلْبٍ جَيِّدٍ صَالِحٍ، وَيُثْمِرُونَ بِٱلصَّبْرِ. ١٥ 15
१५पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।
«وَلَيْسَ أَحَدٌ يُوقِدُ سِرَاجًا وَيُغَطِّيهِ بِإِنَاءٍ أَوْ يَضَعُهُ تَحْتَ سَرِيرٍ، بَلْ يَضَعُهُ عَلَى مَنَارَةٍ، لِيَنْظُرَ ٱلدَّاخِلُونَ ٱلنُّورَ. ١٦ 16
१६“कोई दिया जलाकरबर्तन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ।
لِأَنَّهُ لَيْسَ خَفِيٌّ لَا يُظْهَرُ، وَلَا مَكْتُومٌ لَا يُعْلَمُ وَيُعْلَنُ. ١٧ 17
१७कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो।
فَٱنْظُرُوا كَيْفَ تَسْمَعُونَ، لِأَنَّ مَنْ لَهُ سَيُعْطَى، وَمَنْ لَيْسَ لَهُ فَٱلَّذِي يَظُنُّهُ لَهُ يُؤْخَذُ مِنْهُ». ١٨ 18
१८इसलिए सावधान रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।”
وَجَاءَ إِلَيْهِ أُمُّهُ وَإِخْوَتُهُ، وَلَمْ يَقْدِرُوا أَنْ يَصِلُوا إِلَيْهِ لِسَبَبِ ٱلْجَمْعِ. ١٩ 19
१९उसकी माता और उसके भाई पास आए, पर भीड़ के कारण उससे भेंट न कर सके।
فَأَخْبَرُوهُ قَائِلِينَ: «أُمُّكَ وَإِخْوَتُكَ وَاقِفُونَ خَارِجًا، يُرِيدُونَ أَنْ يَرَوْكَ». ٢٠ 20
२०और उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं।”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «أُمِّي وَإِخْوَتِي هُمُ ٱلَّذِينَ يَسْمَعُونَ كَلِمَةَ ٱللهِ وَيَعْمَلُونَ بِهَا». ٢١ 21
२१उसने उसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही है, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
وَفِي أَحَدِ ٱلْأَيَّامِ دَخَلَ سَفِينَةً هُوَ وَتَلَامِيذُهُ، فَقَالَ لَهُمْ: «لِنَعْبُرْ إِلَى عَبْرِ ٱلْبُحَيْرَةِ». فَأَقْلَعُوا. ٢٢ 22
२२फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अतः उन्होंने नाव खोल दी।
وَفِيمَا هُمْ سَائِرُونَ نَامَ. فَنَزَلَ نَوْءُ رِيحٍ فِي ٱلْبُحَيْرَةِ، وَكَانُوا يَمْتَلِئُونَ مَاءً وَصَارُوا فِي خَطَرٍ. ٢٣ 23
२३पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे।
فَتَقَدَّمُوا وَأَيْقَظُوهُ قَائِلِينَ: «يَا مُعَلِّمُ، يَا مُعَلِّمُ، إِنَّنَا نَهْلِكُ!». فَقَامَ وَٱنْتَهَرَ ٱلرِّيحَ وَتَمَوُّجَ ٱلْمَاءِ، فَٱنْتَهَيَا وَصَارَ هُدُوُّ. ٢٤ 24
२४तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए, और शान्त हो गया।
ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «أَيْنَ إِيمَانُكُمْ؟». فَخَافُوا وَتَعَجَّبُوا قَائِلِينَ فِيمَا بَيْنَهُمْ: «مَنْ هُوَ هَذَا؟ فَإِنَّهُ يَأْمُرُ ٱلرِّيَاحَ أَيْضًا وَٱلْمَاءَ فَتُطِيعُهُ!». ٢٥ 25
२५और उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है, जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”
وَسَارُوا إِلَى كُورَةِ ٱلْجَدَرِيِّينَ ٱلَّتِي هِيَ مُقَابِلَ ٱلْجَلِيلِ. ٢٦ 26
२६फिर वे गिरासेनियों के देश में पहुँचे, जो उस पार गलील के सामने है।
وَلَمَّا خَرَجَ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱسْتَقْبَلَهُ رَجُلٌ مِنَ ٱلْمَدِينَةِ كَانَ فِيهِ شَيَاطِينُ مُنْذُ زَمَانٍ طَوِيلٍ، وَكَانَ لَا يَلْبَسُ ثَوْبًا، وَلَا يُقِيمُ فِي بَيْتٍ، بَلْ فِي ٱلْقُبُورِ. ٢٧ 27
२७जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिसमें दुष्टात्माएँ थीं। और बहुत दिनों से न कपड़े पहनता था और न घर में रहता था वरन् कब्रों में रहा करता था।
فَلَمَّا رَأَى يَسُوعَ صَرَخَ وَخَرَّ لَهُ، وَقَالَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ: «مَا لِي وَلَكَ يَا يَسُوعُ ٱبْنَ ٱللهِ ٱلْعَلِيِّ؟ أَطْلُبُ مِنْكَ أَنْ لَا تُعَذِّبَنِي!». ٢٨ 28
२८वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके सामने गिरकर ऊँचे शब्द से कहा, “हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र यीशु! मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे।”
لِأَنَّهُ أَمَرَ ٱلرُّوحَ ٱلنَّجِسَ أَنْ يَخْرُجَ مِنَ ٱلْإِنْسَانِ. لِأَنَّهُ مُنْذُ زَمَانٍ كَثِيرٍ كَانَ يَخْطَفُهُ، وَقَدْ رُبِطَ بِسَلَاسِلٍ وَقُيُودٍ مَحْرُوسًا، وَكَانَ يَقْطَعُ ٱلرُّبُطَ وَيُسَاقُ مِنَ ٱلشَّيْطَانِ إِلَى ٱلْبَرَارِي. ٢٩ 29
२९क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्मा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा था, इसलिए कि वह उस पर बार बार प्रबल होती थी। और यद्यपि लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधते थे, तो भी वह बन्धनों को तोड़ डालता था, और दुष्टात्मा उसे जंगल में भगाए फिरती थी।
فَسَأَلَهُ يَسُوعُ قَائِلًا: «مَا ٱسْمُكَ؟». فَقَالَ: «لَجِئُونُ». لِأَنَّ شَيَاطِينَ كَثِيرَةً دَخَلَتْ فِيهِ. ٣٠ 30
३०यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने कहा, “सेना,” क्योंकि बहुत दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं।
وَطَلَبَ إِلَيْهِ أَنْ لَا يَأْمُرَهُمْ بِٱلذَّهَابِ إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ. (Abyssos g12) ٣١ 31
३१और उन्होंने उससे विनती की, “हमें अथाह गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे।” (Abyssos g12)
وَكَانَ هُنَاكَ قَطِيعُ خَنَازِيرَ كَثِيرَةٍ تَرْعَى فِي ٱلْجَبَلِ، فَطَلَبُوا إِلَيْهِ أَنْ يَأْذَنَ لَهُمْ بِٱلدُّخُولِ فِيهَا، فَأَذِنَ لَهُمْ. ٣٢ 32
३२वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था, अतः उन्होंने उससे विनती की, “हमें उनमें समाने दे।” अतः उसने उन्हें जाने दिया।
فَخَرَجَتِ ٱلشَّيَاطِينُ مِنَ ٱلْإِنْسَانِ وَدَخَلَتْ فِي ٱلْخَنَازِيرِ، فَٱنْدَفَعَ ٱلْقَطِيعُ مِنْ عَلَى ٱلْجُرُفِ إِلَى ٱلْبُحَيْرَةِ وَٱخْتَنَقَ. ٣٣ 33
३३तब दुष्टात्माएँ उस मनुष्य से निकलकर सूअरों में समा गई और वह झुण्ड कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
فَلَمَّا رَأَى ٱلرُّعَاةُ مَا كَانَ هَرَبُوا وَذَهَبُوا وَأَخْبَرُوا فِي ٱلْمَدِينَةِ وَفِي ٱلضِّيَاعِ، ٣٤ 34
३४चरवाहे यह जो हुआ था देखकर भागे, और नगर में, और गाँवों में जाकर उसका समाचार कहा।
فَخَرَجُوا لِيَرَوْا مَا جَرَى. وَجَاءُوا إِلَى يَسُوعَ فَوَجَدُوا ٱلْإِنْسَانَ ٱلَّذِي كَانَتِ ٱلشَّيَاطِينُ قَدْ خَرَجَتْ مِنْهُ لَابِسًا وَعَاقِلًا، جَالِسًا عِنْدَ قَدَمَيْ يَسُوعَ، فَخَافُوا. ٣٥ 35
३५और लोग यह जो हुआ था उसको देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसे यीशु के पाँवों के पास कपड़े पहने और सचेत बैठे हुए पाकर डर गए।
فَأَخْبَرَهُمْ أَيْضًا ٱلَّذِينَ رَأَوْا كَيْفَ خَلَصَ ٱلْمَجْنُونُ. ٣٦ 36
३६और देखनेवालों ने उनको बताया, कि वह दुष्टात्मा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ।
فَطَلَبَ إِلَيْهِ كُلُّ جُمْهُورِ كُورَةِ ٱلْجَدَرِيِّينَ أَنْ يَذْهَبَ عَنْهُمْ، لِأَنَّهُ ٱعْتَرَاهُمْ خَوْفٌ عَظِيمٌ. فَدَخَلَ ٱلسَّفِينَةَ وَرَجَعَ. ٣٧ 37
३७तब गिरासेनियों के आस-पास के सब लोगों ने यीशु से विनती की, कि हमारे यहाँ से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया था। अतः वह नाव पर चढ़कर लौट गया।
أَمَّا ٱلرَّجُلُ ٱلَّذِي خَرَجَتْ مِنْهُ ٱلشَّيَاطِينُ فَطَلَبَ إِلَيْهِ أَنْ يَكُونَ مَعَهُ، وَلَكِنَّ يَسُوعَ صَرَفَهُ قَائِلًا: ٣٨ 38
३८जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं वह उससे विनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा।
«ٱرْجِعْ إِلَى بَيْتِكَ وَحَدِّثْ بِكَمْ صَنَعَ ٱللهُ بِكَ». فَمَضَى وَهُوَ يُنَادِي فِي ٱلْمَدِينَةِ كُلِّهَا بِكَمْ صَنَعَ بِهِ يَسُوعُ. ٣٩ 39
३९“अपने घर में लौट जा और लोगों से कह दे, कि परमेश्वर ने तेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।” वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए।
وَلَمَّا رَجَعَ يَسُوعُ قَبِلَهُ ٱلْجَمْعُ لِأَنَّهُمْ كَانُوا جَمِيعُهُمْ يَنْتَظِرُونَهُ. ٤٠ 40
४०जब यीशु लौट रहा था, तो लोग उससे आनन्द के साथ मिले; क्योंकि वे सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
وَإِذَا رَجُلٌ ٱسْمُهُ يَايِرُسُ قَدْ جَاءَ، وَكَانَ رَئِيسَ ٱلْمَجْمَعِ، فَوَقَعَ عِنْدَ قَدَمَيْ يَسُوعَ وَطَلَبَ إِلَيْهِ أَنْ يَدْخُلَ بَيْتَهُ، ٤١ 41
४१और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया, और यीशु के पाँवों पर गिरकर उससे विनती करने लगा, “मेरे घर चल।”
لِأَنَّهُ كَانَ لَهُ بِنْتٌ وَحِيدَةٌ لَهَا نَحْوُ ٱثْنَتَيْ عَشْرَةَ سَنَةً، وَكَانَتْ فِي حَالِ ٱلْمَوْتِ. فَفِيمَا هُوَ مُنْطَلِقٌ زَحَمَتْهُ ٱلْجُمُوعُ. ٤٢ 42
४२क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी। जब वह जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे।
وَٱمْرَأَةٌ بِنَزْفِ دَمٍ مُنْذُ ٱثْنَتَيْ عَشْرَةَ سَنَةً، وَقَدْ أَنْفَقَتْ كُلَّ مَعِيشَتِهَا لِلْأَطِبَّاءِ، وَلَمْ تَقْدِرْ أَنْ تُشْفَى مِنْ أَحَدٍ، ٤٣ 43
४३और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी,
جَاءَتْ مِنْ وَرَائِهِ وَلَمَسَتْ هُدْبَ ثَوْبِهِ. فَفِي ٱلْحَالِ وَقَفَ نَزْفُ دَمِهَا. ٤٤ 44
४४पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना थम गया।
فَقَالَ يَسُوعُ: «مَنِ ٱلَّذِي لَمَسَنِي؟». وَإِذْ كَانَ ٱلْجَمِيعُ يُنْكِرُونَ، قَالَ بُطْرُسُ وَٱلَّذِينَ مَعَهُ: «يَا مُعَلِّمُ، ٱلْجُمُوعُ يُضَيِّقُونَ عَلَيْكَ وَيَزْحَمُونَكَ، وَتَقُولُ: مَنِ ٱلَّذِي لَمَسَنِي؟». ٤٥ 45
४५इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किसने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।”
فَقَالَ يَسُوعُ: «قَدْ لَمَسَنِي وَاحِدٌ، لِأَنِّي عَلِمْتُ أَنَّ قُوَّةً قَدْ خَرَجَتْ مِنِّي». ٤٦ 46
४६परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मैंने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है।”
فَلَمَّا رَأَتِ ٱلْمَرْأَةُ أَنَّهَا لَمْ تَخْتَفِ، جَاءَتْ مُرْتَعِدَةً وَخَرَّتْ لَهُ، وَأَخْبَرَتْهُ قُدَّامَ جَمِيعِ ٱلشَّعْبِ لِأَيِّ سَبَبٍ لَمَسَتْهُ، وَكَيْفَ بَرِئَتْ فِي ٱلْحَالِ. ٤٧ 47
४७जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया, कि मैंने किस कारण से तुझे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई।
فَقَالَ لَهَا: «ثِقِي يَا ٱبْنَةُ، إِيمَانُكِ قَدْ شَفَاكِ، اِذْهَبِي بِسَلَامٍ». ٤٨ 48
४८उसने उससे कहा, “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।”
وَبَيْنَمَا هُوَ يَتَكَلَّمُ، جَاءَ وَاحِدٌ مِنْ دَارِ رَئِيسِ ٱلْمَجْمَعِ قَائِلًا لَهُ: «قَدْ مَاتَتِ ٱبْنَتُكَ. لَا تُتْعِبِ ٱلْمُعَلِّمَ». ٤٩ 49
४९वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दुःख न दे।”
فَسَمِعَ يَسُوعُ، وَأَجَابَهُ قَائِلًا: «لَاتَخَفْ! آمِنْ فَقَطْ، فَهِيَ تُشْفَى». ٥٠ 50
५०यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख; तो वह बच जाएगी।”
فَلَمَّا جَاءَ إِلَى ٱلْبَيْتِ لَمْ يَدَعْ أَحَدًا يَدْخُلُ إِلَّا بُطْرُسَ وَيَعْقُوبَ وَيُوحَنَّا، وَأَبَا ٱلصَّبِيَّةِ وَأُمَّهَا. ٥١ 51
५१घर में आकर उसने पतरस, और यूहन्ना, और याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया।
وَكَانَ ٱلْجَمِيعُ يَبْكُونَ عَلَيْهَا وَيَلْطِمُونَ. فَقَالَ: «لَا تَبْكُوا. لَمْ تَمُتْ لَكِنَّهَا نَائِمَةٌ». ٥٢ 52
५२और सब उसके लिये रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।”
فَضَحِكُوا عَلَيْهِ، عَارِفِينَ أَنَّهَا مَاتَتْ. ٥٣ 53
५३वे यह जानकर, कि मर गई है, उसकी हँसी करने लगे।
فَأَخْرَجَ ٱلْجَمِيعَ خَارِجًا، وَأَمْسَكَ بِيَدِهَا وَنَادَى قَائِلًا: «يَا صَبِيَّةُ، قُومِي!». ٥٤ 54
५४परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की उठ!”
فَرَجَعَتْ رُوحُهَا وَقَامَتْ فِي ٱلْحَالِ. فَأَمَرَ أَنْ تُعْطَى لِتَأْكُلَ. ٥٥ 55
५५तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठी; फिर उसने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए।
فَبُهِتَ وَالِدَاهَا. فَأَوْصَاهُمَا أَنْ لَا يَقُولَا لِأَحَدٍ عَمَّا كَانَ. ٥٦ 56
५६उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चेतावनी दी, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना।

< لُوقا 8 >