< لُوقا 7 >

وَلَمَّا أَكْمَلَ أَقْوَالَهُ كُلَّهَا فِي مَسَامِعِ ٱلشَّعْبِ دَخَلَ كَفْرَنَاحُومَ. ١ 1
जब वो लोगों को अपनी सब बातें सुना चुका तो कफ़रनहूम में आया।
وَكَانَ عَبْدٌ لِقَائِدِ مِئَةٍ، مَرِيضًا مُشْرِفًا عَلَى ٱلْمَوْتِ، وَكَانَ عَزِيزًا عِنْدَهُ. ٢ 2
और किसी सूबेदार का नौकर जो उसको 'प्यारा था, बीमारी से मरने को था।
فَلَمَّا سَمِعَ عَنْ يَسُوعَ، أَرْسَلَ إِلَيْهِ شُيُوخَ ٱلْيَهُودِ يَسْأَلُهُ أَنْ يَأْتِيَ وَيَشْفِيَ عَبْدَهُ. ٣ 3
उसने ईसा की ख़बर सुनकर यहूदियों के कई बुज़ुर्गों को उसके पास भेजा और उससे दरख़्वास्त की कि आकर मेरे नौकर को अच्छा कर।
فَلَمَّا جَاءُوا إِلَى يَسُوعَ طَلَبُوا إِلَيْهِ بِٱجْتِهَادٍ قَائِلِينَ: «إِنَّهُ مُسْتَحِقٌّ أَنْ يُفْعَلَ لَهُ هَذَا، ٤ 4
वो ईसा के पास आए और उसकी बड़ी ख़ुशामद कर के कहने लगे, “वो इस लायक़ है कि तू उसकी ख़ातिर ये करे।
لِأَنَّهُ يُحِبُّ أُمَّتَنَا، وَهُوَ بَنَى لَنَا ٱلْمَجْمَعَ». ٥ 5
क्यूँकि वो हमारी क़ौम से मुहब्बत रखता है और हमारे 'इबादतख़ाने को उसी ने बनवाया।”
فَذَهَبَ يَسُوعُ مَعَهُمْ. وَإِذْ كَانَ غَيْرَ بَعِيدٍ عَنِ ٱلْبَيْتِ، أَرْسَلَ إِلَيْهِ قَائِدُ ٱلْمِئَةِ أَصْدِقَاءَ يَقُولُ لَهُ: «يَا سَيِّدُ، لَا تَتْعَبْ. لِأَنِّي لَسْتُ مُسْتَحِقًّا أَنْ تَدْخُلَ تَحْتَ سَقْفِي. ٦ 6
ईसा उनके साथ चला मगर जब वो घर के क़रीब पहुँचा तो सूबेदार ने कुछ दोस्तों के ज़रिए उसे ये कहला भेजा, “ऐ ख़ुदावन्द तकलीफ़ न कर, क्यूँकि मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए।
لِذَلِكَ لَمْ أَحْسِبْ نَفْسِي أَهْلًا أَنْ آتِيَ إِلَيْكَ. لَكِنْ قُلْ كَلِمَةً فَيَبْرَأَ غُلَامِي. ٧ 7
इसी वजह से मैंने अपने आप को भी तेरे पास आने के लायक़ न समझा, बल्कि ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा।
لِأَنِّي أَنَا أَيْضًا إِنْسَانٌ مُرَتَّبٌ تَحْتَ سُلْطَانٍ، لِي جُنْدٌ تَحْتَ يَدِي. وَأَقُولُ لِهَذَا: ٱذْهَبْ! فَيَذْهَبُ، وَلِآخَرَ: ٱئْتِ! فَيَأْتِي، وَلِعَبْدِي: ٱفْعَلْ هَذَا! فَيَفْعَلُ». ٨ 8
क्यूँकि मैं भी दूसरे के ताबे में हूँ, और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ कि 'जा' वो जाता है, और दूसरे से कहता हूँ 'आ' तो वो आता है; और अपने नौकर से कि 'ये कर' तो वो करता है।”
وَلَمَّا سَمِعَ يَسُوعُ هَذَا تَعَجَّبَ مِنْهُ، وَٱلْتَفَتَ إِلَى ٱلْجَمْعِ ٱلَّذِي يَتْبَعُهُ وَقَالَ: «أَقُولُ لَكُمْ: لَمْ أَجِدْ وَلَا فِي إِسْرَائِيلَ إِيمَانًا بِمِقْدَارِ هَذَا!». ٩ 9
ईसा ने ये सुनकर उस पर ता'ज्जुब किया, और मुड़ कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आती थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ कि मैंने ऐसा ईमान इस्राईल में भी नहीं पाया।”
وَرَجَعَ ٱلْمُرْسَلُونَ إِلَى ٱلْبَيْتِ، فَوَجَدُوا ٱلْعَبْدَ ٱلْمَرِيضَ قَدْ صَحَّ. ١٠ 10
और भेजे हुए लोगों ने घर में वापस आकर उस नौकर को तन्दरुस्त पाया।
وَفِي ٱلْيَوْمِ ٱلتَّالِي ذَهَبَ إِلَى مَدِينَةٍ تُدْعَى نَايِينَ، وَذَهَبَ مَعَهُ كَثِيرُونَ مِنْ تَلَامِيذِهِ وَجَمْعٌ كَثِيرٌ. ١١ 11
थोड़े 'अरसे के बाद ऐसा हुआ कि वो नाईंन नाम एक शहर को गया। उसके शागिर्द और बहुत से लोग उसके हमराह थे।
فَلَمَّا ٱقْتَرَبَ إِلَى بَابِ ٱلْمَدِينَةِ، إِذَا مَيْتٌ مَحْمُولٌ، ٱبْنٌ وَحِيدٌ لِأُمِّهِ، وَهِيَ أَرْمَلَةٌ وَمَعَهَا جَمْعٌ كَثِيرٌ مِنَ ٱلْمَدِينَةِ. ١٢ 12
जब वो शहर के फाटक के नज़दीक पहुँचा तो देखो, एक मुर्दे को बाहर लिए जाते थे। वो अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वो बेवा थी, और शहर के बहुतेरे लोग उसके साथ थे।
فَلَمَّا رَآهَا ٱلرَّبُّ تَحَنَّنَ عَلَيْهَا، وَقَالَ لَهَا: «لَا تَبْكِي». ١٣ 13
उसे देखकर ख़ुदावन्द को तरस आया और उससे कहा, “मत रो!”
ثُمَّ تَقَدَّمَ وَلَمَسَ ٱلنَّعْشَ، فَوَقَفَ ٱلْحَامِلُونَ. فَقَالَ: «أَيُّهَا ٱلشَّابُّ، لَكَ أَقُولُ: قُمْ!». ١٤ 14
फिर उसने पास आकर जनाज़े को छुआ और उठाने वाले खड़े हो गए। और उसने कहा, “ऐ जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!”
فَجَلَسَ ٱلْمَيْتُ وَٱبْتَدَأَ يَتَكَلَّمُ، فَدَفَعَهُ إِلَى أُمِّهِ. ١٥ 15
वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा। और उसने उसे उसकी माँ को सुपुर्द किया।
فَأَخَذَ ٱلْجَمِيعَ خَوْفٌ، وَمَجَّدُوا ٱللهَ قَائِلِينَ: «قَدْ قَامَ فِينَا نَبِيٌّ عَظِيمٌ، وَٱفْتَقَدَ ٱللهُ شَعْبَهُ». ١٦ 16
और सब पर ख़ौफ़ छा गया और वो ख़ुदा की तम्जीद करके कहने लगे, एक बड़ा नबी हम में आया हुआ है, ख़ुदा ने अपनी उम्मत पर तवज्जुह की है।
وَخَرَجَ هَذَا ٱلْخَبَرُ عَنْهُ فِي كُلِّ ٱلْيَهُودِيَّةِ وَفِي جَمِيعِ ٱلْكُورَةِ ٱلْمُحِيطَةِ. ١٧ 17
और उसकी निस्बत ये ख़बर सारे यहूदिया और तमाम आस पास में फैल गई।
فَأَخْبَرَ يُوحَنَّا تَلَامِيذُهُ بِهَذَا كُلِّهِ. ١٨ 18
और युहन्ना को उसके शागिर्दों ने इन सब बातों की ख़बर दी।
فَدَعَا يُوحَنَّا ٱثْنَيْنِ مِنْ تَلَامِيذِهِ، وَأَرْسَلَ إِلَى يَسُوعَ قَائِلًا: «أَنْتَ هُوَ ٱلْآتِي أَمْ نَنْتَظِرُ آخَرَ؟». ١٩ 19
इस पर युहन्ना ने अपने शागिर्दों में से दो को बुला कर ख़ुदावन्द के पास ये पूछने को भेजा, कि “आने वाला तू ही है, या हम किसी दूसरे की राह देखें।”
فَلَمَّا جَاءَ إِلَيْهِ ٱلرَّجُلَانِ قَالَا: «يُوحَنَّا ٱلْمَعْمَدَانُ قَدْ أَرْسَلَنَا إِلَيْكَ قَائِلًا: أَنْتَ هُوَ ٱلْآتِي أَمْ نَنْتَظِرُ آخَرَ؟». ٢٠ 20
उन्होंने उसके पास आकर कहा, युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास ये पूछने को भेजा है कि आने वाला तू ही है या हम दूसरे की राह देखें।
وَفِي تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ شَفَى كَثِيرِينَ مِنْ أَمْرَاضٍ وَأَدْوَاءٍ وَأَرْوَاحٍ شِرِّيرَةٍ، وَوَهَبَ ٱلْبَصَرَ لِعُمْيَانٍ كَثِيرِينَ. ٢١ 21
उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और आफ़तों और बदरूहों से नजात बख़्शी और बहुत से अन्धों को बीनाई 'अता की।
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُماَ: «ٱذْهَبَا وَأَخْبِرَا يُوحَنَّا بِمَا رَأَيْتُمَا وَسَمِعْتُمَا: إِنَّ ٱلْعُمْيَ يُبْصِرُونَ، وَٱلْعُرْجَ يَمْشُونَ، وَٱلْبُرْصَ يُطَهَّرُونَ،وَٱلصُّمَّ يَسْمَعُونَ، وَٱلْمَوْتَى يَقُومُونَ، وَٱلْمَسَاكِينَ يُبَشَّرُونَ. ٢٢ 22
उसने जवाब में उनसे कहा, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है जाकर युहन्ना से बयान कर दो कि अन्धे देखते, लंगड़े चलते फिरते हैं, कौढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं, बहरे सुनते हैं मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं, ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।
وَطُوبَى لِمَنْ لَا يَعْثُرُ فِيَّ». ٢٣ 23
मुबारिक़ है वो जो मेरी वजह से ठोकर न खाए।”
فَلَمَّا مَضَى رَسُولَا يُوحَنَّا، ٱبْتَدَأَ يَقُولُ لِلْجُمُوعِ عَنْ يُوحَنَّا: «مَاذَا خَرَجْتُمْ إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ لِتَنْظُرُوا؟ أَقَصَبَةً تُحَرِّكُهَا ٱلرِّيحُ؟ ٢٤ 24
जब युहन्ना के क़ासिद चले गए तो ईसा युहन्ना' के हक़ में कहने लगा, “तुम वीराने में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को?”
بَلْ مَاذَا خَرَجْتُمْ لِتَنْظُرُوا؟ أَإِنْسَانًا لَابِسًا ثِيَابًا نَاعِمَةً؟ هُوَذَا ٱلَّذِينَ فِي ٱللِّبَاسِ ٱلْفَاخِرِ وَٱلتَّنَعُّمِ هُمْ فِي قُصُورِ ٱلْمُلُوكِ. ٢٥ 25
तो फिर क्या देखने गए थे? क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को? देखो, जो चमकदार पोशाक पहनते और 'ऐश — ओ — अशरत में रहते हैं, वो बादशाही महलों में होते हैं।
بَلْ مَاذَا خَرَجْتُمْ لِتَنْظُرُوا؟ أَنَبِيًّا؟ نَعَمْ، أَقُولُ لَكُمْ: وَأَفْضَلَ مِنْ نَبِيٍّ! ٢٦ 26
तो फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या एक नबी? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, बल्कि नबी से बड़े को।
هَذَا هُوَ ٱلَّذِي كُتِبَ عَنْهُ: هَا أَنَا أُرْسِلُ أَمَامَ وَجْهِكَ مَلَاكِي ٱلَّذِي يُهَيِّئُ طَرِيقَكَ قُدَّامَكَ! ٢٧ 27
ये वही है जिसके बारे में लिखा है: “देख, मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ, जो तेरी राह तेरे आगे तैयार करेगा।”
لِأَنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ بَيْنَ ٱلْمَوْلُودِينَ مِنَ ٱلنِّسَاءِ لَيْسَ نَبِيٌّ أَعْظَمَ مِنْ يُوحَنَّا ٱلْمَعْمَدَانِ، وَلَكِنَّ ٱلْأَصْغَرَ فِي مَلَكُوتِ ٱللهِ أَعْظَمُ مِنْهُ». ٢٨ 28
“मैं तुम से कहता हूँ कि जो 'औरतों से पैदा हुए है, उनमें युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं लेकिन जो ख़ुदा की बादशाही में छोटा है वो उससे बड़ा है।”
وَجَمِيعُ ٱلشَّعْبِ إِذْ سَمِعُوا وَٱلْعَشَّارُونَ بَرَّرُوا ٱللهَ مُعْتَمِدِينَ بِمَعْمُودِيَّةِ يُوحَنَّا. ٢٩ 29
और सब 'आम लोगों ने जब सुना, तो उन्होंने और महसूल लेने वालों ने भी युहन्ना का बपतिस्मा लेकर ख़ुदा को रास्तबाज़ मान लिया।
وَأَمَّا ٱلْفَرِّيسِيُّونَ وَٱلنَّامُوسِيُّونَ فَرَفَضُوا مَشُورَةَ ٱللهِ مِنْ جِهَةِ أَنْفُسِهِمْ، غَيْرَ مُعْتَمِدِينَ مِنْهُ. ٣٠ 30
मगर फ़रीसियों और शरा' के 'आलिमों ने उससे बपतिस्मा न लेकर ख़ुदा के इरादे को अपनी निस्बत बातिल कर दिया।
ثُمَّ قَالَ ٱلرَّبُّ: «فَبِمَنْ أُشَبِّهُ أُنَاسَ هَذَا ٱلْجِيلِ؟ وَمَاذَا يُشْبِهُونَ؟ ٣١ 31
“पस इस ज़माने के आदमियों को मैं किससे मिसाल दूँ, वो किसकी तरह हैं?
يُشْبِهُونَ أَوْلَادًا جَالِسِينَ فِي ٱلسُّوقِ يُنَادُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا وَيَقُولُونَ: زَمَّرْنَا لَكُمْ فَلَمْ تَرْقُصُوا. نُحْنَا لَكُمْ فَلَمْ تَبْكُوا. ٣٢ 32
उन लड़कों की तरह हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं कि हम ने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजाई और तुम न नाचे, हम ने मातम किया और तुम न रोए।
لِأَنَّهُ جَاءَ يُوحَنَّا ٱلْمَعْمَدَانُ لَا يَأْكُلُ خُبْزًا وَلَا يَشْرَبُ خَمْرًا، فَتَقُولُونَ: بِهِ شَيْطَانٌ. ٣٣ 33
क्यूँकि युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न तो रोटी खाता हुआ आया न मय पीता हुआ और तुम कहते हो कि उसमें बदरूह है।
جَاءَ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ يَأْكُلُ وَيَشْرَبُ، فَتَقُولُونَ: هُوَذَا إِنْسَانٌ أَكُولٌ وَشِرِّيبُ خَمْرٍ، مُحِبٌّ لِلْعَشَّارِينَ وَٱلْخُطَاةِ. ٣٤ 34
इब्न — ए — आदम खाता पीता आया और तुम कहते हो कि देखो, खाऊ और शराबी आदमी, महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार।
وَٱلْحِكْمَةُ تَبَرَّرَتْ مِنْ جَمِيعِ بَنِيهَا». ٣٥ 35
लेकिन हिक्मत अपने सब लड़कों की तरफ़ से रास्त साबित हुई।”
وَسَأَلَهُ وَاحِدٌ مِنَ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ أَنْ يَأْكُلَ مَعَهُ، فَدَخَلَ بَيْتَ ٱلْفَرِّيسِيِّ وَٱتَّكَأَ. ٣٦ 36
फिर किसी फ़रीसी ने उससे दरख़्वास्त की कि मेरे साथ खाना खा, पस वो उस फ़रीसी के घर जाकर खाना खाने बैठा।
وَإِذَا ٱمْرَأَةٌ فِي ٱلْمَدِينَةِ كَانَتْ خَاطِئَةً، إِذْ عَلِمَتْ أَنَّهُ مُتَّكِئٌ فِي بَيْتِ ٱلْفَرِّيسِيِّ، جَاءَتْ بِقَارُورَةِ طِيبٍ، ٣٧ 37
तो देखो, एक बदचलन 'औरत जो उस शहर की थी, ये जानकर कि वो उस फ़रीसी के घर में खाना खाने बैठा है, संग — ए — मरमर के 'इत्रदान में 'इत्र लाई;
وَوَقَفَتْ عِنْدَ قَدَمَيْهِ مِنْ وَرَائِهِ بَاكِيَةً، وَٱبْتَدَأَتْ تَبُلُّ قَدَمَيْهِ بِٱلدُّمُوعِ، وَكَانَتْ تَمْسَحُهُمَا بِشَعْرِ رَأْسِهَا، وَتُقَبِّلُ قَدَمَيْهِ وَتَدْهَنُهُمَا بِٱلطِّيبِ. ٣٨ 38
और उसके पाँव के पास रोती हुई पीछे खड़े होकर, उसके पाँव आँसुओं से भिगोने लगी और अपने सिर के बालों से उनको पोंछा, और उसके पाँव बहुत चूमे और उन पर इत्र डाला।
فَلَمَّا رَأَى ٱلْفَرِّيسِيُّ ٱلَّذِي دَعَاهُ ذَلِكَ، تَكَلَّمَ فِي نَفْسِهِ قَائِلًا: «لَوْ كَانَ هَذَا نَبِيًّا، لَعَلِمَ مَنْ هَذِهِ ٱلِٱمْرَأَةُ ٱلَّتِي تَلْمِسُهُ وَمَا هِيَ! إِنَّهَا خَاطِئَةٌ». ٣٩ 39
उसकी दा'वत करने वाला फ़रीसी ये देख कर अपने जी में कहने लगा, अगर ये शख़्स नबी “होता तो जानता कि जो उसे छूती है वो कौन और कैसी 'औरत है, क्यूँकि बदचलन है।”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُ: «يَا سِمْعَانُ، عِنْدِي شَيْءٌ أَقُولُهُ لَكَ». فَقَالَ: «قُلْ، يَا مُعَلِّمُ». ٤٠ 40
ईसा, ने जवाब में उससे कहा, “ऐ शमौन! मुझे तुझ से कुछ कहना है।” उसने कहा, “ऐ उस्ताद कह।”
«كَانَ لِمُدَايِنٍ مَدْيُونَانِ. عَلَى ٱلْوَاحِدِ خَمْسُمِئَةِ دِينَارٍ وَعَلَى ٱلْآخَرِ خَمْسُونَ. ٤١ 41
“किसी साहूकार के दो क़र्ज़दार थे, एक पाँच सौ दीनार का दूसरा पचास का।
وَإِذْ لَمْ يَكُنْ لَهُمَا مَا يُوفِيَانِ سَامَحَهُمَا جَمِيعًا. فَقُلْ: أَيُّهُمَا يَكُونُ أَكْثَرَ حُبًّا لَهُ؟». ٤٢ 42
जब उनके पास अदा करने को कुछ न रहा तो उसने दोनों को बख़्श दिया। पस उनमें से कौन उससे ज़्यादा मुहब्बत रख्खेगा?”
فَأَجَابَ سِمْعَانُ وَقَالَ: «أَظُنُّ ٱلَّذِي سَامَحَهُ بِٱلْأَكْثَرِ». فَقَالَ لَهُ: «بِٱلصَّوَابِ حَكَمْتَ». ٤٣ 43
शमौन ने जवाब में कहा, “मेरी समझ में वो जिसे उसने ज़्यादा बख़्शा।” उसने उससे कहा, “तू ने ठीक फ़ैसला किया है।”
ثُمَّ ٱلْتَفَتَ إِلَى ٱلْمَرْأَةِ وَقَالَ لِسِمْعَانَ: «أَتَنْظُرُ هَذِهِ ٱلْمَرْأَةَ؟ إِنِّي دَخَلْتُ بَيْتَكَ، وَمَاءً لِأَجْلِ رِجْلَيَّ لَمْ تُعْطِ. وَأَمَّا هِيَ فَقَدْ غَسَلَتْ رِجْلَيَّ بِٱلدُّمُوعِ وَمَسَحَتْهُمَا بِشَعْرِ رَأْسِهَا. ٤٤ 44
और उस 'औरत की तरफ़ फिर कर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस 'औरत को देखता है? मैं तेरे घर में आया, तू ने मेरे पाँव धोने को पानी न दिया; मगर इसने मेरे पाँव आँसुओं से भिगो दिए, और अपने बालों से पोंछे।
قُبْلَةً لَمْ تُقَبِّلْنِي، وَأَمَّا هِيَ فَمُنْذُ دَخَلْتُ لَمْ تَكُفَّ عَنْ تَقْبِيلِ رِجْلَيَّ. ٤٥ 45
तू ने मुझ को बोसा न दिया, मगर इसने जब से मैं आया हूँ मेरे पाँव चूमना न छोड़ा।
بِزَيْتٍ لَمْ تَدْهُنْ رَأْسِي، وَأَمَّا هِيَ فَقَدْ دَهَنَتْ بِٱلطِّيبِ رِجْلَيَّ. ٤٦ 46
तू ने मेरे सिर में तेल न डाला, मगर इसने मेरे पाँव पर 'इत्र डाला है।
مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ أَقُولُ لَكَ: قَدْ غُفِرَتْ خَطَايَاهَا ٱلْكَثِيرَةُ، لِأَنَّهَا أَحَبَّتْ كَثِيرًا. وَٱلَّذِي يُغْفَرُ لَهُ قَلِيلٌ يُحِبُّ قَلِيلًا». ٤٧ 47
इसी लिए मैं तुझ से कहता हूँ कि इसके गुनाह जो बहुत थे मु'आफ़ हुए क्यूँकि इसने बहुत मुहब्बत की, मगर जिसके थोड़े गुनाह मु'आफ़ हुए वो थोड़ी मुहब्बत करता है।”
ثُمَّ قَالَ لَهَا: «مَغْفُورَةٌ لَكِ خَطَايَاكِ». ٤٨ 48
और उस 'औरत से कहा, “तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए!”
فَٱبْتَدَأَ ٱلْمُتَّكِئُونَ مَعَهُ يَقُولُونَ فِي أَنْفُسِهِمْ: «مَنْ هَذَا ٱلَّذِي يَغْفِرُ خَطَايَا أَيْضًا؟». ٤٩ 49
इसी पर वो जो उसके साथ खाना खाने बैठे थे अपने जी में कहने लगे, “ये कौन है जो गुनाह भी मु'आफ़ करता है?”
فَقَالَ لِلْمَرْأَةِ: «إِيمَانُكِ قَدْ خَلَّصَكِ، اِذْهَبِي بِسَلَامٍ». ٥٠ 50
मगर उसने 'औरत से कहा, “तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया, सलामत चली जा।”

< لُوقا 7 >