< لُوقا 5 >

وَإِذْ كَانَ ٱلْجَمْعُ يَزْدَحِمُ عَلَيْهِ لِيَسْمَعَ كَلِمَةَ ٱللهِ، كَانَ وَاقِفًا عِنْدَ بُحَيْرَةِ جَنِّيسَارَتَ. ١ 1
जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी और ख़ुदा का कलाम सुनती थी, और वो गनेसरत की झील के किनारे खड़ा था तो ऐसा हुआ कि
فَرَأَى سَفِينَتَيْنِ وَاقِفَتَيْنِ عِنْدَ ٱلْبُحَيْرَةِ، وَٱلصَّيَّادُونَ قَدْ خَرَجُوا مِنْهُمَا وَغَسَلُوا ٱلشِّبَاكَ. ٢ 2
उसने झील के किनारे दो नाव लगी देखीं, लेकिन मछली पकड़ने वाले उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे
فَدَخَلَ إِحْدَى ٱلسَّفِينَتَيْنِ ٱلَّتِي كَانَتْ لِسِمْعَانَ، وَسَأَلَهُ أَنْ يُبْعِدَ قَلِيلًا عَنِ ٱلْبَرِّ. ثُمَّ جَلَسَ وَصَارَ يُعَلِّمُ ٱلْجُمُوعَ مِنَ ٱلسَّفِينَةِ. ٣ 3
और उसने उस नावों में से एक पर चढ़कर जो शमौन की थी, उससे दरख़्वास्त की कि किनारे से ज़रा हटा ले चल और वो बैठकर लोगों को नाव पर से ता'लीम देने लगा।
وَلَمَّا فَرَغَ مِنَ ٱلْكَلَامِ قَالَ لِسِمْعَانَ: «ٱبْعُدْ إِلَى ٱلْعُمْقِ وَأَلْقُوا شِبَاكَكُمْ لِلصَّيْدِ». ٤ 4
जब कलाम कर चुका तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और तुम शिकार के लिए अपने जाल डालो।”
فَأَجَابَ سِمْعَانُ وَقَالَ لَهُ: «يَا مُعَلِّمُ، قَدْ تَعِبْنَا ٱللَّيْلَ كُلَّهُ وَلَمْ نَأْخُذْ شَيْئًا. وَلَكِنْ عَلَى كَلِمَتِكَ أُلْقِي ٱلشَّبَكَةَ». ٥ 5
शमौन ने जवाब में कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! हम ने रात भर मेहनत की और कुछ हाथ न आया, मगर तेरे कहने से जाल डालता हूँ।”
وَلَمَّا فَعَلُوا ذَلِكَ أَمْسَكُوا سَمَكًا كَثِيرًا جِدًّا، فَصَارَتْ شَبَكَتُهُمْ تَتَخَرَّقُ. ٦ 6
ये किया और वो मछलियों का बड़ा घेर लाए, और उनके जाल फ़टने लगे।
فَأَشَارُوا إِلَى شُرَكَائِهِمُ ٱلَّذِينَ فِي ٱلسَّفِينَةِ ٱلْأُخْرَى أَنْ يَأْتُوا وَيُسَاعِدُوهُمْ. فَأَتَوْا وَمَلَأُوا ٱلسَّفِينَتَيْنِ حَتَّى أَخَذَتَا فِي ٱلْغَرَقِ. ٧ 7
और उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे इशारा किया कि आओ हमारी मदद करो। पस उन्होंने आकर दोनों नावें यहाँ तक भर दीं कि डूबने लगीं।
فَلَمَّا رَأَى سِمْعَانُ بُطْرُسُ ذَلِكَ خَرَّ عِنْدَ رُكْبَتَيْ يَسُوعَ قَائِلًا: «ٱخْرُجْ مِنْ سَفِينَتِي يَارَبُّ، لِأَنِّي رَجُلٌ خَاطِئٌ!». ٨ 8
शमौन पतरस ये देखकर ईसा के पाँव में गिरा और कहा, ऐ ख़ुदावन्द! मेरे पास से चला जा, क्यूँकि मैं गुनहगार आदमी हूँ।”
إِذِ ٱعْتَرَتْهُ وَجمِيعَ ٱلَّذِينَ مَعَهُ دَهْشَةٌ عَلَى صَيْدِ ٱلسَّمَكِ ٱلَّذِي أَخَذُوهُ. ٩ 9
क्यूँकि मछलियों के इस शिकार से जो उन्होंने किया, वो और उसके सब साथी बहुत हैरान हुए।
وَكَذَلِكَ أَيْضًا يَعْقُوبُ وَيُوحَنَّا ٱبْنَا زَبَدِي ٱللَّذَانِ كَانَا شَرِيكَيْ سِمْعَانَ. فَقَالَ يَسُوعُ لِسِمْعَانَ: «لَاتَخَفْ! مِنَ ٱلْآنَ تَكُونُ تَصْطَادُ ٱلنَّاسَ!». ١٠ 10
और वैसे ही ज़ब्दी के बेटे या'क़ूब और यूहन्ना भी जो शमौन के साथी थे, हैरान हुए। ईसा ने शमौन से कहा, “ख़ौफ़ न कर, अब से तू आदमियों का शिकार करेगा।“
وَلَمَّا جَاءُوا بِٱلسَّفِينَتَيْنِ إِلَى ٱلْبَرِّ تَرَكُوا كُلَّ شَيْءٍ وَتَبِعُوهُ. ١١ 11
वो नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
وَكَانَ فِي إِحْدَى ٱلْمُدُنِ، فَإِذَا رَجُلٌ مَمْلُوءٌ بَرَصًا. فَلَمَّا رَأَى يَسُوعَ خَرَّ عَلَى وَجْهِهِ وَطَلَبَ إِلَيْهِ قَائِلًا: «يَا سَيِّدُ، إِنْ أَرَدْتَ تَقْدِرْ أَنْ تُطَهِّرَنِي». ١٢ 12
जब वो एक शहर में था, तो देखो, कौढ़ से भरा हुआ एक आदमी ईसा को देखकर मुँह के बल गिरा और उसकी मिन्नत करके कहने लगा, “ऐ ख़ुदावन्द, अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है।”
فَمَدَّ يَدَهُ وَلَمَسَهُ قَائِلًا: «أُرِيدُ، فَٱطْهُرْ!». وَلِلْوَقْتِ ذَهَبَ عَنْهُ ٱلْبَرَصُ. ١٣ 13
उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू पाक साफ़ हो जा।” और फ़ौरन उसका कौढ़ जाता रहा।
فَأَوْصَاهُ أَنْ لَا يَقُولَ لِأَحَدٍ. بَلِ «ٱمْضِ وَأَرِ نَفْسَكَ لِلْكَاهِنِ، وَقَدِّمْ عَنْ تَطْهِيرِكَ كَمَا أَمَرَ مُوسَى شَهَادَةً لَهُمْ». ١٤ 14
और उसने उसे ताकीद की, “किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आपको काहिन को दिखा। और जैसा मूसा ने मुक़र्रर किया है अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे में गुज़रान ताकि उनके लिए गवाही हो।”
فَذَاعَ ٱلْخَبَرُ عَنْهُ أَكْثَرَ. فَٱجْتَمَعَ جُمُوعٌ كَثِيرَةٌ لِكَيْ يَسْمَعُوا وَيُشْفَوْا بِهِ مِنْ أَمْرَاضِهِمْ. ١٥ 15
लेकिन उसकी चर्चा ज़्यादा फ़ैली और बहुत से लोग जमा हुए कि उसकी सुनें और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाएँ
وَأَمَّا هُوَ فَكَانَ يَعْتَزِلُ فِي ٱلْبَرَارِي وَيُصَلِّي. ١٦ 16
मगर वो जंगलों में अलग जाकर दुआ किया करता था।
وَفِي أَحَدِ ٱلْأَيَّامِ كَانَ يُعَلِّمُ، وَكَانَ فَرِّيسِيُّونَ وَمُعَلِّمُونَ لِلنَّامُوسِ جَالِسِينَ وَهُمْ قَدْ أَتَوْا مِنْ كُلِّ قَرْيَةٍ مِنَ ٱلْجَلِيلِ وَٱلْيَهُودِيَّةِ وَأُورُشَلِيمَ. وَكَانَتْ قُوَّةُ ٱلرَّبِّ لِشِفَائِهِمْ. ١٧ 17
और एक दिन ऐसा हुआ कि वो ता'लीम दे रहा था और फ़रीसी और शरा' के मु'अल्लिम वहाँ बैठे हुए थे जो गलील के हर गाँव और यहूदिया और येरूशलेम से आए थे। और ख़ुदावन्द की क़ुदरत शिफ़ा बख़्शने को उसके साथ थी।
وَإِذَا بِرِجَالٍ يَحْمِلُونَ عَلَى فِرَاشٍ إِنْسَانًا مَفْلُوجًا، وَكَانُوا يَطْلُبُونَ أَنْ يَدْخُلُوا بِهِ وَيَضَعُوهُ أَمَامَهُ. ١٨ 18
और देखो, कोई मर्द एक आदमी को जो फ़ालिज का मारा था चारपाई पर लाए और कोशिश की कि उसे अन्दर लाकर उसके आगे रख्खें।
وَلَمَّا لَمْ يَجِدُوا مِنْ أَيْنَ يَدْخُلُونَ بِهِ لِسَبَبِ ٱلْجَمْعِ، صَعِدُوا عَلَى ٱلسَّطْحِ وَدَلَّوْهُ مَعَ ٱلْفِرَاشِ مِنْ بَيْنِ ٱلْأَجُرِّ إِلَى ٱلْوَسْطِ قُدَّامَ يَسُوعَ. ١٩ 19
और जब भीड़ की वजह से उसको अन्दर ले जाने की राह न पाई तो छत पर चढ़ कर खपरैल में से उसको खटोले समेत बीच में ईसा के सामने उतार दिया।
فَلَمَّا رَأَى إِيمَانَهُمْ قَالَ لَهُ: «أَيُّهَا ٱلْإِنْسَانُ، مَغْفُورَةٌ لَكَ خَطَايَاكَ». ٢٠ 20
उसने उनका ईमान देखकर कहा, “ऐ आदमी! तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए!”
فَٱبْتَدَأَ ٱلْكَتَبَةُ وَٱلْفَرِّيسِيُّونَ يُفَكِّرُونَ قَائِلِينَ «مَنْ هَذَا ٱلَّذِي يَتَكَلَّمُ بِتَجَادِيفَ؟ مَنْ يَقْدِرُ أَنْ يَغْفِرَ خَطَايَا إِلَّا ٱللهُ وَحْدَهُ؟». ٢١ 21
इस पर फ़क़ीह और फ़रीसी सोचने लगे, “ये कौन है जो कुफ़्र बकता है? ख़ुदा के सिवा और कौन गुनाह मु'आफ़ कर सकता है?”
فَشَعَرَ يَسُوعُ بِأَفْكَارِهِمْ، وَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «مَاذَا تُفَكِّرُونَ فِي قُلُوبِكُمْ؟ ٢٢ 22
ईसा ने उनके ख़यालों को मा'लूम करके जवाब में उनसे कहा, “तुम अपने दिलों में क्या सोचते हो?
أَيُّمَا أَيْسَرُ: أَنْ يُقَالَ: مَغْفُورَةٌ لَكَ خَطَايَاكَ، أَمْ أَنْ يُقَالَ: قُمْ وَٱمْشِ؟ ٢٣ 23
आसान क्या है? ये कहना कि 'तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए' या ये कहना कि 'उठ और चल फिर'?
وَلَكِنْ لِكَيْ تَعْلَمُوا أَنَّ لِٱبْنِ ٱلْإِنْسَانِ سُلْطَانًا عَلَى ٱلْأَرْضِ أَنْ يَغْفِرَ ٱلْخَطَايَا»، قَالَ لِلْمَفْلُوجِ: «لَكَ أَقُولُ: قُمْ وَٱحْمِلْ فِرَاشَكَ وَٱذْهَبْ إِلَى بَيْتِكَ!». ٢٤ 24
लेकिन इसलिए कि तुम जानो कि इब्न — ए — आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है;” (उसने मफ़्लूज से कहा) मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी चारपाई उठाकर अपने घर जा।”
فَفِي ٱلْحَالِ قَامَ أَمَامَهُمْ، وَحَمَلَ مَا كَانَ مُضْطَجِعًا عَلَيْهِ، وَمَضَى إِلَى بَيْتِهِ وَهُوَ يُمَجِّدُ ٱللهَ. ٢٥ 25
वो उसी दम उनके सामने उठा और जिस पर पड़ा था उसे उठाकर ख़ुदा की तम्जीद करता हुआ अपने घर चला गया।
فَأَخَذَتِ ٱلْجَمِيعَ حَيْرَةٌ وَمَجَّدُوا ٱللهَ، وَٱمْتَلَأُوا خَوْفًا قَائِلِينَ: «إِنَّنَا قَدْ رَأَيْنَا ٱلْيَوْمَ عَجَائِبَ!». ٢٦ 26
वो सब के सब बहुत हैरान हुए और ख़ुदा की तम्जीद करने लगे, और बहुत डर गए और कहने लगे, “आज हम ने अजीब बातें देखीं!”
وَبَعْدَ هَذَا خَرَجَ فَنَظَرَ عَشَّارًا ٱسْمُهُ لَاوِي جَالِسًا عِنْدَ مَكَانِ ٱلْجِبَايَةِ، فَقَالَ لَهُ: «ٱتْبَعْنِي». ٢٧ 27
इन बातों के बाद वो बाहर गया और लावी नाम के एक महसूल लेनेवाले को महसूल की चौकी पर बैठे देखा और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
فَتَرَكَ كُلَّ شَيْءٍ وَقَامَ وَتَبِعَهُ. ٢٨ 28
वो सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया।
وَصَنَعَ لَهُ لَاوِي ضِيَافَةً كَبِيرَةً فِي بَيْتِهِ. وَٱلَّذِينَ كَانُوا مُتَّكِئِينَ مَعَهُمْ كَانُوا جَمْعًا كَثِيرًا مِنْ عَشَّارِينَ وَآخَرِينَ. ٢٩ 29
फिर लावी ने अपने घर में उसकी बड़ी ज़ियाफ़त की; और महसूल लेनेवालों और औरों की जो उनके साथ खाना खाने बैठे थे, बड़ी भीड़' थी।
فَتَذَمَّرَ كَتَبَتُهُمْ وَٱلْفَرِّيسِيُّونَ عَلَى تَلَامِيذِهِ قَائِلِينَ: «لِمَاذَا تَأْكُلُونَ وَتَشْرَبُونَ مَعَ عَشَّارِينَ وَخُطَاةٍ؟». ٣٠ 30
और फ़रीसी और उनके आलिम उसके शागिर्दों से ये कहकर बुदबुदाने लगे, “तुम क्यूँ महसूल लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ खाते — पीते हो?”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُمْ: «لَا يَحْتَاجُ ٱلْأَصِحَّاءُ إِلَى طَبِيبٍ، بَلِ ٱلْمَرْضَى. ٣١ 31
ईसा ने जवाब में उनसे कहा, “तन्दरुस्तों को हकीम की ज़रूरत नहीं है बल्कि बीमारों को।
لَمْ آتِ لِأَدْعُوَ أَبْرَارًا بَلْ خُطَاةً إِلَى ٱلتَّوْبَةِ». ٣٢ 32
मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को तौबा के लिए बुलाने आया हूँ।”
وَقَالُوا لَهُ: «لِمَاذَا يَصُومُ تَلَامِيذُ يُوحَنَّا كَثِيرًا وَيُقَدِّمُونَ طَلَبَاتٍ، وَكَذَلِكَ تَلَامِيذُ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ أَيْضًا، وَأَمَّا تَلَامِيذُكَ فَيَأْكُلُونَ وَيَشْرَبُونَ؟». ٣٣ 33
और उन्होंने उससे कहा, “युहन्ना के शागिर्द अक्सर रोज़ा रखते और दु'आएँ किया करते हैं, और इसी तरह फ़रीसियों के भी; मगर तेरे शागिर्द खाते पीते है।”
فَقَالَ لَهُمْ: «أَتَقْدِرُونَ أَنْ تَجْعَلُوا بَنِي ٱلْعُرْسِ يَصُومُونَ مَا دَامَ ٱلْعَرِيسُ مَعَهُمْ؟ ٣٤ 34
ईसा ने उनसे कहा, “क्या तुम बरातियों से, जब तक दुल्हा उनके साथ है, रोज़ा रखवा सकते हो?
وَلَكِنْ سَتَأْتِي أَيَّامٌ حِينَ يُرْفَعُ ٱلْعَرِيسُ عَنْهُمْ، فَحِينَئِذٍ يَصُومُونَ فِي تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ». ٣٥ 35
मगर वो दिन आएँगे; और जब दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा तब उन दिनों में वो रोज़ा रख्खेंगे।”
وَقَالَ لَهُمْ أَيْضًا مَثَلًا: «لَيْسَ أَحَدٌ يَضَعُ رُقْعَةً مِنْ ثَوْبٍ جَدِيدٍ عَلَى ثَوْبٍ عَتِيقٍ، وَإِلَّا فَٱلْجَدِيدُ يَشُقُّهُ، وَٱلْعَتِيقُ لَا تُوافِقُهُ ٱلرُّقْعَةُ ٱلَّتِي مِنَ ٱلْجَدِيدِ. ٣٦ 36
और उसने उनसे एक मिसाल भी कही: “कोई आदमी नई पोशाक में से फाड़कर पुरानी में पैवन्द नहीं लगाता, वर्ना नई भी फटेगी और उसका पैवन्द पुरानी में मेल भी न खाएगा।
وَلَيْسَ أَحَدٌ يَجْعَلُ خَمْرًا جَدِيدَةً فِي زِقَاقٍ عَتِيقَةٍ لِئَلَّا تَشُقَّ ٱلْخَمْرُ ٱلْجَدِيدَةُ ٱلزِّقَاقَ، فَهِيَ تُهْرَقُ وَٱلزِّقَاقُ تَتْلَفُ. ٣٧ 37
और कोई शख़्स नई मय पूरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नई मय मशकों को फाड़ कर ख़ुद भी बह जाएगी और मशकें भी बरबाद हो जाएँगी।
بَلْ يَجْعَلُونَ خَمْرًا جَدِيدَةً فِي زِقَاقٍ جَدِيدَةٍ، فَتُحْفَظُ جَمِيعًا. ٣٨ 38
बल्कि नई मय नई मशकों में भरना चाहिए।
وَلَيْسَ أَحَدٌ إِذَا شَرِبَ ٱلْعَتِيقَ يُرِيدُ لِلْوَقْتِ ٱلْجَدِيدَ، لِأَنَّهُ يَقُولُ: ٱلْعَتِيقُ أَطْيَبُ». ٣٩ 39
और कोई आदमी पुरानी मय पीकर नई की ख़्वाहिश नहीं करता, क्यूँकि कहता है कि पुरानी ही अच्छी है।“

< لُوقا 5 >