< لُوقا 4 >
أَمَّا يَسُوعُ فَرَجَعَ مِنَ ٱلْأُرْدُنِّ مُمْتَلِئًا مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ، وَكَانَ يُقْتَادُ بِٱلرُّوحِ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ | ١ 1 |
फिर ईसा रूह — उल — क़ुद्दूस से भरा हुआ यरदन से लौटा, और चालीस दिन तक रूह की हिदायत से वीराने में फिरता रहा;
أَرْبَعِينَ يَوْمًا يُجَرَّبُ مِنْ إِبْلِيسَ. وَلَمْ يَأْكُلْ شَيْئًا فِي تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ. وَلَمَّا تَمَّتْ جَاعَ أَخِيرًا. | ٢ 2 |
और शैतान उसे आज़माता रहा। उन दिनों में उसने कुछ न खाया, जब वो दिन पुरे हो गए तो उसे भूख लगी।
وَقَالَ لَهُ إِبْلِيسُ: «إِنْ كُنْتَ ٱبْنَ ٱللهِ، فَقُلْ لِهَذَا ٱلْحَجَرِ أَنْ يَصِيرَ خُبْزًا». | ٣ 3 |
और शैतान ने उससे कहा, “अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो इस पत्थर से कह कि रोटी बन जाए।”
فَأَجَابَهُ يَسُوعُ قَائِلًا: «مَكْتُوبٌ: أَنْ لَيْسَ بِٱلْخُبْزِ وَحْدَهُ يَحْيَا ٱلْإِنْسَانُ، بَلْ بِكُلِّ كَلِمَةٍ مِنَ ٱللهِ». | ٤ 4 |
ईसा ने उसको जवाब दिया, “कलाम में लिखा है कि, आदमी सिर्फ़ रोटी ही से जीता न रहेगा।”
ثُمَّ أَصْعَدَهُ إِبْلِيسُ إِلَى جَبَلٍ عَالٍ وَأَرَاهُ جَمِيعَ مَمَالِكِ ٱلْمَسْكُونَةِ فِي لَحْظَةٍ مِنَ ٱلزَّمَانِ. | ٥ 5 |
और शैतान ने उसे ऊँचे पर ले जाकर दुनिया की सब सल्तनतें पल भर में दिखाईं।
وَقَالَ لَهُ إِبْلِيسُ: «لَكَ أُعْطِي هَذَا ٱلسُّلْطَانَ كُلَّهُ وَمَجْدَهُنَّ، لِأَنَّهُ إِلَيَّ قَدْ دُفِعَ، وَأَنَا أُعْطِيهِ لِمَنْ أُرِيدُ. | ٦ 6 |
और उससे कहा, “ये सारा इख़्तियार और उनकी शान — ओ — शौकत मैं तुझे दे दूँगा, क्यूँकि ये मेरे सुपुर्द है और जिसको चाहता हूँ देता हूँ।
فَإِنْ سَجَدْتَ أَمَامِي يَكُونُ لَكَ ٱلْجَمِيعُ». | ٧ 7 |
पस अगर तू मेरे आगे सज्दा करे, तो ये सब तेरा होगा।”
فَأَجَابَهُ يَسُوعُ وَقَالَ: «ٱذْهَبْ يَا شَيْطَانُ! إِنَّهُ مَكْتُوبٌ: لِلرَّبِّ إِلَهِكَ تَسْجُدُ وَإِيَّاهُ وَحْدَهُ تَعْبُدُ». | ٨ 8 |
ईसा ने जवाब में उससे कहा, “लिखा है कि, तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा कर और सिर्फ़ उसकी इबादत कर।”
ثُمَّ جَاءَ بِهِ إِلَى أُورُشَلِيمَ، وَأَقَامَهُ عَلَى جَنَاحِ ٱلْهَيْكَلِ وَقَالَ لَهُ: «إِنْ كُنْتَ ٱبْنَ ٱللهِ فَٱطْرَحْ نَفْسَكَ مِنْ هُنَا إِلَى أَسْفَلُ، | ٩ 9 |
और वो उसे येरूशलेम में ले गया और हैकल के कंगूरे पर खड़ा करके उससे कहा, अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो अपने आपको यहाँ से नीचे गिरा दे।
لِأَنَّهُ مَكْتُوبٌ: أَنَّهُ يُوصِي مَلَائِكَتَهُ بِكَ لِكَيْ يَحْفَظُوكَ، | ١٠ 10 |
क्यूँकि लिखा है कि, वो तेरे बारे में अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि तेरी हिफ़ाज़त करें।
وَأَنَّهُمْ عَلَى أَيَادِيهِمْ يَحْمِلُونَكَ لِكَيْ لَا تَصْدِمَ بِحَجَرٍ رِجْلَكَ». | ١١ 11 |
और ये भी कि वो तुझे हाथों पर उठा लेंगे, क़ाश की तेरे पाँव को पत्थर से ठेस लगे।
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَهُ: «إِنَّهُ قِيلَ: لَا تُجَرِّبِ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ». | ١٢ 12 |
ईसा ने जवाब में उससे कहा, “फ़रमाया गया है कि, तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आज़माइश न कर।”
وَلَمَّا أَكْمَلَ إِبْلِيسُ كُلَّ تَجْرِبَةٍ فَارَقَهُ إِلَى حِينٍ. | ١٣ 13 |
जब इब्लीस तमाम आज़माइशें कर चूका तो कुछ अर्से के लिए उससे जुदा हुआ।
وَرَجَعَ يَسُوعُ بِقُوَّةِ ٱلرُّوحِ إِلَى ٱلْجَلِيلِ، وَخَرَجَ خَبَرٌ عَنْهُ فِي جَمِيعِ ٱلْكُورَةِ ٱلْمُحِيطَةِ. | ١٤ 14 |
फिर ईसा पाक रूह की क़ुव्वत से भरा हुआ गलील को लौटा और आसपास में उसकी शोहरत फैल गई।
وَكَانَ يُعَلِّمُ فِي مَجَامِعِهِمْ مُمَجَّدًا مِنَ ٱلْجَمِيعِ. | ١٥ 15 |
और वो उनके 'इबादतख़ानों में ता'लीम देता रहा और सब उसकी बड़ाई करते रहे।
وَجَاءَ إِلَى ٱلنَّاصِرَةِ حَيْثُ كَانَ قَدْ تَرَبَّى. وَدَخَلَ ٱلْمَجْمَعَ حَسَبَ عَادَتِهِ يَوْمَ ٱلسَّبْتِ وَقَامَ لِيَقْرَأَ، | ١٦ 16 |
और वो नासरत में आया जहाँ उसने परवरिश पाई थी और अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ सबत के दिन 'इबादतख़ाने में गया और पढ़ने को खड़ा हुआ।
فَدُفِعَ إِلَيْهِ سِفْرُ إِشَعْيَاءَ ٱلنَّبِيِّ. وَلَمَّا فَتَحَ ٱلسِّفْرَ وَجَدَ ٱلْمَوْضِعَ ٱلَّذِي كَانَ مَكْتُوبًا فِيهِ: | ١٧ 17 |
और यसायाह नबी की किताब उसको दी गई, और किताब खोलकर उसने वो वर्क़ा खोला जहाँ ये लिखा था:
«رُوحُ ٱلرَّبِّ عَلَيَّ، لِأَنَّهُ مَسَحَنِي لِأُبَشِّرَ ٱلْمَسَاكِينَ، أَرْسَلَنِي لِأَشْفِيَ ٱلْمُنْكَسِرِي ٱلْقُلُوبِ، لِأُنَادِيَ لِلْمَأْسُورِينَ بِٱلْإِطْلَاقِ ولِلْعُمْيِ بِٱلْبَصَرِ، وَأُرْسِلَ ٱلْمُنْسَحِقِينَ فِي ٱلْحُرِّيَّةِ، | ١٨ 18 |
“ख़ुदावन्द का रूह मुझ पर है, इसलिए कि उसने मुझे ग़रीबों को ख़ुशख़बरी देने के लिए मसह किया; उसने मुझे भेजा है क़ैदियों को रिहाई और अन्धों को बीनाई पाने की ख़बर सूनाऊँ, कुचले हुओं को आज़ाद करूँ।
وَأَكْرِزَ بِسَنَةِ ٱلرَّبِّ ٱلْمَقْبُولَةِ». | ١٩ 19 |
और ख़ुदावन्द के साल — ए — मक़बूल का ऐलान करूँ।”
ثُمَّ طَوَى ٱلسِّفْرَ وَسَلَّمَهُ إِلَى ٱلْخَادِمِ، وَجَلَسَ. وَجَمِيعُ ٱلَّذِينَ فِي ٱلْمَجْمَعِ كَانَتْ عُيُونُهُمْ شَاخِصَةً إِلَيْهِ. | ٢٠ 20 |
फिर वो किताब बन्द करके और ख़ादिम को वापस देकर बैठ गया; जितने 'इबादतख़ाने में थे सबकी आँखें उस पर लगी थीं।
فَٱبْتَدَأَ يَقُولُ لَهُمْ: «إِنَّهُ ٱلْيَوْمَ قَدْ تَمَّ هَذَا ٱلْمَكْتُوبُ فِي مَسَامِعِكُمْ». | ٢١ 21 |
वो उनसे कहने लगा, “आज ये लिखा हुआ तुम्हारे सामने पूरा हुआ।”
وَكَانَ ٱلْجَمِيعُ يَشْهَدُونَ لَهُ وَيَتَعَجَّبُونَ مِنْ كَلِمَاتِ ٱلنِّعْمَةِ ٱلْخَارِجَةِ مِنْ فَمِهِ، وَيَقُولُونَ: «أَلَيْسَ هَذَا ٱبْنَ يُوسُفَ؟». | ٢٢ 22 |
और सबने उस पर गवाही दी और उन पुर फ़ज़ल बातों पर जो उसके मुँह से निकली थी, ता'ज्जुब करके कहने लगे, “क्या ये यूसुफ़ का बेटा नहीं?”
فَقَالَ لَهُمْ: «عَلَى كُلِّ حَالٍ تَقُولُونَ لِي هَذَا ٱلْمَثَلَ: أَيُّهَا ٱلطَّبِيبُ ٱشْفِ نَفْسَكَ! كَمْ سَمِعْنَا أَنَّهُ جَرَى فِي كَفْرِنَاحُومَ، فَٱفْعَلْ ذَلِكَ هُنَا أَيْضًا فِي وَطَنِكَ». | ٢٣ 23 |
उसने उनसे कहा “तुम अलबत्ता ये मिसाल मुझ पर कहोगे कि, 'ऐ हकीम, अपने आप को तो अच्छा कर! जो कुछ हम ने सुना है कि कफ़रनहूम में किया गया, यहाँ अपने वतन में भी कर'।”
وَقَالَ: «ٱلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ لَيْسَ نَبِيٌّ مَقْبُولًا فِي وَطَنِهِ. | ٢٤ 24 |
और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि कोई नबी अपने वतन में मक़बूल नहीं होता।
وَبِالْحَقِّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ أَرَامِلَ كَثِيرَةً كُنَّ فِي إِسْرَائِيلَ فِي أَيَّامِ إِيلِيَّا حِينَ أُغْلِقَتِ ٱلسَّمَاءُ مُدَّةَ ثَلَاثِ سِنِينَ وَسِتَّةِ أَشْهُرٍ، لَمَّا كَانَ جُوعٌ عَظِيمٌ فِي ٱلْأَرْضِ كُلِّهَا، | ٢٥ 25 |
और मैं तुम से कहता हूँ, कि एलियाह के दिनों में जब साढ़े तीन बरस आसमान बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे मुल्क में सख़्त काल पड़ा, बहुत सी बेवाएँ इस्राईल में थीं।
وَلَمْ يُرْسَلْ إِيلِيَّا إِلَى وَاحِدَةٍ مِنْهَا، إِلَّا إِلَى ٱمْرَأَةٍ أَرْمَلَةٍ، إِلَى صَرْفَةِ صَيْدَاءَ. | ٢٦ 26 |
लेकिन एलियाह उनमें से किसी के पास न भेजा गया, मगर मुल्क — ए — सैदा के शहर सारपत में एक बेवा के पास
وَبُرْصٌ كَثِيرُونَ كَانُوا فِي إِسْرَائِيلَ فِي زَمَانِ أَلِيشَعَ ٱلنَّبِيِّ، وَلَمْ يُطَهَّرْ وَاحِدٌ مِنْهُمْ إِلَّا نُعْمَانُ ٱلسُّرْيَانِيُّ». | ٢٧ 27 |
और इलिशा नबी के वक़्त में इस्राईल के बीच बहुत से कौढ़ी थे, लेकिन उनमें से कोई पाक साफ़ न किया गया मगर ना'मान सूरयानी।”
فَٱمْتَلَأَ غَضَبًا جَمِيعُ ٱلَّذِينَ فِي ٱلْمَجْمَعِ حِينَ سَمِعُوا هَذَا، | ٢٨ 28 |
जितने 'इबादतख़ाने में थे, इन बातों को सुनते ही ग़ुस्से से भर गए,
فَقَامُوا وَأَخْرَجُوهُ خَارِجَ ٱلْمَدِينَةِ، وَجَاءُوا بِهِ إِلَى حَافَّةِ ٱلْجَبَلِ ٱلَّذِي كَانَتْ مَدِينَتُهُمْ مَبْنِيَّةً عَلَيْهِ حَتَّى يَطْرَحُوهُ إِلَى أَسْفَلٍ. | ٢٩ 29 |
और उठकर उस को बाहर निकाले और उस पहाड़ की चोटी पर ले गए जिस पर उनका शहर आबाद था, ताकि उसको सिर के बल गिरा दें।
أَمَّا هُوَ فَجَازَ فِي وَسْطِهِمْ وَمَضَى. | ٣٠ 30 |
मगर वो उनके बीच में से निकलकर चला गया।
وَٱنْحَدَرَ إِلَى كَفْرِنَاحُومَ، مَدِينَةٍ مِنَ ٱلْجَلِيلِ، وَكَانَ يُعَلِّمُهُمْ فِي ٱلسُّبُوتِ. | ٣١ 31 |
फिर वो गलील के शहर कफ़रनहूम को गया और सबत के दिन उन्हें ता'लीम दे रहा था।
فَبُهِتُوا مِنْ تَعْلِيمِهِ، لِأَنَّ كَلَامَهُ كَانَ بِسُلْطَانٍ. | ٣٢ 32 |
और लोग उसकी ता'लीम से हैरान थे क्यूँकि उसका कलाम इख़्तियार के साथ था।
وَكَانَ فِي ٱلْمَجْمَعِ رَجُلٌ بِهِ رُوحُ شَيْطَانٍ نَجِسٍ، فَصَرَخَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ | ٣٣ 33 |
इबादतख़ाने में एक आदमी था, जिसमें बदरूह थी। वो बड़ी आवाज़ से चिल्ला उठा कि,
قَائِلًا: «آهِ! مَا لَنَا وَلَكَ يَا يَسُوعُ ٱلنَّاصِرِيُّ؟ أَتَيْتَ لِتُهْلِكَنَا! أَنَا أَعْرِفُكَ مَنْ أَنْتَ: قُدُّوسُ ٱللهِ!». | ٣٤ 34 |
“ऐ ईसा नासरी हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें हलाक करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ कि तू कौन है — ख़ुदा का क़ुद्दूस है।”
فَٱنْتَهَرَهُ يَسُوعُ قَائِلًا: «ٱخْرَسْ! وَٱخْرُجْ مِنْهُ!». فَصَرَعَهُ ٱلشَّيْطَانُ فِي ٱلْوَسْطِ وَخَرَجَ مِنْهُ وَلَمْ يَضُرَّهُ شَيْئًا. | ٣٥ 35 |
ईसा ने उसे झिड़क कर कहा, “चुप रह और उसमें से निकल जा।” इस पर बदरूह उसे बीच में पटक कर बग़ैर नुक़्सान पहूँचाए उसमें से निकल गई।
فَوَقَعَتْ دَهْشَةٌ عَلَى ٱلْجَمِيعِ، وَكَانُوا يُخَاطِبُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا قَائِلِينَ: «مَا هَذِهِ ٱلْكَلِمَةُ؟ لِأَنَّهُ بِسُلْطَانٍ وَقُوَّةٍ يَأْمُرُ ٱلْأَرْوَاحَ ٱلنَّجِسَةَ فَتَخْرُجُ!». | ٣٦ 36 |
और सब हैरान होकर आपस में कहने लगे, “ये कैसा कलाम है? क्यूँकि वो इख़्तियार और क़ुदरत से नापाक रूहों को हुक्म देता है और वो निकल जाती हैं।”
وَخَرَجَ صِيتٌ عَنْهُ إِلَى كُلِّ مَوْضِعٍ فِي ٱلْكُورَةِ ٱلْمُحِيطَةِ. | ٣٧ 37 |
और आस पास में हर जगह उसकी धूम मच गई।
وَلَمَّا قَامَ مِنَ ٱلْمَجْمَعِ دَخَلَ بَيْتَ سِمْعَانَ. وَكَانَتْ حَمَاةُ سِمْعَانَ قَدْ أَخَذَتْهَا حُمَّى شَدِيدَةٌ. فَسَأَلُوهُ مِنْ أَجْلِهَا. | ٣٨ 38 |
फिर वो 'इबादतख़ाने से उठकर शमौन के घर में दाख़िल हुआ और शमौन की सास जो बुख़ार में पड़ी हुई थी और उन्होंने उस के लिए उससे 'अर्ज़ की।
فَوَقَفَ فَوْقَهَا وَٱنْتَهَرَ ٱلْحُمَّى فَتَرَكَتْهَا! وَفِي ٱلْحَالِ قَامَتْ وَصَارَتْ تَخْدُمُهُمْ. | ٣٩ 39 |
वो खड़ा होकर उसकी तरफ़ झुका और बुख़ार को झिड़का तो वो उतर गया, वो उसी दम उठकर उनकी ख़िदमत करने लगी।
وَعِنْدَ غُرُوبِ ٱلشَّمْسِ، جَمِيعُ ٱلَّذِينَ كَانَ عِنْدَهُمْ سُقَمَاءُ بِأَمْرَاضٍ مُخْتَلِفَةٍ قَدَّمُوهُمْ إِلَيْهِ، فَوَضَعَ يَدَيْهِ عَلَى كُلِّ وَاحِدٍ مِنْهُمْ وَشَفَاهُمْ. | ٤٠ 40 |
और सूरज के डूबते वक़्त वो सब लोग जिनके यहाँ तरह — तरह की बीमारियों के मरीज़ थे, उन्हें उसके पास लाए और उसने उनमें से हर एक पर हाथ रख कर उन्हें अच्छा किया।
وَكَانَتْ شَيَاطِينُ أَيْضًا تَخْرُجُ مِنْ كَثِيرِينَ وَهِيَ تَصْرُخُ وَتَقُولُ: «أَنْتَ ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ ٱللهِ!». فَٱنْتَهَرَهُمْ وَلَمْ يَدَعْهُمْ يَتَكَلَّمُونَ، لِأَنَّهُمْ عَرَفُوهُ أَنَّهُ ٱلْمَسِيحُ. | ٤١ 41 |
और बदरूहें भी चिल्लाकर और ये कहकर कि, “तू ख़ुदा का बेटा है” बहुतों में से निकल गई, और वो उन्हें झिड़कता और बोलने न देता था, क्यूँकि वो जानती थीं के ये मसीह है।
وَلَمَّا صَارَ ٱلنَّهَارُ خَرَجَ وَذَهَبَ إِلَى مَوْضِعٍ خَلَاءٍ، وَكَانَ ٱلْجُمُوعُ يُفَتِّشُونَ عَلَيْهِ. فَجَاءُوا إِلَيْهِ وَأَمْسَكُوهُ لِئَلَّا يَذْهَبَ عَنْهُمْ. | ٤٢ 42 |
जब दिन हुआ तो वो निकल कर एक वीरान जगह में गया, और भीड़ की भीड़ उसको ढूँडती हुई उसके पास आई, और उसको रोकने लगी कि हमारे पास से न जा।
فَقَالَ لَهُمْ: «إِنَّهُ يَنْبَغِي لِي أَنْ أُبَشِّرَ ٱلْمُدُنَ ٱلْأُخَرَ أَيْضًا بِمَلَكُوتِ ٱللهِ، لِأَنِّي لِهَذَا قَدْ أُرْسِلْتُ». | ٤٣ 43 |
उसने उनसे कहा, “मुझे और शहरों में भी ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाना ज़रूर है, क्यूँकि मैं इसी लिए भेजा गया हूँ।”
فَكَانَ يَكْرِزُ فِي مَجَامِعِ ٱلْجَلِيلِ. | ٤٤ 44 |
और वो गलील के 'इबाद्तखानों में एलान करता रहा।