< لُوقا 19 >
ثُمَّ دَخَلَ وَٱجْتَازَ فِي أَرِيحَا. | ١ 1 |
प्रभु येशु ने येरीख़ो नगर में प्रवेश किया.
وَإِذَا رَجُلٌ ٱسْمُهُ زَكَّا، وَهُوَ رَئِيسٌ لِلْعَشَّارِينَ وَكَانَ غَنِيًّا، | ٢ 2 |
वहां ज़क्ख़ाइयॉस नामक एक व्यक्ति था, जो प्रधान चुंगी लेनेवाला और धनी व्यक्ति था.
وَطَلَبَ أَنْ يَرَى يَسُوعَ مَنْ هُوَ، وَلَمْ يَقْدِرْ مِنَ ٱلْجَمْعِ، لِأَنَّهُ كَانَ قَصِيرَ ٱلْقَامَةِ. | ٣ 3 |
वह यह देखने का प्रयत्न कर रहा था कि प्रभु येशु कौन हैं. भीड़ में वह प्रभु येशु को देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह नाटा था.
فَرَكَضَ مُتَقَدِّمًا وَصَعِدَ إِلَى جُمَّيْزَةٍ لِكَيْ يَرَاهُ، لِأَنَّهُ كَانَ مُزْمِعًا أَنْ يَمُرَّ مِنْ هُنَاكَ. | ٤ 4 |
इसलिये प्रभु येशु को देखने के लिए वह दौड़कर आगे बढ़ा और गूलर के एक पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि प्रभु येशु उसी मार्ग से जाने को थे.
فَلَمَّا جَاءَ يَسُوعُ إِلَى ٱلْمَكَانِ، نَظَرَ إِلَى فَوْقُ فَرَآهُ، وَقَالَ لَهُ: «يَا زَكَّا، أَسْرِعْ وَٱنْزِلْ، لِأَنَّهُ يَنْبَغِي أَنْ أَمْكُثَ ٱلْيَوْمَ فِي بَيْتِكَ». | ٥ 5 |
जब प्रभु येशु वहां पहुंचे, उन्होंने ऊपर देखते हुए उससे कहा, “ज़क्ख़ाइयॉस, तुरंत नीचे आ जाओ. ज़रूरी है कि आज मैं तुम्हारे घर में ठहरूं.”
فَأَسْرَعَ وَنَزَلَ وَقَبِلَهُ فَرِحًا. | ٦ 6 |
वह तुरंत नीचे उतरा और खुशी से उन्हें अपने घर ले गया.
فَلَمَّا رَأَى ٱلْجَمِيعُ ذَلِكَ تَذَمَّرُوا قَائِلِينَ: «إِنَّهُ دَخَلَ لِيَبِيتَ عِنْدَ رَجُلٍ خَاطِئٍ». | ٧ 7 |
यह देख सभी बड़बड़ाने लगे, “वह तो एक ऐसे व्यक्ति के घर गया है, जो अपराधी है.”
فَوَقَفَ زَكَّا وَقَالَ لِلرَّبِّ: «هَا أَنَا يَارَبُّ أُعْطِي نِصْفَ أَمْوَالِي لِلْمَسَاكِينِ، وَإِنْ كُنْتُ قَدْ وَشَيْتُ بِأَحَدٍ أَرُدُّ أَرْبَعَةَ أَضْعَافٍ». | ٨ 8 |
किंतु ज़क्ख़ाइयॉस ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “प्रभुवर! मैं अपनी आधी संपत्ति निर्धनों में दान कर दूंगा और यदि मैंने किसी से गलत ढंग से कुछ भी लिया है तो मैं उसे चौगुनी राशि लौटा दूंगा.”
فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «ٱلْيَوْمَ حَصَلَ خَلَاصٌ لِهَذَا ٱلْبَيْتِ، إِذْ هُوَ أَيْضًا ٱبْنُ إِبْرَاهِيمَ، | ٩ 9 |
प्रभु येशु ने उससे कहा, “आज इस परिवार में उद्धार का आगमन हुआ है—यह व्यक्ति भी अब्राहाम की संतान है.
لِأَنَّ ٱبْنَ ٱلْإِنْسَانِ قَدْ جَاءَ لِكَيْ يَطْلُبَ وَيُخَلِّصَ مَا قَدْ هَلَكَ». | ١٠ 10 |
मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को खोजने तथा उन्हें उद्धार देने आया है.”
وَإِذْ كَانُوا يَسْمَعُونَ هَذَا عَادَ فَقَالَ مَثَلًا، لِأَنَّهُ كَانَ قَرِيبًا مِنْ أُورُشَلِيمَ، وَكَانُوا يَظُنُّونَ أَنَّ مَلَكُوتَ ٱللهِ عَتِيدٌ أَنْ يَظْهَرَ فِي ٱلْحَالِ. | ١١ 11 |
जब वे इन बातों को सुन रहे थे, प्रभु येशु ने एक दृष्टांत प्रस्तुत किया क्योंकि अब वे येरूशलेम नगर के पास पहुंच रहे थे और लोगों की आशा थी कि परमेश्वर का राज्य तुरंत ही प्रकट होने पर है.
فَقَالَ: «إِنْسَانٌ شَرِيفُ ٱلْجِنْسِ ذَهَبَ إِلَى كُورَةٍ بَعِيدَةٍ لِيَأْخُذَ لِنَفْسِهِ مُلْكًا وَيَرْجِعَ. | ١٢ 12 |
प्रभु येशु ने कहना प्रारंभ किया: “एक कुलीन व्यक्ति राजपद प्राप्त करने के लिए दूर देश की यात्रा पर निकला.
فَدَعَا عَشَرَةَ عَبِيدٍ لَهُ وَأَعْطَاهُمْ عَشَرَةَ أَمْنَاءٍ، وَقَالَ لَهُمْ: تَاجِرُوا حَتَّى آتِيَ. | ١٣ 13 |
यात्रा के पहले उसने अपने दस दासों को बुलाकर उन्हें दस सोने के सिक्के देते हुए कहा, ‘मेरे लौटने तक इस राशि से व्यापार करना.’
وَأَمَّا أَهْلُ مَدِينَتِهِ فَكَانُوا يُبْغِضُونَهُ، فَأَرْسَلُوا وَرَاءَهُ سَفَارَةً قَائِلِينَ: لَا نُرِيدُ أَنَّ هَذَا يَمْلِكُ عَلَيْنَا. | ١٤ 14 |
“लोग उससे घृणा करते थे इसलिये उन्होंने उसके पीछे एक सेवकों की टुकड़ी को इस संदेश के साथ भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर शासन करे.’
وَلَمَّا رَجَعَ بَعْدَمَا أَخَذَ ٱلْمُلْكَ، أَمَرَ أَنْ يُدْعَى إِلَيْهِ أُولَئِكَ ٱلْعَبِيدُ ٱلَّذِينَ أَعْطَاهُمُ ٱلْفِضَّةَ، لِيَعْرِفَ بِمَا تَاجَرَ كُلُّ وَاحِدٍ. | ١٥ 15 |
“इस पर भी उसे राजा बना दिया गया. लौटने पर उसने उन दासों को बुलवाया कि वह यह मालूम करे कि उन्होंने उस राशि से व्यापार कर कितना लाभ कमाया है.
فَجَاءَ ٱلْأَوَّلُ قَائِلًا: يَا سَيِّدُ، مَنَاكَ رَبِحَ عَشَرَةَ أَمْنَاءٍ. | ١٦ 16 |
“पहले दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने दस सिक्के और कमाए हैं.’
فَقَالَ لَهُ: نِعِمَّا أَيُّهَا ٱلْعَبْدُ ٱلصَّالِحُ! لِأَنَّكَ كُنْتَ أَمِينًا فِي ٱلْقَلِيلِ، فَلْيَكُنْ لَكَ سُلْطَانٌ عَلَى عَشْرِ مُدْنٍ. | ١٧ 17 |
“‘शाबाश, मेरे योग्य दास!’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘इसलिये कि तुम बहुत छोटी ज़िम्मेदारी में भी विश्वासयोग्य पाए गए, तुम दस नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’
ثُمَّ جَاءَ ٱلثَّانِي قَائِلًا: يَا سَيِّدُ، مَنَاكَ عَمِلَ خَمْسَةَ أَمْنَاءٍ. | ١٨ 18 |
“दूसरे दास ने आकर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने पांच और कमाए हैं.’
فَقَالَ لِهَذَا أَيْضًا: وَكُنْ أَنْتَ عَلَى خَمْسِ مُدْنٍ. | ١٩ 19 |
“स्वामी ने उत्तर दिया, ‘तुम पांच नगरों की ज़िम्मेदारी संभालो.’
ثُمَّ جَاءَ آخَرُ قَائِلًا: يَا سَيِّدُ، هُوَذَا مَنَاكَ ٱلَّذِي كَانَ عِنْدِي مَوْضُوعًا فِي مِنْدِيلٍ، | ٢٠ 20 |
“तब एक अन्य दास आया और स्वामी से कहने लगा, ‘स्वामी, यह है आपका दिया हुआ सोने का सिक्का, जिसे मैंने बड़ी ही सावधानी से कपड़े में लपेट, संभाल कर रखा है.
لِأَنِّي كُنْتُ أَخَافُ مِنْكَ، إِذْ أَنْتَ إِنْسَانٌ صَارِمٌ، تَأْخُذُ مَا لَمْ تَضَعْ، وَتَحْصُدُ مَا لَمْ تَزْرَعْ. | ٢١ 21 |
मुझे आपसे भय था क्योंकि आप कठोर व्यक्ति हैं. आपने जिसका निवेश भी नहीं किया, वह आप ले लेते हैं, जो आपने बोया ही नहीं, उसे काटते हैं.’
فَقَالَ لَهُ: مِنْ فَمِكَ أَدِينُكَ أَيُّهَا ٱلْعَبْدُ ٱلشِّرِّيرُ. عَرَفْتَ أَنِّي إِنْسَانٌ صَارِمٌ، آخُذُ مَا لَمْ أَضَعْ، وَأَحْصُدُ مَا لَمْ أَزْرَعْ، | ٢٢ 22 |
“स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट! तेरा न्याय तो मैं तेरे ही शब्दों के आधार पर करूंगा. जब तू जानता है कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूं; मैं वह ले लेता हूं जिसका मैंने निवेश ही नहीं किया और वह काटता हूं, जो मैंने बोया ही नहीं, तो
فَلِمَاذَا لَمْ تَضَعْ فِضَّتِي عَلَى مَائِدَةِ ٱلصَّيَارِفَةِ، فَكُنْتُ مَتَى جِئْتُ أَسْتَوْفِيهَا مَعَ رِبًا؟ | ٢٣ 23 |
तूने मेरा धन साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिया कि मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित प्राप्त कर सकता?’
ثُمَّ قَالَ لِلْحَاضِرِينَ: خُذُوا مِنْهُ ٱلْمَنَا وَأَعْطُوهُ لِلَّذِي عِنْدَهُ ٱلْعَشَرَةُ ٱلْأَمْنَاءُ. | ٢٤ 24 |
“तब उसने अपने पास खड़े दासों को आज्ञा दी, ‘इसकी स्वर्ण मुद्रा लेकर उसे दे दो, जिसके पास अब दस मुद्राएं हैं.’
فَقَالُوا لَهُ: يَا سَيِّدُ، عِنْدَهُ عَشَرَةُ أَمْنَاءٍ! | ٢٥ 25 |
“उन्होंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘स्वामी, उसके पास तो पहले ही दस हैं!’
لِأَنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ كُلَّ مَنْ لَهُ يُعْطَى، وَمَنْ لَيْسَ لَهُ فَٱلَّذِي عِنْدَهُ يُؤْخَذُ مِنْهُ. | ٢٦ 26 |
“स्वामी ने उत्तर दिया, ‘सच्चाई यह है: हर एक, जिसके पास है, उसे और भी दिया जाएगा किंतु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है.
أَمَّا أَعْدَائِي، أُولَئِكَ ٱلَّذِينَ لَمْ يُرِيدُوا أَنْ أَمْلِكَ عَلَيْهِمْ، فَأْتُوا بِهِمْ إِلَى هُنَا وَٱذْبَحُوهُمْ قُدَّامِي». | ٢٧ 27 |
मेरे इन शत्रुओं को, जिन्हें मेरा उन पर शासन करना अच्छा नहीं लग रहा, यहां मेरे सामने लाकर प्राण-दंड दो.’”
وَلَمَّا قَالَ هَذَا تَقَدَّمَ صَاعِدًا إِلَى أُورُشَلِيمَ. | ٢٨ 28 |
इसके बाद प्रभु येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशलेम नगर की ओर बढ़ गए.
وَإِذْ قَرُبَ مِنْ بَيْتِ فَاجِي وَبَيْتِ عَنْيَا، عِنْدَ ٱلْجَبَلِ ٱلَّذِي يُدْعَى جَبَلَ ٱلزَّيْتُونِ، أَرْسَلَ ٱثْنَيْنِ مِنْ تَلَامِيذِهِ | ٢٩ 29 |
जब प्रभु येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गांव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुंचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया,
قَائِلًا: «اِذْهَبَا إِلَى ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِي أَمَامَكُمَا، وَحِينَ تَدْخُلَانِهَا تَجِدَانِ جَحْشًا مَرْبُوطًا لَمْ يَجْلِسْ عَلَيْهِ أَحَدٌ مِنَ ٱلنَّاسِ قَطُّ. فَحُلَّاهُ وَأْتِيَا بِهِ. | ٣٠ 30 |
“सामने उस गांव में जाओ. वहां प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है; उसे खोलकर यहां ले आओ.
وَإِنْ سَأَلَكُمَا أَحَدٌ: لِمَاذَا تَحُلَّانِهِ؟ فَقُولَا لَهُ هَكَذَا: إِنَّ ٱلرَّبَّ مُحْتَاجٌ إِلَيْهِ». | ٣١ 31 |
यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’”
فَمَضَى ٱلْمُرْسَلَانِ وَوَجَدَا كَمَا قَالَ لَهُمَا. | ٣٢ 32 |
जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था.
وَفِيمَا هُمَا يَحُلَّانِ ٱلْجَحْشَ قَالَ لَهُمَا أَصْحَابُهُ: «لِمَاذَا تَحُلَّانِ ٱلْجَحْشَ؟». | ٣٣ 33 |
जब वे गधी के उस बच्चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?”
فَقَالَا: «ٱلرَّبُّ مُحْتَاجٌ إِلَيْهِ». | ٣٤ 34 |
उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.”
وَأَتَيَا بِهِ إِلَى يَسُوعَ، وَطَرَحَا ثِيَابَهُمَا عَلَى ٱلْجَحْشِ، وَأَرْكَبَا يَسُوعَ. | ٣٥ 35 |
वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डालकर प्रभु येशु को उस पर बैठा दिया.
وَفِيمَا هُوَ سَائِرٌ فَرَشُوا ثِيَابَهُمْ فِي ٱلطَّرِيقِ. | ٣٦ 36 |
जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए.
وَلَمَّا قَرُبَ عِنْدَ مُنْحَدَرِ جَبَلِ ٱلزَّيْتُونِ، ٱبْتَدَأَ كُلُّ جُمْهُورِ ٱلتَّلَامِيذِ يَفْرَحُونَ وَيُسَبِّحُونَ ٱللهَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ، لِأَجْلِ جَمِيعِ ٱلْقُوَّاتِ ٱلَّتِي نَظَرُوا، | ٣٧ 37 |
जब वे उस स्थान पर पहुंचे, जहां ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारंभ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊंचे शब्द में आनंदपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी:
قَائِلِينَ: «مُبَارَكٌ ٱلْمَلِكُ ٱلْآتِي بِٱسْمِ ٱلرَّبِّ! سَلَامٌ فِي ٱلسَّمَاءِ وَمَجْدٌ فِي ٱلْأَعَالِي!». | ٣٨ 38 |
“स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!” “स्वर्ग में शांति और सर्वोच्च में महिमा हो!”
وَأَمَّا بَعْضُ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ مِنَ ٱلْجَمْعِ فَقَالُوا لَهُ: «يَا مُعَلِّمُ، ٱنْتَهِرْ تَلَامِيذَكَ!». | ٣٩ 39 |
भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए प्रभु येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!”
فَأَجَابَ وَقَالَ لَهُمْ: «أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ إِنْ سَكَتَ هَؤُلَاءِ فَٱلْحِجَارَةُ تَصْرُخُ!». | ٤٠ 40 |
“मैं आपको यह बताना चाहता हूं,” प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शांत हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.”
وَفِيمَا هُوَ يَقْتَرِبُ نَظَرَ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ وَبَكَى عَلَيْهَا | ٤١ 41 |
जब वह येरूशलेम नगर के पास आए तो नगर को देख वह यह कहते हुए रो पड़े,
قَائِلًا: «إِنَّكِ لَوْ عَلِمْتِ أَنْتِ أَيْضًا، حَتَّى فِي يَوْمِكِ هَذَا، مَا هُوَ لِسَلَامِكِ! وَلَكِنِ ٱلْآنَ قَدْ أُخْفِيَ عَنْ عَيْنَيْكِ. | ٤٢ 42 |
“यदि तुम, हां तुम, आज इतना ही समझ लेते कि शांति का मतलब क्या है! किंतु यह तुमसे छिपाकर रखा गया है.
فَإِنَّهُ سَتَأْتِي أَيَّامٌ وَيُحِيطُ بِكِ أَعْدَاؤُكِ بِمِتْرَسَةٍ، وَيُحْدِقُونَ بِكِ وَيُحَاصِرُونَكِم مِنْ كُلِّ جِهَةٍ، | ٤٣ 43 |
वे दिन आ रहे हैं जब शत्रु सेना तुम्हारे चारों ओर घेराबंदी करके तुम्हारे निकलने का रास्ता बंद कर देगी.
وَيَهْدِمُونَكِ وَبَنِيكِ فِيكِ، وَلَا يَتْرُكُونَ فِيكِ حَجَرًا عَلَى حَجَرٍ، لِأَنَّكِ لَمْ تَعْرِفِي زَمَانَ ٱفْتِقَادِكِ». | ٤٤ 44 |
वे तुम्हें तथा तुम्हारी संतानों को धूल में मिला देंगे. वे तुम्हारे घरों का एक भी पत्थर दूसरे पत्थर पर न छोड़ेंगे क्योंकि तुमने तुम्हें दिए गए सुअवसर को नहीं पहचाना.”
وَلَمَّا دَخَلَ ٱلْهَيْكَلَ ٱبْتَدَأَ يُخْرِجُ ٱلَّذِينَ كَانُوا يَبِيعُونَ وَيَشْتَرُونَ فِيهِ | ٤٥ 45 |
मंदिर में प्रवेश करने पर प्रभु येशु ने सभी बेचने वालों को यह कहते हुए वहां से बाहर करना प्रारंभ कर दिया,
قَائِلًا لَهُمْ: «مَكْتُوبٌ: إِنَّ بَيْتِي بَيْتُ ٱلصَّلَاةِ. وَأَنْتُمْ جَعَلْتُمُوهُ مَغَارَةَ لُصُوصٍ!». | ٤٦ 46 |
“लिखा है: मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, किंतु तुमने तो इसे डाकुओं की गुफ़ा बना रखी है!”
وَكَانَ يُعَلِّمُ كُلَّ يَوْمٍ فِي ٱلْهَيْكَلِ، وَكَانَ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْكَتَبَةُ مَعَ وُجُوهِ ٱلشَّعْبِ يَطْلُبُونَ أَنْ يُهْلِكُوهُ، | ٤٧ 47 |
प्रभु येशु हर रोज़ मंदिर में शिक्षा दिया करते थे. प्रधान पुरोहित, शास्त्री तथा जनसाधारण में से प्रधान नागरिक उनकी हत्या की योजना कर रहे थे,
وَلَمْ يَجِدُوا مَا يَفْعَلُونَ، لِأَنَّ ٱلشَّعْبَ كُلَّهُ كَانَ مُتَعَلِّقًا بِهِ يَسْمَعُ مِنْهُ. | ٤٨ 48 |
किंतु उनकी कोई भी योजना सफल नहीं हो रही थी क्योंकि लोग प्रभु येशु के प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित थे.