< لُوقا 17 >
وَقَالَ لِتَلَامِيذِهِ: «لَا يُمْكِنُ إِلَّا أَنْ تَأْتِيَ ٱلْعَثَرَاتُ، وَلَكِنْ وَيْلٌ لِلَّذِي تَأْتِي بِوَاسِطَتِهِ! | ١ 1 |
फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, “ये नहीं हो सकता कि ठोकरें न लगें, लेकिन उस पर अफ़सोस है कि जिसकी वजह से लगें।
خَيْرٌ لَهُ لَوْ طُوِّقَ عُنُقُهُ بِحَجَرِ رَحًى وَطُرِحَ فِي ٱلْبَحْرِ، مِنْ أَنْ يُعْثِرَ أَحَدَ هَؤُلَاءِ ٱلصِّغَارِ. | ٢ 2 |
इन छोटों में से एक को ठोकर खिलाने की बनिस्बत, उस शख़्स के लिए ये बेहतर होता है कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता और वो समुन्दर में फेंका जाता।
اِحْتَرِزُوا لِأَنْفُسِكُمْ. وَإِنْ أَخْطَأَ إِلَيْكَ أَخُوكَ فَوَبِّخْهُ، وَإِنْ تَابَ فَٱغْفِرْ لَهُ. | ٣ 3 |
ख़बरदार रहो! अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे डांट दे, अगर वो तौबा करे तो उसे मु'आफ़ कर।
وَإِنْ أَخْطَأَ إِلَيْكَ سَبْعَ مَرَّاتٍ فِي ٱلْيَوْمِ، وَرَجَعَ إِلَيْكَ سَبْعَ مَرَّاتٍ فِي ٱلْيَوْمِ قَائِلًا: أَنَا تَائِبٌ، فَٱغْفِرْ لَهُ». | ٤ 4 |
और वो एक दिन में सात दफ़ा'' तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ा' तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ, तो उसे मु'आफ़ कर।“
فَقَالَ ٱلرُّسُلُ لِلرَّبِّ: «زِدْ إِيمَانَنَا!». | ٥ 5 |
इस पर रसूलों ने ख़ुदावन्द से कहा, “हमारे ईमान को बढ़ा।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «لَوْ كَانَ لَكُمْ إِيمَانٌ مِثْلُ حَبَّةِ خَرْدَلٍ، لَكُنْتُمْ تَقُولُونَ لِهَذِهِ ٱلْجُمَّيْزَةِ: ٱنْقَلِعِي وَٱنْغَرِسِي فِي ٱلْبَحْرِ فَتُطِيعُكُمْ. | ٦ 6 |
ख़ुदावन्द ने कहा, “अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होता और तुम इस तूत के दरख़्त से कहते, कि जड़ से उखड़ कर समुन्दर में जा लग, तो तुम्हारी मानता।”
«وَمَنْ مِنْكُمْ لَهُ عَبْدٌ يَحْرُثُ أَوْ يَرْعَى، يَقُولُ لَهُ إِذَا دَخَلَ مِنَ ٱلْحَقْلِ: تَقَدَّمْ سَرِيعًا وَٱتَّكِئْ. | ٧ 7 |
“मगर तुम में ऐसा कौन है, जिसका नौकर हल जोतता या भेड़ें चराता हो, और जब वो खेत से आए तो उससे कहे, जल्द आकर खाना खाने बैठ!'
بَلْ أَلَا يَقُولُ لَهُ: أَعْدِدْ مَا أَتَعَشَّى بِهِ، وَتَمَنْطَقْ وَٱخْدِمْنِي حَتَّى آكُلَ وَأَشْرَبَ، وَبَعْدَ ذَلِكَ تَأْكُلُ وَتَشْرَبُ أَنْتَ؟ | ٨ 8 |
और ये न कहे, 'मेरा खाना तैयार कर, और जब तक मैं खाउँ — पियूँ कमर बाँध कर मेरी ख़िदमत कर; उसके बाद तू भी खा पी लेना'?
فَهَلْ لِذَلِكَ ٱلْعَبْدِ فَضْلٌ لِأَنَّهُ فَعَلَ مَا أُمِرَ بِهِ؟ لَا أَظُنُّ. | ٩ 9 |
क्या वो इसलिए उस नौकर का एहसान मानेगा कि उसने उन बातों को जिनका हुक्म हुआ ता'मील की?
كَذَلِكَ أَنْتُمْ أَيْضًا، مَتَى فَعَلْتُمْ كُلَّ مَا أُمِرْتُمْ بِهِ فَقُولُوا: إِنَّنَا عَبِيدٌ بَطَّالُونَ، لِأَنَّنَا إِنَّمَا عَمِلْنَا مَا كَانَ يَجِبُ عَلَيْنَا». | ١٠ 10 |
इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की, जिनका तुम को हुक्म हुआ ता'मील कर चुको, तो कहो, 'हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है'।“
وَفِي ذَهَابِهِ إِلَى أُورُشَلِيمَ ٱجْتَازَ فِي وَسْطِ ٱلسَّامِرَةِ وَٱلْجَلِيلِ. | ١١ 11 |
और अगर ऐसा कि येरूशलेम को जाते हुए वो सामरिया और गलील के बीच से होकर जा रहा था
وَفِيمَا هُوَ دَاخِلٌ إِلَى قَرْيَةٍ ٱسْتَقْبَلَهُ عَشَرَةُ رِجَالٍ بُرْصٍ، فَوَقَفُوا مِنْ بَعِيدٍ | ١٢ 12 |
और एक गाँव में दाख़िल होते वक़्त दस कौढ़ी उसको मिले।
وَرَفَعوُا صَوْتًا قَائِلِينَ: «يَا يَسُوعُ، يَا مُعَلِّمُ، ٱرْحَمْنَا!». | ١٣ 13 |
उन्होंने दूर खड़े होकर बुलन्द आवाज़ से कहा, ऐ ईसा! ऐ ख़ुदावन्द! हम पर रहम कर।
فَنَظَرَ وَقَالَ لَهُمُ: «ٱذْهَبُوا وَأَرُوا أَنْفُسَكُمْ لِلْكَهَنَةِ». وَفِيمَا هُمْ مُنْطَلِقُونَ طَهَرُوا. | ١٤ 14 |
उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ! अपने आपको काहिनों को दिखाओ!” और ऐसा हुआ कि वो जाते — जाते पाक साफ़ हो गए।
فَوَاحِدٌ مِنْهُمْ لَمَّا رَأَى أَنَّهُ شُفِيَ، رَجَعَ يُمَجِّدُ ٱللهَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ، | ١٥ 15 |
फिर उनमें से एक ये देखकर कि मैं शिफ़ा पा गया हूँ, बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ लौटा;
وَخَرَّ عَلَى وَجْهِهِ عِنْدَ رِجْلَيْهِ شَاكِرًا لَهُ، وَكَانَ سَامِرِيًّا. | ١٦ 16 |
और मुँह के बल ईसा के पाँव पर गिरकर उसका शुक्र करने लगा; और वो सामरी था।
فَأجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ: «أَلَيْسَ ٱلْعَشَرَةُ قَدْ طَهَرُوا؟ فَأَيْنَ ٱلتِّسْعَةُ؟ | ١٧ 17 |
ईसा ने जवाब में कहा, “क्या दसों पाक साफ़ न हुए; फिर वो नौ कहाँ है?
أَلَمْ يُوجَدْ مَنْ يَرْجِعُ لِيُعْطِيَ مَجْدًا لِلهِ غَيْرُ هَذَا ٱلْغَرِيبِ ٱلْجِنْسِ؟». | ١٨ 18 |
क्या इस परदेसी के सिवा और न निकले जो लौटकर ख़ुदा की बड़ाई करते?”
ثُمَّ قَالَ لَهُ: «قُمْ وَٱمْضِ، إِيمَانُكَ خَلَّصَكَ». | ١٩ 19 |
फिर उससे कहा, “उठ कर चला जा! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है।”
وَلَمَّا سَأَلَهُ ٱلْفَرِّيسِيُّونَ: «مَتَى يَأْتِي مَلَكُوتُ ٱللهِ؟». أَجَابَهُمْ وَقَالَ: «لَا يَأْتِي مَلَكُوتُ ٱللهِ بِمُرَاقَبَةٍ، | ٢٠ 20 |
जब फ़रीसियों ने उससे पूछा कि ख़ुदा की बादशाही कब आएगी, तो उसने जवाब में उनसे कहा, “ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिरी तौर पर न आएगी।
وَلَا يَقُولُونَ: هُوَذَا هَهُنَا، أَوْ: هُوَذَا هُنَاكَ! لِأَنْ هَا مَلَكُوتُ ٱللهِ دَاخِلَكُمْ». | ٢١ 21 |
और लोग ये न कहेंगे, 'देखो, यहाँ है या वहाँ है!' क्यूँकि देखो, ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे बीच है।”
وَقَالَ لِلتَّلَامِيذِ: «سَتَأْتِي أَيَّامٌ فِيهَا تَشْتَهُونَ أَنْ تَرَوْا يَوْمًا وَاحِدًا مِنْ أَيَّامِ ٱبْنِ ٱلْإِنْسَانِ وَلَا تَرَوْنَ. | ٢٢ 22 |
उसने शागिर्दों से कहा, “वो दिन आएँगे, कि तुम इब्न — ए — आदम के दिनों में से एक दिन को देखने की आरज़ू होगी, और न देखोगे।
وَيَقُولُونَ لَكُمْ: هُوَذَا هَهُنَا! أَوْ: هُوَذَا هُنَاكَ! لَا تَذْهَبُوا وَلَا تَتْبَعُوا، | ٢٣ 23 |
और लोग तुम से कहेंगे, 'देखो, वहाँ है!' या देखो, यहाँ है!' मगर तुम चले न जाना न उनके पीछे हो लेना।
لِأَنَّهُ كَمَا أَنَّ ٱلْبَرْقَ ٱلَّذِي يَبْرُقُ مِنْ نَاحِيَةٍ تَحْتَ ٱلسَّمَاءِ يُضِيءُ إِلَى نَاحِيَةٍ تَحْتَ ٱلسَّمَاءِ، كَذَلِكَ يَكُونُ أَيْضًا ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ فِي يَوْمِهِ. | ٢٤ 24 |
क्यूँकि जैसे बिजली आसमान में एक तरफ़ से कौंध कर आसमान कि दूसरी तरफ़ चमकती है, वैसे ही इब्न — ए — आदम अपने दिन में ज़ाहिर होगा।
وَلَكِنْ يَنْبَغِي أَوَّلًا أَنْ يَتَأَلَّمَ كَثِيرًا وَيُرْفَضَ مِنْ هَذَا ٱلْجِيلِ. | ٢٥ 25 |
लेकिन पहले ज़रूर है कि वो बहुत दुःख उठाए, और इस ज़माने के लोग उसे रद्द करें।
وَكَمَا كَانَ فِي أَيَّامِ نُوحٍ كَذَلِكَ يَكُونُ أَيْضًا فِي أَيَّامِ ٱبْنِ ٱلْإِنْسَانِ: | ٢٦ 26 |
और जैसा नूह के दिनों में हुआ था, उसी तरह इब्न — ए — आदम के दिनों में होगा;
كَانُوا يَأْكُلُونَ وَيَشْرَبُونَ، وَيُزَوِّجُونَ وَيَتَزَوَّجُونَ، إِلَى ٱلْيَوْمِ ٱلَّذِي فِيهِ دَخَلَ نُوحٌ ٱلْفُلْكَ، وَجَاءَ ٱلطُّوفَانُ وَأَهْلَكَ ٱلْجَمِيعَ. | ٢٧ 27 |
कि लोग खाते पीते थे और उनमें ब्याह शादी होती थीं, उस दिन तक जब नूह नाव में दाख़िल हुआ; और तूफ़ान ने आकर सबको हलाक किया।“
كَذَلِكَ أَيْضًا كَمَا كَانَ فِي أَيَّامِ لُوطٍ: كَانُوا يَأْكُلُونَ وَيَشْرَبُونَ، وَيَشْتَرُونَ وَيَبِيعُونَ، وَيَغْرِسُونَ وَيَبْنُونَ. | ٢٨ 28 |
और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते — पीते और ख़रीद — ओ — फ़रोख़्त करते, और दरख़्त लगाते और घर बनाते थे।
وَلَكِنَّ ٱلْيَوْمَ ٱلَّذِي فِيهِ خَرَجَ لُوطٌ مِنْ سَدُومَ، أَمْطَرَ نَارًا وَكِبْرِيتًا مِنَ ٱلسَّمَاءِ فَأَهْلَكَ ٱلْجَمِيعَ. | ٢٩ 29 |
लेकिन जिस दिन लूत सदूम से निकला, आग और गन्धक ने आसमान से बरस कर सबको हलाक किया।
هَكَذَا يَكُونُ فِي ٱلْيَوْمِ ٱلَّذِي فِيهِ يُظْهَرُ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ. | ٣٠ 30 |
इब्न — ए — आदम के ज़ाहिर होने के दिन भी ऐसा ही होगा।”
فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ مَنْ كَانَ عَلَى ٱلسَّطْحِ وَأَمْتِعَتُهُ فِي ٱلْبَيْتِ فَلَا يَنْزِلْ لِيَأْخُذَهَا، وَٱلَّذِي فِي ٱلْحَقْلِ كَذَلِكَ لَا يَرْجِعْ إِلَى ٱلْوَرَاءِ. | ٣١ 31 |
“इस दिन जो छत पर हो और उसका अस्बाब घर में हो, वो उसे लेने को न उतरे; और इसी तरह जो खेत में हो वो पीछे को न लौटे।
اُذْكُرُوا ٱمْرَأَةَ لُوطٍ! | ٣٢ 32 |
लूत की बीवी को याद रख्खो।
مَنْ طَلَبَ أَنْ يُخَلِّصَ نَفْسَهُ يُهْلِكُهَا، وَمَنْ أَهْلَكَهَا يُحْيِيهَا. | ٣٣ 33 |
जो कोई अपनी जान बचाने की कोशिश करे वो उसको खोएगा, और जो कोई उसे खोए वो उसको ज़िंदा रख्खेगा।
أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ فِي تِلْكَ ٱللَّيْلَةِ يَكُونُ ٱثْنَانِ عَلَى فِرَاشٍ وَاحِدٍ، فَيُؤْخَذُ ٱلْوَاحِدُ وَيُتْرَكُ ٱلْآخَرُ. | ٣٤ 34 |
मैं तुम से कहता हूँ कि उस रात दो आदमी एक चारपाई पर सोते होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा।
تَكُونُ ٱثْنَتَانِ تَطْحَنَانِ مَعًا، فَتُؤْخَذُ ٱلْوَاحِدَةُ وَتُتْرَكُ ٱلْأُخْرَى. | ٣٥ 35 |
दो 'औरतें एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी।
يَكُونُ ٱثْنَانِ فِي ٱلْحَقْلِ، فَيُؤْخَذُ ٱلْوَاحِدُ وَيُتْرَكُ ٱلْآخَرُ». | ٣٦ 36 |
दो आदमी जो खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा,”
فَأَجَابوا وَقَالُوا لَهُ: «أَيْنَ يَارَبُّ؟». فَقَالَ لَهُمْ: «حَيْثُ تَكُونُ ٱلْجُثَّةُ هُنَاكَ تَجْتَمِعُ ٱلنُّسُورُ». | ٣٧ 37 |
उन्होंने जवाब में उससे कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! ये कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ मुरदार हैं, वहाँ गिद्ध भी जमा होंगे।”