< لُوقا 10 >

وَبَعْدَ ذَلِكَ عَيَّنَ ٱلرَّبُّ سَبْعِينَ آخَرِينَ أَيْضًا، وَأَرْسَلَهُمُ ٱثْنَيْنِ ٱثْنَيْنِ أَمَامَ وَجْهِهِ إِلَى كُلِّ مَدِينَةٍ وَمَوْضِعٍ حَيْثُ كَانَ هُوَ مُزْمِعًا أَنْ يَأْتِيَ. ١ 1
और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा।
فَقَالَ لَهُمْ: «إِنَّ ٱلْحَصَادَ كَثِيرٌ، وَلَكِنَّ ٱلْفَعَلَةَ قَلِيلُونَ. فَٱطْلُبُوا مِنْ رَبِّ ٱلْحَصَادِ أَنْ يُرْسِلَ فَعَلَةً إِلَى حَصَادِهِ. ٢ 2
और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे।
اِذْهَبُوا! هَا أَنَا أُرْسِلُكُمْ مِثْلَ حُمْلَانٍ بَيْنَ ذِئَابٍ. ٣ 3
जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ।
لَا تَحْمِلُوا كِيسًا وَلَا مِزْوَدًا وَلَا أَحْذِيَةً، وَلَا تُسَلِّمُوا عَلَى أَحَدٍ فِي ٱلطَّرِيقِ. ٤ 4
इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।
وَأَيُّ بَيْتٍ دَخَلْتُمُوهُ فَقُولُوا أَوَّلًا: سَلَامٌ لِهَذَا ٱلْبَيْتِ. ٥ 5
जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’
فَإِنْ كَانَ هُنَاكَ ٱبْنُ ٱلسَّلَامِ يَحُلُّ سَلَامُكُمْ عَلَيْهِ، وَإِلَّا فَيَرْجِعُ إِلَيْكُمْ. ٦ 6
यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा।
وَأَقِيمُوا فِي ذَلِكَ ٱلْبَيْتِ آكِلِينَ وَشَارِبِينَ مِمَّا عِنْدَهُمْ، لِأَنَّ ٱلْفَاعِلَ مُسْتَحِقٌّ أُجْرَتَهُ. لَا تَنْتَقِلُوا مِنْ بَيْتٍ إِلَى بَيْتٍ. ٧ 7
उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना।
وَأَيَّةَ مَدِينَةٍ دَخَلْتُمُوهَا وَقَبِلُوكُمْ، فَكُلُوا مِمَّا يُقَدَّمُ لَكُمْ، ٨ 8
और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ।
وَٱشْفُوا ٱلْمَرْضَى ٱلَّذِينَ فِيهَا، وَقُولُوا لَهُمْ: قَدِ ٱقْتَرَبَ مِنْكُمْ مَلَكُوتُ ٱللهِ. ٩ 9
वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
وَأَيَّةُ مَدِينَةٍ دَخَلْتُمُوهَا وَلَمْ يَقْبَلُوكُمْ، فَٱخْرُجُوا إِلَى شَوَارِعِهَا وَقُولُوا: ١٠ 10
१०परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो,
حَتَّى ٱلْغُبَارَ ٱلَّذِي لَصِقَ بِنَا مِنْ مَدِينَتِكُمْ نَنْفُضُهُ لَكُمْ. وَلَكِنِ ٱعْلَمُوا هَذَا: إنَّهُ قَدِ ٱقْتَرَبَ مِنْكُمْ مَلَكُوتُ ٱللهِ. ١١ 11
११‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
وَأَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ يَكُونُ لِسَدُومَ فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ حَالَةٌ أَكْثَرُ ٱحْتِمَالًا مِمَّا لِتِلْكَ ٱلْمَدِينَةِ. ١٢ 12
१२मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
«وَيْلٌ لَكِ يَا كُورَزِينُ! وَيْلٌ لَكِ يَا بَيْتَ صَيْدَا! لِأَنَّهُ لَوْ صُنِعَتْ فِي صُورَ وَصَيْدَاءَ ٱلْقُوَّاتُ ٱلْمَصْنُوعَةُ فِيكُمَا، لَتَابَتَا قَدِيمًا جَالِسَتَيْنِ فِي ٱلْمُسُوحِ وَٱلرَّمَادِ. ١٣ 13
१३“हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते।
وَلَكِنَّ صُورَ وَصَيْدَاءَ يَكُونُ لَهُمَا فِي ٱلدِّينِ حَالَةٌ أَكْثَرُ ٱحْتِمَالًا مِمَّا لَكُمَا. ١٤ 14
१४परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
وَأَنْتِ يَا كَفْرَنَاحُومَ ٱلْمُرْتَفِعَةُ إِلَى ٱلسَّمَاءِ! سَتُهْبَطِينَ إِلَى ٱلْهَاوِيَةِ. (Hadēs g86) ١٥ 15
१५और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (Hadēs g86)
اَلَّذِي يَسْمَعُ مِنْكُمْ يَسْمَعُ مِنِّي، وَٱلَّذِي يُرْذِلُكُمْ يُرْذِلُنِي، وَٱلَّذِي يُرْذِلُنِي يُرْذِلُ ٱلَّذِي أَرْسَلَنِي». ١٦ 16
१६“जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।”
فَرَجَعَ ٱلسَّبْعُونَ بِفَرَحٍ قَائِلِينَ: «يَارَبُّ، حَتَّى ٱلشَّيَاطِينُ تَخْضَعُ لَنَا بِٱسْمِكَ!». ١٧ 17
१७वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।”
فَقَالَ لَهُمْ: «رَأَيْتُ ٱلشَّيْطَانَ سَاقِطًا مِثْلَ ٱلْبَرْقِ مِنَ ٱلسَّمَاءِ. ١٨ 18
१८उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।
هَا أَنَا أُعْطِيكُمْ سُلْطَانًا لِتَدُوسُوا ٱلْحَيَّاتِ وَٱلْعَقَارِبَ وَكُلَّ قُوَّةِ ٱلْعَدُوِّ، وَلَا يَضُرُّكُمْ شَيْءٌ. ١٩ 19
१९मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदनेका, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी।
وَلَكِنْ لَا تَفْرَحُوا بِهَذَا: أَنَّ ٱلْأَرْوَاحَ تَخْضَعُ لَكُمْ، بَلِ ٱفْرَحُوا بِٱلْحَرِيِّ أَنَّ أَسْمَاءَكُمْ كُتِبَتْ فِي ٱلسَّمَاوَاتِ». ٢٠ 20
२०तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”
وَفِي تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ تَهَلَّلَ يَسُوعُ بِٱلرُّوحِ وَقَالَ: «أَحْمَدُكَ أَيُّهَا ٱلْآبُ، رَبُّ ٱلسَّمَاءِ وَٱلْأَرْضِ، لِأَنَّكَ أَخْفَيْتَ هَذِهِ عَنِ ٱلْحُكَمَاءِ وَٱلْفُهَمَاءِ وَأَعْلَنْتَهَا لِلْأَطْفَالِ. نَعَمْ أَيُّهَا ٱلْآبُ، لِأَنْ هَكَذَا صَارَتِ ٱلْمَسَرَّةُ أَمَامَكَ». ٢١ 21
२१उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया, हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
وَٱلْتَفَتَ إِلَى تَلَامِيذِهِ وَقَالَ: «كُلُّ شَيْءٍ قَدْ دُفِعَ إِلَيَّ مِنْ أَبِي. وَلَيْسَ أَحَدٌ يَعْرِفُ مَنْ هُوَ ٱلِٱبْنُ إِلَّا ٱلْآبُ، وَلَا مَنْ هُوَ ٱلْآبُ إِلَّا ٱلِٱبْنُ، وَمَنْ أَرَادَ ٱلِٱبْنُ أَنْ يُعْلِنَ لَهُ». ٢٢ 22
२२मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।”
وَٱلْتَفَتَ إِلَى تَلَامِيذِهِ عَلَى ٱنْفِرَادٍ وَقَالَ: «طُوبَى لِلْعُيُونِ ٱلَّتِي تَنْظُرُ مَا تَنْظُرُونَهُ! ٢٣ 23
२३और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं,
لِأَنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ أَنْبِيَاءَ كَثِيرِينَ وَمُلُوكًا أَرَادُوا أَنْ يَنْظُرُوا مَا أَنْتُمْ تَنْظُرُونَ وَلَمْ يَنْظُرُوا، وَأَنْ يَسْمَعُوا مَا أَنْتُمْ تَسْمَعُونَ وَلَمْ يَسْمَعُوا». ٢٤ 24
२४क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।”
وَإِذَا نَامُوسِيٌّ قَامَ يُجَرِّبُهُ قَائِلًا: «يَا مُعَلِّمُ، مَاذَا أَعْمَلُ لِأَرِثَ ٱلْحَيَاةَ ٱلْأَبَدِيَّةَ؟». (aiōnios g166) ٢٥ 25
२५तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” (aiōnios g166)
فَقَالَ لَهُ: «مَا هُوَ مَكْتُوبٌ فِي ٱلنَّامُوسِ. كَيْفَ تَقْرَأُ؟». ٢٦ 26
२६उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?”
فَأَجَابَ وَقَالَ: «تُحِبُّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ مِنْ كُلِّ قَلْبِكَ، وَمِنْ كُلِّ نَفْسِكَ، وَمِنْ كُلِّ قُدْرَتِكَ، وَمِنْ كُلِّ فِكْرِكَ، وَقَرِيبَكَ مِثْلَ نَفْسِكَ». ٢٧ 27
२७उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।”
فَقَالَ لَهُ: «بِٱلصَّوَابِ أَجَبْتَ. اِفْعَلْ هَذَا فَتَحْيَا». ٢٨ 28
२८उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।”
وَأَمَّا هُوَ فَإِذْ أَرَادَ أَنْ يُبَرِّرَ نَفْسَهُ، قَالَ لِيَسُوعَ: «وَمَنْ هُوَ قَرِيبِي؟». ٢٩ 29
२९परन्तु उसने अपने आपको धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ: «إِنْسَانٌ كَانَ نَازِلًا مِنْ أُورُشَلِيمَ إِلَى أَرِيحَا، فَوَقَعَ بَيْنَ لُصُوصٍ، فَعَرَّوْهُ وَجَرَّحُوهُ، وَمَضَوْا وَتَرَكُوهُ بَيْنَ حَيٍّ وَمَيْتٍ. ٣٠ 30
३०यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीट कर उसे अधमरा छोड़कर चले गए।
فَعَرَضَ أَنَّ كَاهِنًا نَزَلَ فِي تِلْكَ ٱلطَّرِيقِ، فَرَآهُ وَجَازَ مُقَابِلَهُ. ٣١ 31
३१और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया।
وَكَذَلِكَ لَاوِيٌّ أَيْضًا، إِذْ صَارَ عِنْدَ ٱلْمَكَانِ جَاءَ وَنَظَرَ وَجَازَ مُقَابِلَهُ. ٣٢ 32
३२इसी रीति से एक लेवीउस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया।
وَلَكِنَّ سَامِرِيًّا مُسَافِرًا جَاءَ إِلَيْهِ، وَلَمَّا رَآهُ تَحَنَّنَ، ٣٣ 33
३३परन्तु एक सामरीयात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया।
فَتَقَدَّمَ وَضَمَدَ جِرَاحَاتِهِ، وَصَبَّ عَلَيْهَا زَيْتًا وَخَمْرًا، وَأَرْكَبَهُ عَلَى دَابَّتِهِ، وَأَتَى بِهِ إِلَى فُنْدُقٍ وَٱعْتَنَى بِهِ. ٣٤ 34
३४और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकरपट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की।
وَفِي ٱلْغَدِ لَمَّا مَضَى أَخْرَجَ دِينَارَيْنِ وَأَعْطَاهُمَا لِصَاحِبِ ٱلْفُنْدُقِ، وَقَالَ لَهُ: ٱعْتَنِ بِهِ، وَمَهْمَا أَنْفَقْتَ أَكْثَرَ فَعِنْدَ رُجُوعِي أُوفِيكَ. ٣٥ 35
३५दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’
فَأَيَّ هَؤُلَاءِ ٱلثَّلَاثَةِ تَرَى صَارَ قَرِيبًا لِلَّذِي وَقَعَ بَيْنَ ٱللُّصُوصِ؟». ٣٦ 36
३६अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?”
فَقَالَ: «ٱلَّذِي صَنَعَ مَعَهُ ٱلرَّحْمَةَ». فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «ٱذْهَبْ أَنْتَ أَيْضًا وَٱصْنَعْ هَكَذَا». ٣٧ 37
३७उसने कहा, “वही जिसने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”
وَفِيمَا هُمْ سَائِرُونَ دَخَلَ قَرْيَةً، فَقَبِلَتْهُ ٱمْرَأَةٌ ٱسْمُهَا مَرْثَا فِي بَيْتِهَا. ٣٨ 38
३८फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में स्वागत किया।
وَكَانَتْ لِهَذِهِ أُخْتٌ تُدْعَى مَرْيَمَ، ٱلَّتِي جَلَسَتْ عِنْدَ قَدَمَيْ يَسُوعَ وَكَانَتْ تَسْمَعُ كَلَامَهُ. ٣٩ 39
३९और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।
وَأَمَّا مَرْثَا فَكَانَتْ مُرْتَبِكَةً فِي خِدْمَةٍ كَثِيرَةٍ. فَوَقَفَتْ وَقَالَتْ: «يَارَبُّ، أَمَا تُبَالِي بِأَنَّ أُخْتِي قَدْ تَرَكَتْنِي أَخْدُمُ وَحْدِي؟ فَقُلْ لَهَا أَنْ تُعِينَنِي!». ٤٠ 40
४०परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।”
فَأَجَابَ يَسُوعُ وَقَالَ لَها: «مَرْثَا، مَرْثَا، أَنْتِ تَهْتَمِّينَ وَتَضْطَرِبِينَ لِأَجْلِ أُمُورٍ كَثِيرَةٍ، ٤١ 41
४१प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है।
وَلَكِنَّ ٱلْحَاجَةَ إِلَى وَاحِدٍ. فَٱخْتَارَتْ مَرْيَمُ ٱلنَّصِيبَ ٱلصَّالِحَ ٱلَّذِي لَنْ يُنْزَعَ مِنْهَا». ٤٢ 42
४२परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।”

< لُوقا 10 >