< مَرَاثِي إِرْمِيَا 5 >

اُذْكُرْ يَارَبُّ مَاذَا صَارَ لَنَا. أَشْرِفْ وَٱنْظُرْ إِلَى عَارِنَا. ١ 1
ऐ ख़ुदावन्द, जो कुछ हम पर गुज़रा उसे याद कर; नज़र कर और हमारी रुस्वाई को देख।
قَدْ صَارَ مِيرَاثُنَا لِلْغُرَبَاءِ. بُيُوتُنَا لِلْأَجَانِبِ. ٢ 2
हमारी मीरास अजनबियों के हवाले की गई, हमारे घर बेगानों ने ले लिए।
صِرْنَا أَيْتَامًا بِلَا أَبٍ. أُمَّهَاتُنَا كَأَرَامِلَ. ٣ 3
हम यतीम हैं, हमारे बाप नहीं, हमारी माँए बेवाओं की तरह हैं।
شَرِبْنَا مَاءَنَا بِٱلْفِضَّةِ. حَطَبُنَا بِٱلثَّمَنِ يَأْتِي. ٤ 4
हम ने अपना पानी मोल लेकर पिया; अपनी लकड़ी भी हम ने दाम देकर ली।
عَلَى أَعْنَاقِنَا نُضْطَهَدُ. نَتْعَبُ وَلَا رَاحَةَ لَنَا. ٥ 5
हम को रगेदने वाले हमारे सिर पर हैं; हम थके हारे और बेआराम हैं।
أَعْطَيْنَا ٱلْيَدَ لِلْمِصْرِيِّينَ وَٱلْأَشُّورِيِّينَ لِنَشْبَعَ خُبْزًا. ٦ 6
हम ने मिस्रियों और असूरियों की इता'अत क़ुबूल की ताकि रोटी से सेर और आसूदा हों।
آبَاؤُنَا أَخْطَأُوا وَلَيْسُوا بِمَوْجُودِينَ، وَنَحْنُ نَحْمِلُ آثَامَهُمْ. ٧ 7
हमारे बाप दादा गुनाह करके चल बसे, और हम उनकी बदकिरदारी की सज़ा पा रहे हैं।
عَبِيدٌ حَكَمُوا عَلَيْنَا. لَيْسَ مَنْ يُخَلِّصُ مِنْ أَيْدِيهِمْ. ٨ 8
गु़लाम हम पर हुक्मरानी करते हैं; उनके हाथ से छुड़ाने वाला कोई नहीं।
بِأَنْفُسِنَا نَأْتِي بِخُبْزِنَا مِنْ جَرَى سَيْفِ ٱلْبَرِّيَّةِ. ٩ 9
सहरा नशीनों की तलवार के ज़रिए', हम जान पर खेलकर रोटी हासिल करते हैं।
جُلُودُنَا ٱسْوَدَّتْ كَتَنُّورٍ مِنْ جَرَى نِيرَانِ ٱلْجُوعِ. ١٠ 10
क़हत की झुलसाने वाली आग के ज़रिए', हमारा चमड़ा तनूर की तरह सियाह हो गया है।
أَذَلُّوا ٱلنِّسَاءَ فِي صِهْيَوْنَ، ٱلْعَذَارَى فِي مُدُنِ يَهُوذَا. ١١ 11
उन्होंने सिय्यून में 'औरतों को बेहुरमत किया और यहूदाह के शहरों में कुँवारी लड़कियों को।
ٱلرُّؤَسَاءُ بِأَيْدِيهِمْ يُعَلَّقُونَ، وَلَمْ تُعْتَبَرْ وُجُوهُ ٱلشُّيُوخِ. ١٢ 12
हाकिम को उनके हाथों से लटका दिया; बुज़ुगों की रू — दारी न की गई।
أَخَذُوا ٱلشُّبَّانَ لِلطَّحْنِ، وَٱلصِّبْيَانَ عَثَرُوا تَحْتَ ٱلْحَطَبِ. ١٣ 13
जवानों ने चक्की पीसी, और बच्चों ने गिरते पड़ते लकड़ियाँ ढोईं।
كَفَّتِ ٱلشُّيُوخُ عَنِ ٱلْبَابِ، وَٱلشُّبَّانُ عَنْ غِنَائِهِمْ. ١٤ 14
बुज़ुर्ग फाटकों पर दिखाई नहीं देते, जवानों की नग़मा परदाज़ी सुनाई नहीं देती।
مَضَى فَرَحُ قَلْبِنَا. صَارَ رَقْصُنَا نَوْحًا. ١٥ 15
हमारे दिलों से खुशी जाती रही; हमारा रक़्स मातम से बदल गया।
سَقَطَ إِكْلِيلُ رَأْسِنَا. وَيْلٌ لَنَا لِأَنَّنَا قَدْ أَخْطَأْنَا. ١٦ 16
ताज हमारे सिर पर से गिर पड़ा; हम पर अफ़सोस! कि हम ने गुनाह किया।
مِنْ أَجْلِ هَذَا حَزِنَ قَلْبُنَا. مِنْ أَجْلِ هَذِهِ أَظْلَمَتْ عُيُونُنَا. ١٧ 17
इसीलिए हमारे दिल बेताब हैं; इन्हीं बातों के ज़रिए' हमारी आँखें धुंदला गई,
مِنْ أَجْلِ جَبَلِ صِهْيَوْنَ ٱلْخَرِبِ. ٱلثَّعَالِبُ مَاشِيَةٌ فِيهِ. ١٨ 18
कोह — ए — सिय्यून की वीरानी के ज़रिए', उस पर गीदड़ फिरते हैं।
أَنْتَ يَارَبُّ إِلَى ٱلْأَبَدِ تَجْلِسُ. كُرْسِيُّكَ إِلَى دَوْرٍ فَدَوْرٍ. ١٩ 19
लेकिन तू, ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा तक क़ायम है; और तेरा तख़्त नसल — दर — नसल।
لِمَاذَا تَنْسَانَا إِلَى ٱلْأَبَدِ وَتَتْرُكُنَا طُولَ ٱلْأَيَّامِ؟ ٢٠ 20
फिर तू क्यूँ हम को हमेशा के लिए भूल जाता है, और हम को लम्बे वक़्त तक तर्क करता है?
اُرْدُدْنَا يَارَبُّ إِلَيْكَ فَنَرْتَدَّ. جَدِّدْ أَيَّامَنَا كَٱلْقَدِيمِ. ٢١ 21
ऐ ख़ुदावन्द, हम को अपनी तरफ़ फिरा, तो हम फिरेंगे; हमारे दिन बदल दे, जैसे पहले से थे।
هَلْ كُلَّ ٱلرَّفْضِ رَفَضْتَنَا؟ هَلْ غَضِبْتَ عَلَيْنَا جِدًّا؟ ٢٢ 22
क्या तू ने हमको बिल्कुल रद्द कर दिया है? क्या तू हमसे शख़्त नाराज़ है?

< مَرَاثِي إِرْمِيَا 5 >