< يُونَان 4 >

فَغَمَّ ذَلِكَ يُونَانَ غَمًّا شَدِيدًا، فَٱغْتَاظَ. ١ 1
लेकिन यूनाह इस से बहुत नाख़ुश और नाराज़ हुआ।
وَصَلَّى إِلَى ٱلرَّبِّ وَقَالَ: «آهِ يَارَبُّ، أَلَيْسَ هَذَا كَلَامِي إِذْ كُنْتُ بَعْدُ فِي أَرْضِي؟ لِذَلِكَ بَادَرْتُ إِلَى ٱلْهَرَبِ إِلَى تَرْشِيشَ، لِأَنِّي عَلِمْتُ أَنَّكَ إِلَهٌ رَؤُوفٌ وَرَحِيمٌ بَطِيءُ ٱلْغَضَبِ وَكَثِيرُ ٱلرَّحْمَةِ وَنَادِمٌ عَلَى ٱلشَّرِّ. ٢ 2
और उस ने ख़ुदावन्द से यूँ दुआ की कि ऐ ख़ुदावन्द, जब मैं अपने वतन ही में था और तरसीस को भागने वाला था, तो क्या मैने यही न कहा था? मैं जानता था कि तू रहीम — ओ — करीम ख़ुदा है जो क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है और अज़ाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है।
فَٱلْآنَ يَارَبُّ، خُذْ نَفْسِي مِنِّي، لِأَنَّ مَوْتِي خَيْرٌ مِنْ حَيَاتِي». ٣ 3
अब ऐ ख़ुदावन्द मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरी जान ले ले, क्यूँकि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «هَلِ ٱغْتَظْتَ بِٱلصَّوَابِ؟». ٤ 4
तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, क्या तू ऐसा नाराज़ है?
وَخَرَجَ يُونَانُ مِنَ ٱلْمَدِينَةِ وَجَلَسَ شَرْقِيَّ ٱلْمَدِينَةِ، وَصَنَعَ لِنَفْسِهِ هُنَاكَ مَظَلَّةً وَجَلَسَ تَحْتَهَا فِي ٱلظِّلِّ، حَتَّى يَرَى مَاذَا يَحْدُثُ فِي ٱلْمَدِينَةِ. ٥ 5
और यूनाह शहर से बाहर मशरिक़ की तरफ़ जा बैठा; और वहाँ अपने लिए एक छप्पर बना कर उसके साये में बैठ रहा, कि देखें शहर का क्या हाल होता है।
فَأَعَدَّ ٱلرَّبُّ ٱلإِلَهُ يَقْطِينَةً فَٱرْتَفَعَتْ فَوْقَ يُونَانَ لِتَكُونَ ظِلًّا عَلَى رَأْسِهِ، لِكَيْ يُخَلِّصَهُ مِنْ غَمِّهِ. فَفَرِحَ يُونَانُ مِنْ أَجْلِ ٱلْيَقْطِينَةِ فَرَحًا عَظِيمًا. ٦ 6
तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कद्दू की बेल उगाई, और उसे यूनाह के ऊपर फैलाया कि उसके सर पर साया हो और वह तकलीफ़ से बचे और यूनाह उस बेल की वजह से निहायत ख़ुश हुआ।
ثُمَّ أَعَدَّ ٱللهُ دُودَةً عِنْدَ طُلُوعِ ٱلْفَجْرِ في ٱلْغَدِ، فَضَرَبَتِ ٱلْيَقْطِينَةَ فَيَبِسَتْ. ٧ 7
लेकिन दूसरे दिन सुबह के वक़्त ख़ुदा ने एक कीड़ा भेजा, जिस ने उस बेल को काट डाला और वह सूख़ गई।
وَحَدَثَ عِنْدَ طُلُوعِ ٱلشَّمْسِ أَنَّ ٱللهَ أَعَدَّ رِيحًا شَرْقِيَّةً حَارَّةً، فَضَرَبَتِ ٱلشَّمْسُ عَلَى رَأْسِ يُونَانَ فَذَبُلَ. فَطَلَبَ لِنَفْسِهِ ٱلْمَوْتَ، وَقَالَ: «مَوْتِي خَيْرٌ مِنْ حَيَاتِي». ٨ 8
और जब आफ़ताब बलन्द हुआ, तो ख़ुदा ने पूरब से लू चलाई और आफ़ताब कि गर्मी ने यूनाह के सर में असर किया और वह बेताब हो गया और मौत का आरज़ूमन्द होकर कहने लगा कि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है।
فَقَالَ ٱللهُ لِيُونَانَ: «هَلِ ٱغْتَظْتَ بِٱلصَّوَابِ مِنْ أَجْلِ ٱلْيَقْطِينَةِ؟» فَقَالَ: «ٱغْتَظْتُ بِٱلصَّوَابِ حَتَّى ٱلْمَوْتِ». ٩ 9
और ख़ुदा ने यूनाह से फ़रमाया, “क्या तू इस बेल की वजह से ऐसा नाराज़ है?” उस ने कहा, “मै यहाँ तक नाराज़ हूँ कि मरना चाहता हूँ।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «أَنْتَ شَفِقْتَ عَلَى ٱلْيَقْطِينَةِ ٱلَّتِي لَمْ تَتْعَبْ فِيهَا وَلَا رَبَّيْتَهَا، ٱلَّتِي بِنْتَ لَيْلَةٍ كَانَتْ وَبِنْتَ لَيْلَةٍ هَلَكَتْ. ١٠ 10
तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि तुझे इस बेल का इतना ख़याल है, जिसके लिए तूने न कुछ मेहनत की और न उसे उगाया। जो एक ही रात में उगी और एक ही रात में सूख गई।
أَفَلَا أَشْفَقُ أَنَا عَلَى نِينَوَى ٱلْمَدِينَةِ ٱلْعَظِيمَةِ ٱلَّتِي يُوجَدُ فِيهَا أَكْثَرُ مِنِ ٱثْنَتَيْ عَشَرَةَ رِبْوَةً مِنَ ٱلنَّاسِ ٱلَّذِينَ لَا يَعْرِفُونَ يَمِينَهُمْ مِنْ شِمَالِهِمْ، وَبَهَائِمُ كَثِيرَةٌ؟». ١١ 11
और क्या मुझे ज़रूरी न था कि मैं इतने बड़े शहर निनवा का ख़याल करूँ, जिस में एक लाख बीस हज़ार से ज़्यादा ऐसे हैं जो अपने दहने और बाई हाथ में फ़र्क़ नहीं कर सकते, और बे शुमार मवेशी है।

< يُونَان 4 >