< أَيُّوبَ 41 >

«أَتَصْطَادُ لَوِيَاثَانَ بِشِصٍّ، أَوْ تَضْغَطُ لِسَانَهُ بِحَبْلٍ؟ ١ 1
“फिर क्या तू लिव्यातान को बंसी के द्वारा खींच सकता है, या डोरी से उसका जबड़ा दबा सकता है?
أَتَضَعُ أَسَلَةً فِي خَطْمِهِ، أَمْ تَثْقُبُ فَكَّهُ بِخِزَامَةٍ؟ ٢ 2
क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता या उसका जबड़ा कील से बेध सकता है?
أَيُكْثِرُ ٱلتَّضَرُّعَاتِ إِلَيْكَ، أَمْ يَتَكَلَّمُ مَعَكَ بِٱللِّينِ؟ ٣ 3
क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा, या तुझ से मीठी बातें बोलेगा?
هَلْ يَقْطَعُ مَعَكَ عَهْدًا فَتَتَّخِذَهُ عَبْدًا مُؤَبَّدًا؟ ٤ 4
क्या वह तुझ से वाचा बाँधेगा कि वह सदा तेरा दास रहे?
أَتَلْعَبُ مَعَهُ كَٱلْعُصْفُورِ، أَوْ تَرْبِطُهُ لِأَجْلِ فَتَيَاتِكَ؟ ٥ 5
क्या तू उससे ऐसे खेलेगा जैसे चिड़िया से, या अपनी लड़कियों का जी बहलाने को उसे बाँध रखेगा?
هَلْ تَحْفِرُ جَمَاعَةُ ٱلصَّيَّادِينَ لِأَجْلِهِ حُفْرَةً، أَوْ يَقْسِمُونَهُ بَيْنَ ٱلْكَنْعَانِيِّينَ؟ ٦ 6
क्या मछुए के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे? क्या वह उसे व्यापारियों में बाँट देंगे?
أَتَمْلَأُ جِلْدَهُ حِرَابًا وَرَأْسَهُ بِإِلَالِ ٱلسَّمَكِ؟ ٧ 7
क्या तू उसका चमड़ा भाले से, या उसका सिर मछुए के त्रिशूलों से बेध सकता है?
ضَعْ يَدَكَ عَلَيْهِ. لَا تَعُدْ تَذْكُرُ ٱلْقِتَالَ! ٨ 8
तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा, और भविष्य में कभी ऐसा न करेगा।
هُوَذَا ٱلرَّجَاءُ بِهِ كَاذِبٌ. أَلَا يُكَبُّ أَيْضًا بِرُؤْيَتِهِ؟ ٩ 9
देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है; उसके देखने ही से मन कच्चा पड़ जाता है।
لَيْسَ مِنْ شُجَاعٍ يُوقِظُهُ، فَمَنْ يَقِفُ إِذًا بِوَجْهِي؟ ١٠ 10
१०कोई ऐसा साहसी नहीं, जो लिव्यातान को भड़काए; फिर ऐसा कौन है जो मेरे सामने ठहर सके?
مَنْ تَقَدَّمَنِي فَأُوفِيَهُ؟ مَا تَحْتَ كُلِّ ٱلسَّمَاوَاتِ هُوَ لِي. ١١ 11
११किसने मुझे पहले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े! देख, जो कुछ सारी धरती पर है, सब मेरा है।
«لَا أَسْكُتُ عَنْ أَعْضَائِهِ، وَخَبَرِ قُوَّتِهِ وَبَهْجَةِ عُدَّتِهِ. ١٢ 12
१२“मैं लिव्यातान के अंगों के विषय, और उसके बड़े बल और उसकी बनावट की शोभा के विषय चुप न रहूँगा।
مَنْ يَكْشِفُ وَجْهَ لِبْسِهِ، وَمَنْ يَدْنُو مِنْ مَثْنَى لَجَمَتِهِ؟ ١٣ 13
१३उसके ऊपर के पहरावे को कौन उतार सकता है? उसके दाँतों की दोनों पाँतियों के अर्थात् जबड़ों के बीच कौन आएगा?
مَنْ يَفْتَحُ مِصْرَاعَيْ فَمِهِ؟ دَائِرَةُ أَسْنَانِهِ مُرْعِبَةٌ. ١٤ 14
१४उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है? उसके दाँत चारों ओर से डरावने हैं।
فَخْرُهُ مَجَانُّ مَانِعَةٌ مُحَكَّمَةٌ مَضْغُوطَةٌ بِخَاتِمٍ. ١٥ 15
१५उसके छिलकों की रेखाएँ घमण्ड का कारण हैं; वे मानो कड़ी छाप से बन्द किए हुए हैं।
ٱلْوَاحِدُ يَمَسُّ ٱلْآخَرَ، فَٱلرِّيحُ لَا تَدْخُلُ بَيْنَهَا. ١٦ 16
१६वे एक दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं, कि उनमें कुछ वायु भी नहीं पैठ सकती।
كُلٌّ مِنْهَا مُلْتَصِقٌ بِصَاحِبِهِ، مُتَلَكِّدَةً لَا تَنْفَصِلُ. ١٧ 17
१७वे आपस में मिले हुए और ऐसे सटे हुए हैं, कि अलग-अलग नहीं हो सकते।
عُطَاسُهُ يَبْعَثُ نُورًا، وَعَيْنَاهُ كَهُدُبِ ٱلصُّبْحِ. ١٨ 18
१८फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है, और उसकी आँखें भोर की पलकों के समान हैं।
مِنْ فِيهِ تَخْرُجُ مَصَابِيحُ. شَرَارُ نَارٍ تَتَطَايَرُ مِنْهُ. ١٩ 19
१९उसके मुँह से जलते हुए पलीते निकलते हैं, और आग की चिंगारियाँ छूटती हैं।
مِنْ مَنْخَرَيْهِ يَخْرُجُ دُخَانٌ كَأَنَّهُ مِنْ قِدْرٍ مَنْفُوخٍ أَوْ مِنْ مِرْجَلٍ. ٢٠ 20
२०उसके नथनों से ऐसा धुआँ निकलता है, जैसा खौलती हुई हाण्डी और जलते हुए नरकटों से।
نَفَسُهُ يُشْعِلُ جَمْرًا، وَلَهِيبٌ يَخْرُجُ مِنْ فِيهِ. ٢١ 21
२१उसकी साँस से कोयले सुलगते, और उसके मुँह से आग की लौ निकलती है।
فِي عُنُقِهِ تَبِيتُ ٱلْقُوَّةُ، وَأَمَامَهُ يَدُوسُ ٱلْهَوْلُ. ٢٢ 22
२२उसकी गर्दन में सामर्थ्य बनी रहती है, और उसके सामने डर नाचता रहता है।
مَطَاوِي لَحْمِهِ مُتَلَاصِقَةٌ مَسْبُوكَةٌ عَلَيْهِ لَا تَتَحَرَّكُ. ٢٣ 23
२३उसके माँस पर माँस चढ़ा हुआ है, और ऐसा आपस में सटा हुआ है जो हिल नहीं सकता।
قَلْبُهُ صُلْبٌ كَٱلْحَجَرِ، وَقَاسٍ كَٱلرَّحَى. ٢٤ 24
२४उसका हृदय पत्थर सा दृढ़ है, वरन् चक्की के निचले पाट के समान दृढ़ है।
عِنْدَ نُهُوضِهِ تَفْزَعُ ٱلْأَقْوِيَاءُ. مِنَ ٱلْمَخَاوِفِ يَتِيهُونَ. ٢٥ 25
२५जब वह उठने लगता है, तब सामर्थी भी डर जाते हैं, और डर के मारे उनकी सुध-बुध लोप हो जाती है।
سَيْفُ ٱلَّذِي يَلْحَقُهُ لَا يَقُومُ، وَلَا رُمْحٌ وَلَا مِزْرَاقٌ وَلَا دِرْعٌ. ٢٦ 26
२६यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उससे कुछ न बन पड़ेगा; और न भाले और न बर्छी और न तीर से।
يَحْسِبُ ٱلْحَدِيدَ كَٱلتِّبْنِ، وَٱلنُّحَاسَ كَٱلْعُودِ ٱلنَّخِرِ. ٢٧ 27
२७वह लोहे को पुआल सा, और पीतल को सड़ी लकड़ी सा जानता है।
لَا يَسْتَفِزُّهُ نُبْلُ ٱلْقَوْسِ. حِجَارَةُ ٱلْمِقْلَاعِ تَرْجِعُ عَنْهُ كَٱلْقَشِّ. ٢٨ 28
२८वह तीर से भगाया नहीं जाता, गोफन के पत्थर उसके लिये भूसे से ठहरते हैं।
يَحْسَبُ ٱلْمِقْمَعَةَ كَقَشٍّ، وَيَضْحَكُ عَلَى ٱهْتِزَازِ ٱلرُّمْحِ. ٢٩ 29
२९लाठियाँ भी भूसे के समान गिनी जाती हैं; वह बर्छी के चलने पर हँसता है।
تَحْتَهُ قُطَعُ خَزَفٍ حَادَّةٌ. يُمَدِّدُ نَوْرَجًا عَلَى ٱلطِّينِ. ٣٠ 30
३०उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं, कीचड़ पर मानो वह हेंगा फेरता है।
يَجْعَلُ ٱلْعُمْقَ يَغْلِي كَٱلْقِدْرِ، وَيَجْعَلُ ٱلْبَحْرَ كَقِدْرِ عِطَارَةٍ. ٣١ 31
३१वह गहरे जल को हण्डे के समान मथता है उसके कारण नील नदी मरहम की हाण्डी के समान होती है।
يُضِيءُ ٱلسَّبِيلُ وَرَاءَهُ فَيُحْسَبُ ٱللُّجُّ أَشْيَبَ. ٣٢ 32
३२वह अपने पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है। गहरा जल मानो श्वेत दिखाई देने लगता है।
لَيْسَ لَهُ فِي ٱلْأَرْضِ نَظِيرٌ. صُنِعَ لِعَدَمِ ٱلْخَوْفِ. ٣٣ 33
३३धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है, जो ऐसा निर्भय बनाया गया है।
يُشْرِفُ عَلَى كُلِّ مُتَعَالٍ. هُوَ مَلِكٌ عَلَى كُلِّ بَنِي ٱلْكِبْرِيَاءِ». ٣٤ 34
३४जो कुछ ऊँचा है, उसे वह ताकता ही रहता है, वह सब घमण्डियों के ऊपर राजा है।”

< أَيُّوبَ 41 >