< أَيُّوبَ 40 >

فَأَجَابَ ٱلرَّبُّ أَيُّوبَ فَقَالَ: ١ 1
तब याहवेह ने अय्योब से पूछा:
«هَلْ يُخَاصِمُ ٱلْقَدِيرَ مُوَبِّخُهُ، أَمِ ٱلْمُحَاجُّ ٱللهَ يُجَاوِبُهُ؟». ٢ 2
“क्या अब सर्वशक्तिमान का विरोधी अपनी पराजय स्वीकार करने के लिए तत्पर है अब वह उत्तर दे? जो परमेश्वर पर दोषारोपण करता है!”
فَأَجَابَ أَيُّوبُ ٱلرَّبَّ وَقَالَ: ٣ 3
तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:
«هَا أَنَا حَقِيرٌ، فَمَاذَا أُجَاوِبُكَ؟ وَضَعْتُ يَدِي عَلَى فَمِي. ٤ 4
“देखिए, मैं नगण्य बेकार व्यक्ति, मैं कौन होता हूं, जो आपको उत्तर दूं? मैं अपने मुख पर अपना हाथ रख लेता हूं.
مَرَّةً تَكَلَّمْتُ فَلَا أُجِيبُ، وَمَرَّتَيْنِ فَلَا أَزِيدُ». ٥ 5
एक बार मैं धृष्टता कर चुका हूं अब नहीं, संभवतः दो बार, किंतु अब मैं कुछ न कहूंगा.”
فَأَجَابَ ٱلرَّبُّ أَيُّوبَ مِنَ ٱلْعَاصِفَةِ فَقَالَ: ٦ 6
तब स्वयं याहवेह ने तूफान में से अय्योब को उत्तर दिया:
«ٱلْآنَ شُدَّ حَقْوَيْكَ كَرَجُلٍ. أَسْأَلُكَ فَتُعْلِمُنِي. ٧ 7
“एक योद्धा के समान कटिबद्ध हो जाओ; अब प्रश्न पूछने की बारी मेरी है तथा सूचना देने की तुम्हारी.
لَعَلَّكَ تُنَاقِضُ حُكْمِي، تَسْتَذْنِبُنِي لِكَيْ تَتَبَرَّرَ أَنْتَ؟ ٨ 8
“क्या तुम वास्तव में मेरे निर्णय को बदल दोगे? क्या तुम स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए मुझे दोषी प्रमाणित करोगे?
هَلْ لَكَ ذِرَاعٌ كَمَا لِلهِ، وَبِصَوْتٍ مِثْلِ صَوْتِهِ تُرْعِدُ؟ ٩ 9
क्या, तुम्हारी भुजा परमेश्वर की भुजा समान है? क्या, तू परमेश्वर जैसी गर्जना कर सकेगा?
تَزَيَّنِ ٱلْآنَ بِٱلْجَلَالِ وَٱلْعِزِّ، وَٱلْبَسِ ٱلْمَجْدَ وَٱلْبَهَاءَ. ١٠ 10
तो फिर नाम एवं सम्मान धारण कर लो, स्वयं को वैभव एवं ऐश्वर्य में लपेट लो.
فَرِّقْ فَيْضَ غَضَبِكَ، وَٱنْظُرْ كُلَّ مُتَعَظِّمٍ وَٱخْفِضْهُ. ١١ 11
अपने बढ़ते क्रोध को निर्बाध बह जाने दो, जिस किसी अहंकारी से तुम्हारा सामना हो, उसे झुकाते जाओ.
اُنْظُرْ إِلَى كُلِّ مُتَعَظِّمٍ وَذَلِّلْهُ، وَدُسِ ٱلْأَشْرَارَ فِي مَكَانِهِمِ. ١٢ 12
हर एक अहंकारी को विनीत बना दो, हर एक खड़े हुए दुराचारी को पांवों से कुचल दो.
ٱطْمِرْهُمْ فِي ٱلتُّرَابِ مَعًا، وَٱحْبِسْ وُجُوهَهُمْ فِي ٱلظَّلَامِ. ١٣ 13
तब उन सभी को भूमि में मिला दो; किसी गुप्‍त स्थान में उन्हें बांध दो.
فَأَنَا أَيْضًا أَحْمَدُكَ لِأَنَّ يَمِينَكَ تُخَلِّصُكَ. ١٤ 14
तब मैं सर्वप्रथम तुम्हारी क्षमता को स्वीकार करूंगा, कि तुम्हारा दायां हाथ तुम्हारी रक्षा के लिए पर्याप्‍त है.
«هُوَذَا بَهِيمُوثُ ٱلَّذِي صَنَعْتُهُ مَعَكَ يَأْكُلُ ٱلْعُشْبَ مِثْلَ ٱلْبَقَرِ. ١٥ 15
“अब इस सत्य पर विचार करो जैसे मैंने तुम्हें सृजा है, वैसे ही उस विशाल जंतु बहेमोथ को भी जो बैल समान घास चरता है.
هَا هِيَ قُوَّتُهُ فِي مَتْنَيْهِ، وَشِدَّتُهُ فِي عَضَلِ بَطْنِهِ. ١٦ 16
उसके शारीरिक बल पर विचार करो, उसकी मांसपेशियों की क्षमता पर विचार करो!
يَخْفِضُ ذَنَبَهُ كَأَرْزَةٍ. عُرُوقُ فَخِذَيْهِ مَضْفُورَةٌ. ١٧ 17
उसकी पूंछ देवदार वृक्ष के समान कठोर होती है; उसकी जांघ का स्‍नायु-तंत्र कैसा बुना गया हैं.
عِظَامُهُ أَنَابِيبُ نُحَاسٍ، جِرْمُهَا حَدِيدٌ مَمْطُولٌ. ١٨ 18
उसकी हड्डियां कांस्य की नलियां समान है, उसके अंग लोहे के छड़ के समान मजबूत हैं.
هُوَ أَوَّلُ أَعْمَالِ ٱللهِ. ٱلَّذِي صَنَعَهُ أَعْطَاهُ سَيْفَهُ. ١٩ 19
वह परमेश्वर की एक उत्कृष्ट रचना है, किंतु उसका रचयिता उसे तलवार से नियंत्रित कर लेता है.
لِأَنَّ ٱلْجِبَالَ تُخْرِجُ لَهُ مَرْعًى، وَجَمِيعَ وُحُوشِ ٱلْبَرِّ تَلْعَبُ هُنَاكَ. ٢٠ 20
पर्वत उसके लिए आहार लेकर आते हैं, इधर-उधर वन्य पशु फिरते रहते हैं.
تَحْتَ ٱلسِّدْرَاتِ يَضْطَجِعُ فِي سِتْرِ ٱلْقَصَبِ وَٱلْغَمِقَةِ. ٢١ 21
वह कमल के पौधे के नीचे लेट जाता है, जो कीचड़ तथा सरकंडों के मध्य में है.
تُظَلِّلُهُ ٱلسِّدْرَاتُ بِظِلِّهَا. يُحِيطُ بِهِ صَفْصَافُ ٱلسَّوَاقِي. ٢٢ 22
पौधे उसे छाया प्रदान करते हैं; तथा नदियों के मजनूं वृक्ष उसके आस-पास उसे घेरे रहते हैं.
هُوَذَا ٱلنَّهْرُ يَفِيضُ فَلَا يَفِرُّ هُوَ. يَطْمَئِنُّ وَلَوِ ٱنْدَفَقَ ٱلْأُرْدُنُّ فِي فَمِهِ. ٢٣ 23
यदि नदी में बाढ़ आ जाए, तो उसकी कोई हानि नहीं होती; वह निश्चिंत बना रहता है, यद्यपि यरदन का जल उसके मुख तक ऊंचा उठ जाता है.
هَلْ يُؤْخَذُ مِنْ أَمَامِهِ؟ هَلْ يُثْقَبُ أَنْفُهُ بِخِزَامَةٍ؟ ٢٤ 24
जब वह सावधान सजग रहता है तब किसमें साहस है कि उसे बांध ले, क्या कोई उसकी नाक में छेद कर सकता है?

< أَيُّوبَ 40 >