< أَيُّوبَ 27 >

وَعَادَ أَيُّوبُ يَنْطِقُ بِمَثَلِهِ فَقَالَ: ١ 1
अय्यूब ने और भी अपनी गूढ़ बात उठाई और कहा,
«حَيٌّ هُوَ ٱللهُ ٱلَّذِي نَزَعَ حَقِّي، وَٱلْقَدِيرُ ٱلَّذِي أَمَرَّ نَفْسِي، ٢ 2
“मैं परमेश्वर के जीवन की शपथ खाता हूँ जिसने मेरा न्याय बिगाड़ दिया, अर्थात् उस सर्वशक्तिमान के जीवन की जिसने मेरा प्राण कड़वा कर दिया।
إِنَّهُ مَا دَامَتْ نَسَمَتِي فِيَّ، وَنَفْخَةُ ٱللهِ فِي أَنْفِي، ٣ 3
क्योंकि अब तक मेरी साँस बराबर आती है, और परमेश्वर का आत्मा मेरे नथुनों में बना है।
لَنْ تَتَكَلَّمَ شَفَتَايَ إِثْمًا، وَلَا يَلْفِظَ لِسَانِي بِغِشٍّ. ٤ 4
मैं यह कहता हूँ कि मेरे मुँह से कोई कुटिल बात न निकलेगी, और न मैं कपट की बातें बोलूँगा।
حَاشَا لِي أَنْ أُبَرِّرَكُمْ! حَتَّى أُسْلِمَ ٱلرُّوحَ لَا أَعْزِلُ كَمَالِي عَنِّي. ٥ 5
परमेश्वर न करे कि मैं तुम लोगों को सच्चा ठहराऊँ, जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूँगा।
تَمَسَّكْتُ بِبِرِّي وَلَا أَرْخِيهِ. قَلْبِي لَا يُعَيِّرُ يَوْمًا مِنْ أَيَّامِي. ٦ 6
मैं अपनी धार्मिकता पकड़े हुए हूँ और उसको हाथ से जाने न दूँगा; क्योंकि मेरा मन जीवन भर मुझे दोषी नहीं ठहराएगा।
لِيَكُنْ عَدُوِّي كَٱلشِّرِّيرِ، وَمُعَانِدِي كَفَاعِلِ ٱلشَّرِّ. ٧ 7
“मेरा शत्रु दुष्टों के समान, और जो मेरे विरुद्ध उठता है वह कुटिलों के तुल्य ठहरे।
لِأَنَّهُ مَا هُوَ رَجَاءُ ٱلْفَاجِرِ عِنْدَمَا يَقْطَعُهُ، عِنْدَمَا يَسْلُبُ ٱللهُ نَفْسَهُ؟ ٨ 8
जब परमेश्वर भक्तिहीन मनुष्य का प्राण ले ले, तब यद्यपि उसने धन भी प्राप्त किया हो, तो भी उसकी क्या आशा रहेगी?
أَفَيَسْمَعُ ٱللهُ صُرَاخَهُ إِذَا جَاءَ عَلَيْهِ ضِيقٌ؟ ٩ 9
जब वह संकट में पड़े, तब क्या परमेश्वर उसकी दुहाई सुनेगा?
أَمْ يَتَلَذَّذُ بِٱلْقَدِيرِ؟ هَلْ يَدْعُو ٱللهَ فِي كُلِّ حِينٍ؟ ١٠ 10
१०क्या वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में सुख पा सकेगा, और हर समय परमेश्वर को पुकार सकेगा?
«إِنِّي أُعَلِّمُكُمْ بِيَدِ ٱللهِ. لَا أَكْتُمُ مَا هُوَ عِنْدَ ٱلْقَدِيرِ. ١١ 11
११मैं तुम्हें परमेश्वर के काम के विषय शिक्षा दूँगा, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बात मैं न छिपाऊँगा
هَا أَنْتُمْ كُلُّكُمْ قَدْ رَأَيْتُمْ، فَلِمَاذَا تَتَبَطَّلُونَ تَبَطُّلًا؟ قَائِلِينَ: ١٢ 12
१२देखो, तुम लोग सब के सब उसे स्वयं देख चुके हो, फिर तुम व्यर्थ विचार क्यों पकड़े रहते हो?”
هَذَا نَصِيبُ ٱلْإِنْسَانِ ٱلشِّرِّيرِ مِنْ عِنْدِ ٱللهِ، وَمِيرَاثُ ٱلْعُتَاةِ ٱلَّذِي يَنَالُونَهُ مِنَ ٱلْقَدِيرِ. ١٣ 13
१३“दुष्ट मनुष्य का भाग परमेश्वर की ओर से यह है, और उपद्रवियों का अंश जो वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के हाथ से पाते हैं, वह यह है, कि
إِنْ كَثُرَ بَنُوهُ فَلِلسَّيْفِ، وَذُرِّيَّتُهُ لَا تَشْبَعُ خُبْزًا. ١٤ 14
१४चाहे उसके बच्चे गिनती में बढ़ भी जाएँ, तो भी तलवार ही के लिये बढ़ेंगे, और उसकी सन्तान पेट भर रोटी न खाने पाएगी।
بَقِيَّتُهُ تُدْفَنُ بِٱلْمَوْتَانِ، وَأَرَامِلُهُ لَا تَبْكِي. ١٥ 15
१५उसके जो लोग बच जाएँ वे मरकर कब्र को पहुँचेंगे; और उसके यहाँ की विधवाएँ न रोएँगी।
إِنْ كَنَزَ فِضَّةً كَٱلتُّرَابِ، وَأَعَدَّ مَلَابِسَ كَٱلطِّينِ، ١٦ 16
१६चाहे वह रुपया धूलि के समान बटोर रखे और वस्त्र मिट्टी के किनकों के तुल्य अनगिनत तैयार कराए,
فَهُوَ يُعِدُّ وَٱلْبَارُّ يَلْبَسُهُ، وَٱلْبَرِئُ يَقْسِمُ ٱلْفِضَّةَ. ١٧ 17
१७वह उन्हें तैयार कराए तो सही, परन्तु धर्मी उन्हें पहन लेगा, और उसका रुपया निर्दोष लोग आपस में बाँटेंगे।
يَبْنِي بَيْتَهُ كَٱلْعُثِّ، أَوْ كَمَظَلَّةٍ صَنَعَهَا ٱلنَّاطُورُ. ١٨ 18
१८उसने अपना घर मकड़ी का सा बनाया, और खेत के रखवाले की झोपड़ी के समान बनाया।
يَضْطَجِعُ غَنِيًّا وَلَكِنَّهُ لَا يُضَمُّ. يَفْتَحُ عَيْنَيْهِ وَلَا يَكُونُ. ١٩ 19
१९वह धनी होकर लेट जाए परन्तु वह बना न रहेगा; आँख खोलते ही वह जाता रहेगा।
ٱلْأَهْوَالُ تُدْرِكُهُ كَٱلْمِيَاهِ. لَيْلًا تَخْتَطِفُهُ ٱلزَّوْبَعَةُ. ٢٠ 20
२०भय की धाराएँ उसे बहा ले जाएँगी, रात को बवण्डर उसको उड़ा ले जाएगा।
تَحْمِلُهُ ٱلشَّرْقِيَّةُ فَيَذْهَبُ، وَتَجْرُفُهُ مِنْ مَكَانِهِ. ٢١ 21
२१पूर्वी वायु उसे ऐसा उड़ा ले जाएगी, और वह जाता रहेगा और उसको उसके स्थान से उड़ा ले जाएगी।
يُلْقِي ٱللهُ عَلَيْهِ وَلَا يُشْفِقُ. مِنْ يَدِهِ يَهْرُبُ هَرَبًا. ٢٢ 22
२२क्योंकि परमेश्वर उस पर विपत्तियाँ बिना तरस खाए डाल देगा, उसके हाथ से वह भाग जाना चाहेगा।
يَصْفِقُونَ عَلَيْهِ بِأَيْدِيهِمْ، وَيَصْفِرُونَ عَلَيْهِ مِنْ مَكَانِهِ. ٢٣ 23
२३लोग उस पर ताली बजाएँगे, और उस पर ऐसी सुसकारियाँ भरेंगे कि वह अपने स्थान पर न रह सकेगा।

< أَيُّوبَ 27 >