< أَيُّوبَ 23 >

فَأَجَابَ أَيُّوبُ وَقَالَ: ١ 1
तब अय्यूब ने जवाब दिया,
«ٱلْيَوْمَ أَيْضًا شَكْوَايَ تَمَرُّدٌ. ضَرْبَتِي أَثْقَلُ مِنْ تَنَهُّدِي. ٢ 2
मेरी शिकायत आज भी तल्ख़ है; मेरी मार मेरे कराहने से भी भारी है।
مَنْ يُعْطِينِي أَنْ أَجِدَهُ، فَآتِيَ إِلَى كُرْسِيِّهِ، ٣ 3
काश कि मुझे मा'लूम होता कि वह मुझे कहाँ मिल सकता है ताकि मैं ऐन उसकी मसनद तक पहुँच जाता।
أُحْسِنُ ٱلدَّعْوَى أَمَامَهُ، وَأَمْلَأُ فَمِي حُجَجًا، ٤ 4
मैं अपना मु'आमिला उसके सामने पेश करता, और अपना मुँह दलीलों से भर लेता।
فَأَعْرِفُ ٱلْأَقْوَالَ ٱلَّتِي بِهَا يُجِيبُنِي، وَأَفْهَمُ مَا يَقُولُهُ لِي؟ ٥ 5
मैं उन लफ़्ज़ों को जान लेता जिनमें वह मुझे जवाब देता और जो कुछ वह मुझ से कहता मैं समझ लेता।
أَبِكَثْرَةِ قُوَّةٍ يُخَاصِمُنِي؟ كَّلَّا! وَلَكِنَّهُ كَانَ يَنْتَبِهُ إِلَيَّ. ٦ 6
क्या वह अपनी क़ुदरत की 'अज़मत में मुझ से लड़ता? नहीं, बल्कि वह मेरी तरफ़ तवज्जुह करता।
هُنَالِكَ كَانَ يُحَاجُّهُ ٱلْمُسْتَقِيمُ، وَكُنْتُ أَنْجُو إِلَى ٱلْأَبَدِ مِنْ قَاضِيَّ. ٧ 7
रास्तबाज़ वहाँ उसके साथ बहस कर सकते, यूँ मैं अपने मुन्सिफ़ के हाथ से हमेशा के लिए रिहाई पाता।
هَأَنَذَا أَذْهَبُ شَرْقًا فَلَيْسَ هُوَ هُنَاكَ، وَغَرْبًا فَلَا أَشْعُرُ بِهِ. ٨ 8
देखो, मैं आगे जाता हूँ लेकिन वह वहाँ नहीं, और पीछे हटता हूँ लेकिन मैं उसे देख नहीं सकता।
شِمَالًا حَيْثُ عَمَلُهُ فَلَا أَنْظُرُهُ. يَتَعَطَّفُ ٱلْجَنُوبَ فَلَا أَرَاهُ. ٩ 9
बाएँ हाथ फिरता हूँ जब वह काम करता है, लेकिन वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दहने हाथ की तरफ़ छिप जाता है, ऐसा कि मैं उसे देख नहीं सकता।
«لِأَنَّهُ يَعْرِفُ طَرِيقِي. إِذَا جَرَّبَنِي أَخْرُجُ كَٱلذَّهَبِ. ١٠ 10
लेकिन वह उस रास्ते को जिस पर मैं चलता हूँ जानता है; जब वह मुझे पालेगा तो मैं सोने के तरह निकल आऊँगा।
بِخَطَوَاتِهِ ٱسْتَمْسَكَتْ رِجْلِي. حَفِظْتُ طَرِيقَهُ وَلَمْ أَحِدْ. ١١ 11
मेरा पाँव उसके क़दमों से लगा रहा है। मैं उसके रास्ते पर चलता रहा हूँ और नाफ़रमान नहीं हुआ।
مِنْ وَصِيَّةِ شَفَتَيْهِ لَمْ أَبْرَحْ. أَكْثَرَ مِنْ فَرِيضَتِي ذَخَرْتُ كَلَامَ فِيهِ. ١٢ 12
मैं उसके लबों के हुक्म से हटा नहीं; मैंने उसके मुँह की बातों को अपनी ज़रूरी ख़ुराक से भी ज़्यादा ज़ख़ीरा किया।
أَمَّا هُوَ فَوَحْدَهُ، فَمَنْ يَرُدُّهُ؟ وَنَفْسُهُ تَشْتَهِي فَيَفْعَلُ. ١٣ 13
लेकिन वह एक ख़याल में रहता है, और कौन उसको फिरा सकता है? और जो कुछ उसका जी चाहता है करता है।
لِأَنَّهُ يُتَمِّمُ ٱلْمَفْرُوضَ عَلَيَّ، وَكَثِيرٌ مِثْلُ هَذِهِ عِنْدَهُ. ١٤ 14
क्यूँकि जो कुछ मेरे लिए मुक़र्रर है, वह पूरा करता है; और बहुत सी ऐसी बातें उसके हाथ में हैं।
مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ أَرْتَاعُ قُدَّامَهُ. أَتَأَمَّلُ فَأَرْتَعِبُ مِنْهُ. ١٥ 15
इसलिए मैं उसके सामने घबरा जाता हूँ, मैं जब सोचता हूँ तो उससे डर जाता हूँ।
لِأَنَّ ٱللهَ قَدْ أَضْعَفَ قَلْبِي، وَٱلْقَدِيرَ رَوَّعَنِي. ١٦ 16
क्यूँकि ख़ुदा ने मेरे दिल को बूदा कर डाला है, और क़ादिर — ए — मुतलक़ ने मुझ को घबरा दिया है।
لِأَنِّي لَمْ أُقْطَعْ قَبْلَ ٱلظَّلَامِ، وَمِنْ وَجْهِي لَمْ يُغَطِّ ٱلدُّجَى. ١٧ 17
इसलिए कि मैं इस ज़ुल्मत से पहले काट डाला न गया और उसने बड़ी तारीकी को मेरे सामने से न छिपाया।

< أَيُّوبَ 23 >