< أَيُّوبَ 20 >
فَأَجَابَ صُوفَرُ ٱلنَّعْمَاتِيُّ وَقَالَ: | ١ 1 |
तब नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:
«مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ هَوَاجِسِي تُجِيبُنِي، وَلِهَذَا هَيَجَانِي فِيَّ. | ٢ 2 |
“मेरे विचारों ने मुझे प्रत्युत्तर के लिए प्रेरित किया क्योंकि मेरा अंतर्मन उत्तेजित हो गया था.
تَعْيِيرَ تَوْبِيخِي أَسْمَعُ. وَرُوحٌ مِنْ فَهْمِي يُجِيبُنِي. | ٣ 3 |
मैंने उस झिड़की की ओर ध्यान दिया, जो मेरा अपमान कर रही थी इसका भाव समझकर ही मैंने प्रत्युत्तर का निश्चय किया है.
«أَمَا عَلِمْتَ هَذَا مِنَ ٱلْقَدِيمِ، مُنْذُ وُضِعَ ٱلْإِنْسَانُ عَلَى ٱلْأَرْضِ، | ٤ 4 |
“क्या आरंभ से तुम्हें इसकी वास्तविकता मालूम थी, उस अवसर से जब पृथ्वी पर मनुष्य की सृष्टि हुई थी,
أَنَّ هُتَافَ ٱلْأَشْرَارِ مِنْ قَرِيبٍ، وَفَرَحَ ٱلْفَاجِرِ إِلَى لَحْظَةٍ! | ٥ 5 |
अल्पकालिक ही होता है, दुर्वृत्त का उल्लास तथा क्षणिक होता है पापिष्ठ का आनंद.
وَلَوْ بَلَغَ ٱلسَّمَاوَاتِ طُولُهُ، وَمَسَّ رَأْسُهُ ٱلسَّحَابَ، | ٦ 6 |
भले ही उसका नाम आकाश तुल्य ऊंचा हो तथा उसका सिर मेघों तक जा पहुंचा हो,
كَجُلَّتِهِ إِلَى ٱلْأَبَدِ يَبِيدُ. ٱلَّذِينَ رَأَوْهُ يَقُولُونَ: أَيْنَ هُوَ؟ | ٧ 7 |
वह कूड़े समान पूर्णतः मिट जाता है; जिन्होंने उसे देखा था, वे पूछते रह जाएंगे, ‘कहां है वह?’
كَٱلْحُلْمِ يَطِيرُ فَلَا يُوجَدُ، وَيُطْرَدُ كَطَيْفِ ٱللَّيْلِ. | ٨ 8 |
वह तो स्वप्न समान टूट जाता है, तब उसे खोजने पर भी पाया नहीं जा सकता, रात्रि के दर्शन समान उसकी स्मृति मिट जाती है.
عَيْنٌ أَبْصَرَتْهُ لَا تَعُودُ تَرَاهُ، وَمَكَانُهُ لَنْ يَرَاهُ بَعْدُ. | ٩ 9 |
जिन नेत्रों ने उसे देखा था, उनके लिए अब वह अदृश्य है; न ही वह स्थान, जिसके सामने वह बना रहता था.
بَنُوهُ يَتَرَضَّوْنَ ٱلْفُقَرَاءَ، وَيَدَاهُ تَرُدَّانِ ثَرْوَتَهُ. | ١٠ 10 |
उसके पुत्रों की कृपा दीनों पर बनी रहती है तथा वह अपने हाथों से अपनी संपत्ति लौटाता है.
عِظَامُهُ مَلآنَةٌ شَبِيبَةً، وَمَعَهُ فِي ٱلتُّرَابِ تَضْطَجِعُ. | ١١ 11 |
उसकी हड्डियां उसके यौवन से भरी हैं किंतु यह शौर्य उसी के साथ धूल में जा मिलता है.
إِنْ حَلَا فِي فَمِهِ ٱلشَّرُّ، وَأَخْفَاهُ تَحْتَ لِسَانِهِ، | ١٢ 12 |
“यद्यपि उसके मुख को अनिष्ट का स्वाद लग चुका है और वह इसे अपनी जीभ के नीचे छिपाए रखता है,
أَشْفَقَ عَلَيْهِ وَلَمْ يَتْرُكْهُ، بَلْ حَبَسَهُ وَسَطَ حَنَكِهِ، | ١٣ 13 |
यद्यपि वह इसकी आकांक्षा करता रहता है, वह अपने मुख में इसे छिपाए रखता है,
فَخُبْزُهُ فِي أَمْعَائِهِ يَتَحَوَّلُ، مَرَارَةَ أَصْلَالٍ فِي بَطْنِهِ. | ١٤ 14 |
फिर भी उसका भोजन उसके पेट में उथल-पुथल करता है; वह वहां नाग के विष में परिणत हो जाता है.
قَدْ بَلَعَ ثَرْوَةً فَيَتَقَيَّأُهَا. ٱللهُ يَطْرُدُهَا مِنْ بَطْنِهِ. | ١٥ 15 |
उसने तो धन-संपत्ति निगल रखी है, किंतु उसे उगलना ही होगा; परमेश्वर ही उन्हें उसके पेट से बाहर निकाल देंगे.
سَمَّ ٱلْأَصْلَالِ يَرْضَعُ. يَقْتُلُهُ لِسَانُ ٱلْأَفْعَى. | ١٦ 16 |
वह तो नागों के विष को चूस लेता है; सर्प की जीभ उसका संहार कर देती है.
لَا يَرَى ٱلْجَدَاوِلَ أَنْهَارَ سَوَاقِيَ عَسَلٍ وَلَبَنٍ. | ١٧ 17 |
वह नदियों की ओर दृष्टि नहीं कर पाएगा, उन नदियों की ओर, जिनमें दूध एवं दही बह रहे हैं.
يَرُدُّ تَعَبَهُ وَلَا يَبْلَعُهُ. كَمَالٍ تَحْتَ رَجْعٍ. وَلَا يَفْرَحُ. | ١٨ 18 |
वह अपनी उपलब्धियों को लौटाने लगा है, इसका उपभोग करना उसके लिए संभव नहीं है; व्यापार में मिले लाभ का वह आनंद न ले सकेगा.
لِأَنَّهُ رَضَّضَ ٱلْمَسَاكِينَ، وَتَرَكَهُمْ، وَٱغْتَصَبَ بَيْتًا وَلَمْ يَبْنِهِ. | ١٩ 19 |
क्योंकि उसने कंगालों पर अत्याचार किए हैं तथा उनका त्याग कर दिया है; उसने वह घर हड़प लिया है, जिसका निर्माण उसने नहीं किया है.
لِأَنَّهُ لَمْ يَعْرِفْ فِي بَطْنِهِ قَنَاعَةً، لَا يَنْجُو بِمُشْتَهَاهُ. | ٢٠ 20 |
“इसलिये कि उसका मन विचलित था; वह अपनी अभिलाषित वस्तुओं को अपने अधिकार में न रख सका.
لَيْسَتْ مِنْ أَكْلِهِ بَقِيَّةٌ، لِأَجْلِ ذَلِكَ لَا يَدُومُ خَيْرُهُ. | ٢١ 21 |
खाने के लिये कुछ भी शेष न रह गया; तब अब उसकी समृद्धि अल्पकालीन ही रह गई है.
مَعَ مِلْءِ رَغْدِهِ يَتَضَايَقُ. تَأْتِي عَلَيْهِ يَدُ كُلِّ شَقِيٍّ. | ٢٢ 22 |
जब वह परिपूर्णता की स्थिति में होगा तब भी वह संतुष्ट न रह सकेगा; हर एक व्यक्ति, जो इस समय यातना की स्थिति में होगा, उसके विरुद्ध उठ खड़ा होगा.
يَكُونُ عِنْدَمَا يَمْلَأُ بَطْنَهُ، أَنَّ ٱللهَ يُرْسِلُ عَلَيْهِ حُمُوَّ غَضَبِهِ، وَيُمْطِرُهُ عَلَيْهِ عِنْدَ طَعَامِهِ. | ٢٣ 23 |
जब वह पेट भरके खा चुका होगा, परमेश्वर अपने प्रचंड कोप को उस पर उंडेल देंगे, तभी यह कोप की वृष्टि उस पर बरस पड़ेगी.
يَفِرُّ مِنْ سِلَاحِ حَدِيدٍ. تَخْرِقُهُ قَوْسُ نُحَاسٍ. | ٢٤ 24 |
संभव है कि वह लौह शस्त्र के प्रहार से बच निकले किंतु कांस्यबाण तो उसे बेध ही देगा.
جَذَبَهُ فَخَرَجَ مِنْ بَطْنِهِ، وَٱلْبَارِقُ مِنْ مَرَارَتِهِ مَرَقَ. عَلَيْهِ رُعُوبٌ. | ٢٥ 25 |
यह बाण उसकी देह में से खींचा जाएगा, और यह उसकी पीठ की ओर से बाहर आएगा, उसकी चमकदार नोक उसके पित्त से सनी हुई है. वह आतंक से भयभीत है.
كُلُّ ظُلْمَةٍ مُخْتَبَأَةٌ لِذَخَائِرِهِ. تَأْكُلُهُ نَارٌ لَمْ تُنْفَخْ. تَرْعَى ٱلْبَقِيَّةَ فِي خَيْمَتِهِ. | ٢٦ 26 |
घोर अंधकार उसकी संपत्ति की प्रतीक्षा में है. अग्नि ही उसे चट कर जाएगी. यह अग्नि उसके तंबू के बचे हुओं को भस्म कर जाएगी.
ٱلسَّمَاوَاتُ تُعْلِنُ إِثْمَهُ، وَٱلْأَرْضُ تَنْهَضُ عَلَيْهِ. | ٢٧ 27 |
स्वर्ग ही उसके पाप को उजागर करेगा; पृथ्वी भी उसके विरुद्ध खड़ी होगी.
تَزُولُ غَلَّةُ بَيْتِهِ. تُهْرَاقُ فِي يَوْمِ غَضَبِهِ. | ٢٨ 28 |
उसके वंश का विस्तार समाप्त हो जाएगा, परमेश्वर के कोप-दिवस पर उसकी संपत्ति नाश हो जाएगी.
هَذَا نَصِيبُ ٱلْإِنْسَانِ ٱلشِّرِّيرِ مِنْ عِنْدِ ٱللهِ، وَمِيرَاثُ أَمْرِهِ مِنَ ٱلْقَدِيرِ». | ٢٩ 29 |
यही होगा परमेश्वर द्वारा नियत दुर्वृत्त का भाग, हां, वह उत्तराधिकार, जो उसे याहवेह द्वारा दिया गया है.”