< أَيُّوبَ 10 >

«قَدْ كَرِهَتْ نَفْسِي حَيَاتِي. أُسَيِّبُ شَكْوَايَ. أَتَكَلَّمُ فِي مَرَارَةِ نَفْسِي ١ 1
“अपने जीवन से मुझे घृणा है; मैं खुलकर अपनी शिकायत प्रस्तुत करूंगा. मेरे शब्दों का मूल है मेरी आत्मा की कड़वाहट.
قَائِلًا لِلهِ: لَا تَسْتَذْنِبْنِي. فَهِّمْنِي لِمَاذَا تُخَاصِمُنِي! ٢ 2
परमेश्वर से मेरा आग्रह है: मुझ पर दोषारोपण न कीजिए, मुझ पर यह प्रकट कर दीजिए, कि मेरे साथ अमरता का मूल क्या है.
أَحَسَنٌ عِنْدَكَ أَنْ تَظْلِمَ، أَنْ تُرْذِلَ عَمَلَ يَدَيْكَ، وَتُشْرِقَ عَلَى مَشُورَةِ ٱلْأَشْرَارِ؟ ٣ 3
क्या आपके लिए यह उपयुक्त है कि आप अत्याचार करें, कि आप अपनी ही कृति को त्याग दें, तथा दुर्वृत्तों की योजना को समर्थन दें?
أَلَكَ عَيْنَا بَشَرٍ، أَمْ كَنَظَرِ ٱلْإِنْسَانِ تَنْظُرُ؟ ٤ 4
क्या आपके नेत्र मनुष्यों के नेत्र-समान हैं? क्या आपका देखना मनुष्यों-समान होता है?
أَأَيَّامُكَ كَأَيَّامِ ٱلْإِنْسَانِ، أَمْ سِنُوكَ كَأَيَّامِ ٱلرَّجُلِ، ٥ 5
क्या आपका जीवनकाल मनुष्यों-समान है, अथवा आपके जीवन के वर्ष मनुष्यों-समान हैं,
حَتَّى تَبْحَثَ عَنْ إِثْمِي وَتُفَتِّشَ عَلَى خَطِيَّتِي؟ ٦ 6
कि आप मुझमें दोष खोज रहे हैं, कि आप मेरे पाप की छानबीन कर रहे हैं?
فِي عِلْمِكَ أَنِّي لَسْتُ مُذْنِبًا، وَلَا مُنْقِذَ مِنْ يَدِكَ. ٧ 7
आपके ज्ञान के अनुसार सत्य यही है मैं दोषी नहीं हूं, फिर भी आपकी ओर से मेरे लिए कोई भी मुक्ति नहीं है.
«يَدَاكَ كَوَّنَتَانِي وَصَنَعَتَانِي كُلِّي جَمِيعًا، أَفَتَبْتَلِعُنِي؟ ٨ 8
“मेरी संपूर्ण संरचना आपकी ही कृति है, क्या आप मुझे नष्ट कर देंगे?
اُذْكُرْ أَنَّكَ جَبَلْتَنِي كَٱلطِّينِ، أَفَتُعِيدُنِي إِلَى ٱلتُّرَابِ؟ ٩ 9
स्मरण कीजिए, मेरी रचना आपने मिट्टी से की है. क्या आप फिर मुझे मिट्टी में शामिल कर देंगे?
أَلَمْ تَصُبَّنِي كَٱللَّبَنِ، وَخَثَّرْتَنِي كَٱلْجُبْنِ؟ ١٠ 10
आपने क्या मुझे दूध के समान नहीं उंडेला तथा दही-समान नहीं जमा दिया था?
كَسَوْتَنِي جِلْدًا وَلَحْمًا، فَنَسَجْتَنِي بِعِظَامٍ وَعَصَبٍ. ١١ 11
क्या आपने मुझे मांस तथा खाल का आवरण नहीं पहनाया तथा मुझे हड्डियों तथा मांसपेशियों से बुना था?
مَنَحْتَنِي حَيَاةً وَرَحْمَةً، وَحَفِظَتْ عِنَايَتُكَ رُوحِي. ١٢ 12
आपने मुझे जीवन एवं करुणा-प्रेम का अनुदान दिया तथा आपकी कृपा में मेरी आत्मा सुरक्षित रही है.
لَكِنَّكَ كَتَمْتَ هَذِهِ فِي قَلْبِكَ. عَلِمْتُ أَنَّ هَذَا عِنْدَكَ: ١٣ 13
“फिर भी ये सत्य आपने अपने हृदय में गोपनीय रख लिए, मुझे यह मालूम है कि यह आप में सुरक्षित है:
إِنْ أَخْطَأْتُ تُلَاحِظُنِي وَلَا تُبْرِئُنِي مِنْ إِثْمِي. ١٤ 14
यदि मैं कोई पाप कर बैठूं तो आपका ध्यान मेरी ओर जाएगा. तब आप मुझे निर्दोष न छोड़ेंगे.
إِنْ أَذْنَبْتُ فَوَيْلٌ لِي، وَإِنْ تَبَرَّرْتُ لَا أَرْفَعُ رَأْسِي. إِنِّي شَبْعَانُ هَوَانًا وَنَاظِرٌ مَذَلَّتِي. ١٥ 15
धिक्कार है मुझ पर—यदि मैं दोषी हूं! और यद्यपि मैं बेकसूर हूं, मुझमें सिर ऊंचा करने का साहस नहीं है. मैं तो लज्जा से भरा हुआ हूं, क्योंकि मुझे मेरी दयनीय दुर्दशा का बोध है.
وَإِنِ ٱرْتَفَعْتُ تَصْطَادُنِي كَأَسَدٍ، ثُمَّ تَعُودُ وَتَتَجَبَّرُ عَلَيَّ. ١٦ 16
यदि मैं अपना सिर ऊंचा कर लूं, तो आप मेरा पीछा ऐसे करेंगे, जैसे सिंह अपने आहार का पीछा करता है; एक बार फिर आप मुझ पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे.
تُجَدِّدُ شُهُودَكَ تُجَاهِي، وَتَزِيدُ غَضَبَكَ عَلَيَّ. نُوبٌ وَجَيْشٌ ضِدِّي. ١٧ 17
आप मेरे विरुद्ध नए-नए साक्षी लेकर आते हैं तथा मेरे विरुद्ध अपने कोप की वृद्धि करते हैं; मुझ पर तो कष्टों पर कष्ट चले आ रहे हैं.
«فَلِمَاذَا أَخْرَجْتَنِي مِنَ ٱلرَّحِمِ؟ كُنْتُ قَدْ أَسْلَمْتُ ٱلرُّوحَ وَلَمْ تَرَنِي عَيْنٌ! ١٨ 18
“तब आपने मुझे गर्भ से बाहर क्यों आने दिया? उत्तम तो यही होता कि वहीं मेरी मृत्यु हो जाती कि मुझ पर किसी की दृष्टि न पड़ती.
فَكُنْتُ كَأَنِّي لَمْ أَكُنْ، فَأُقَادَ مِنَ ٱلرَّحِمِ إِلَى ٱلْقَبْرِ. ١٩ 19
मुझे तो ऐसा हो जाना था, मानो मैं हुआ ही नहीं; या सीधे गर्भ से कब्र में!
أَلَيْسَتْ أَيَّامِي قَلِيلَةً؟ ٱتْرُكْ! كُفَّ عَنِّي فَأَتَبَلَّجَ قَلِيلًا، ٢٠ 20
क्या परमेश्वर मुझे मेरे इन थोड़े से दिनों में शांति से रहने न देंगे? आप अपना यह स्थान छोड़ दीजिए, कि मैं कुछ देर के लिए आनंदित रह सकूं.
قَبْلَ أَنْ أَذْهَبَ وَلَا أَعُودَ. إِلَى أَرْضِ ظُلْمَةٍ وَظِلِّ ٱلْمَوْتِ، ٢١ 21
इसके पूर्व कि मैं वहां के लिए उड़ जाऊं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता, उस अंधकार तथा मृत्यु के स्थान को,
أَرْضِ ظَلَامٍ مِثْلِ دُجَى ظِلِّ ٱلْمَوْتِ وَبِلَا تَرْتِيبٍ، وَإِشْرَاقُهَا كَٱلدُّجَى». ٢٢ 22
उस घोर अंधकार के स्थान को, जहां कुछ गड़बड़ी नहीं है, उस स्थान में अंधकार भी प्रकाश समान है.”

< أَيُّوبَ 10 >