< إِشَعْيَاءَ 55 >

«أَيُّهَا ٱلْعِطَاشُ جَمِيعًا هَلُمُّوا إِلَى ٱلْمِيَاهِ، وَٱلَّذِي لَيْسَ لَهُ فِضَّةٌ تَعَالَوْا ٱشْتَرُوا وَكُلُوا. هَلُمُّوا ٱشْتَرُوا بِلَا فِضَّةٍ وَبِلَا ثَمَنٍ خَمْرًا وَلَبَنًا. ١ 1
ऐ सब प्यासो, पानी के पास आओ, और वह भी जिसके पास पैसा न हो, आओ, मोल लो, और खाओ, हाँ आओ! शराब और दूध बेज़र और बेक़ीमत ख़रीदो।
لِمَاذَا تَزِنُونَ فِضَّةً لِغَيْرِ خُبْزٍ، وَتَعَبَكُمْ لِغَيْرِ شَبَعٍ؟ ٱسْتَمِعُوا لِي ٱسْتِمَاعًا وَكُلُوا ٱلطَّيِّبَ، وَلْتَتَلَذَّذْ بِٱلدَّسَمِ أَنْفُسُكُمْ. ٢ 2
तुम किस लिए अपना रुपया उस चीज़ के लिए जो रोटी नहीं, और अपनी मेहनत उस चीज़ के वास्ते जो आसूदा नहीं करती, ख़र्च करते हो? तुम ग़ौर से मेरी सुनो, और वह चीज़ जो अच्छी है खाओ; और तुम्हारी जान फ़रबही से लज़्ज़त उठाए।
أَمِيلُوا آذَانَكُمْ وَهَلُمُّوا إِلَيَّ. ٱسْمَعُوا فَتَحْيَا أَنْفُسُكُمْ. وَأَقْطَعَ لَكُمْ عَهْدًا أَبَدِيًّا، مَرَاحِمَ دَاوُدَ ٱلصَّادِقَةَ. ٣ 3
कान लगाओ और मेरे पास आओ, सुनो और तुम्हारी जान ज़िन्दा रहेगी; और मैं तुम को अबदी 'अहद या'नी दाऊद की सच्ची नेमतें बख़्शूँगा।
هُوَذَا قَدْ جَعَلْتُهُ شَارِعًا لِلشُّعُوبِ، رَئِيسًا وَمُوصِيًا لِلشُّعُوبِ. ٤ 4
देखो, मैंने उसे उम्मतों के लिए गवाह मुक़र्रर किया, बल्कि उम्मतों का पेशवा और फ़रमॉंरवा।
هَا أُمَّةٌ لَا تَعْرِفُهَا تَدْعُوهَا، وَأُمَّةٌ لَمْ تَعْرِفْكَ تَرْكُضُ إِلَيْكَ، مِنْ أَجْلِ ٱلرَّبِّ إِلَهِكَ وَقُدُّوسِ إِسْرَائِيلَ لِأَنَّهُ قَدْ مَجَّدَكَ». ٥ 5
देख, तू एक ऐसी क़ौम को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और एक ऐसी क़ौम जो तुझे नहीं जानती थी, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस की ख़ातिर तेरे पास दौड़ी आएगी; क्यूँकि उसने तुझे जलाल बख्शा है।
اُطْلُبُوا ٱلرَّبَّ مَا دَامَ يُوجَدُ. ٱدْعُوهُ وَهُوَ قَرِيبٌ. ٦ 6
जब तक ख़ुदावन्द मिल सकता है उसके तालिब हो, जब तक वह नज़दीक है उसे पुकारो।
لِيَتْرُكِ ٱلشِّرِّيرُ طَرِيقَهُ، وَرَجُلُ ٱلْإِثْمِ أَفْكَارَهُ، وَلْيَتُبْ إِلَى ٱلرَّبِّ فَيَرْحَمَهُ، وَإِلَى إِلَهِنَا لِأَنَّهُ يُكْثِرُ ٱلْغُفْرَانَ. ٧ 7
शरीर अपनी राह को तर्क करे और बदकिरदार अपने ख़यालों को, और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरे और वह उस पर रहम करेगा; और हमारे ख़ुदा की तरफ़ क्यूँकि वह कसरत से मु'आफ़ करेगा।
«لِأَنَّ أَفْكَارِي لَيْسَتْ أَفْكَارَكُمْ، وَلَا طُرُقُكُمْ طُرُقِي، يَقُولُ ٱلرَّبُّ. ٨ 8
ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरे ख़याल तुम्हारे ख़याल नहीं, और न तुम्हारी राहें मेरी राहें हैं।
لِأَنَّهُ كَمَا عَلَتِ ٱلسَّمَاوَاتُ عَنِ ٱلْأَرْضِ، هَكَذَا عَلَتْ طُرُقِي عَنْ طُرُقِكُمْ وَأَفْكَارِي عَنْ أَفْكَارِكُمْ. ٩ 9
क्यूँकि जिस क़दर आसमान ज़मीन से बलन्द है, उसी क़दर मेरी राहें तुम्हारी राहों से और मेरे ख़याल तुम्हारे ख़यालों से बलन्द हैं।
لِأَنَّهُ كَمَا يَنْزِلُ ٱلْمَطَرُ وَٱلثَّلْجُ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَلَا يَرْجِعَانِ إِلَى هُنَاكَ، بَلْ يُرْوِيَانِ ٱلْأَرْضَ وَيَجْعَلَانِهَا تَلِدُ وَتُنْبِتُ وَتُعْطِي زَرْعًا لِلزَّارِعِ وَخُبْزًا لِلْآكِلِ، ١٠ 10
“क्यूँकि जिस तरह आसमान से बारिश होती और बर्फ़ पड़ती है, और फिर वह वहाँ वापस नहीं जाती बल्कि ज़मीन को सेराब करती है, और उसकी शादाबी और रोईदगी का ज़रि'आ होती है ताकि बोनेवाले को बीज और खाने वाले को रोटी दे;
هَكَذَا تَكُونُ كَلِمَتِي ٱلَّتِي تَخْرُجُ مِنْ فَمِي. لَا تَرْجِعُ إِلَيَّ فَارِغَةً، بَلْ تَعْمَلُ مَا سُرِرْتُ بِهِ وَتَنْجَحُ فِي مَا أَرْسَلْتُهَا لَهُ. ١١ 11
उसी तरह मेरा कलाम जो मेरे मुँह से निकलता है होगा, वह बेअन्जाम मेरे पास वापस न आएगा, बल्कि जो कुछ मेरी ख़्वाहिश होगी वह उसे पूरा करेगा और उस काम में जिसके लिए मैंने उसे भेजा मो'अस्सिर होगा।
لِأَنَّكُمْ بِفَرَحٍ تَخْرُجُونَ وَبِسَلَامٍ تُحْضَرُونَ. ٱلْجِبَالُ وَٱلْآكَامُ تُشِيدُ أَمَامَكُمْ تَرَنُّمًا، وَكُلُّ شَجَرِ ٱلْحَقْلِ تُصَفِّقُ بِٱلْأَيَادِي. ١٢ 12
क्यूँकि तुम ख़ुशी से निकलोगे और सलामती के साथ रवाना किए जाओगे; पहाड़ और टीले तुम्हारे सामने नग़मापर्दाज़ होंगे, और मैदान के सब दरख़्त ताल देंगे
عِوَضًا عَنِ ٱلشَّوْكِ يَنْبُتُ سَرْوٌ، وَعِوَضًا عَنِ ٱلْقَرِيسِ يَطْلَعُ آسٌ. وَيَكُونُ لِلرَّبِّ ٱسْمًا، عَلَامَةً أَبَدِيَّةً لَا تَنْقَطِعُ». ١٣ 13
काँटों की जगह सनौबर निकलेगा, और झाड़ी के बदले उसका दरख़्त होगा; और ये ख़ुदावन्द के लिए नाम और हमेशा निशान होगा जो कभी' न मिटेगा।”

< إِشَعْيَاءَ 55 >