< إِشَعْيَاءَ 46 >

قَدْ جَثَا بِيلُ، ٱنْحَنَى نَبُو. صَارَتْ تَمَاثِيلُهُمَا عَلَى ٱلْحَيَوَانَاتِ وَٱلْبَهَائِمِ. مَحْمُولَاتُكُمْ مُحَمَّلَةٌ حِمْلًا لِلْمُعْيِي. ١ 1
बेल झुकता है नबू ख़म होता उनके बुत जानवरों और चौपायों पर लदे हैं; जो चीजें तुम उठाए फिरते थे, थके हुए चौपायों पर लदी हैं।
قَدِ ٱنْحَنَتْ. جَثَتْ مَعًا. لَمْ تَقْدِرْ أَنْ تُنَجِّيَ ٱلْحِمْلَ، وَهِيَ نَفْسُهَا قَدْ مَضَتْ فِي ٱلسَّبْيِ. ٢ 2
वह झुकते और एक साथ ख़म होते हैं; वह उस बोझ को बचा न सके, और वह आप ही ग़ुलामी में चले गए हैं।
«اِسْمَعُوا لِي يَا بَيْتَ يَعْقُوبَ وَكُلَّ بَقِيَّةِ بَيْتِ إِسْرَائِيلَ، ٱلْمُحَمَّلِينَ عَلَيَّ مِنَ ٱلْبَطْنِ، ٱلْمَحْمُولِينَ مِنَ ٱلرَّحِمِ. ٣ 3
ऐ या'क़ूब के घराने, और ऐ इस्राईल के घर के सब बाक़ी थके लोगो, जिनको बत्न ही से मैंने उठाया और जिनको रहम ही से मैंने गोद में लिया, मेरी सुनो
وَإِلَى ٱلشَّيْخُوخَةِ أَنَا هُوَ، وَإِلَى ٱلشَّيْبَةِ أَنَا أَحْمِلُ. قَدْ فَعَلْتُ، وَأَنَا أَرْفَعُ، وَأَنَا أَحْمِلُ وَأُنَجِّي. ٤ 4
मैं तुम्हारे बुढ़ापे तक वही हूँ और सिर सफ़ेद होने तक तुम को उठाए फिरूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और मैं ही उठाता रहूँगा, मैं ही लिए चलूँगा और रिहाई दूँगा।
بِمَنْ تُشَبِّهُونَنِي وَتُسَوُّونَنِي وَتُمَثِّلُونَنِي لِنَتَشَابَهَ؟. ٥ 5
तुम मुझे किससे तशबीह दोगे, और मुझे किसके बराबर ठहराओगे, और मुझे किसकी तरह कहोगे ताकि हम मुशाबह हों?
«اَلَّذِينَ يُفْرِغُونَ ٱلذَّهَبَ مِنَ ٱلْكِيسِ، وَٱلْفِضَّةَ بِٱلْمِيزَانِ يَزِنُونَ. يَسْتَأْجِرُونَ صَائِغًا لِيَصْنَعَهَا إِلَهًا، يَخُرُّونَ وَيَسْجُدُونَ! ٦ 6
जो थैली से बाइफ़रात सोना निकालते और चाँदी को तराज़ू में तोलते हैं, वह सुनार को उजरत पर लगाते हैं और वह उससे एक बुत ख़ुदा के नाम से बनाता है; फिर वह उसके सामने झुकते, बल्कि सिज्दा करते हैं।
يَرْفَعُونَهُ عَلَى ٱلْكَتِفِ. يَحْمِلُونَهُ وَيَضَعُونَهُ فِي مَكَانِهِ لِيَقِفَ. مِنْ مَوْضِعِهِ لَا يَبْرَحُ. يَزْعَقُ أَحَدٌ إِلَيْهِ فَلَا يُجِيبُ. مِنْ شِدَّتِهِ لَا يُخَلِّصُهُ. ٧ 7
वह उसे कँधे पर उठाते हैं, वह उसे ले जाकर उसकी जगह पर खड़ा करते हैं और वह खड़ा रहता है, वह अपनी जगह से सरकता नहीं; बल्कि अगर कोई उसे पुकारे, तो वह न जवाब दे सकता है और न उसे मुसीबत से छुड़ा सकता है।
«اُذْكُرُوا هَذَا وَكُونُوا رِجَالًا. رَدِّدُوهُ فِي قُلُوبِكُمْ أَيُّهَا ٱلْعُصَاةُ. ٨ 8
ऐ गुनाहगारो, इसको याद रख्खो और मर्द बनो, इस पर फिर सोचो।
اُذْكُرُوا ٱلْأَوَّلِيَّاتِ مُنْذُ ٱلْقَدِيمِ، لِأَنِّي أَنَا ٱللهُ وَلَيْسَ آخَرُ. ٱلْإِلَهُ وَلَيْسَ مِثْلِي. ٩ 9
पहली बातों को जो क़दीम से हैं, याद करो कि मैं ख़ुदा हूँ और कोई दूसरा नहीं मैं ख़ुदा हूँ और मुझ सा कोई नहीं।
مُخْبِرٌ مُنْذُ ٱلْبَدْءِ بِٱلْأَخِيرِ، وَمُنْذُ ٱلْقَدِيمِ بِمَا لَمْ يُفْعَلْ، قَائِلًا: رَأْيِي يَقُومُ وَأَفْعَلُ كُلَّ مَسَرَّتِي. ١٠ 10
जो इब्तिदा ही से अंजाम की ख़बर देता हूँ, और पहले दिनों से वह बातें जो अब तक वजूद में नहीं आई, बताता हूँ; और कहता हूँ, कि 'मेरी मसलहत क़ाईम रहेगी और मैं अपनी मर्ज़ी बिल्कुल पूरी करूँगा।
دَاعٍ مِنَ ٱلْمَشْرِقِ ٱلْكَاسِرَ، مِنْ أَرْضٍ بَعِيدَةٍ رَجُلَ مَشُورَتِي. قَدْ تَكَلَّمْتُ فَأُجْرِيهِ. قَضَيْتُ فَأَفْعَلُهُ. ١١ 11
जो पूरब से उक़ाब को या'नी उस शख़्स को जो मेरे इरादे को पूरा करेगा, दूर के मुल्क से बुलाता हूँ, मैंने ही कहा और मैं ही इसको वजूद में लाऊँगा; मैंने इसका इरादा किया और मैं ही इसे पूरा करूँगा।
«اِسْمَعُوا لِي يَا أَشِدَّاءَ ٱلْقُلُوبِ ٱلْبَعِيدِينَ عَنِ ٱلْبِرِّ. ١٢ 12
“ऐ सख़्त दिलो, जो सदाक़त से दूर हो मेरी सुनो,
قَدْ قَرَّبْتُ بِرِّي، لَا يَبْعُدُ. وَخَلَاصِي لَا يَتَأَخَّرُ. وَأَجْعَلُ فِي صِهْيَوْنَ خَلَاصًا، لِإِسْرَائِيلَ جَلَالِي. ١٣ 13
मैं अपनी सदाक़त को नज़दीक लाता हूँ, वह दूर नहीं होगी और मेरी नजात ताख़ीर न करेगी; और मैं सिय्यून को नजात और इस्राईल को अपना जलाल बख़्शूँगा।”

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