< إِشَعْيَاءَ 18 >

يَا أَرْضَ حَفِيفِ ٱلْأَجْنِحَةِ ٱلَّتِي فِي عَبْرِ أَنْهَارِ كُوشَ، ١ 1
आह! परों के फड़फड़ाने की सर ज़मीन जो कूश की नदियों के पार है।
ٱلْمُرْسِلَةَ رُسُلًا فِي ٱلْبَحْرِ وَفِي قَوَارِبَ مِنَ ٱلْبَرْدِيِّ عَلَى وَجْهِ ٱلْمِيَاهِ. ٱذْهَبُوا أَيُّهَا ٱلرُّسُلُ ٱلسَّرِيعُونَ إِلَى أُمَّةٍ طَوِيلَةٍ وَجَرْدَاءَ، إِلَى شَعْبٍ مَخُوفٍ مُنْذُ كَانَ فَصَاعِدًا، أُمَّةِ قُوَّةٍ وَشِدَّةٍ وَدَوْسٍ، قَدْ خَرَقَتِ ٱلْأَنْهَارُ أَرْضَهَا. ٢ 2
जो दरिया की राह से बुर्दी की क़श्तियों में सतह — ए — आब पर क़ासिद भेजती है! ऐ तेज़ रफ़्तार क़ासिदों, उस क़ौम के पास जाओ जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है; उस क़ौम के पास जो शुरू' से अब तक मुहीब है, ऐसी क़ौम जो ज़बरदस्त और फ़तहयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से मुन्क़सम है।
يَا جَمِيعَ سُكَّانِ ٱلْمَسْكُونَةِ وَقَاطِنِي ٱلْأَرْضِ، عِنْدَمَا تَرْتَفِعُ ٱلرَّايَةُ عَلَى ٱلْجِبَالِ تَنْظُرُونَ، وَعِنْدَمَا يُضْرَبُ بِٱلْبُوقِ تَسْمَعُونَ. ٣ 3
ऐ जहान के तमाम बाशिन्दो, और ऐ ज़मीन के रहनेवालो, जब पहाड़ों पर झण्डा खड़ा किया जाए तो देखो और जब नरसिंगा फूँका जाए तो सुनो।
لِأَنَّهُ هَكَذَا قَالَ لِيَ ٱلرَّبُّ: «إِنِّي أَهْدَأُ وَأَنْظُرُ فِي مَسْكَنِي كَٱلْحَرِّ ٱلصَّافِي عَلَى ٱلْبَقْلِ، كَغَيْمِ ٱلنَّدَى فِي حَرِّ ٱلْحَصَادِ». ٤ 4
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है: कि अपने घर में ताबिश — ए — आफ़ताब की तरह और मौसिम — ए — दिरौ की गर्मी में शबनम के बादल की तरह सुकून के साथ नज़र करूँगा।”
فَإِنَّهُ قَبْلَ ٱلْحَصَادِ، عِنْدَ تَمَامِ ٱلزَّهْرِ، وَعِنْدَمَا يَصِيرُ ٱلزَّهْرُ حِصْرِمًا نَضِيجًا، يَقْطَعُ ٱلْقُضْبَانَ بِٱلْمَنَاجِلِ، وَيَنْزِعُ ٱلْأَفْنَانَ وَيَطْرَحُهَا. ٥ 5
क्यूँकि फ़सल से पहले जब कली खिल चुके और फूल की जगह अँगूर पकने पर हों, तो वह टहनियों को हसुवे से काट डालेगा और फैली हुई शाख़ों को छाँट देगा।
تُتْرَكُ مَعًا لِجَوَارِحِ ٱلْجِبَالِ وَلِوُحُوشِ ٱلْأَرْضِ، فَتُصَيِّفُ عَلَيْهَا ٱلْجَوَارِحُ، وَتُشَتِّي عَلَيْهَا جَمِيعُ وُحُوشِ ٱلْأَرْضِ. ٦ 6
और वह पहाड़ के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों के लिए पड़ी रहेंगी; और शिकारी परिन्दे गर्मी के मौसम में उन पर बैठेगे, ज़मीन के सब दरिन्दे जाड़े के मौसम में उन पर लेटेंगे।
فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ تُقَدَّمُ هَدِيَّةٌ لِرَبِّ ٱلْجُنُودِ مِنْ شَعْبٍ طَوِيلٍ وَأَجْرَدَ، وَمِنْ شَعْبٍ مَخُوفٍ مُنْذُ كَانَ فَصَاعِدًا، مِنْ أُمَّةٍ ذَاتِ قُوَّةٍ وَشِدَّةٍ وَدَوْسٍ، قَدْ خَرَقَتِ ٱلْأَنْهَارُ أَرْضَهَا، إِلَى مَوْضِعِ ٱسْمِ رَبِّ ٱلْجُنُودِ، جَبَلِ صِهْيَوْنَ. ٧ 7
उस वक़्त रब्ब — उल — अफ़वाज के सामने उस क़ौम की तरफ़ से जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है, गिरोह की तरफ़ से जो शुरू' से आज तक मुहीब है, उस क़ौम से जो ज़बरदस्त और ज़फ़रयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से बँटी है एक हदिया रब्ब — उल — अफ़वाज के नाम के मकान पर जो सिय्यून पहाड़ में है पहुँचाया जाएगा।

< إِشَعْيَاءَ 18 >