< عِبرانِيّين 3 >

مِنْ ثَمَّ أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ ٱلْقِدِّيسُونَ، شُرَكَاءُ ٱلدَّعْوَةِ ٱلسَّمَاوِيَّةِ، لَاحِظُوا رَسُولَ ٱعْتِرَافِنَا وَرَئِيسَ كَهَنَتِهِ ٱلْمَسِيحَ يَسُوعَ، ١ 1
पस ऐ पाक भाइयों! तुम जो आसमानी बुलावे में शरीक हो, उस रसूल और सरदार काहिन ईसा पर ग़ौर करो जिसका हम करते हैं;
حَالَ كَوْنِهِ أَمِينًا لِلَّذِي أَقَامَهُ، كَمَا كَانَ مُوسَى أَيْضًا فِي كُلِّ بَيْتِهِ. ٢ 2
जो अपने मुक़र्रर करनेवाले के हक़ में दियानतदार था, जिस तरह मूसा ख़ुदा के सारे घर में था।
فَإِنَّ هَذَا قَدْ حُسِبَ أَهْلًا لِمَجْدٍ أَكْثَرَ مِنْ مُوسَى، بِمِقْدَارِ مَا لِبَانِي ٱلْبَيْتِ مِنْ كَرَامَةٍ أَكْثَرَ مِنَ ٱلْبَيْتِ. ٣ 3
क्यूँकि वो मूसा से इस क़दर ज़्यादा 'इज़्ज़त के लायक़ समझा गया, जिस क़दर घर का बनाने वाला घर से ज़्यादा इज़्ज़तदार होता है।
لِأَنَّ كُلَّ بَيْتٍ يَبْنِيهِ إِنْسَانٌ مَا، وَلَكِنَّ بَانِيَ ٱلْكُلِّ هُوَ ٱللهُ. ٤ 4
चुनाँचे हर एक घर का कोई न कोई बनाने वाला होता है, मगर जिसने सब चीज़ें बनाइं वो ख़ुदा है।
وَمُوسَى كَانَ أَمِينًا فِي كُلِّ بَيْتِهِ كَخَادِمٍ، شَهَادَةً لِلْعَتِيدِ أَنْ يُتَكَلَّمَ بِهِ. ٥ 5
मूसा तो उसके सारे घर में ख़ादिम की तरह दियानतदार रहा, ताकि आइन्दा बयान होनेवाली बातों की गवाही दे।
وَأَمَّا ٱلْمَسِيحُ فَكَٱبْنٍ عَلَى بَيْتِهِ. وَبَيْتُهُ نَحْنُ إِنْ تَمَسَّكْنَا بِثِقَةِ ٱلرَّجَاءِ وَٱفْتِخَارِهِ ثَابِتَةً إِلَى ٱلنِّهَايَةِ. ٦ 6
लेकिन मसीह बेटे की तरह उसके घर का मालिक है, और उसका घर हम हैं; बशर्ते कि अपनी दिलेरी और उम्मीद का फ़ख़्र आख़िर तक मज़बूती से क़ाईम रख्खें।
لِذَلِكَ كَمَا يَقُولُ ٱلرُّوحُ ٱلْقُدُسُ: «ٱلْيَوْمَ، إِنْ سَمِعْتُمْ صَوْتَهُ، ٧ 7
पस जिस तरह कि पाक रूह कलाम में फ़रमाता है, “अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो,
فَلَا تُقَسُّوا قُلُوبَكُمْ، كَمَا فِي ٱلْإِسْخَاطِ، يَوْمَ ٱلتَّجْرِبَةِ فِي ٱلْقَفْرِ ٨ 8
तो अपने दिलों को सख़्त न करो, जिस तरह ग़ुस्सा दिलाने के वक़्त आज़माइश के दिन जंगल में किया था।
حَيْثُ جَرَّبَنِي آبَاؤُكُمُ. ٱخْتَبَرُونِي وَأَبْصَرُوا أَعْمَالِي أَرْبَعِينَ سَنَةً. ٩ 9
जहाँ तुम्हारे बाप — दादा ने मुझे जाँचा और आज़माया और चालीस बरस तक मेरे काम देखे।
لِذَلِكَ مَقَتُّ ذَلِكَ ٱلْجِيلَ، وَقُلْتُ: إِنَّهُمْ دَائِمًا يَضِلُّونَ فِي قُلُوبِهِمْ، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يَعْرِفُوا سُبُلِي. ١٠ 10
इसलिए मैं उस पीढ़ी से नाराज़ हुआ, और कहा, 'इनके दिल हमेशा गुमराह होते रहते है, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।
حَتَّى أَقْسَمْتُ فِي غَضَبِي: لَنْ يَدْخُلُوا رَاحَتِي». ١١ 11
चुनाँचे मैंने अपने ग़ुस्से में क़सम खाई, 'ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे'।”
اُنْظُرُوا أَيُّهَا ٱلْإِخْوَةُ، أَنْ لَا يَكُونَ فِي أَحَدِكُمْ قَلْبٌ شِرِّيرٌ بِعَدَمِ إِيمَانٍ فِي ٱلِٱرْتِدَادِ عَنِ ٱللهِ ٱلْحَيِّ. ١٢ 12
ऐ भाइयों! ख़बरदार! तुम में से किसी का ऐसा बुरा और बे — ईमान दिल न हो, जो ज़िन्दा ख़ुदा से फिर जाए।
بَلْ عِظُوا أَنْفُسَكُمْ كُلَّ يَوْمٍ، مَا دَامَ ٱلْوَقْتُ يُدْعَى ٱلْيَوْمَ، لِكَيْ لَا يُقَسَّى أَحَدٌ مِنْكُمْ بِغُرُورِ ٱلْخَطِيَّةِ. ١٣ 13
बल्कि जिस रोज़ तक आज का दिन कहा जाता है, हर रोज़ आपस में नसीहत किया करो, ताकि तुम में से कोई गुनाह के धोखे में आकर सख़्त दिल न हो जाए।
لِأَنَّنَا قَدْ صِرْنَا شُرَكَاءَ ٱلْمَسِيحِ، إِنْ تَمَسَّكْنَا بِبَدَاءَةِ ٱلثِّقَةِ ثَابِتَةً إِلَى ٱلنِّهَايَةِ، ١٤ 14
क्यूँकि हम मसीह में शरीक हुए हैं, बशर्ते कि अपने शुरुआत के भरोसे पर आख़िर तक मज़बूती से क़ाईम रहें।
إِذْ قِيلَ: «ٱلْيَوْمَ، إِنْ سَمِعْتُمْ صَوْتَهُ، فَلَا تُقَسُّوا قُلُوبَكُمْ، كَمَا فِي ٱلْإِسْخَاطِ». ١٥ 15
चुनाँचे कलाम में लिखा है “अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख़्त न करो, जिस तरह कि ग़ुस्सा दिलाने के वक़्त किया था।”
فَمَنْ هُمُ ٱلَّذِينَ إِذْ سَمِعُوا أَسْخَطُوا؟ أَلَيْسَ جَمِيعُ ٱلَّذِينَ خَرَجُوا مِنْ مِصْرَ بِوَاسِطَةِ مُوسَى؟ ١٦ 16
किन लोगों ने आवाज़ सुन कर ग़ुस्सा दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के वसीले से मिस्र से निकले थे?
وَمَنْ مَقَتَ أَرْبَعِينَ سَنَةً؟ أَلَيْسَ ٱلَّذِينَ أَخْطَأُوا، ٱلَّذِينَ جُثَثُهُمْ سَقَطَتْ فِي ٱلْقَفْرِ؟ ١٧ 17
और वो किन लोगों से चालीस बरस तक नाराज़ रहा? क्या उनसे नहीं जिन्होंने गुनाह किया, और उनकी लाशें वीराने में पड़ी रहीं?
وَلِمَنْ أَقْسَمَ: «لَنْ يَدْخُلُوا رَاحَتَهُ»، إِلَّا لِلَّذِينَ لَمْ يُطِيعُوا؟ ١٨ 18
और किनके बारे में उसने क़सम खाई कि वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे, सिवा उनके जिन्होंने नाफ़रमानी की?
فَنَرَى أَنَّهُمْ لَمْ يَقْدِرُوا أَنْ يَدْخُلُوا لِعَدَمِ ٱلْإِيمَانِ. ١٩ 19
ग़रज़ हम देखते हैं कि वो बे — ईमानी की वजह से दाख़िल न हो सके।

< عِبرانِيّين 3 >