< عِبرانِيّين 1 >

ٱللهُ، بَعْدَ مَا كَلَّمَ ٱلْآبَاءَ بِٱلْأَنْبِيَاءِ قَدِيمًا، بِأَنْوَاعٍ وَطُرُقٍ كَثِيرَةٍ، ١ 1
पुराने ज़माने में ख़ुदा ने बाप — दादा से हिस्सा — ब — हिस्सा और तरह — ब — तरह नबियों के ज़रिए कलाम करके,
كَلَّمَنَا فِي هَذِهِ ٱلْأَيَّامِ ٱلْأَخِيرَةِ فِي ٱبْنِهِ، ٱلَّذِي جَعَلَهُ وَارِثًا لِكُلِّ شَيْءٍ، ٱلَّذِي بِهِ أَيْضًا عَمِلَ ٱلْعَالَمِينَ، (aiōn g165) ٢ 2
इस ज़माने के आख़िर में हम से बेटे के ज़रिए कलाम किया, जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले से उसने आलम भी पैदा किए। (aiōn g165)
ٱلَّذِي، وَهُوَ بَهَاءُ مَجْدِهِ، وَرَسْمُ جَوْهَرِهِ، وَحَامِلٌ كُلَّ ٱلْأَشْيَاءِ بِكَلِمَةِ قُدْرَتِهِ، بَعْدَ مَا صَنَعَ بِنَفْسِهِ تَطْهِيرًا لِخَطَايَانَا، جَلَسَ فِي يَمِينِ ٱلْعَظَمَةِ فِي ٱلْأَعَالِي، ٣ 3
वो उसके जलाल की रोशनी और उसकी ज़ात का नक़्श होकर सब चीज़ों को अपनी क़ुदरत के कलाम से संभालता है। वो गुनाहों को धोकर 'आलम — ए — बाला पर ख़ुदा की दहनी तरफ़ जा बैठा,
صَائِرًا أَعْظَمَ مِنَ ٱلْمَلَائِكَةِ بِمِقْدَارِ مَا وَرِثَ ٱسْمًا أَفْضَلَ مِنْهُمْ. ٤ 4
और फ़रिश्तों से इस क़दर बड़ा हो गया, जिस क़दर उसने मीरास में उनसे अफ़ज़ल नाम पाया।
لِأَنَّهُ لِمَنْ مِنَ ٱلْمَلَائِكَةِ قَالَ قَطُّ: «أَنْتَ ٱبْنِي، أَنَا ٱلْيَوْمَ وَلَدْتُكَ»؟ وَأَيْضًا: «أَنَا أَكُونُ لَهُ أَبًا، وَهُوَ يَكُونُ لِيَ ٱبْنًا»؟ ٥ 5
क्यूँकि फ़रिश्तों में से उसने कब किसी से कहा, “तू मेरा बेटा है, आज तू मुझ से पैदा हुआ?” और फिर ये, “मैं उसका बाप हूँगा?”
وَأَيْضًا مَتَى أَدْخَلَ ٱلْبِكْرَ إِلَى ٱلْعَالَمِ يَقُولُ: «وَلْتَسْجُدْ لَهُ كُلُّ مَلَائِكَةِ ٱللهِ». ٦ 6
और जब पहलौठे को दुनियाँ में फिर लाता है, तो कहता है, “ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उसे सिज्दा करें।”
وَعَنِ ٱلْمَلَائِكَةِ يَقُولُ: «ٱلصَّانِعُ مَلَائِكَتَهُ رِيَاحًا، وَخُدَّامَهُ لَهِيبَ نَارٍ». ٧ 7
और वो अपने फ़रिश्तों के बारे में ये कहता है, “वो अपने फ़रिश्तों को हवाएँ, और अपने ख़ादिमों को आग के शो'ले बनाता है।”
وَأَمَّا عَنْ ٱلِٱبْنِ: «كُرْسِيُّكَ يَا ٱللهُ، إِلَى دَهْرِ ٱلدُّهُورِ. قَضِيبُ ٱسْتِقَامَةٍ قَضِيبُ مُلْكِكَ. (aiōn g165) ٨ 8
मगर बेटे के बारे में कहता है, “ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त हमेशा से हमेशा तक रहेगा, और तेरी बादशाही की 'लाठी रास्तबाज़ी की 'लाठी है। (aiōn g165)
أَحْبَبْتَ ٱلْبِرَّ، وَأَبْغَضْتَ ٱلْإِثْمَ. مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ مَسَحَكَ ٱللهُ إِلَهُكَ بِزَيْتِ ٱلِٱبْتِهَاجِ أَكْثَرَ مِنْ شُرَكَائِكَ». ٩ 9
तू ने रास्तबाज़ी से मुहब्बत और बदकारी से 'अदावत रख्खी, इसी वजह से ख़ुदा, या'नी तेरे ख़ुदा ने ख़ुशी के तेल से तेरे साथियों की बनिस्बत तुझे ज़्यादा मसह किया।”
وَ«أَنْتَ يَارَبُّ فِي ٱلْبَدْءِ أَسَّسْتَ ٱلْأَرْضَ، وَٱلسَّمَاوَاتُ هِيَ عَمَلُ يَدَيْكَ. ١٠ 10
और ये कि, “ऐ ख़ुदावन्द! तू ने शुरू में ज़मीन की नीव डाली, और आसमान तेरे हाथ की कारीगरी है।
هِيَ تَبِيدُ وَلَكِنْ أَنْتَ تَبْقَى، وَكُلُّهَا كَثَوْبٍ تَبْلَى، ١١ 11
वो मिट जाएँगे, मगर तू बाक़ी रहेगा; और वो सब पोशाक की तरह पुराने हो जाएँगे।
وَكَرِدَاءٍ تَطْوِيهَا فَتَتَغَيَّرُ. وَلَكِنْ أَنْتَ أَنْتَ، وَسِنُوكَ لَنْ تَفْنَى». ١٢ 12
तू उन्हें चादर की तरह लपेटेगा, और वो पोशाक की तरह बदल जाएँगे: मगर तू वही रहेगा और तेरे साल ख़त्म न होंगे।”
ثُمَّ لِمَنْ مِنَ ٱلْمَلَائِكَةِ قَالَ قَطُّ: «ٱجْلِسْ عَنْ يَمِينِي حَتَّى أَضَعَ أَعْدَاءَكَ مَوْطِئًا لِقَدَمَيْكَ»؟ ١٣ 13
लेकिन उसने फ़रिश्तों में से किसी के बारे में कब कहा, “तू मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव तले की चौकी न कर दूँ?”
أَلَيْسَ جَمِيعُهُمْ أَرْوَاحًا خَادِمَةً مُرْسَلَةً لِلْخِدْمَةِ لِأَجْلِ ٱلْعَتِيدِينَ أَنْ يَرِثُوا ٱلْخَلَاصَ! ١٤ 14
क्या वो सब ख़िदमत गुज़ार रूहें नहीं, जो नजात की मीरास पानेवालों की ख़ातिर ख़िदमत को भेजी जाती हैं?

< عِبرانِيّين 1 >