< اَلتَّكْوِينُ 30 >

فَلَمَّا رَأَتْ رَاحِيلُ أَنَّهَا لَمْ تَلِدْ لِيَعْقُوبَ، غَارَتْ رَاحِيلُ مِنْ أُخْتِهَا، وَقَالَتْ لِيَعْقُوبَ: «هَبْ لِي بَنِينَ، وَإِلَا فَأَنَا أَمُوتُ!». ١ 1
और जब राख़िल ने देखा कि या'क़ूब से उसके औलाद नहीं होती तो राख़िल को अपनी बहन पर रश्क आया, तब वह या'क़ूब से कहने लगी, “मुझे भी औलाद दे नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”
فَحَمِيَ غَضَبُ يَعْقُوبَ عَلَى رَاحِيلَ وَقَالَ: «أَلَعَلِّي مَكَانَ ٱللهِ ٱلَّذِي مَنَعَ عَنْكِ ثَمْرَةَ ٱلْبَطْنِ؟». ٢ 2
तब या'क़ूब का क़हर राख़िल पर भड़का और उस ने कहा, “क्या मैं ख़ुदा की जगह हूँ जिसने तुझ को औलाद से महरूम रख्खा है?”
فَقَالَتْ: «هُوَذَا جَارِيَتِي بِلْهَةُ، ٱدْخُلْ عَلَيْهَا فَتَلِدَ عَلَى رُكْبَتَيَّ، وَأُرْزَقُ أَنَا أَيْضًا مِنْهَا بَنِينَ». ٣ 3
उसने कहा, “देख, मेरी लौंडी बिल्हाह हाज़िर है, उसके पास जा ताकि मेरे लिए उससे औलाद हो और वह औलाद मेरी ठहरे।”
فَأَعْطَتْهُ بِلْهَةَ جَارِيَتَهَا زَوْجَةً، فَدَخَلَ عَلَيْهَا يَعْقُوبُ، ٤ 4
और उसने अपनी लौंडी बिल्हाह को उसे दिया के उसकी बीवी बने, और या'क़ूब उसके पास गया।
فَحَبِلَتْ بِلْهَةُ وَوَلَدَتْ لِيَعْقُوبَ ٱبْنًا، ٥ 5
और बिल्हाह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके बेटा हुआ।
فَقَالَتْ رَاحِيلُ: «قَدْ قَضَى لِيَ ٱللهُ وَسَمِعَ أَيْضًا لِصَوْتِي وَأَعْطَانِيَ ٱبْنًا». لِذَلِكَ دَعَتِ ٱسْمَهُ «دَانًا». ٦ 6
तब राख़िल ने कहा कि ख़ुदा ने मेरा इन्साफ़ किया और मेरी फ़रियाद भी सुनी और मुझ को बेटा बख़्शा। इसलिए उसने उसका नाम दान रख्खा।
وَحَبِلَتْ أَيْضًا بِلْهَةُ جَارِيَةُ رَاحِيلَ وَوَلَدَتِ ٱبْنًا ثَانِيًا لِيَعْقُوبَ، ٧ 7
और राख़िल की लौंडी बिल्हाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके दूसरा बेटा हुआ।
فَقَالَتْ رَاحِيلُ: «مُصَارَعَاتِ ٱللهِ قَدْ صَارَعْتُ أُخْتِي وَغَلَبْتُ». فَدَعَتِ ٱسْمَهُ «نَفْتَالِي». ٨ 8
तब राख़िल ने कहा, “मैं अपनी बहन के साथ निहायत ज़ोर मार — मारकर कुश्ती लड़ी और मैंने फ़तह पाई।” इसलिए उसने उसका नाम नफ़्ताली रख्खा।
وَلَمَّا رَأَتْ لَيْئَةُ أَنَّهَا تَوَقَّفَتْ عَنِ ٱلْوِلَادَةِ، أَخَذَتْ زِلْفَةَ جَارِيَتَهَا وَأَعْطَتْهَا لِيَعْقُوبَ زَوْجَةً، ٩ 9
जब लियाह ने देखा कि वह जनने से रह गई तो उसने अपनी लौंडी ज़िलफ़ा को लेकर या'क़ूब को दिया कि उसकी बीवी बने।
فَوَلَدَتْ زِلْفَةُ جَارِيَةُ لَيْئَةَ لِيَعْقُوبَ ٱبْنًا. ١٠ 10
और लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के भी या'क़ूब से एक बेटा हुआ।
فَقَالَتْ لَيْئَةُ: «بِسَعْدٍ». فَدَعَتِ ٱسْمَهُ «جَادًا». ١١ 11
तब लियाह ने कहा, ज़हे — किस्मत! “तब उसने उसका नाम जद्द रख्खा।
وَوَلَدَتْ زِلْفَةُ جَارِيَةُ لَيْئَةَ ٱبْنًا ثَانِيًا لِيَعْقُوبَ، ١٢ 12
लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के या'क़ूब से फिर एक बेटा हुआ।
فَقَالَتْ لَيْئَةُ: «بِغِبْطَتِي، لِأَنَّهُ تُغَبِّطُنِي بَنَاتٌ». فَدَعَتِ ٱسْمَهُ «أَشِيرَ». ١٣ 13
तब लियाह ने कहा, मैं ख़ुश क़िस्मत हूँ: 'औरतें मुझे खुश क़िस्मत कहेंगी।” और उसने उसका नाम आशर रख्खा।
وَمَضَى رَأُوبَيْنُ فِي أَيَّامِ حَصَادِ ٱلْحِنْطَةِ فَوَجَدَ لُفَّاحًا فِي ٱلْحَقْلِ وَجَاءَ بِهِ إِلَى لَيْئَةَ أُمِّهِ. فَقَالَتْ رَاحِيلُ لِلَيْئَةَ: «أَعْطِينِي مِنْ لُفَّاحِ ٱبْنِكِ». ١٤ 14
और रूबिन गेहूँ काटने के मौसम में घर से निकला और उसे खेत में मदुम गियाह मिल गए, और वह अपनी माँ लियाह के पास ले आया। तब राख़िल ने लियाह से कहा किअपने बेटे के मदुम गियाह में से मुझे भी कुछ दे दे।
فَقَالَتْ لَهَا: «أَقَلِيلٌ أَنَّكِ أَخَذْتِ رَجُلِي فَتَأْخُذِينَ لُفَّاحَ ٱبْنِي أَيْضًا؟» فَقَالَتْ رَاحِيلُ: «إِذًا يَضْطَجِعُ مَعَكِ ٱللَّيْلَةَ عِوَضًا عَنْ لُفَّاحِ ٱبْنِكِ». ١٥ 15
उसने कहा, “क्या ये छोटी बात है कि तूने मेरे शौहर को ले लिया, और अब क्या मेरे बेटे के मदुम गियाह भी लेना चाहती है?” राख़िल ने कहा, “बस तो आज रात वह तेरे बेटे के मदुम गियाह की ख़ातिर तेरे साथ सोएगा।”
فَلَمَّا أَتَى يَعْقُوبُ مِنَ ٱلْحَقْلِ فِي ٱلْمَسَاءِ، خَرَجَتْ لَيْئَةُ لِمُلَاقَاتِهِ وَقَالَتْ: «إِلَيَّ تَجِيءُ لِأَنِّي قَدِ ٱسْتَأْجَرْتُكَ بِلُفَّاحِ ٱبْنِي». فَٱضْطَجَعَ مَعَهَا تِلْكَ ٱللَّيْلَةَ. ١٦ 16
जब या'क़ूब शाम को खेत से आ रहा था तो लियाह आगे से उससे मिलने को गई और कहने लगी कि तुझे मेरे पास आना होगा, क्यूँकि मैंने अपने बेटे के मदुम गियाह के बदले तुझे मज़दूरी पर लिया है। वह उस रात उसी के साथ सोया।
وَسَمِعَ ٱللهُ لِلَيْئَةَ فَحَبِلَتْ وَوَلَدَتْ لِيَعْقُوبَ ٱبْنًا خَامِسًا. ١٧ 17
और ख़ुदा ने लियाह की सुनी और वह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके पाँचवाँ बेटा हुआ।
فَقَالَتْ لَيْئَةُ: «قَدْ أَعْطَانِي ٱللهُ أُجْرَتِي، لِأَنِّي أَعْطَيْتُ جَارِيَتِي لِرَجُلِي». فَدَعَتِ ٱسْمَهُ «يَسَّاكَرَ». ١٨ 18
तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने मेरी मज़दूरी मुझे दी क्यूँकि मैंने अपने शौहर को अपनी लौंडी दी। और उसने उसका नाम इश्कार रख्खा।
وَحَبِلَتْ أَيْضًا لَيْئَةُ وَوَلَدَتِ ٱبْنًا سَادِسًا لِيَعْقُوبَ، ١٩ 19
और लियाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके छटा बेटा हुआ।
فَقَالَتْ لَيْئَةُ: «قَدْ وَهَبَنِي ٱللهُ هِبَةً حَسَنَةً. ٱلْآنَ يُسَاكِنُنِي رَجُلِي، لِأَنِّي وَلَدْتُ لَهُ سِتَّةَ بَنِينَ». فَدَعَتِ ٱسْمَهُ «زَبُولُونَ». ٢٠ 20
तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने अच्छा महर मुझे बख़्शा; अब मेरा शौहर मेरे साथ रहेगा क्यूँकि मेरे उससे छ: बेटे हो चुके हैं। इसलिए उसने उसका नाम ज़बूलून रख्खा।
ثُمَّ وَلَدَتِ ٱبْنَةً وَدَعَتِ ٱسْمَهَا «دِينَةَ». ٢١ 21
इसके बाद उसके एक बेटी हुई और उसने उसका नाम दीना रख्खा।
وَذَكَرَ ٱللهُ رَاحِيلَ، وَسَمِعَ لَهَا ٱللهُ وَفَتَحَ رَحِمَهَا، ٢٢ 22
और ख़ुदा ने राख़िल को याद किया, और ख़ुदा ने उसकी सुन कर उसके रहम को खोला।
فَحَبِلَتْ وَوَلَدَتِ ٱبْنًا فَقَالَتْ: «قَدْ نَزَعَ ٱللهُ عَارِي». ٢٣ 23
और वह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, तब उसने कहा कि ख़ुदा ने मुझ से रुस्वाई दूर की।
وَدَعَتِ ٱسْمَهُ «يُوسُفَ» قَائِلَةً: «يَزِيدُنِي ٱلرَّبُّ ٱبْنًا آخَرَ». ٢٤ 24
और उस ने उसका नाम यूसुफ़ यह कह कर रख्खा कि ख़ुदा वन्द मुझ को एक और बेटा बख़्शे।
وَحَدَثَ لَمَّا وَلَدَتْ رَاحِيلُ يُوسُفَ أَنَّ يَعْقُوبَ قَالَ لِلَابَانَ: «ٱصْرِفْنِي لِأَذْهَبَ إِلَى مَكَانِي وَإِلَى أَرْضِي. ٢٥ 25
और जब राख़िल से यूसुफ़ पैदा हुआ तो या'क़ूब ने लाबन से कहा, “मुझे रुख़्सत कर कि मैं अपने घर और अपने वतन को जाऊँ।
أَعْطِنِي نِسَائِي وَأَوْلَادِي ٱلَّذِينَ خَدَمْتُكَ بِهِمْ فَأَذْهَبَ، لِأَنَّكَ أَنْتَ تَعْلَمُ خِدْمَتِي ٱلَّتِي خَدَمْتُكَ». ٢٦ 26
मेरी बीवियाँ और मेरे बाल बच्चे जिनकी ख़ातिर मैं ने तेरी ख़िदमत की है मेरे हवाले कर और मुझे जाने दे, क्यूँकि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की है।”
فَقَالَ لَهُ لَابَانُ: «لَيْتَنِي أَجِدُ نِعْمَةً فِي عَيْنَيْكَ. قَدْ تَفَاءَلْتُ فَبَارَكَنِي ٱلرَّبُّ بِسَبَبِكَ». ٢٧ 27
तब लाबन ने उसे कहा, “अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो यहीं रह क्यूँकि मैं जान गया हूँ कि ख़ुदावन्द ने तेरी वजह से मुझ को बरकत बख़्शी है।”
وَقَالَ: «عَيِّنْ لِي أُجْرَتَكَ فَأُعْطِيَكَ». ٢٨ 28
और यह भी कहा कि मुझ से तू अपनी मज़दूरी ठहरा ले, और मैं तुझे दिया करूँगा।
فَقَالَ لَهُ: «أَنْتَ تَعْلَمُ مَاذَا خَدَمْتُكَ، وَمَاذَا صَارَتْ مَوَاشِيكَ مَعِي، ٢٩ 29
उसने उसे कहा कि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की और तेरे जानवर मेरे साथ कैसे रहे।
لِأَنَّ مَا كَانَ لَكَ قَبْلِي قَلِيلٌ فَقَدِ ٱتَّسَعَ إِلَى كَثِيرٍ، وَبَارَكَكَ ٱلرَّبُّ فِي أَثَرِي. وَٱلْآنَ مَتَى أَعْمَلُ أَنَا أَيْضًا لِبَيْتِي؟». ٣٠ 30
क्यूँकि मेरे आने से पहले यह थोड़े थे और अब बढ़ कर बहुत से हो गए हैं, और ख़ुदावन्द ने जहाँ जहाँ मेरे क़दम पड़े तुझे बरकत बख़्शी। अब मैं अपने घर का बन्दोबस्त कब करूँ?
فَقَالَ: «مَاذَا أُعْطِيكَ؟» فَقَالَ يَعْقُوبُ: «لَا تُعْطِينِي شَيْئًا. إِنْ صَنَعْتَ لِي هَذَا ٱلْأَمْرَ أَعُودُ أَرْعَى غَنَمَكَ وَأَحْفَظُهَا: ٣١ 31
उसने कहा, “तुझे मैं क्या दूँ?” या'क़ूब ने कहा, “तू मुझे कुछ न देना, लेकिन अगर तू मेरे लिए एक काम कर दे तो मैं तेरी भेड़ — बकरियों को फिर चराऊँगा और उनकी निगहबानी करूँगा।
أَجْتَازُ بَيْنَ غَنَمِكَ كُلِّهَا ٱلْيَوْمَ، وَٱعْزِلْ أَنْتَ مِنْهَا كُلَّ شَاةٍ رَقْطَاءَ وَبَلْقَاءَ، وَكُلَّ شَاةٍ سَوْدَاءَ بَيْنَ ٱلْخِرْفَانِ، وَبَلْقَاءَ وَرَقْطَاءَ بَيْنَ ٱلْمِعْزَى. فَيَكُونَ مِثْلُ ذَلِكَ أُجْرَتِي. ٣٢ 32
मैं आज तेरी सब भेड़ — बकरियों में चक्कर लगाऊँगा, और जितनी भेड़ें चितली और और काली हों और जितनी बकरियाँ और चितली हों उन सबको अलग एक तरफ़ कर दूँगा, इन्हीं को मैं अपनी मज़दूरी ठहराता हूँ।
وَيَشْهَدُ فِيَّ بِرِّي يَوْمَ غَدٍ إِذَا جِئْتَ مِنْ أَجْلِ أُجْرَتِي قُدَّامَكَ. كُلُّ مَا لَيْسَ أَرْقَطَ أَوْ أَبْلَقَ بَيْنَ ٱلْمِعْزَى وَأَسْوَدَ بَيْنَ ٱلْخِرْفَانِ فَهُوَ مَسْرُوقٌ عِنْدِي». ٣٣ 33
और आइन्दा जब कभी मेरी मज़दूरी का हिसाब तेरे सामने ही तो मेरी सच्चाई आप मेरी तरफ़ से इस तरह बोल उठेगी, कि जो बकरियाँ चितली और नहीं और जो भेड़े काली नहीं अगर वह मेरे पास हों तो चुराई हुई समझी जाएँगी।”
فَقَالَ لَابَانُ: «هُوَذَا لِيَكُنْ بِحَسَبِ كَلَامِكَ». ٣٤ 34
लाबन ने कहा, “मैं राज़ी हूँ, जो तू कहे वही सही।”
فَعَزَلَ فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ ٱلتُّيُوسَ ٱلْمُخَطَّطَةَ وَٱلْبَلْقَاءَ، وَكُلَّ ٱلْعِنَازِ ٱلرَّقْطَاءِ وَٱلْبَلْقَاءِ، كُلَّ مَا فِيهِ بَيَاضٌ وَكُلَّ أَسْوَدَ بَيْنَ ٱلْخِرْفَانِ، وَدَفَعَهَا إِلَى أَيْدِي بَنِيهِ. ٣٥ 35
और उसने उसी रोज़ धारीदार और बकरों की और सब चितली और बकरियों को जिनमें कुछ सफ़ेदी थी, और तमाम काली भेड़ों को अलग करके उनकी अपने बेटों के हवाले किया।
وَجَعَلَ مَسِيرَةَ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ بَيْنَهُ وَبَيْنَ يَعْقُوبَ، وَكَانَ يَعْقُوبُ يَرْعَى غَنَمَ لَابَانَ ٱلْبَاقِيَةَ. ٣٦ 36
और उसने अपने और या'क़ूब के बीच तीन दिन के सफ़र का फ़ासला ठहराया; और या'क़ूब लाबन के बाक़ी रेवड़ों को चराने लगा।
فَأَخَذَ يَعْقُوبُ لِنَفْسِهِ قُضْبَانًا خُضْرًا مِنْ لُبْنَى وَلَوْزٍ وَدُلْبٍ، وَقَشَّرَ فِيهَا خُطُوطًا بِيضًا، كَاشِطًا عَنِ ٱلْبَيَاضِ ٱلَّذِي عَلَى ٱلْقُضْبَانِ. ٣٧ 37
और या'क़ूब ने सफ़ेदा और बादाम, और चिनार की हरी हरी छड़ियाँ लीं उनको छील छीलकर इस तरह गन्डेदार बना लिया के उन छड़ियों की सफ़ेदी दिखाई देने लगी।
وَأَوْقَفَ ٱلْقُضْبَانَ ٱلَّتِي قَشَّرَهَا فِي ٱلْأَجْرَانِ فِي مَسَاقِي ٱلْمَاءِ حَيْثُ كَانَتِ ٱلْغَنَمُ تَجِيءُ لِتَشْرَبَ، تُجَاهَ ٱلْغَنَمِ، لِتَتَوَحَّمَ عِنْدَ مَجِيئِهَا لِتَشْرَبَ. ٣٨ 38
और उसने वह गन्डेदार छड़ियाँ भेड़ — बकरियों के सामने हौज़ों और नालियों में जहाँ वह पानी पीने आती थीं खड़ी कर दीं, और जब वह पानी पीने आई तब गाभिन हो गई।
فَتَوَحَّمَتِ ٱلْغَنَمُ عِنْدَ ٱلْقُضْبَانِ، وَوَلَدَتِ ٱلْغَنَمُ مُخَطَّطَاتٍ وَرُقْطًا وَبُلْقًا. ٣٩ 39
और उन छड़ियों के आगे गाभिन होने की वजह से उन्होने धारीदार, चितले और बच्चे दिए।
وَأَفْرَزَ يَعْقُوبُ ٱلْخِرْفَانَ وَجَعَلَ وُجُوهَ ٱلْغَنَمِ إِلَى ٱلْمُخَطَّطِ وَكُلِّ أَسْوَدَ بَيْنَ غَنَمِ لَابَانَ. وَجَعَلَ لَهُ قُطْعَانًا وَحْدَهُ وَلَمْ يَجْعَلْهَا مَعَ غَنَمِ لَابَانَ. ٤٠ 40
और या'क़ूब ने भेड़ बकरियों के उन बच्चों को अलग किया, और लाबन की भेड़ — बकरियों के मुँह धारीदार और काले बच्चों की तरफ़ फेर दिए और उसने अपने रेवड़ों को जुदा किया, और लाबन की भेड़ बकरियों में मिलने न दिया।
وَحَدَثَ كُلَّمَا تَوَحَّمَتِ ٱلْغَنَمُ ٱلْقَوِيَّةُ أَنَّ يَعْقُوبَ وَضَعَ ٱلْقُضْبَانَ أَمَامَ عُيُونِ ٱلْغَنَمِ فِي ٱلْأَجْرَانِ لِتَتَوَحَّمَ بَيْنَ ٱلْقُضْبَانِ. ٤١ 41
और जब मज़बूत भेड़ — बकरियाँ गाभिन होती थीं तो या'क़ूब छड़ियों को नालियों में उनकी आँखों के सामने रख देता था, ताकि वह उन छड़ियों के आगे गाभिन हों।
وَحِينَ ٱسْتَضْعَفَتِ ٱلْغَنَمُ لَمْ يَضَعْهَا، فَصَارَتِ ٱلضَّعِيفَةُ لِلَابَانَ وَٱلْقَوِيَّةُ لِيَعْقُوبَ. ٤٢ 42
लेकिन जब भेड़ बकरियाँ दुबली होतीं तो वह उनको वहाँ नहीं रखता था। इसलिए दुबली तो लाबन की रहीं और मज़बूत या'क़ूब की हो गई।
فَٱتَّسَعَ ٱلرَّجُلُ كَثِيرًا جِدًّا، وَكَانَ لَهُ غَنَمٌ كَثِيرٌ وَجَوَارٍ وَعَبِيدٌ وَجِمَالٌ وَحَمِيرٌ. ٤٣ 43
चुनाँचे वह निहायत बढ़ता गया और उसके पास बहुत से रेवड़ और लौंडिया और नौकर चाकर और ऊँट और गधे हो गये।

< اَلتَّكْوِينُ 30 >