< اَلتَّكْوِينُ 27 >

وَحَدَثَ لَمَّا شَاخَ إِسْحَاقُ وَكَلَّتْ عَيْنَاهُ عَنِ ٱلنَّظَرِ، أَنَّهُ دَعَا عِيسُوَ ٱبْنَهُ ٱلْأَكْبَرَ وَقَالَ لَهُ: «يَا ٱبْنِي». فَقَالَ لَهُ: «هَأَنَذَا». ١ 1
जब इस्हाक़ ज़ईफ़ हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुन्धला गई कि उसे दिखाई न देता था तो उसने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ को बुलाया और कहा, ऐ मेरे बेटे! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ।”
فَقَالَ: «إِنَّنِي قَدْ شِخْتُ وَلَسْتُ أَعْرِفُ يَوْمَ وَفَاتِي. ٢ 2
तब उसने कहा, देख! मैं तो ज़ईफ़ हो गया और मुझे अपनी मौत का दिन मा'लूम नहीं।
فَٱلْآنَ خُذْ عُدَّتَكَ: جُعْبَتَكَ وَقَوْسَكَ، وَٱخْرُجْ إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ وَتَصَيَّدْ لِي صَيْدًا، ٣ 3
इसलिए अब तू ज़रा अपना हथियार, अपना तरकश और अपनी कमान लेकर जंगल को निकल जा और मेरे लिए शिकार मार ला।
وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً كَمَا أُحِبُّ، وَأْتِنِي بِهَا لِآكُلَ حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي قَبْلَ أَنْ أَمُوتَ». ٤ 4
और मेरी हस्ब — ए पसन्द लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार करके मेरे आगे ले आ, ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले दिल से तुझे दुआ दूँ।
وَكَانَتْ رِفْقَةُ سَامِعَةً إِذْ تَكَلَّمَ إِسْحَاقُ مَعَ عِيسُو ٱبْنِهِ. فَذَهَبَ عِيسُو إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ كَيْ يَصْطَادَ صَيْدًا لِيَأْتِيَ بِهِ. ٥ 5
और जब इस्हाक़ अपने बेटे 'ऐसौ से बातें कर रहा था तो रिब्क़ा सुन रही थी, और 'ऐसौ जंगल को निकल गया कि शिकार मार कर लाए।
وَأَمَّا رِفْقَةُ فَكَلمتْ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا قَائِلةً: «إِنِّي قَدْ سَمِعْتُ أَبَاكَ يُكَلِّمُ عِيسُوَ أَخَاكَ قَائِلًا: ٦ 6
तब रिब्क़ा ने अपने बेटे या'क़ूब से कहा, कि देख, मैंने तेरे बाप को तेरे भाई 'ऐसौ से यह कहते सुना कि।
ٱئْتِنِي بِصَيْدٍ وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً لِآكُلَ وَأُبَارِكَكَ أَمَامَ ٱلرَّبِّ قَبْلَ وَفَاتِي. ٧ 7
'मेरे लिए शिकार मार कर लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार कर ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले ख़ुदावन्द के आगे तुझे दुआ दूँ।
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي فِي مَا أَنَا آمُرُكَ بِهِ: ٨ 8
इसलिए ऐ मेरे बेटे, इस हुक़्म के मुताबिक़ जो मैं तुझे देती हूँ मेरी बात को मान।
اِذْهَبْ إِلَى ٱلْغَنَمِ وَخُذْ لِي مِنْ هُنَاكَ جَدْيَيْنِ جَيِّدَيْنِ مِنَ ٱلْمِعْزَى، فَأَصْنَعَهُمَا أَطْعِمَةً لِأَبِيكَ كَمَا يُحِبُّ، ٩ 9
और जाकर रेवड़ में से बकरी के दो अच्छे — अच्छे बच्चे मुझे ला दे, और मैं उनको लेकर तेरे बाप के लिए उसकी हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार कर दूँगी।
فَتُحْضِرَهَا إِلَى أَبِيكَ لِيَأْكُلَ حَتَّى يُبَارِكَكَ قَبْلَ وَفَاتِهِ». ١٠ 10
और तू उसे अपने बाप के आगे ले जाना, ताकि वह खाए और अपने मरने से पहले तुझे दुआ दे।
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِرِفْقَةَ أُمِّهِ: «هُوَذَا عِيسُو أَخِي رَجُلٌ أَشْعَرُ وَأَنَا رَجُلٌ أَمْلَسُ. ١١ 11
तब या'क़ूब ने अपनी माँ रिब्क़ा से कहा, “देख, मेरे भाई 'ऐसौ के जिस्म पर बाल हैं और मेरा जिस्म साफ़ है।
رُبَّمَا يَجُسُّنِي أَبِي فَأَكُونُ فِي عَيْنَيْهِ كَمُتَهَاوِنٍ، وَأَجْلِبُ عَلَى نَفْسِي لَعْنَةً لَا بَرَكَةً». ١٢ 12
शायद मेरा बाप मुझे टटोले, तो मैं उसकी नज़र में दग़ाबाज़ ठहरूंगा; और बरकत नहीं बल्कि ला'नत कमाऊँगा।”
فَقَالَتْ لَهُ أُمُّهُ: «لَعْنَتُكَ عَلَيَّ يَا ٱبْنِي. اِسْمَعْ لِقَوْلِي فَقَطْ وَٱذْهَبْ خُذْ لِي». ١٣ 13
उसकी माँ ने उसे कहा, “ऐ मेरे बेटे! तेरी ला'नत मुझ पर आए; तू सिर्फ़ मेरी बात मान और जाकर वह बच्चे मुझे ला दे।”
فَذَهَبَ وَأَخَذَ وَأَحْضَرَ لِأُمِّهِ، فَصَنَعَتْ أُمُّهُ أَطْعِمَةً كَمَا كَانَ أَبُوهُ يُحِبُّ. ١٤ 14
तब वह गया और उनको लाकर अपनी माँ को दिया, और उसकी माँ ने उसके बाप की हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार किया।
وَأَخَذَتْ رِفْقَةُ ثِيَابَ عِيسُو ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ ٱلْفَاخِرَةَ ٱلَّتِي كَانَتْ عِنْدَهَا فِي ٱلْبَيْتِ وَأَلْبَسَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ، ١٥ 15
और रिब्क़ा ने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ के नफ़ीस लिबास, जो उसके पास घर में थे लेकर उनकी अपने छोटे बेटे या'क़ूब को पहनाया।
وَأَلْبَسَتْ يَدَيْهِ وَمَلَاسَةَ عُنُقِهِ جُلُودَ جَدْيَيِ ٱلْمِعْزَى. ١٦ 16
और बकरी के बच्चों की खालें उसके हाथो और उसकी गर्दन पर जहाँ बाल न थे लपेट दीं।
وَأَعْطَتِ ٱلْأَطْعِمَةَ وَٱلْخُبْزَ ٱلَّتِي صَنَعَتْ فِي يَدِ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا. ١٧ 17
और वह लज़ीज़ खाना और रोटी जो उसने तैयार की थी, अपने बेटे या'क़ूब के हाथ में दे दी।
فَدَخَلَ إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ: «يَا أَبِي». فَقَالَ: «هَأَنَذَا. مَنْ أَنْتَ يَا ٱبْنِي؟». ١٨ 18
तब उसने बाप के पास आ कर कहा, ऐ मेरे बाप! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ, तू कौन है मेरे बेटे?”
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِأَبِيهِ: «أَنَا عِيسُو بِكْرُكَ. قَدْ فَعَلْتُ كَمَا كَلَّمْتَنِي. قُمِ ٱجْلِسْ وَكُلْ مِنْ صَيْدِي لِكَيْ تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». ١٩ 19
या'क़ूब ने अपने बाप से कहा, “मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ। मैंने तेरे कहने के मुताबिक़ किया है; इसलिए ज़रा उठ और बैठ कर मेरे शिकार का गोश्त खा, ताकि तू दिल से मुझे दुआ दे।”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِٱبْنِهِ: «مَا هَذَا ٱلَّذِي أَسْرَعْتَ لِتَجِدَ يَا ٱبْنِي؟». فَقَالَ: «إِنَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ قَدْ يَسَّرَ لِي». ٢٠ 20
तब इस्हाक़ ने अपने बेटे से कहा, “बेटा! तुझे यह इस क़दर जल्द कैसे मिल गया?” उसने कहा, “इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने मेरा काम बना दिया।”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِيَعْقُوبَ: «تَقَدَّمْ لِأَجُسَّكَ يَا ٱبْنِي. أَأَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو أَمْ لَا؟». ٢١ 21
तब इस्हाक़ ने या'क़ूब से कहा, “ऐ मेरे बेटे, ज़रा नज़दीक आ कि मैं तुझे टटोलूँ कि तू मेरा ही बेटा 'ऐसौ है या नहीं।”
فَتَقَدَّمَ يَعْقُوبُ إِلَى إِسْحَاقَ أَبِيهِ، فَجَسَّهُ وَقَالَ: «ٱلصَّوْتُ صَوْتُ يَعْقُوبَ، وَلَكِنَّ ٱلْيَدَيْنِ يَدَا عِيسُو». ٢٢ 22
और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के नज़दीक गया; और उसने उसे टटोलकर कहा, “आवाज़ तो या'क़ूब की है लेकिन हाथ 'ऐसौ के हैं।”
وَلَمْ يَعْرِفْهُ لِأَنَّ يَدَيْهِ كَانَتَا مُشْعِرَتَيْنِ كَيَدَيْ عِيسُو أَخِيهِ، فَبَارَكَهُ. ٢٣ 23
और उसने उसे न पहचाना, इसलिए कि उसके हाथों पर उसके भाई 'ऐसौ के हाथों की तरह बाल थे; इसलिए उसने उसे दुआ दी।
وَقَالَ: «هَلْ أَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو؟». فَقَالَ: «أَنَا هُوَ». ٢٤ 24
और उसने पूछा कि क्या तू मेरा बेटा “ऐसौ ही है?” उसने कहा, “मैं वही हूँ।”
فَقَالَ: «قَدِّمْ لِي لِآكُلَ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِي حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي». فَقَدَّمَ لَهُ فَأَكَلَ، وَأَحْضَرَ لَهُ خَمْرًا فَشَرِبَ. ٢٥ 25
तब उसने कहा, “खाना मेरे आगे ले आ, और मैं अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाऊँगा, ताकि दिल से तुझे दुआ दूँ।” तब वह उसे उसके नज़दीक ले आया, और उसने खाया; और वह उसके लिए मय लाया और उसने पी।
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «تَقَدَّمْ وَقَبِّلْنِي يَا ٱبْنِي». ٢٦ 26
फिर उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “ऐ मेरे बेटे! अब पास आकर मुझे चूम।”
فَتَقَدَّمَ وَقَبَّلَهُ، فَشَمَّ رَائِحَةَ ثِيَابِهِ وَبَارَكَهُ، وَقَالَ: «ٱنْظُرْ! رَائِحَةُ ٱبْنِي كَرَائِحَةِ حَقْلٍ قَدْ بَارَكَهُ ٱلرَّبُّ. ٢٧ 27
उसने पास जाकर उसे चूमा। तब उसने उसके लिबास की ख़शबू पाई और उसे दुआ दे कर कहा, “देखो! मेरे बेटे की महक उस खेत की महक की तरह है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत दी हो।
فَلْيُعْطِكَ ٱللهُ مِنْ نَدَى ٱلسَّمَاءِ وَمِنْ دَسَمِ ٱلْأَرْضِ. وَكَثْرَةَ حِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. ٢٨ 28
ख़ुदा आसमान की ओस और ज़मीन की फ़र्बही, और बहुत सा अनाज और मय तुझे बख़्शे।
لِيُسْتَعْبَدْ لَكَ شُعُوبٌ، وَتَسْجُدْ لَكَ قَبَائِلُ. كُنْ سَيِّدًا لِإِخْوَتِكَ، وَلْيَسْجُدْ لَكَ بَنُو أُمِّكَ. لِيَكُنْ لَاعِنُوكَ مَلْعُونِينَ، وَمُبَارِكُوكَ مُبَارَكِينَ». ٢٩ 29
कौमें तेरी खिदमत करें, और क़बीले तेरे सामने झुकें। तू अपने भाइयों का सरदार हो, और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे झुकें, जो तुझ पर ला'नत करे वह खुद ला'नती हो, और जो तुझे दुआ दे वह बरकत पाए।”
وَحَدَثَ عِنْدَمَا فَرَغَ إِسْحَاقُ مِنْ بَرَكَةِ يَعْقُوبَ، وَيَعْقُوبُ قَدْ خَرَجَ مِنْ لَدُنْ إِسْحَاقَ أَبِيهِ، أَنَّ عِيسُوَ أَخَاهُ أَتَى مِنْ صَيْدِهِ، ٣٠ 30
जब इस्हाक़ या'क़ूब को दुआ दे चुका, और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के पास से निकला ही था कि उसका भाई 'ऐसौ अपने शिकार से लौटा।
فَصَنَعَ هُوَ أَيْضًا أَطْعِمَةً وَدَخَلَ بِهَا إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ لِأَبِيهِ: «لِيَقُمْ أَبِي وَيَأْكُلْ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِهِ حَتَّى تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». ٣١ 31
वह भी लज़ीज़ खाना पका कर अपने बाप के पास लाया, और उसने अपने बाप से कहा, मेरा बाप उठ कर अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाए, ताकि दिल से मुझे दुआ दे।
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «مَنْ أَنْتَ؟» فَقَالَ: «أَنَا ٱبْنُكَ بِكْرُكَ عِيسُو». ٣٢ 32
उसके बाप इस्हाक़ ने उससे पूछा कि तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा पहलौठा बेटा “ऐसौ हूँ।”
فَٱرْتَعَدَ إِسْحَاقُ ٱرْتِعَادًا عَظِيمًا جِدًّا وَقَالَ: «فَمَنْ هُوَ ٱلَّذِي ٱصْطَادَ صَيْدًا وَأَتَى بِهِ إِلَيَّ فَأَكَلْتُ مِنَ ٱلْكُلِّ قَبْلَ أَنْ تَجِيءَ، وَبَارَكْتُهُ؟ نَعَمْ، وَيَكُونُ مُبَارَكًا». ٣٣ 33
तब तो इस्हाक़ शिद्दत से काँपने लगा और उसने कहा, “फिर वह कौन था जो शिकार मार कर मेरे पास ले आया, और मैंने तेरे आने से पहले सबमें से थोड़ा — थोड़ा खाया और उसे दुआ दी? और मुबारक भी वही होगा।”
فَعِنْدَمَا سَمِعَ عِيسُو كَلَامَ أَبِيهِ صَرَخَ صَرْخَةً عَظِيمَةً وَمُرَّةً جِدًّا، وَقَالَ لِأَبِيهِ: «بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». ٣٤ 34
ऐसौ अपने बाप की बातें सुनते ही बड़ी बुलन्दी और हसरतनाक आवाज़ से चिल्ला उठा, और अपने बाप से कहा, “मुझ को भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप! मुझ को भी।”
فَقَالَ: «قَدْ جَاءَ أَخُوكَ بِمَكْرٍ وَأَخَذَ بَرَكَتَكَ». ٣٥ 35
उसने कहा, “तेरा भाई दग़ा से आया, और तेरी बरकत ले गया।”
فَقَالَ: «أَلَا إِنَّ ٱسْمَهُ دُعِيَ يَعْقُوبَ، فَقَدْ تَعَقَّبَنِي ٱلْآنَ مَرَّتَيْنِ! أَخَذَ بَكُورِيَّتِي، وَهُوَذَا ٱلْآنَ قَدْ أَخَذَ بَرَكَتِي». ثُمَّ قَالَ: «أَمَا أَبْقَيْتَ لِي بَرَكَةً؟». ٣٦ 36
तब उसने कहा, “क्या उसका नाम या'क़ूब ठीक नहीं रख्खा गया? क्यूँकि उसने दोबारा मुझे धोखा दिया। उसने मेरा पहलौठे का हक़ तो ले ही लिया था, और देख, अब वह मेरी बरकत भी ले गया।” फिर उसने कहा, “क्या तूने मेरे लिए कोई बरकत नहीं रख छोड़ी है?”
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ وَقَالَ لِعِيسُو: «إِنِّي قَدْ جَعَلْتُهُ سَيِّدًا لَكَ، وَدَفَعْتُ إِلَيْهِ جَمِيعَ إِخْوَتِهِ عَبِيدًا، وَعَضَدْتُهُ بِحِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. فَمَاذَا أَصْنَعُ إِلَيْكَ يَا ٱبْنِي؟» ٣٧ 37
इस्हाक़ ने 'ऐसौ को जवाब दिया, कि देख, मैंने उसे तेरा सरदार ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके सुपर्द किया कि ख़ादिम हों, और अनाज और मय उसकी परवरिश के लिए बताई। अब ऐ मेरे बेटे, तेरे लिए मैं क्या करूँ?
فَقَالَ عِيسُو لِأَبِيهِ: «أَلَكَ بَرَكَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَطْ يَا أَبِي؟ بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». وَرَفَعَ عِيسُو صَوْتَهُ وَبَكَى. ٣٨ 38
तब 'ऐसौ ने अपने बाप से कहा, “क्या तेरे पास एक ही बरकत है, ऐ मेरे बाप? मुझे भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप, मुझे भी।” और 'ऐसौ ज़ोर — ज़ोर से रोया।
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ أَبُوهُ وَقَالَ لَهُ: «هُوَذَا بِلَا دَسَمِ ٱلْأَرْضِ يَكُونُ مَسْكَنُكَ، وَبِلَا نَدَى ٱلسَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ. ٣٩ 39
तब उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “देख ज़रख्खेज़ ज़मीन में तेरा घर हो, और ऊपर से आसमान की शबनम उस पर पड़े।
وَبِسَيْفِكَ تَعِيشُ، وَلِأَخِيكَ تُسْتَعْبَدُ، وَلَكِنْ يَكُونُ حِينَمَا تَجْمَحُ أَنَّكَ تُكَسِّرُ نِيرَهُ عَنْ عُنُقِكَ». ٤٠ 40
तेरी औकात — बसरी तेरी तलवार से हो, और तू अपने भाई की ख़िदमत करे, और जब तू आज़ाद हो; तो अपने भाई का जुआ अपनी गर्दन पर से उतार फेंके।”
فَحَقَدَ عِيسُو عَلَى يَعْقُوبَ مِنْ أَجْلِ ٱلْبَرَكَةِ ٱلَّتِي بَارَكَهُ بِهَا أَبُوهُ. وَقَالَ عِيسُو فِي قَلْبِهِ: «قَرُبَتْ أَيَّامُ مَنَاحَةِ أَبِي، فَأَقْتُلُ يَعْقُوبَ أَخِي». ٤١ 41
और 'ऐसौ ने या'क़ूब से, उस बरकत की वजह से जो उसके बाप ने उसे बख्शी, कीना रख्खा; और 'ऐसौ ने अपने दिल में कहा, कि “मेरे बाप के मातम के दिन नज़दीक हैं, फिर मैं अपने भाई या'क़ूब को मार डालूँगा।”
فَأُخْبِرَتْ رِفْقَةُ بِكَلَامِ عِيسُوَ ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ، فَأَرْسَلَتْ وَدَعَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ وَقَالَتْ لَهُ: «هُوَذَا عِيسُو أَخُوكَ مُتَسَلٍّ مِنْ جِهَتِكَ بِأَنَّهُ يَقْتُلُكَ. ٤٢ 42
और रिब्क़ा को उसके बड़े बेटे 'ऐसौ की यह बातें बताई गई; तब उसने अपने छोटे बेटे या'क़ूब को बुलवा कर उससे कहा, “देख, तेरा भाई 'ऐसौ तुझे मार डालने पर है, और यही सोच — सोचकर अपने को तसल्ली दे रहा है।
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي، وَقُمِ ٱهْرُبْ إِلَى أَخِي لَابَانَ إِلَى حَارَانَ، ٤٣ 43
इसलिए ऐ मेरे बेटे, तू मेरी बात मान, और उठकर हारान को मेरे भाई लाबन के पास भाग जा;
وَأَقِمْ عِنْدَهُ أَيَّامًا قَلِيلَةً حَتَّى يَرْتَدَّ سُخْطُ أَخِيكَ. ٤٤ 44
और थोड़े दिन उसके साथ रह, जब तक तेरे भाई की नाराज़गी उतर न जाए।
حَتَّى يَرْتَدَّ غَضَبُ أَخِيكَ عَنْكَ، وَيَنْسَى مَا صَنَعْتَ بِهِ. ثُمَّ أُرْسِلُ فَآخُذُكَ مِنْ هُنَاكَ. لِمَاذَا أُعْدَمُ ٱثْنَيْكُمَا فِي يَوْمٍ وَاحِدٍ؟». ٤٥ 45
या'नी जब तक तेरे भाई का क़हर तेरी तरफ़ से ठंडा न हो, और वह उस बात को जो तूने उससे की है भूल न जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। मैं एक ही दिन में तुम दोनों को क्यूँ खो बैठूँ?”
وَقَالَتْ رِفْقَةُ لِإِسْحَاقَ: «مَلِلْتُ حَيَاتِي مِنْ أَجْلِ بَنَاتِ حِثَّ. إِنْ كَانَ يَعْقُوبُ يَأْخُذُ زَوْجَةً مِنْ بَنَاتِ حِثَّ مِثْلَ هَؤُلَاءِ مِنْ بَنَاتِ ٱلْأَرْضِ، فَلِمَاذَا لِي حَيَاةٌ؟». ٤٦ 46
और रिब्क़ा ने इस्हाक़ से कहा, 'मैं हिती लड़कियों की वजह से अपनी ज़िन्दगी से तंग हूँ, इसलिए अगर या'क़ूब हिती लड़कियों में से, जैसी इस मुल्क की लड़कियाँ हैं, किसी से ब्याह कर ले तो मेरी ज़िन्दगी में क्या लुत्फ़ रहेगा?'

< اَلتَّكْوِينُ 27 >