< اَلتَّكْوِينُ 27 >

وَحَدَثَ لَمَّا شَاخَ إِسْحَاقُ وَكَلَّتْ عَيْنَاهُ عَنِ ٱلنَّظَرِ، أَنَّهُ دَعَا عِيسُوَ ٱبْنَهُ ٱلْأَكْبَرَ وَقَالَ لَهُ: «يَا ٱبْنِي». فَقَالَ لَهُ: «هَأَنَذَا». ١ 1
जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुंधली पड़ गईं कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र एसाव को बुलाकर कहा, “हे मेरे पुत्र,” उसने कहा, “क्या आज्ञा।”
فَقَالَ: «إِنَّنِي قَدْ شِخْتُ وَلَسْتُ أَعْرِفُ يَوْمَ وَفَاتِي. ٢ 2
उसने कहा, “सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा
فَٱلْآنَ خُذْ عُدَّتَكَ: جُعْبَتَكَ وَقَوْسَكَ، وَٱخْرُجْ إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ وَتَصَيَّدْ لِي صَيْدًا، ٣ 3
इसलिए अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिये अहेर कर ले आ।
وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً كَمَا أُحِبُّ، وَأْتِنِي بِهَا لِآكُلَ حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي قَبْلَ أَنْ أَمُوتَ». ٤ 4
तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भरकर आशीर्वाद दूँ।”
وَكَانَتْ رِفْقَةُ سَامِعَةً إِذْ تَكَلَّمَ إِسْحَاقُ مَعَ عِيسُو ٱبْنِهِ. فَذَهَبَ عِيسُو إِلَى ٱلْبَرِّيَّةِ كَيْ يَصْطَادَ صَيْدًا لِيَأْتِيَ بِهِ. ٥ 5
तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी।
وَأَمَّا رِفْقَةُ فَكَلمتْ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا قَائِلةً: «إِنِّي قَدْ سَمِعْتُ أَبَاكَ يُكَلِّمُ عِيسُوَ أَخَاكَ قَائِلًا: ٦ 6
इसलिए उसने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुन, मैंने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना है,
ٱئْتِنِي بِصَيْدٍ وَٱصْنَعْ لِي أَطْعِمَةً لِآكُلَ وَأُبَارِكَكَ أَمَامَ ٱلرَّبِّ قَبْلَ وَفَاتِي. ٧ 7
‘तू मेरे लिये अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहले आशीर्वाद दूँ।’
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي فِي مَا أَنَا آمُرُكَ بِهِ: ٨ 8
इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान,
اِذْهَبْ إِلَى ٱلْغَنَمِ وَخُذْ لِي مِنْ هُنَاكَ جَدْيَيْنِ جَيِّدَيْنِ مِنَ ٱلْمِعْزَى، فَأَصْنَعَهُمَا أَطْعِمَةً لِأَبِيكَ كَمَا يُحِبُّ، ٩ 9
कि बकरियों के पास जाकर बकरियों के दो अच्छे-अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उनके माँस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊँगी।
فَتُحْضِرَهَا إِلَى أَبِيكَ لِيَأْكُلَ حَتَّى يُبَارِكَكَ قَبْلَ وَفَاتِهِ». ١٠ 10
१०तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहले तुझको आशीर्वाद दे।”
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِرِفْقَةَ أُمِّهِ: «هُوَذَا عِيسُو أَخِي رَجُلٌ أَشْعَرُ وَأَنَا رَجُلٌ أَمْلَسُ. ١١ 11
११याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, “सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआर पुरुष है, और मैं रोमहीन पुरुष हूँ।
رُبَّمَا يَجُسُّنِي أَبِي فَأَكُونُ فِي عَيْنَيْهِ كَمُتَهَاوِنٍ، وَأَجْلِبُ عَلَى نَفْسِي لَعْنَةً لَا بَرَكَةً». ١٢ 12
१२कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूँगा; और आशीष के बदले श्राप ही कमाऊँगा।”
فَقَالَتْ لَهُ أُمُّهُ: «لَعْنَتُكَ عَلَيَّ يَا ٱبْنِي. اِسْمَعْ لِقَوْلِي فَقَطْ وَٱذْهَبْ خُذْ لِي». ١٣ 13
१३उसकी माता ने उससे कहा, “हे मेरे, पुत्र, श्राप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ।”
فَذَهَبَ وَأَخَذَ وَأَحْضَرَ لِأُمِّهِ، فَصَنَعَتْ أُمُّهُ أَطْعِمَةً كَمَا كَانَ أَبُوهُ يُحِبُّ. ١٤ 14
१४तब याकूब जाकर उनको अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया।
وَأَخَذَتْ رِفْقَةُ ثِيَابَ عِيسُو ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ ٱلْفَاخِرَةَ ٱلَّتِي كَانَتْ عِنْدَهَا فِي ٱلْبَيْتِ وَأَلْبَسَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ، ١٥ 15
१५तब रिबका ने अपने पहलौठे पुत्र एसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपने छोटे पुत्र याकूब को पहना दिए।
وَأَلْبَسَتْ يَدَيْهِ وَمَلَاسَةَ عُنُقِهِ جُلُودَ جَدْيَيِ ٱلْمِعْزَى. ١٦ 16
१६और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया।
وَأَعْطَتِ ٱلْأَطْعِمَةَ وَٱلْخُبْزَ ٱلَّتِي صَنَعَتْ فِي يَدِ يَعْقُوبَ ٱبْنِهَا. ١٧ 17
१७और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी।
فَدَخَلَ إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ: «يَا أَبِي». فَقَالَ: «هَأَنَذَا. مَنْ أَنْتَ يَا ٱبْنِي؟». ١٨ 18
१८तब वह अपने पिता के पास गया, और कहा, “हे मेरे पिता,” उसने कहा, “क्या बात है? हे मेरे पुत्र, तू कौन है?”
فَقَالَ يَعْقُوبُ لِأَبِيهِ: «أَنَا عِيسُو بِكْرُكَ. قَدْ فَعَلْتُ كَمَا كَلَّمْتَنِي. قُمِ ٱجْلِسْ وَكُلْ مِنْ صَيْدِي لِكَيْ تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». ١٩ 19
१९याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ। मैंने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; इसलिए उठ और बैठकर मेरे अहेर के माँस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे।”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِٱبْنِهِ: «مَا هَذَا ٱلَّذِي أَسْرَعْتَ لِتَجِدَ يَا ٱبْنِي؟». فَقَالَ: «إِنَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ قَدْ يَسَّرَ لِي». ٢٠ 20
२०इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया?” उसने यह उत्तर दिया, “तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे सामने कर दिया।”
فَقَالَ إِسْحَاقُ لِيَعْقُوبَ: «تَقَدَّمْ لِأَجُسَّكَ يَا ٱبْنِي. أَأَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو أَمْ لَا؟». ٢١ 21
२१फिर इसहाक ने याकूब से कहा, “हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूँ, कि तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है या नहीं।”
فَتَقَدَّمَ يَعْقُوبُ إِلَى إِسْحَاقَ أَبِيهِ، فَجَسَّهُ وَقَالَ: «ٱلصَّوْتُ صَوْتُ يَعْقُوبَ، وَلَكِنَّ ٱلْيَدَيْنِ يَدَا عِيسُو». ٢٢ 22
२२तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोलकर कहा, “बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं।”
وَلَمْ يَعْرِفْهُ لِأَنَّ يَدَيْهِ كَانَتَا مُشْعِرَتَيْنِ كَيَدَيْ عِيسُو أَخِيهِ، فَبَارَكَهُ. ٢٣ 23
२३और उसने उसको नहीं पहचाना, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। अतः उसने उसको आशीर्वाद दिया।
وَقَالَ: «هَلْ أَنْتَ هُوَ ٱبْنِي عِيسُو؟». فَقَالَ: «أَنَا هُوَ». ٢٤ 24
२४और उसने पूछा, “क्या तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है?” उसने कहा, “हाँ मैं हूँ।”
فَقَالَ: «قَدِّمْ لِي لِآكُلَ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِي حَتَّى تُبَارِكَكَ نَفْسِي». فَقَدَّمَ لَهُ فَأَكَلَ، وَأَحْضَرَ لَهُ خَمْرًا فَشَرِبَ. ٢٥ 25
२५तब उसने कहा, “भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्र के अहेर के माँस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूँ।” तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया।
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «تَقَدَّمْ وَقَبِّلْنِي يَا ٱبْنِي». ٢٦ 26
२६तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, “हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम।”
فَتَقَدَّمَ وَقَبَّلَهُ، فَشَمَّ رَائِحَةَ ثِيَابِهِ وَبَارَكَهُ، وَقَالَ: «ٱنْظُرْ! رَائِحَةُ ٱبْنِي كَرَائِحَةِ حَقْلٍ قَدْ بَارَكَهُ ٱلرَّبُّ. ٢٧ 27
२७उसने निकट जाकर उसको चूमा। और उसने उसके वस्त्रों का सुगन्ध पाकर उसको वह आशीर्वाद दिया, “देख, मेरे पुत्र की सुगन्ध जो ऐसे खेत की सी है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो;
فَلْيُعْطِكَ ٱللهُ مِنْ نَدَى ٱلسَّمَاءِ وَمِنْ دَسَمِ ٱلْأَرْضِ. وَكَثْرَةَ حِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. ٢٨ 28
२८परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे;
لِيُسْتَعْبَدْ لَكَ شُعُوبٌ، وَتَسْجُدْ لَكَ قَبَائِلُ. كُنْ سَيِّدًا لِإِخْوَتِكَ، وَلْيَسْجُدْ لَكَ بَنُو أُمِّكَ. لِيَكُنْ لَاعِنُوكَ مَلْعُونِينَ، وَمُبَارِكُوكَ مُبَارَكِينَ». ٢٩ 29
२९राज्य-राज्य के लोग तेरे अधीन हों, और देश-देश के लोग तुझे दण्डवत् करें; तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत् करें। जो तुझे श्राप दें वे आप ही श्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें वे आशीष पाएँ।”
وَحَدَثَ عِنْدَمَا فَرَغَ إِسْحَاقُ مِنْ بَرَكَةِ يَعْقُوبَ، وَيَعْقُوبُ قَدْ خَرَجَ مِنْ لَدُنْ إِسْحَاقَ أَبِيهِ، أَنَّ عِيسُوَ أَخَاهُ أَتَى مِنْ صَيْدِهِ، ٣٠ 30
३०जैसे ही यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के सामने से निकला ही था, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुँचा।
فَصَنَعَ هُوَ أَيْضًا أَطْعِمَةً وَدَخَلَ بِهَا إِلَى أَبِيهِ وَقَالَ لِأَبِيهِ: «لِيَقُمْ أَبِي وَيَأْكُلْ مِنْ صَيْدِ ٱبْنِهِ حَتَّى تُبَارِكَنِي نَفْسُكَ». ٣١ 31
३१तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने पिता के पास ले आया, और उसने कहा, “हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्र के अहेर का माँस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।”
فَقَالَ لَهُ إِسْحَاقُ أَبُوهُ: «مَنْ أَنْتَ؟» فَقَالَ: «أَنَا ٱبْنُكَ بِكْرُكَ عِيسُو». ٣٢ 32
३२उसके पिता इसहाक ने पूछा, “तू कौन है?” उसने कहा, “मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ।”
فَٱرْتَعَدَ إِسْحَاقُ ٱرْتِعَادًا عَظِيمًا جِدًّا وَقَالَ: «فَمَنْ هُوَ ٱلَّذِي ٱصْطَادَ صَيْدًا وَأَتَى بِهِ إِلَيَّ فَأَكَلْتُ مِنَ ٱلْكُلِّ قَبْلَ أَنْ تَجِيءَ، وَبَارَكْتُهُ؟ نَعَمْ، وَيَكُونُ مُبَارَكًا». ٣٣ 33
३३तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर काँपते हुए कहा, “फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैंने तेरे आने से पहले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? वरन् उसको आशीष लगी भी रहेगी।”
فَعِنْدَمَا سَمِعَ عِيسُو كَلَامَ أَبِيهِ صَرَخَ صَرْخَةً عَظِيمَةً وَمُرَّةً جِدًّا، وَقَالَ لِأَبِيهِ: «بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». ٣٤ 34
३४अपने पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊँचे और दुःख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे!”
فَقَالَ: «قَدْ جَاءَ أَخُوكَ بِمَكْرٍ وَأَخَذَ بَرَكَتَكَ». ٣٥ 35
३५उसने कहा, “तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेकर चला गया।”
فَقَالَ: «أَلَا إِنَّ ٱسْمَهُ دُعِيَ يَعْقُوبَ، فَقَدْ تَعَقَّبَنِي ٱلْآنَ مَرَّتَيْنِ! أَخَذَ بَكُورِيَّتِي، وَهُوَذَا ٱلْآنَ قَدْ أَخَذَ بَرَكَتِي». ثُمَّ قَالَ: «أَمَا أَبْقَيْتَ لِي بَرَكَةً؟». ٣٦ 36
३६उसने कहा, “क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था; और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है।” फिर उसने कहा, “क्या तूने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?”
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ وَقَالَ لِعِيسُو: «إِنِّي قَدْ جَعَلْتُهُ سَيِّدًا لَكَ، وَدَفَعْتُ إِلَيْهِ جَمِيعَ إِخْوَتِهِ عَبِيدًا، وَعَضَدْتُهُ بِحِنْطَةٍ وَخَمْرٍ. فَمَاذَا أَصْنَعُ إِلَيْكَ يَا ٱبْنِي؟» ٣٧ 37
३७इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, “सुन, मैंने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है। इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूँ?”
فَقَالَ عِيسُو لِأَبِيهِ: «أَلَكَ بَرَكَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَطْ يَا أَبِي؟ بَارِكْنِي أَنَا أَيْضًا يَا أَبِي». وَرَفَعَ عِيسُو صَوْتَهُ وَبَكَى. ٣٨ 38
३८एसाव ने अपने पिता से कहा, “हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे।” यह कहकर एसाव फूट फूटकर रोया।
فَأَجَابَ إِسْحَاقُ أَبُوهُ وَقَالَ لَهُ: «هُوَذَا بِلَا دَسَمِ ٱلْأَرْضِ يَكُونُ مَسْكَنُكَ، وَبِلَا نَدَى ٱلسَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ. ٣٩ 39
३९उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, “सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि से दूर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर न पड़े।
وَبِسَيْفِكَ تَعِيشُ، وَلِأَخِيكَ تُسْتَعْبَدُ، وَلَكِنْ يَكُونُ حِينَمَا تَجْمَحُ أَنَّكَ تُكَسِّرُ نِيرَهُ عَنْ عُنُقِكَ». ٤٠ 40
४०तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के अधीन तो होए; पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कंधे पर से तोड़ फेंके।”
فَحَقَدَ عِيسُو عَلَى يَعْقُوبَ مِنْ أَجْلِ ٱلْبَرَكَةِ ٱلَّتِي بَارَكَهُ بِهَا أَبُوهُ. وَقَالَ عِيسُو فِي قَلْبِهِ: «قَرُبَتْ أَيَّامُ مَنَاحَةِ أَبِي، فَأَقْتُلُ يَعْقُوبَ أَخِي». ٤١ 41
४१एसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; और उसने सोचा, “मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूँगा।”
فَأُخْبِرَتْ رِفْقَةُ بِكَلَامِ عِيسُوَ ٱبْنِهَا ٱلْأَكْبَرِ، فَأَرْسَلَتْ وَدَعَتْ يَعْقُوبَ ٱبْنَهَا ٱلْأَصْغَرَ وَقَالَتْ لَهُ: «هُوَذَا عِيسُو أَخُوكَ مُتَسَلٍّ مِنْ جِهَتِكَ بِأَنَّهُ يَقْتُلُكَ. ٤٢ 42
४२जब रिबका को अपने पहलौठे पुत्र एसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, “सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन में धीरज रखे हुए है।
فَٱلْآنَ يَا ٱبْنِي ٱسْمَعْ لِقَوْلِي، وَقُمِ ٱهْرُبْ إِلَى أَخِي لَابَانَ إِلَى حَارَانَ، ٤٣ 43
४३इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा;
وَأَقِمْ عِنْدَهُ أَيَّامًا قَلِيلَةً حَتَّى يَرْتَدَّ سُخْطُ أَخِيكَ. ٤٤ 44
४४और थोड़े दिन तक, अर्थात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना।
حَتَّى يَرْتَدَّ غَضَبُ أَخِيكَ عَنْكَ، وَيَنْسَى مَا صَنَعْتَ بِهِ. ثُمَّ أُرْسِلُ فَآخُذُكَ مِنْ هُنَاكَ. لِمَاذَا أُعْدَمُ ٱثْنَيْكُمَا فِي يَوْمٍ وَاحِدٍ؟». ٤٥ 45
४५फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तूने उससे किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से वंचित होना पड़े?”
وَقَالَتْ رِفْقَةُ لِإِسْحَاقَ: «مَلِلْتُ حَيَاتِي مِنْ أَجْلِ بَنَاتِ حِثَّ. إِنْ كَانَ يَعْقُوبُ يَأْخُذُ زَوْجَةً مِنْ بَنَاتِ حِثَّ مِثْلَ هَؤُلَاءِ مِنْ بَنَاتِ ٱلْأَرْضِ، فَلِمَاذَا لِي حَيَاةٌ؟». ٤٦ 46
४६फिर रिबका ने इसहाक से कहा, “हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूँ; इसलिए यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियाँ हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?”

< اَلتَّكْوِينُ 27 >