< حِزْقِيَال 47 >

ثُمَّ أَرْجَعَنِي إِلَى مَدْخَلِ ٱلْبَيْتِ وَإِذَا بِمِيَاهٍ تَخْرُجُ مِنْ تَحْتِ عَتَبَةِ ٱلْبَيْتِ نَحْوَ ٱلْمَشْرِقِ، لِأَنَّ وَجْهَ ٱلْبَيْتِ نَحْوَ ٱلْمَشْرِقِ. وَٱلْمِيَاهُ نَازِلَةٌ مِنْ تَحْتِ جَانِبِ ٱلْبَيْتِ ٱلْأَيْمَنِ عَنْ جَنُوبِ ٱلْمَذْبَحِ. ١ 1
फिर वह पुरुष मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले गया; और भवन की डेवढ़ी के नीचे से एक सोता निकलकर पूर्व की ओर बह रहा था। भवन का द्वार तो पूर्वमुखी था, और सोता भवन के पूर्व और वेदी के दक्षिण, नीचे से निकलता था।
ثُمَّ أَخْرَجَنِي مِنْ طَرِيقِ بَابِ ٱلشِّمَالِ وَدَارَ بِي فِي ٱلطَّرِيقِ مِنْ خَارِجٍ إِلَى ٱلْبَابِ ٱلْخَارِجِيِّ مِنَ ٱلطَّرِيقِ ٱلَّذِي يَتَّجِهُ نَحْوَ ٱلْمَشْرِقِ، وَإِذَا بِمِيَاهٍ جَارِيَةٍ مِنَ ٱلْجَانِبِ ٱلْأَيْمَنِ. ٢ 2
तब वह मुझे उत्तर के फाटक से होकर बाहर ले गया, और बाहर-बाहर से घुमाकर बाहरी अर्थात् पूर्वमुखी फाटक के पास पहुँचा दिया; और दक्षिणी ओर से जल पसीजकर बह रहा था।
وَعِنْدَ خُرُوجِ ٱلرَّجُلِ نَحْوَ ٱلْمَشْرِقِ وَٱلْخَيْطُ بِيَدِهِ، قَاسَ أَلْفَ ذِرَاعٍ وَعَبَّرَنِي فِي ٱلْمِيَاهِ، وَٱلْمِيَاهُ إِلَى ٱلْكَعْبَيْنِ. ٣ 3
जब वह पुरुष हाथ में मापने की डोरी लिए हुए पूर्व की ओर निकला, तब उसने भवन से लेकर, हजार हाथ तक उस सोते को मापा, और मुझे जल में से चलाया, और जल टखनों तक था।
ثُمَّ قَاسَ أَلْفًا وَعَبَّرَنِي فِي ٱلْمِيَاهِ، وَٱلْمِيَاهُ إِلَى ٱلرُّكْبَتَيْنِ. ثُمَّ قَاسَ أَلْفًا وَعَبَّرَنِي، وَٱلْمِيَاهُ إِلَى ٱلْحَقْوَيْنِ. ٤ 4
उसने फिर हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल घुटनों तक था, फिर और हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल कमर तक था।
ثُمَّ قَاسَ أَلْفًا، وَإِذَا بِنَهْرٍ لَمْ أَسْتَطِعْ عُبُورَهُ، لِأَنَّ ٱلْمِيَاهَ طَمَتْ، مِيَاهَ سِبَاحَةٍ، نَهْرٍ لَا يُعْبَرُ. ٥ 5
तब फिर उसने एक हजार हाथ मापे, और ऐसी नदी हो गई जिसके पार मैं न जा सका, क्योंकि जल बढ़कर तैरने के योग्य था; अर्थात् ऐसी नदी थी जिसके पार कोई न जा सकता था।
وَقَالَ لِي: «أَرَأَيْتَ يَا ٱبْنَ آدَمَ؟». ثُمَّ ذَهَبَ بِي وَأَرْجَعَنِي إِلَى شَاطِئِ ٱلنَّهْرِ. ٦ 6
तब उसने मुझसे पूछा, “हे मनुष्य के सन्तान, क्या तूने यह देखा है?” फिर उसने मुझे नदी के किनारे-किनारे लौटाकर पहुँचा दिया।
وَعِنْدَ رُجُوعِي إِذَا عَلَى شَاطِئِ ٱلنَّهْرِ أَشْجَارٌ كَثِيرَةٌ جِدًّا مِنْ هُنَا وَمِنْ هُنَاكَ. ٧ 7
लौटकर मैंने क्या देखा, कि नदी के दोनों तटों पर बहुत से वृक्ष हैं।
وَقَالَ لِي: «هَذِهِ ٱلْمِيَاهُ خَارِجَةٌ إِلَى ٱلدَّائِرَةِ ٱلشَّرْقِيَّةِ وَتَنْزِلُ إِلَى ٱلْعَرَبَةِ وَتَذْهَبُ إِلَى ٱلْبَحْرِ. إِلَى ٱلْبَحْرِ هِيَ خَارِجَةٌ فَتُشْفَى ٱلْمِيَاهُ. ٨ 8
तब उसने मुझसे कहा, “यह सोता पूर्वी देश की ओर बह रहा है, और अराबा में उतरकर ताल की ओर बहेगा; और यह भवन से निकला हुआ सीधा ताल में मिल जाएगा; और उसका जल मीठा हो जाएगा।
وَيَكُونُ أَنَّ كُلَّ نَفْسٍ حَيَّةٍ تَدِبُّ حَيْثُمَا يَأْتِي ٱلنَّهْرَانِ تَحْيَا. وَيَكُونُ ٱلسَّمَكُ كَثِيرًا جِدًّا لِأَنَّ هَذِهِ ٱلْمِيَاهَ تَأْتِي إِلَى هُنَاكَ فَتُشْفَى، وَيَحْيَا كُلُّ مَا يَأْتِي ٱلنَّهْرُ إِلَيْهِ. ٩ 9
जहाँ-जहाँ यह नदी बहे, वहाँ-वहाँ सब प्रकार के बहुत अण्डे देनेवाले जीवजन्तु जीएँगे और मछलियाँ भी बहुत हो जाएँगी; क्योंकि इस सोते का जल वहाँ पहुँचा है, और ताल का जल मीठा हो जाएगा; और जहाँ कहीं यह नदी पहुँचेगी वहाँ सब जन्तु जीएँगे।
وَيَكُونُ ٱلصَّيَّادُونَ وَاقِفِينَ عَلَيْهِ. مِنْ عَيْنِ جَدْيٍ إِلَى عَيْنِ عِجْلَايِمَ يَكُونُ لِبَسْطِ ٱلشِّبَاكِ، وَيَكُونُ سَمَكُهُمْ عَلَى أَنْوَاعِهِ كَسَمَكِ ٱلْبَحْرِ ٱلْعَظِيمِ كَثِيرًا جِدًّا. ١٠ 10
१०ताल के तट पर मछुए खड़े रहेंगे, और एनगदी से लेकर एनएगलैम तक वे जाल फैलाए जाएँगे, और उन्हें महासागर की सी भाँति-भाँति की अनगिनत मछलियाँ मिलेंगी।
أَمَّا غَمِقَاتُهُ وَبِرَكُهُ فَلَا تُشْفَى. تُجْعَلُ لِلْمِلْحِ. ١١ 11
११परन्तु ताल के पास जो दलदल और गड्ढे हैं, उनका जल मीठा न होगा; वे खारे ही रहेंगे।
وَعَلَى ٱلنَّهْرِ يَنْبُتُ عَلَى شَاطِئِهِ مِنْ هُنَا وَمِنْ هُنَاكَ كُلُّ شَجَرٍ لِلْأَكْلِ، لَا يَذْبُلُ وَرَقُهُ وَلَا يَنْقَطِعُ ثَمَرُهُ. كُلَّ شَهْرٍ يُبَكِّرُ لِأَنَّ مِيَاهَهُ خَارِجَةٌ مِنَ ٱلْمَقْدِسِ، وَيَكُونُ ثَمَرُهُ لِلْأَكْلِ وَوَرَقُهُ لِلدَّوَاءِ. ١٢ 12
१२नदी के दोनों किनारों पर भाँति-भाँति के खाने योग्य फलदाई वृक्ष उपजेंगे, जिनके पत्ते न मुर्झाएँगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्रस्थान से निकला है। उनमें महीने-महीने, नये-नये फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, और पत्ते औषधि के काम आएँगे।”
«هَكَذَا قَالَ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ: هَذَا هُوَ ٱلتُّخْمُ ٱلَّذِي بِهِ تَمْتَلِكُونَ ٱلْأَرْضَ بِحَسَبِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ، يُوسُفُ قِسْمَانِ. ١٣ 13
१३परमेश्वर यहोवा यह कहता है: “जिस सीमा के भीतर तुम को यह देश अपने बारहों गोत्रों के अनुसार बाँटना पड़ेगा, वह यह है: यूसुफ को दो भाग मिलें।
وَتَمْتَلِكُونَهَا أَحَدُكُمْ كَصَاحِبِهِ، ٱلَّتِي رَفَعْتُ يَدِي لِأُعْطِيَ آبَاءَكُمْ إِيَّاهَا. وَهَذِهِ ٱلْأَرْضُ تَقَعُ لَكُمْ نَصِيبًا. ١٤ 14
१४उसे तुम एक दूसरे के समान निज भाग में पाओगे, क्योंकि मैंने शपथ खाई कि उसे तुम्हारे पितरों को दूँगा, इसलिए यह देश तुम्हारा निज भाग ठहरेगा।
وَهَذَا تُخْمُ ٱلْأَرْضِ: نَحْوَ ٱلشِّمَالِ مِنَ ٱلْبَحْرِ ٱلْكَبِيرِ طَرِيقُ حِثْلُونَ إِلَى ٱلْمَجِيءِ إِلَى صَدَدَ، ١٥ 15
१५“देश की सीमा यह हो, अर्थात् उत्तर ओर की सीमा महासागर से लेकर हेतलोन के पास से सदाद की घाटी तक पहुँचे,
حَمَاةُ وَبَيْرُوثَةُ وَسِبْرَائِمُ، ٱلَّتِي بَيْنَ تُخْمِ دِمَشْقَ وَتُخْمِ حَمَاةَ، وَحَصْرُ ٱلْوُسْطَى، ٱلَّتِي عَلَى تُخْمِ حَوْرَانَ. ١٦ 16
१६और उस सीमा के पास हमात बेरोता, और सिब्रैम जो दमिश्क और हमात की सीमाओं के बीच में है, और हसर्हत्तीकोन तक, जो हौरान की सीमा पर है।
وَيَكُونُ ٱلتُّخْمُ مِنَ ٱلْبَحْرِ حَصْرَ عِينَانَ تُخْمَ دِمَشْقَ وَٱلشِّمَالُ شِمَالًا وَتُخْمَ حَمَاةَ. وَهَذَا جَانِبُ ٱلشِّمَالِ. ١٧ 17
१७यह सीमा समुद्र से लेकर दमिश्क की सीमा के पास के हसरेनोन तक पहुँचे, और उसकी उत्तरी ओर हमात हो। उत्तर की सीमा यही हो।
وَجَانِبُ ٱلشَّرْقِ بَيْنَ حَوْرَانَ وَدِمَشْقَ وَجِلْعَادَ وَأَرْضَ إِسْرَائِيلَ ٱلْأُرْدُنُّ. مِنَ ٱلتُّخْمِ إِلَى ٱلْبَحْرِ ٱلشَّرْقِيِّ تَقِيسُونَ. وَهَذَا جَانِبُ ٱلْمَشْرِقِ. ١٨ 18
१८पूर्वी सीमा जिसकी एक ओर हौरान दमिश्क; और यरदन की ओर गिलाद और इस्राएल का देश हो; उत्तरी सीमा से लेकर पूर्वी ताल तक उसे मापना। पूर्वी सीमा तो यही हो।
وَجَانِبُ ٱلْجَنُوبِ يَمِينًا مِنْ ثَامَارَ إِلَى مِيَاهِ مَرِيبُوثَ قَادِشَ ٱلنَّهْرُ إِلَى ٱلْبَحْرِ ٱلْكَبِيرِ. وَهَذَا جَانِبُ ٱلْيَمِينِ جَنُوبًا. ١٩ 19
१९दक्षिणी सीमा तामार से लेकर मरीबा-कादेश नामक सोते तक अर्थात् मिस्र के नाले तक, और महासागर तक पहुँचे। दक्षिणी सीमा यही हो।
وَجَانِبُ ٱلْغَرْبِ ٱلْبَحْرُ ٱلْكَبِيرُ مِنَ ٱلتُّخْمِ إِلَى مُقَابِلِ مَدْخَلِ حَمَاةَ. وَهَذَا جَانِبُ ٱلْغَرْبِ. ٢٠ 20
२०पश्चिमी सीमा दक्षिणी सीमा से लेकर हमात की घाटी के सामने तक का महासागर हो। पश्चिमी सीमा यही हो।
فَتَقْتَسِمُونَ هَذِهِ ٱلْأَرْضَ لَكُمْ لِأَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ. ٢١ 21
२१“इस प्रकार देश को इस्राएल के गोत्रों के अनुसार आपस में बाँट लेना।
وَيَكُونُ أَنَّكُمْ تَقْسِمُونَهَا بِٱلْقُرْعَةِ لَكُمْ وَلِلْغُرَبَاءِ ٱلْمُتَغَرِّبِينَ فِي وَسْطِكُمُ ٱلَّذِينَ يَلِدُونَ بَنِينَ فِي وَسْطِكُمْ، فَيَكُونُونَ لَكُمْ كَٱلْوَطَنِيِّينَ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ. يُقَاسِمُونَكُمُ ٱلْمِيرَاثَ فِي وَسْطِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ. ٢٢ 22
२२इसको आपस में और उन परदेशियों के साथ बाँट लेना, जो तुम्हारे बीच रहते हुए बालकों को जन्माएँ। वे तुम्हारी दृष्टि में देशी इस्राएलियों के समान ठहरें, और तुम्हारे गोत्रों के बीच अपना-अपना भाग पाएँ।
وَيَكُونُ أَنَّهُ فِي ٱلسِّبْطِ ٱلَّذِي فِيهِ يَتَغَرَّبُ غَرِيبٌ هُنَاكَ تُعْطُونَهُ مِيرَاثَهُ، يَقُولُ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ. ٢٣ 23
२३जो परदेशी जिस गोत्र के देश में रहता हो, उसको वहीं भाग देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।

< حِزْقِيَال 47 >