< حِزْقِيَال 15 >

وَكَانَ إِلَيَّ كَلَامُ ٱلرَّبِّ قَائِلًا: ١ 1
और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
«يَا ٱبْنَ آدَمَ، مَاذَا يَكُونُ عُودُ ٱلْكَرْمِ فَوْقَ كُلِّ عُودٍ أَوْ فَوْقَ ٱلْقَضِيبِ ٱلَّذِي مِنْ شَجَرِ ٱلْوَعْرِ؟ ٢ 2
कि 'ऐ आदमज़ाद, क्या ताक की लकड़ी और दरख़्तों की लकड़ी से, या'नी शाख़ — ए — अंगूर जंगल के दरख़्तों से कुछ बेहतर है?
هَلْ يُؤْخَذُ مِنْهُ عُودٌ لِٱصْطِنَاعِ عَمَلٍ مَّا، أَوْ يَأْخُذُونَ مِنْهُ وَتَدًا لِيُعَلَّقَ عَلَيْهِ إِنَاءٌ مَّا؟ ٣ 3
क्या उसकी लकड़ी कोई लेता है कि उससे कुछ बनाए, या लोग उसकी खूंटियाँ बना लेते हैं कि उन पर बर्तन लटकाएँ?
هُوَذَا يُطْرَحُ أَكْلًا لِلنَّارِ. تَأْكُلُ ٱلنَّارُ طَرَفَيْهِ وَيُحْرَقُ وَسَطُهُ. فَهَلْ يَصْلُحُ لِعَمَلٍ؟ ٤ 4
देख, वह आग में ईन्धन के लिए डाली जाती है, जब आग उसके दोनों सिरों को खा गई और बीच के हिस्से को भसम कर चुकी, तो क्या वह किसी काम की है?
هُوَذَا حِينَ كَانَ صَحِيحًا لَمْ يَكُنْ يَصْلُحُ لِعَمَلٍ مَّا، فَكَمْ بِٱلْحَرِيِّ لَا يَصْلُحُ بَعْدُ لِعَمَلٍ إِذْ أَكَلَتْهُ ٱلنَّارُ فَٱحْتَرَقَ؟ ٥ 5
देख, जब वह सही थी तो किसी काम की न थी, और जब आग से जल गई तो किस काम की है?
«لِذَلِكَ هَكَذَا قَالَ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ: مِثْلَ عُودِ ٱلْكَرْمِ بَيْنَ عِيدَانِ ٱلْوَعْرِ ٱلَّتِي بَذَلْتُهَا أَكْلًا لِلنَّارِ، كَذَلِكَ أَبْذُلُ سُكَّانَ أُورُشَلِيمَ. ٦ 6
फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जिस तरह मैंने जंगल के दरख़्तों में से अंगूर के दरख़्त को आग का ईन्धन बनाया, उसी तरह येरूशलेम के बाशिन्दों को बनाऊँगा।
وَأَجْعَلُ وَجْهِي ضِدَّهُمْ. يَخْرُجُونَ مِنْ نَارٍ فَتَأْكُلُهُمْ نَارٌ، فَتَعْلَمُونَ أَنِّي أَنَا ٱلرَّبُّ حِينَ أَجْعَلُ وَجْهِي ضِدَّهُمْ. ٧ 7
और मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, वह आग से निकल भागेंगे पर आग उनको भसम करेगी; और जब मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, तो तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
وَأَجْعَلُ ٱلْأَرْضَ خَرَابًا لِأَنَّهُمْ خَانُوا خِيَانَةً، يَقُولُ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ». ٨ 8
और मैं मुल्क को उजाड़ डालूँगा, इसलिए कि उन्होंने बड़ी बेवफ़ाई की है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।

< حِزْقِيَال 15 >