< اَلْخُرُوجُ 32 >

وَلَمَّا رَأَى ٱلشَّعْبُ أَنَّ مُوسَى أَبْطَأَ فِي ٱلنُّزُولِ مِنَ ٱلْجَبَلِ، ٱجْتَمَعَ ٱلشَّعْبُ عَلَى هَارُونَ وَقَالُوا لَهُ: «قُمِ ٱصْنَعْ لَنَا آلِهَةً تَسِيرُ أَمَامَنَا، لِأَنَّ هَذَا مُوسَى ٱلرَّجُلَ ٱلَّذِي أَصْعَدَنَا مِنْ أَرْضِ مِصْرَ، لَا نَعْلَمُ مَاذَا أَصَابَهُ». ١ 1
जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?”
فَقَالَ لَهُمْ هَارُونُ: «ٱنْزِعُوا أَقْرَاطَ ٱلذَّهَبِ ٱلَّتِي فِي آذَانِ نِسَائِكُمْ وَبَنِيكُمْ وَبَنَاتِكُمْ وَآتُونِي بِهَا». ٢ 2
हारून ने उनसे कहा, “तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियाँ हैं उन्हें उतारो, और मेरे पास ले आओ।”
فَنَزَعَ كُلُّ ٱلشَّعْبِ أَقْرَاطَ ٱلذَّهَبِ ٱلَّتِي فِي آذَانِهِمْ وَأَتَوْا بِهَا إِلَى هَارُونَ. ٣ 3
तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को उतारा, और हारून के पास ले आए।
فَأَخَذَ ذَلِكَ مِنْ أَيْدِيهِمْ وَصَوَّرَهُ بِٱلْإِزْمِيلِ، وَصَنَعَهُ عِجْلًا مَسْبُوكًا. فَقَالُوا: «هَذِهِ آلِهَتُكَ يَا إِسْرَائِيلُ ٱلَّتِي أَصْعَدَتْكَ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ». ٤ 4
और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टाँकी से गढ़ा। तब वे कहने लगे, “हे इस्राएल तेरा ईश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।”
فَلَمَّا نَظَرَ هَارُونُ بَنَى مَذْبَحًا أَمَامَهُ، وَنَادَى هَارُونُ وَقَالَ: «غَدًا عِيدٌ لِلرَّبِّ». ٥ 5
यह देखकर हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा।”
فَبَكَّرُوا فِي ٱلْغَدِ وَأَصْعَدُوا مُحْرَقَاتٍ وَقَدَّمُوا ذَبَائِحَ سَلَامَةٍ. وَجَلَسَ ٱلشَّعْبُ لِلْأَكْلِ وَٱلشُّرْبِ ثُمَّ قَامُوا لِلَّعِبِ. ٦ 6
और दूसरे दिन लोगों ने भोर को उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِمُوسَى: «ٱذْهَبِ ٱنْزِلْ. لِأَنَّهُ قَدْ فَسَدَ شَعْبُكَ ٱلَّذِي أَصْعَدْتَهُ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ. ٧ 7
तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, वे बिगड़ गए हैं;
زَاغُوا سَرِيعًا عَنِ ٱلطَّرِيقِ ٱلَّذِي أَوْصَيْتُهُمْ بِهِ. صَنَعُوا لَهُمْ عِجْلًا مَسْبُوكًا، وَسَجَدُوا لَهُ وَذَبَحُوا لَهُ وَقَالُوا: هَذِهِ آلِهَتُكَ يَا إِسْرَائِيلُ ٱلَّتِي أَصْعَدَتْكَ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ». ٨ 8
और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैंने उनको दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, ‘हे इस्राएलियों तुम्हारा ईश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है।’”
وَقَالَ ٱلرَّبُّ لِمُوسَى: «رَأَيْتُ هَذَا ٱلشَّعْبَ وَإِذَا هُوَ شَعْبٌ صُلْبُ ٱلرَّقَبَةِ. ٩ 9
फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं।
فَٱلْآنَ ٱتْرُكْنِي لِيَحْمَى غَضَبِي عَلَيْهِمْ وَأُفْنِيَهُمْ، فَأُصَيِّرَكَ شَعْبًا عَظِيمًا». ١٠ 10
१०अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूँ; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊँगा।”
فَتَضَرَّعَ مُوسَى أَمَامَ ٱلرَّبِّ إِلَهِهِ، وَقَالَ: «لِمَاذَا يَا رَبُّ يَحْمَى غَضَبُكَ عَلَى شَعْبِكَ ٱلَّذِي أَخْرَجْتَهُ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ بِقُوَّةٍ عَظِيمَةٍ وَيَدٍ شَدِيدَةٍ؟ ١١ 11
११तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहकर मनाने लगा, “हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है?
لِمَاذَا يَتَكَلَّمُ ٱلْمِصْرِيُّونَ قَائِلِينَ: أَخْرَجَهُمْ بِخُبْثٍ لِيَقْتُلَهُمْ فِي ٱلْجِبَالِ، وَيُفْنِيَهُمْ عَنْ وَجْهِ ٱلْأَرْضِ؟ اِرْجِعْ عَنْ حُمُوِّ غَضَبِكَ، وَٱنْدَمْ عَلَى ٱلشَّرِّ بِشَعْبِكَ. ١٢ 12
१२मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएँ, ‘वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया?’ तू अपने भड़के हुए कोप को शान्त कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुँचाने से फिर जा।
اُذْكُرْ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَإِسْرَائِيلَ عَبِيدَكَ ٱلَّذِينَ حَلَفْتَ لَهُمْ بِنَفْسِكَ وَقُلْتَ لَهُمْ: أُكَثِّرُ نَسْلَكُمْ كَنُجُومِ ٱلسَّمَاءِ، وَأُعْطِي نَسْلَكُمْ كُلَّ هَذِهِ ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي تَكَلَّمْتُ عَنْهَا فَيَمْلِكُونَهَا إِلَى ٱلْأَبَدِ». ١٣ 13
१३अपने दास अब्राहम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिनसे तूने अपनी ही शपथ खाकर यह कहा था, ‘मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूँगा, और यह सारा देश जिसकी मैंने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूँगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें।’”
فَنَدِمَ ٱلرَّبُّ عَلَى ٱلشَّرِّ ٱلَّذِي قَالَ إِنَّهُ يَفْعَلُهُ بِشَعْبِهِ. ١٤ 14
१४तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उसने कहा था पछताया।
فَٱنْصَرَفَ مُوسَى وَنَزَلَ مِنَ ٱلْجَبَلِ وَلَوْحَا ٱلشَّهَادَةِ فِي يَدِهِ: لَوْحَانِ مَكْتُوبَانِ عَلَى جَانِبَيْهِمَا. مِنْ هُنَا وَمِنْ هُنَا كَانَا مَكْتُوبَيْنِ. ١٥ 15
१५तब मूसा फिरकर साक्षी की दोनों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों ओर लिखा हुआ था।
وَٱللَّوْحَانِ هُمَا صَنْعَةُ ٱللهِ، وَٱلْكِتَابَةُ كِتَابَةُ ٱللهِ مَنْقُوشَةٌ عَلَى ٱللَّوْحَيْنِ. ١٦ 16
१६और वे तख्तियाँ परमेश्वर की बनाई हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था।
وَسَمِعَ يَشُوعُ صَوْتَ ٱلشَّعْبِ فِي هُتَافِهِ فَقَالَ لِمُوسَى: «صَوْتُ قِتَالٍ فِي ٱلْمَحَلَّةِ». ١٧ 17
१७जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उसने मूसा से कहा, “छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है।”
فَقَالَ: «لَيْسَ صَوْتَ صِيَاحِ ٱلنُّصْرَةِ وَلَا صَوْتَ صِيَاحِ ٱلْكَسْرَةِ، بَلْ صَوْتَ غِنَاءٍ أَنَا سَامِعٌ». ١٨ 18
१८उसने कहा, “वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालों का है, और न हारनेवालों का, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है।”
وَكَانَ عِنْدَمَا ٱقْتَرَبَ إِلَى ٱلْمَحَلَّةِ أَنَّهُ أَبْصَرَ ٱلْعِجْلَ وَٱلرَّقْصَ، فَحَمِيَ غَضَبُ مُوسَى، وَطَرَحَ ٱللَّوْحَيْنِ مِنْ يَدَيْهِ وَكَسَّرَهُمَا فِي أَسْفَلِ ٱلْجَبَلِ. ١٩ 19
१९छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उसने तख्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला।
ثُمَّ أَخَذَ ٱلْعِجْلَ ٱلَّذِي صَنَعُوا وَأَحْرَقَهُ بِٱلنَّارِ، وَطَحَنَهُ حَتَّى صَارَ نَاعِمًا، وَذَرَّاهُ عَلَى وَجْهِ ٱلْمَاءِ، وَسَقَى بَنِي إِسْرَائِيلَ. ٢٠ 20
२०तब उसने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालकर फूँक दिया। और पीसकर चूर चूरकर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्राएलियों को उसे पिलवा दिया।
وَقَالَ مُوسَى لِهَارُونَ: «مَاذَا صَنَعَ بِكَ هَذَا ٱلشَّعْبُ حَتَّى جَلَبْتَ عَلَيْهِ خَطِيَّةً عَظِيمَةً؟» ٢١ 21
२१तब मूसा हारून से कहने लगा, “उन लोगों ने तुझ से क्या किया कि तूने उनको इतने बड़े पाप में फँसाया?”
فَقَالَ هَارُونُ: «لَا يَحْمَ غَضَبُ سَيِّدِي. أَنْتَ تَعْرِفُ ٱلشَّعْبَ أَنَّهُ فِي شَرٍّ. ٢٢ 22
२२हारून ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं।
فَقَالُوا لِيَ: ٱصْنَعْ لَنَا آلِهَةً تَسِيرُ أَمَامَنَا، لِأَنَّ هَذَا مُوسَى ٱلرَّجُلَ ٱلَّذِي أَصْعَدَنَا مِنْ أَرْضِ مِصْرَ، لَا نَعْلَمُ مَاذَا أَصَابَهُ. ٢٣ 23
२३और उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?’
فَقُلْتُ لَهُمْ: مَنْ لَهُ ذَهَبٌ فَلْيَنْزِعْهُ وَيُعْطِنِي. فَطَرَحْتُهُ فِي ٱلنَّارِ فَخَرَجَ هَذَا ٱلْعِجْلُ». ٢٤ 24
२४तब मैंने उनसे कहा, ‘जिस जिसके पास सोने के गहने हों, वे उनको उतार लाएँ;’ और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैंने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा।”
وَلَمَّا رَأَى مُوسَى ٱلشَّعْبَ أَنَّهُ مُعَرًّى لِأَنَّ هَارُونَ كَانَ قَدْ عَرَّاهُ لِلْهُزْءِ بَيْنَ مُقَاوِمِيهِ، ٢٥ 25
२५हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास के योग्य हुए,
وَقَفَ مُوسَى فِي بَابِ ٱلْمَحَلَّةِ، وَقَالَ: «مَنْ لِلرَّبِّ فَإِلَيَّ». فَٱجْتَمَعَ إِلَيْهِ جَمِيعُ بَنِي لَاوِي. ٢٦ 26
२६उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, “जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए;” तब सारे लेवीय उसके पास इकट्ठे हुए।
فَقَالَ لَهُمْ: «هَكَذَا قَالَ ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ: ضَعُوا كُلُّ وَاحِدٍ سَيْفَهُ عَلَى فَخْذِهِ وَمُرُّوا وَٱرْجِعُوا مِنْ بَابٍ إِلَى بَابٍ فِي ٱلْمَحَلَّةِ، وَٱقْتُلُوا كُلُّ وَاحِدٍ أَخَاهُ وَكُلُّ وَاحِدٍ صَاحِبَهُ وَكُلُّ وَاحِدٍ قَرِيبَهُ». ٢٧ 27
२७उसने उनसे कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, कि अपनी-अपनी जाँघ पर तलवार लटकाकर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम-घूमकर अपने-अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों को घात करो।”
فَفَعَلَ بَنُو لَاوِي بِحَسَبِ قَوْلِ مُوسَى. وَوَقَعَ مِنَ ٱلشَّعْبِ فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ نَحْوُ ثَلَاثَةِ آلَافِ رَجُلٍ. ٢٨ 28
२८मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया और उस दिन तीन हजार के लगभग लोग मारे गए।
وَقَالَ مُوسَى: «ٱمْلَأُوا أَيْدِيَكُمُ ٱلْيَوْمَ لِلرَّبِّ، حَتَّى كُلُّ وَاحِدٍ بِٱبْنِهِ وَبِأَخِيهِ، فَيُعْطِيَكُمُ ٱلْيَوْمَ بَرَكَةً». ٢٩ 29
२९फिर मूसा ने कहा, “आज के दिन यहोवा के लिये अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन् अपने-अपने बेटों और भाइयों के भी विरुद्ध होकर ऐसा करो जिससे वह आज तुम को आशीष दे।”
وَكَانَ فِي ٱلْغَدِ أَنَّ مُوسَى قَالَ لِلشَّعْبِ: «أَنْتُمْ قَدْ أَخْطَأْتُمْ خَطِيَّةً عَظِيمَةً، فَأَصْعَدُ ٱلْآنَ إِلَى ٱلرَّبِّ لَعَلِّي أُكَفِّرُ خَطِيَّتَكُمْ». ٣٠ 30
३०दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊँगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित कर सकूँ।”
فَرَجَعَ مُوسَى إِلَى ٱلرَّبِّ، وَقَالَ: «آهِ، قَدْ أَخْطَأَ هَذَا ٱلشَّعْبُ خَطِيَّةً عَظِيمَةً وَصَنَعُوا لِأَنْفُسِهِمْ آلِهَةً مِنْ ذَهَبٍ. ٣١ 31
३१तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, “हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है।
وَٱلْآنَ إِنْ غَفَرْتَ خَطِيَّتَهُمْ، وَإِلَّا فَٱمْحُنِي مِنْ كِتَابِكَ ٱلَّذِي كَتَبْتَ». ٣٢ 32
३२तो भी अब तू उनका पाप क्षमा कर नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِمُوسَى: «مَنْ أَخْطَأَ إِلَيَّ أَمْحُوهُ مِنْ كِتَابِي. ٣٣ 33
३३यहोवा ने मूसा से कहा, “जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा।
وَٱلْآنَ ٱذْهَبِ ٱهْدِ ٱلشَّعْبَ إِلَى حَيْثُ كَلَّمْتُكَ. هُوَذَا مَلَاكِي يَسِيرُ أَمَامَكَ. وَلَكِنْ فِي يَوْمِ ٱفْتِقَادِي أَفْتَقِدُ فِيهِمْ خَطِيَّتَهُمْ». ٣٤ 34
३४अब तो तू जाकर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चर्चा मैंने तुझ से की थी; देख मेरा दूत तेरे आगे-आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूँगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूँगा।”
فَضَرَبَ ٱلرَّبُّ ٱلشَّعْبَ، لِأَنَّهُمْ صَنَعُوا ٱلْعِجْلَ ٱلَّذِي صَنَعَهُ هَارُونُ. ٣٥ 35
३५अतः यहोवा ने उन लोगों पर विपत्ति भेजी, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया था।

< اَلْخُرُوجُ 32 >