< اَلْخُرُوجُ 21 >

«وَهَذِهِ هِيَ ٱلْأَحْكَامُ ٱلَّتِي تَضَعُ أَمَامَهُمْ: ١ 1
फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे ये हैं।
إِذَا ٱشْتَرَيْتَ عَبْدًا عِبْرَانِيًّا، فَسِتَّ سِنِينَ يَخْدِمُ، وَفِي ٱلسَّابِعَةِ يَخْرُجُ حُرًّا مَجَّانًا. ٢ 2
“जब तुम कोई इब्री दास मोल लो, तब वह छः वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतंत्र होकर सेंत-मेंत चला जाए।
إِنْ دَخَلَ وَحْدَهُ فَوَحْدَهُ يَخْرُجُ. إِنْ كَانَ بَعْلَ ٱمْرَأَةٍ، تَخْرُجُ ٱمْرَأَتُهُ مَعَهُ. ٣ 3
यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साथ उसकी पत्नी भी चली जाए।
إِنْ أَعْطَاهُ سَيِّدُهُ ٱمْرَأَةً وَوَلَدَتْ لَهُ بَنِينَ أَوْ بَنَاتٍ، فَٱلْمَرْأَةُ وَأَوْلَادُهَا يَكُونُونَ لِسَيِّدِهِ، وَهُوَ يَخْرُجُ وَحْدَهُ. ٤ 4
यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उससे उसके बेटे या बेटियाँ उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उस स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए।
وَلَكِنْ إِنْ قَالَ ٱلْعَبْدُ: أُحِبُّ سَيِّدِي وَٱمْرَأَتِي وَأَوْلَادِي، لَا أَخْرُجُ حُرًّا، ٥ 5
परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, ‘मैं अपने स्वामी, और अपनी पत्नी, और बालकों से प्रेम रखता हूँ; इसलिए मैं स्वतंत्र होकर न चला जाऊँगा;’
يُقَدِّمُهُ سَيِّدُهُ إِلَى ٱللهِ، وَيُقَرِّبُهُ إِلَى ٱلْبَابِ أَوْ إِلَى ٱلْقَائِمَةِ، وَيَثْقُبُ سَيِّدُهُ أُذْنَهُ بِٱلْمِثْقَبِ، فَيَخْدِمُهُ إِلَى ٱلْأَبَدِ. ٦ 6
तो उसका स्वामी उसको परमेश्वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ या बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करें; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।
وَإِذَا بَاعَ رَجُلٌ ٱبْنَتَهُ أَمَةً، لَا تَخْرُجُ كَمَا يَخْرُجُ ٱلْعَبِيدُ. ٧ 7
“यदि कोई अपनी बेटी को दासी होने के लिये बेच डालें, तो वह दासी के समान बाहर न जाए।
إِنْ قَبُحَتْ فِي عَيْنَيْ سَيِّدِهَا ٱلَّذِي خَطَبَهَا لِنَفْسِهِ، يَدَعُهَا تُفَكُّ. وَلَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ أَنْ يَبِيعَهَا لِقَوْمٍ أَجَانِبَ لِغَدْرِهِ بِهَا. ٨ 8
यदि उसका स्वामी उसको अपनी पत्नी बनाए, और फिर उससे प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्वासघात करने के बाद उसे विदेशी लोगों के हाथ बेचने का उसको अधिकार न होगा।
وَإِنْ خَطَبَهَا لِٱبْنِهِ فَبِحَسَبِ حَقِّ ٱلْبَنَاتِ يَفْعَلُ لَهَا. ٩ 9
यदि उसने उसे अपने बेटे को ब्याह दिया हो, तो उससे बेटी का सा व्यवहार करे।
إِنِ ٱتَّخَذَ لِنَفْسِهِ أُخْرَى، لَا يُنَقِّصُ طَعَامَهَا وَكِسْوَتَهَا وَمُعَاشَرَتَهَا. ١٠ 10
१०चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तो भी वह उसका भोजन, वस्त्र, और संगति न घटाए।
وَإِنْ لَمْ يَفْعَلْ لَهَا هَذِهِ ٱلثَّلَاثَ تَخْرُجُ مَجَّانًا بِلَا ثَمَنٍ. ١١ 11
११और यदि वह इन तीन बातों में घटी करे, तो वह स्त्री सेंत-मेंत बिना दाम चुकाए ही चली जाए।
«مَنْ ضَرَبَ إِنْسَانًا فَمَاتَ يُقْتَلُ قَتْلًا. ١٢ 12
१२“जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए।
وَلَكِنَّ ٱلَّذِي لَمْ يَتَعَمَّدْ، بَلْ أَوْقَعَ ٱللهُ فِي يَدِهِ، فَأَنَا أَجْعَلُ لَكَ مَكَانًا يَهْرُبُ إِلَيْهِ. ١٣ 13
१३यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के निमित्त मैं एक स्थान ठहराऊँगा जहाँ वह भाग जाए।
وَإِذَا بَغَى إِنْسَانٌ عَلَى صَاحِبِهِ لِيَقْتُلَهُ بِغَدْرٍ فَمِنْ عِنْدِ مَذْبَحِي تَأْخُذُهُ لِلْمَوْتِ. ١٤ 14
१४परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार डालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।
وَمَنْ ضَرَبَ أَبَاهُ أَوْ أُمَّهُ يُقْتَلُ قَتْلًا. ١٥ 15
१५“जो अपने पिता या माता को मारे-पीटे वह निश्चय मार डाला जाए।
وَمَنْ سَرَقَ إِنْسَانًا وَبَاعَهُ، أَوْ وُجِدَ فِي يَدِهِ، يُقْتَلُ قَتْلًا. ١٦ 16
१६“जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए।
وَمَنْ شَتَمَ أَبَاهُ أَوْ أُمَّهُ يُقْتَلُ قَتْلًا. ١٧ 17
१७“जो अपने पिता या माता को श्राप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।
وَإِذَا تَخَاصَمَ رَجُلَانِ فَضَرَبَ أَحَدُهُمَا ٱلْآخَرَ بِحَجَرٍ أَوْ بِلَكْمَةٍ وَلَمْ يُقْتَلْ بَلْ سَقَطَ فِي ٱلْفِرَاشِ، ١٨ 18
१८“यदि मनुष्य झगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे,
فَإِنْ قَامَ وَتَمَشَّى خَارِجًا عَلَى عُكَّازِهِ يَكُونُ ٱلضَّارِبُ بَرِيئًا. إِلَّا أَنَّهُ يُعَوِّضُ عُطْلَتَهُ، وَيُنْفِقُ عَلَى شِفَائِهِ. ١٩ 19
१९तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पड़े रहने के समय की हानि भर दे, और उसको भला चंगा भी करा दे।
وَإِذَا ضَرَبَ إِنْسَانٌ عَبْدَهُ أَوْ أَمَتَهُ بِٱلْعَصَا فَمَاتَ تَحْتَ يَدِهِ يُنْتَقَمُ مِنْهُ. ٢٠ 20
२०“यदि कोई अपने दास या दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब तो उसको निश्चय दण्ड दिया जाए।
لَكِنْ إِنْ بَقِيَ يَوْمًا أَوْ يَوْمَيْنِ لَا يُنْتَقَمُ مِنْهُ لِأَنَّهُ مَالُهُ. ٢١ 21
२१परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है।
وَإِذَا تَخَاصَمَ رِجَالٌ وَصَدَمُوا ٱمْرَأَةً حُبْلَى فَسَقَطَ وَلَدُهَا وَلَمْ تَحْصُلْ أَذِيَّةٌ، يُغَرَّمُ كَمَا يَضَعُ عَلَيْهِ زَوْجُ ٱلْمَرْأَةِ، وَيَدْفَعُ عَنْ يَدِ ٱلْقُضَاةِ. ٢٢ 22
२२“यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गर्भवती स्त्री को ऐसी चोट पहुँचाए, कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए।
وَإِنْ حَصَلَتْ أَذِيَّةٌ تُعْطِي نَفْسًا بِنَفْسٍ، ٢٣ 23
२३परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुँचे, तो प्राण के बदले प्राण का,
وَعَيْنًا بِعَيْنٍ، وَسِنًّا بِسِنٍّ، وَيَدًا بِيَدٍ، وَرِجْلًا بِرِجْلٍ، ٢٤ 24
२४और आँख के बदले आँख का, और दाँत के बदले दाँत का, और हाथ के बदले हाथ का, और पाँव के बदले पाँव का,
وَكَيًّا بِكَيٍّ، وَجُرْحًا بِجُرْحٍ، وَرَضًّا بِرَضٍّ. ٢٥ 25
२५और दाग के बदले दाग का, और घाव के बदले घाव का, और मार के बदले मार का दण्ड हो।
وَإِذَا ضَرَبَ إِنْسَانٌ عَيْنَ عَبْدِهِ، أَوْ عَيْنَ أَمَتِهِ فَأَتْلَفَهَا، يُطْلِقُهُ حُرًّا عِوَضًا عَنْ عَيْنِهِ. ٢٦ 26
२६“जब कोई अपने दास या दासी की आँख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे स्वतंत्र करके जाने दे।
وَإِنْ أَسْقَطَ سِنَّ عَبْدِهِ أَوْ سِنَّ أَمَتِهِ يُطْلِقُهُ حُرًّا عِوَضًا عَنْ سِنِّهِ. ٢٧ 27
२७और यदि वह अपने दास या दासी को मारकर उसका दाँत तोड़ डाले, तो वह उसके दाँत के बदले उसे स्वतंत्र करके जाने दे।
«وَإِذَا نَطَحَ ثَوْرٌ رَجُلًا أَوِ ٱمْرَأَةً فَمَاتَ، يُرْجَمُ ٱلثَّوْرُ وَلَا يُؤْكَلُ لَحْمُهُ. وَأَمَّا صَاحِبُ ٱلثَّوْرِ فَيَكُونُ بَرِيئًا. ٢٨ 28
२८“यदि बैल किसी पुरुष या स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल तो निश्चय पथरवाह करके मार डाला जाए, और उसका माँस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे।
وَلَكِنْ إِنْ كَانَ ثَوْرًا نَطَّاحًا مِنْ قَبْلُ، وَقَدْ أُشْهِدَ عَلَى صَاحِبِهِ وَلَمْ يَضْبِطْهُ، فَقَتَلَ رَجُلًا أَوِ ٱمْرَأَةً، فَٱلثَّوْرُ يُرْجَمُ وَصَاحِبُهُ أَيْضًا يُقْتَلُ. ٢٩ 29
२९परन्तु यदि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बाँध रखा हो, और वह किसी पुरुष या स्त्री को मार डाले, तब तो वह बैल पथरवाह किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए।
إِنْ وُضِعَتْ عَلَيْهِ فِدْيَةٌ، يَدْفَعُ فِدَاءَ نَفْسِهِ كُلُّ مَا يُوضَعُ عَلَيْهِ. ٣٠ 30
३०यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिये ठहराया जाए उसे उतना ही देना पड़ेगा।
أَوْ إِذَا نَطَحَ ٱبْنًا أَوْ نَطَحَ ٱبْنَةً فَبِحَسَبِ هَذَا ٱلْحُكْمِ يُفْعَلُ بِهِ. ٣١ 31
३१चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तो भी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साथ व्यवहार किया जाए।
إِنْ نَطَحَ ٱلثَّوْرُ عَبْدًا أَوْ أَمَةً، يُعْطِي سَيِّدَهُ ثَلَاثِينَ شَاقِلَ فِضَّةٍ، وَٱلثَّوْرُ يُرْجَمُ. ٣٢ 32
३२यदि बैल ने किसी दास या दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और वह बैल पथरवाह किया जाए।
وَإِذَا فَتَحَ إِنْسَانٌ بِئْرًا، أَوْحَفَرَ إِنْسَانٌ بِئْرًا وَلَمْ يُغَطِّهِ، فَوَقَعَ فِيهِ ثَوْرٌ أَوْ حِمَارٌ، ٣٣ 33
३३“यदि कोई मनुष्य गड्ढा खोलकर या खोदकर उसको न ढाँपे, और उसमें किसी का बैल या गदहा गिर पड़े,
فَصَاحِبُ ٱلْبِئْرِ يُعَوِّضُ وَيَرُدُّ فِضَّةً لِصَاحِبِهِ، وَٱلْمَيْتُ يَكُونُ لَهُ. ٣٤ 34
३४तो जिसका वह गड्ढा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोथ गड्ढेवाले की ठहरे।
وَإِذَا نَطَحَ ثَوْرُ إِنْسَانٍ ثَوْرَ صَاحِبِهِ فَمَاتَ، يَبِيعَانِ ٱلثَّوْرَ ٱلْحَيَّ وَيَقْتَسِمَانِ ثَمَنَهُ. وَٱلْمَيْتُ أَيْضًا يَقْتَسِمَانِهِ. ٣٥ 35
३५“यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए, कि वह मर जाए, तो वे दोनों मनुष्य जीवित बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा-आधा बाँट लें; और लोथ को भी वैसा ही बाँटें।
لَكِنْ إِذَا عُلِمَ أَنَّهُ ثَوْرٌ نَطَّاحٌ مِنْ قَبْلُ وَلَمْ يَضْبِطْهُ صَاحِبُهُ، يُعَوِّضُ عَنِ ٱلثَّوْرِ بِثَوْرٍ، وَٱلْمَيْتُ يَكُونُ لَهُ. ٣٦ 36
३६यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी थी, पर उसके स्वामी ने उसे बाँध नहीं रखा, तो निश्चय वह बैल के बदले बैल भर दे, पर लोथ उसी की ठहरे।

< اَلْخُرُوجُ 21 >