< اَلتَّثْنِيَة 6 >
«وَهَذِهِ هِيَ ٱلْوَصَايَا وَٱلْفَرَائِضُ وَٱلْأَحْكَامُ ٱلَّتِي أَمَرَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكُمْ أَنْ أُعَلِّمَكُمْ لِتَعْمَلُوهَا فِي ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَنْتُمْ عَابِرُونَ إِلَيْهَا لِتَمْتَلِكُوهَا، | ١ 1 |
यह वह फ़रमान और आईन और अहकाम हैं, जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको सिखाने का हुक्म दिया है; ताकि तुम उन पर उस मुल्क में 'अमल करो, जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए पार जाने को हो।
لِكَيْ تَتَّقِيَ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ وَتَحْفَظَ جَمِيعَ فَرَائِضِهِ وَوَصَايَاهُ ٱلَّتِي أَنَا أُوصِيكَ بِهَا، أَنْتَ وَٱبْنُكَ وَٱبْنُ ٱبْنِكَ كُلَّ أَيَّامِ حَيَاتِكَ، وَلِكَيْ تَطُولَ أَيَّامُكَ. | ٢ 2 |
और तुम अपने बेटों और पोतों समेत ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर उसके तमाम आईन और अहकाम पर, जो मैं तुमको बताता हूँ, ज़िन्दगी भर 'अमल करना ताकि तुम्हारी उम्र दराज़ हो।
فَٱسْمَعْ يَا إِسْرَائِيلُ وَٱحْتَرِزْ لِتَعْمَلَ، لِكَيْ يَكُونَ لَكَ خَيْرٌ وَتَكْثُرَ جِدًّا، كَمَا كَلَّمَكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُ آبَائِكَ فِي أَرْضٍ تَفِيضُ لَبَنًا وَعَسَلًا. | ٣ 3 |
इसलिए, ऐ इस्राईल सुन, और एहतियात करके उन पर 'अमल कर, ताकि तेरा भला हो और तुम ख़ुदावन्द अपने बाप — दादा के ख़ुदा के वा'दे के मुताबिक़ उस मुल्क में, जिस में दूध और शहद बहता है बहुत बढ़ जाओ।
«اِسْمَعْ يَا إِسْرَائِيلُ: ٱلرَّبُّ إِلَهُنَا رَبٌّ وَاحِدٌ. | ٤ 4 |
'सुन, ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावन्द है।
فَتُحِبُّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ مِنْ كُلِّ قَلْبِكَ وَمِنْ كُلِّ نَفْسِكَ وَمِنْ كُلِّ قُوَّتِكَ. | ٥ 5 |
तू अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान, और अपनी सारी ताक़त से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख।
وَلْتَكُنْ هَذِهِ ٱلْكَلِمَاتُ ٱلَّتِي أَنَا أُوصِيكَ بِهَا ٱلْيَوْمَ عَلَى قَلْبِكَ، | ٦ 6 |
और ये बातें जिनका हुक्म आज मैं तुझे देता हूँ तेरे दिल पर नक़्श रहें।
وَقُصَّهَا عَلَى أَوْلَادِكَ، وَتَكَلَّمْ بِهَا حِينَ تَجْلِسُ فِي بَيْتِكَ، وَحِينَ تَمْشِي فِي ٱلطَّرِيقِ، وَحِينَ تَنَامُ وَحِينَ تَقُومُ، | ٧ 7 |
और तू इनको अपनी औलाद के ज़हन नशीं करना, और घर बैठे और राह चलते और लेटते और उठते वक़्त इनका ज़िक्र किया करना।
وَٱرْبُطْهَا عَلَامَةً عَلَى يَدِكَ، وَلْتَكُنْ عَصَائِبَ بَيْنَ عَيْنَيْكَ، | ٨ 8 |
और तू निशान के तौर पर इनको अपने हाथ पर बाँधना, और वह तेरी पेशानी पर टीकों की तरह हों।
وَٱكْتُبْهَا عَلَى قَوَائِمِ أَبْوَابِ بَيْتِكَ وَعَلَى أَبْوَابِكَ. | ٩ 9 |
और तू उनको अपने घर की चौखटों और अपने फाटकों पर लिखना।
«وَمَتَى أَتَى بِكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي حَلَفَ لِآبَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أَنْ يُعْطِيَكَ، إِلَى مُدُنٍ عَظِيمَةٍ جَيِّدَةٍ لَمْ تَبْنِهَا، | ١٠ 10 |
और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको उस मुल्क में पहुँचाए, जिसे तुझको देने की क़सम उसने तेरे बाप — दादा अब्रहाम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई, और जब वह तुझको बड़े — बड़े और अच्छे शहर जिनको तूने नहीं बनाया,
وَبُيُوتٍ مَمْلُوءَةٍ كُلَّ خَيْرٍ لَمْ تَمْلَأْهَا، وَأَبَآرٍ مَحْفُورَةٍ لَمْ تَحْفِرْهَا، وَكُرُومٍ وَزَيْتُونٍ لَمْ تَغْرِسْهَا، وَأَكَلْتَ وَشَبِعْتَ، | ١١ 11 |
और अच्छी — अच्छी चीज़ों से भरे हुऐ घर जिनको तूने नहीं भरा, और खोदे — खुदाए हौज़ जो तूने नहीं खोदे, और अंगूर के बाग़ और ज़ैतून के दरख़्त जो तूने नहीं लगाए 'इनायत करे, और तू खाए और सेर हो,
فَٱحْتَرِزْ لِئَلَّا تَنْسَى ٱلرَّبَّ ٱلَّذِي أَخْرَجَكَ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ مِنْ بَيْتِ ٱلْعُبُودِيَّةِ. | ١٢ 12 |
तो तू होशियार रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू ख़ुदावन्द को जो तुझको मुल्क — ए — मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया भूल जाए।
ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ تَتَّقِي، وَإِيَّاهُ تَعْبُدُ، وَبِٱسْمِهِ تَحْلِفُ. | ١٣ 13 |
तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, और उसी की इबादत करना, और उसी के नाम की क़सम खाना।
لَا تَسِيرُوا وَرَاءَ آلِهَةٍ أُخْرَى مِنْ آلِهَةِ ٱلْأُمَمِ ٱلَّتِي حَوْلَكُمْ، | ١٤ 14 |
तुम और मा'बूदों की या'नी उन क़ौमों के मा'बूदों की, जो तुम्हारे आस — पास रहती हैं पैरवी न करना।
لِأَنَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكُمْ إِلَهٌ غَيُورٌ فِي وَسَطِكُمْ، لِئَلَّا يَحْمَى غَضَبُ ٱلرَّبِّ إِلَهِكُمْ عَلَيْكُمْ فَيُبِيدَكُمْ عَنْ وَجْهِ ٱلْأَرْضِ. | ١٥ 15 |
क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा जो तुम्हारे बीच है ग़य्यूर ख़ुदा है। इसलिए ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ग़ज़ब तुझ पर भड़के, और वह तुझको इस ज़मीन पर से फ़ना कर दे।
لَا تُجَرِّبُوا ٱلرَّبَّ إِلَهَكُمْ كَمَا جَرَّبْتُمُوهُ فِي مَسَّةَ. | ١٦ 16 |
“तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को मत आज़माना, जैसा तुमने उसे मस्सा में आज़माया था।
ٱحْفَظُوا وَصَايَا ٱلرَّبِّ إِلَهِكُمْ وَشَهَادَاتِهِ وَفَرَائِضِهِ ٱلَّتِي أَوْصَاكُمْ بِهَا. | ١٧ 17 |
तुम मेहनत से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों और शहादतों और आईन को, जो उसने तुझको फ़रमाए हैं मानना।
وَٱعْمَلِ ٱلصَّالِحَ وَٱلْحَسَنَ فِي عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ، لِكَيْ يَكُونَ لَكَ خَيْرٌ، وَتَدْخُلَ وَتَمْتَلِكَ ٱلْأَرْضَ ٱلْجَيِّدَةَ ٱلَّتِي حَلَفَ ٱلرَّبُّ لِآبَائِكَ | ١٨ 18 |
और तुम वह ही करना जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त और अच्छा है ताकि तेरा भला हो और जिस अच्छे मुल्क के बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप — दादा से क़सम खाई तू उसमें दाख़िल होकर उस पर क़ब्ज़ा कर सके।
أَنْ يَنْفِيَ جَمِيعَ أَعْدَائِكَ مِنْ أَمَامِكَ. كَمَا تَكَلَّمَ ٱلرَّبُّ. | ١٩ 19 |
और ख़ुदावन्द तेरे सब दुश्मनों को तुम्हारे आगे से दफ़ा' करे, जैसा उसने कहा है।
«إِذَا سَأَلَكَ ٱبْنُكَ غَدًا قَائِلًا: مَا هِيَ ٱلشَّهَادَاتُ وَٱلْفَرَائِضُ وَٱلْأَحْكَامُ ٱلَّتِي أَوْصَاكُمْ بِهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُنَا؟ | ٢٠ 20 |
“और जब आइन्दा ज़माने में तुम्हारे बेटे तुझसे सवाल करें, कि जिन शहादतों और आईन और फ़रमान के मानने का हुक्म ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुमको दिया है उनका मतलब क्या है?
تَقُولُ لِٱبْنِكَ: كُنَّا عَبِيدًا لِفِرْعَوْنَ فِي مِصْرَ، فَأَخْرَجَنَا ٱلرَّبُّ مِنْ مِصْرَ بِيَدٍ شَدِيدَةٍ. | ٢١ 21 |
तो तू अपने बेटों को यह जवाब देना, कि जब हम मिस्र में फ़िर'औन के ग़ुलाम थे, तो ख़ुदावन्द अपने ताक़तवर हाथ से हमको मिस्र से निकाल लाया;
وَصَنَعَ ٱلرَّبُّ آيَاتٍ وَعَجَائِبَ عَظِيمَةً وَرَدِيئَةً بِمِصْرَ، بِفِرْعَوْنَ وَجَمِيعِ بَيْتِهِ أَمَامَ أَعْيُنِنَا | ٢٢ 22 |
और ख़ुदावन्द ने बड़े — बड़े और हौलनाक अजायब — ओ — निशान हमारे सामने अहल — ए — मिस्र, और फ़िर'औन और उसके सब घराने पर करके दिखाए;
وَأَخْرَجَنَا مِنْ هُنَاكَ لِكَيْ يَأْتِيَ بِنَا وَيُعْطِيَنَا ٱلْأَرْضَ ٱلَّتِي حَلَفَ لِآبَائِنَا. | ٢٣ 23 |
और हमको वहाँ से निकाल लाया ताकि हमको इस मुल्क में, जिसे हमको देने की क़सम उसने हमारे बाप दादा से खाई पहुँचाए।
فَأَمَرَنَا ٱلرَّبُّ أَنْ نَعْمَلَ جَمِيعَ هَذِهِ ٱلْفَرَائِضَ وَنَتَّقِيَ ٱلرَّبَّ إِلَهَنَا، لِيَكُونَ لَنَا خَيْرٌ كُلَّ ٱلْأَيَّامِ، وَيَسْتَبْقِيَنَا كَمَا فِي هَذَا ٱلْيَوْمِ. | ٢٤ 24 |
इसलिए ख़ुदावन्द ने हमको इन सब हुक्मों पर 'अमल करने और हमेशा अपनी भलाई के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानने का हुक्म दिया है, ताकि वह हमको ज़िन्दा रख्खे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
وَإِنَّهُ يَكُونُ لَنَا بِرٌّ إِذَا حَفِظْنَا جَمِيعَ هَذِهِ ٱلْوَصَايَا لِنَعْمَلَهَا أَمَامَ ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا كَمَا أَوْصَانَا. | ٢٥ 25 |
और अगर हम एहतियात रख्खें कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने इन सब हुक्मों को मानें, जैसा उस ने हमसे कहा है, तो इसी में हमारी सदाक़त होगी।